Author Topic: Ufrayi Devi Maudvi Fair-held once in 12 yrs- उफराई देवी का मौडवी महोत्सव  (Read 4112 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Dosto,


 आज हम मेरापहाड़ फोरम में देवी उफराई देवी मौडवी महत्व के बारे में बतायंगे! देवी उफराई के बारे में यह लेख भुवन नौटियाल ने लिखा है! अगर आपके पास संभंधित जानकारी है और फोटो है इस टोपिक में आप भी शेयर कर सकते है!

Regards,

 एम् एस मेहता 

-----------------

उफराई देवी का मौडवी महोत्सव


देवभूमि  उत्तराखंड वासियों के लिए देवी-देवताओं के साथ पारिवारिक रिश्तों की ध्ारती हैं। उत्तराखंड का सुप्रसिह् नन्दाध्ााम नौटी जहां से हिमालय के महाकुंभ नन्दादेवी राजताज का शुभारम्भ होता है, वहां की भूमि देवता ≈फराई देवी की महापूजा मौडिवी के आयोजन की परम्परा नन्दा देवी राजजात से पूर्व करने की रही है। इस वर्ष 14 वर्ष बाद मौडिवी आयोजन 6 दिसम्बर तक हो रहा है। इस सदी का यह प्रथम महोत्सव होगा। नौटी गांव के भगवती नन्दा व ≈फराई के भक्त इतिहास के जानकार स्व0 देवराम नौटियाल द्वारा जीवन के अंतिम सांस तक दस्तावेज, लोकगीत व जनश्रुति के माध्यम से संग्रहित इतिहास के आध्ाार पर भगवती ≈फराई देवी से सम्बध्ाित अध्ािकांश जानकारियां मिली हैं। 7वीं शताब्दी में नौटी के सामने बैनोली गांव की महिलाएं घास के लिए नौटी ग्राम के उŸार दिशा की चोटी पर आई। उनके साथ आलम सिंह की लड़की भी घास-लकड़ी बटोरने जंगल में आई थी। इसी बीच चोटी पर बैठकर कुंवारी लड़की भगवती के गीतों और हिमालय दर्शन में इतनी लीन हो गई कि देवताओं द्वाराहर ली गई। महिलाएं घास-लकड़ी लेकर चोटी पर लौटी, तो उन्होंने कुंवारी कन्या को अनेक आवाजें देकर पुकारा, लेकिन उसका कोई पता नहीं लगा। बाद में उन्हांेने देखा कि चोटी पर रस्सी व दराती पड़ी है, निराश व दुःखी महिलाएं बैनोली लौट आई। सूचनामिलने पर मशालें लेकर गांव के आस-पास के लोग दो दिन तक जंगल गए। काफी दूर तक खोज की, लेकिन निराशा ही हाथ लगी लापता कुंवारी लड़की नहीं मिल पाई। इसी रात्रि में लापता कुंवारी लड़की नौटी गांव के मुखिया के सपनों में आई और कहा कि मैं तुम्हारे गांव नौटी, मैठाणा, नैंणीं, झुरकण्डे, बैनोली, छतोली देवी की भूमियाल हो गई हूं। मेरा नाम ≈फराई देवी है और जिस चो ट ी से मै ं अदृश्य हुई हूं, उसका नाम ≈फराई ढाक होगा। तुम मेरी मूर्ति बनवाकर ग्राम मंदिर में प्रतिष्ठित करना 12 माह पूजा करना, मेरे स्वामी शंकर चोटी में शिलारूप में अवस्थित हैं। तुम ध्ाान बोने से पूर्व एक पाथा ;2किलो द्ध ध्ाान अलग रख देना, गेहूं फसल तैयारी पर नए गेहूं की कच्ची बाल, भूने हुए दाने (उमी), ध्ाान कूट कर प्रत्येक जेठ माह मुझे डोली पर ले जाकर स्वामी शंकर के साथ चोटी पर मिलन, पूजा-भोग करवाकर मुझे वापस पानी के स्रोत मौडिवी स्थान पर भोग लगाने के बाद वापस ग्राम में ले आना। इस पूजा को बिजौंण ;नया नाज पूजाद्ध कहते हैं। देवी ने स्वप्न में कहा कि हर 12 साल में बड़ी पूजा ‘‘मौडिवी’’ का आयोजन करना। पंचाग के अनुसार लग्न न मिलने या अन्य अवरोध्ाकों के कारण कालान्तर में 12 वर्ष के कार्यÿम में विलम्ब होता रहा है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


≈फरांई देवी का क्षेत्र चांदपुर रानीगढ़ के साथ-साथ पौड़ी जनपद के ≈फरांई खाल तक फैला है। अनेक गांवों में ≈फरांई देवी के मंदिर हैं, रानीगढ़ का कमेड़ा गांव भगवती ≈फरांई देवी का गूंठ गांव गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया था, जिससे मंदिर की पूजा-अर्चना होती थी। चांदपुरगढ़ी के राजा ने 8वीं शताब्दि में नौटी में नन्दा देवी के श्रीयंत्र की भूमिगत स्थापना की और 9वीं शताब्दि से नौटी से ही हिमालय का कुंभ नन्दा को मायके से ससुराल ;कैलाशद्ध भेजने की महायात्रा नन्दादेवी राजजात का शुभारम्भ किया, जिसमें भगवती नन्दा को भेजने के लिए बदरीनाथ सहित सैकड़ों देवी-देवताओं के प्रतीक, ध्वज, छन्तोलियां, निशान व डोलियां गढ़वाल व कुमा≈ं क्षेत्र से भक्तों के अपार समूहों के साथ जाती हैं। चांदपुरगढ़ी के राजा द्वारा भगवती ≈फरांई देवी को राजराजेश्वरी का सम्मान प्राप्त था। राजा ने रानी गढ़ के कमेड़ा गांव को ≈फरांई देवी का गूंढ़ गांव घोषित कर मंदिर की पूजा व्यवस्था को सुदृढ़ किया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
यही नहीं, नन्दा देवी राजजात की भांति मौडिवी पूजा में भी कांसुवा गांव में रहने वाले अपने छोटे राजवंशी कुंवरों को भी राज्य की ओर से पूजा में प्रतिनिध्ाित्व का अध्ािकार सौंपा। राज्यों के भारतीय गणराज्य में विलीन होने, प्रिविपर्स बन्द होने, गूंठ गांव समाप्त होने के बाद केन्द्र व राज्य सरकार की भी जिम्मेदारी मंदिरों एवं उनके पूजा व विशेष कार्यÿमों में सहयोग देने की हो जाती है। नौटी गांव के लोगों ने भारत-तिब्बत पर चीनी आÿमण से हुए राष्टन्न्ीय संकट को देखते हुए सन् 1963 में रक्षा कोष में साढ़े सŸाावन तोला चांदी उŸार प्र्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल को क्षेत्रीय विध्ाायक योगेश्वर प्रसाद खण्डूड़ी की उपस्थिति में दान दी। इस भगवती ≈फरांई की सम्पŸिा को राष्टन्न्ीय सुरक्षा में लगाने का अद्वितीय कार्य ग्राम वासियों व मंदिर समिति ने किया।पर्वतीय संस्कृति के अनुसार शीतकाल के मंगसीर एवं पूस माह में खेती-पाती के अवकाश माह होने के कारण ध्याणियों (विवाहित महिलाओं) के मायके में रहने के महीने होते हैं। यहां यह भी विश्वास किया जाता है कि बैनोली गांव की कुंवारी कन्या इन्हीं दिनोंभगवती ≈फरांई के रूप में अवतरित हुई हो। प्रारम्भ काल से लेकर आज तक मौडिवी एक दिन की होती रही है, जिसमें नौटी के ≈फरांई देवी मंदिर से भगवती ≈फरांई की चांदी की मूर्ति को श्रृंगार के साथ डोली में सजाकर बाजे-गाजे, भंकोर, चंवर, चांदी, छड़ी के साथ भव्य डोली यात्रा ≈फरांई ठोक तक ले जाई जाती है, जहां पूजा के बाद वापस रास्ते में बृहद भोग प्रसाद वितरित कर पत्थर की पठालों में किया जाता है। भगवती ≈फरांई के मंदिर नौटी में मौडिवी से पहले व दूसरे दिन तक तथा ≈फरांई ठांक में मौडिवी देवी तक विशेष यज्ञ पूजा का विध्ाान 1948 की मौडिवी तक रहा। 1963, 1880, 1996 में श्रीमद देवी भागवत् कथा पूजन एवं यज्ञ की परम्परा प्रारम्भ हुई। समापन के प्रथम दिन मौडिवी पूजा होती है मौडिवी देवी स्थान पर बाहर की ध्याणियों तथा नौटी में मौडिवी के दूसरे दिन नौटी गांव की ध्याणियों को सुफल देने की परम्परा रही है। नौटी गांव के प्रकाण्ड विद्वान स्व0 पुण्डीरकाक्षाचार्य मैठानी आजीवन नौटी गांव में देव भगवती के देवी भागवतों, विशेष पूजाओं में व्यास रहे। मौडिवी में प्रत्येक मौ (परिवारद्ध की एक डिवी )डेगची या डिब्बीद्धप्रसाद चढ़ाने के कारण ही इस पूजा का नाम मौडिवी पड़ा। परिवारों की संख्या बढ़ने के कारण बाद में बड़े बर्तनों (गेड़ा) बारी आदिद्ध में सभी परिवारों का प्रसाद एक साथ बनाने का सिलसिला शुरू हुआ। एक शताब्दी में देखा जाए तो जहां पर शताब्दि में 8 मौडिवी होनी चाहिए वहां विभिन्न कारणों से 5 या 6 मौडिवी होती रही हैं। ऐसे में कोई 3-4 मौडिवी देख पाए, तो यह सौभाग्य की बात होगी। गांव की कई पीढ़ियों के मिलन का अवसर है, मौडिवी पूजा। बैनोली गांव के लोग अपनी ध्यांण

भगवती नन्दा को मैत के एक बेसर सोना पानी, एक साड़ी, एक बटुआ, श्रृंगार दान आदि आरसे की कंडी श्रृंगार के वस्त्र पूजा आदि सामग्री भेंट सहित अर्पित करते हैं। मैत की मिठाई ;आरसेद्ध को उसी दिन शाम को गांव में प्रत्येेक परिवार में वितरित कर दिया जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
भगवती ≈फरांई के मैती बैनोली गांव के ही श्री कल्याण सिंह रावत आज हिमालय क्षेत्र में मैती आन्दोलन चला कर पर्यावरण के संरक्षण व नवदम्पतियों को पर्यावरण के प्रति आकर्षित करने का आन्दोलन चला रहे हैं। समुद्रतल से 8,500 फीट की ≈ंचाई पर ≈फरांई ठांक स्थित है। नौटी गांव से 5 किमी0 की चढ़ाई में 3200 फीट लगभग चढ़ाई चढ़कर यात्री भगवती ≈फरांई देवी केे साथ पहुंचते हैं, यहां से हिमालय का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, जिसमें गढ़वाल एवं कुमा≈ं के दूरस्थ क्षेत्र दिखाई देते हैं।

1) नन्दा देवी
2) नन्दाकोट
3) नन्दाखाल
4) नन्दावन
5) नन्दा त्रिशूली
6) नन्दा घुंघटी,
7) कुभेरभण्डार
8) बसुध्ाारा
9) नालीकांठा
10)नारायण पर्वत
11) केदारनाथ
12) गंगोत्री
13) यमुनोत्री
14)  यमुनोत्री पर्वत श्रेणियां, पौड़ी का झंडीचौड,़ लैन्सडाउन का गिरिजाघर, गौचर, चांदपुरगढ़ी, आदिबद्री आदि स्थान स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार, विगत सदी में सन् 1922, 1948, 1963, 1880 व 1996 में मौडिवी
होने के साक्ष्य मिले हैं, जो राजजात से ÿमशः 3, 3, 5, 7 व 4 वर्ष पूर्व हुई हैं। वासन्तिक एवं शारदीय नवरात्र पूजन की स्थायी
परम्परा है। मंदिर में भगवती ≈फरांई की चांदी की मूर्ति थी, जिसे सन् 1992 में चोरों ने चुरा लिया था। उसके स्थान पर सन् 1993 में नई मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर में स्थापित किया गया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0


यहां भगवती के साथ ही पाण्डवों की भी नियमित पूजा की जाती है। अनेक बार पाण्डव लीलाएं एवं नृत्य आयोजित किए जाते हैं। नौटी में बली प्रथा के समाप्त होने के पहली बार सन् 1940 में पाण्डव नृत्य में बकरी के बदले काठ की बकरी के पैरों पर पहिए लगाकर नृत्य सम्पन्न किया गया। भारी मेला जुड़ा था कि देखें नौटी में बगैर बलिदान के कैसे पूजा सम्पन्न होती है। एक बार सन् 1978 में गांव के ही स्व0 बचन लाल अध्यापक ने गैंडे का अद्भुत ढंग से निर्माण किया था, मंदिर परिसर में ही अनादिकाल से सिनगा पेड़ है, जिसके फूलों की महक से मंदिर और गांव भीनी-भीनी खुशबू से सरोबार रहता है। पास में ही भगवती की सुन्दर जलध्ाारा (मंगरा) है। ं सन् 1927 में पशुबलि बन्द कर दी गई, जिस कारण सन् 1948 को पहली मौडिवी में पशुबली के स्थान पर यज्ञ का शुभारम्भ ≈फरांई देवी मंदिर नौटी व ≈फरांई ढांक में प्रारम्भ हुआ। 1963 से तो श्रीमद् देवी भागवत् कथा पूजन एवं यज्ञ की परम्परा कायम हुई। नन्दाराज जात से पूर्व मौडिवी पूजा का विध्ाान गढ़वाल नरेश ने बनाया, ताकि हिमालय के इस महाकुंभ की यात्रा निर्विघ्नता पूर्वक सम्पन्न हो सके। यह परम्परा 9वीं शताब्दी से आज तक निभाई जा रही है। हालांकि सन् 1922 की मौडिवी में मौडिवी स्थान पर 16 दौंण (5 कुन्तल) चावल बरबाद होने पर बढ़े विवाद के बाद 25 वर्ष तक मौडिवी आयोजन नहीं हो पाया।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
मेहता जी उफराई देवी की जय हो इस महत्वपूरण जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धनयवाद

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

This is also connected with Nanda Raaj Jaat also
===================================


नंदादेवी राजजात उत्तराखंड की एक अनूठी देव यात्रा है, जो चमोली जिले के नौटी गांव के नंदादेवी मंदिर से शुरू होकर 280 किलोमीटर की यात्रा करके हिमाच्छादित त्रिशूल पर्वत के तलहटी पर जाकर संपन्न होती है। इस यात्रा का बड़ा हिस्सा उच्च हिमालय के निर्जन क्षेत्र से होकर गुजरता है। इस यात्रा में गढ़वाल व कुमाऊं मंडल के हजारों देवी देवता अलग-अलग स्थानों में मुख्य यात्रा के साथ शामिल होकर यात्रा की परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

हर बारह साल बाद यह यात्रा होती है। इस ऐतिहासिक यात्रा को उत्तराखंड के राजाओं के प्रश्रय से शुरू किया गया था। इसी मान्यता के आधार पर आज भी गढ़वाल के राजवंश परिवारों से जुड़े कांसुआ गांव के कुंवरों का इस यात्रा के आयोजन में महत्वपूर्ण भागीदारी रहती है। इससे पहले सन दो हजार में यह यात्रा हुई थी। मौड़वी इसी राजजात यात्रा के शुरू करने की मनौती के रूप में होने वाले आयोजन का हिस्सा है। मनौती की पूजा एक जंगल में मंगलवार को होगी। उफराईठांग नाम के स्थान में मंगलवार को इस विशेष पूजा में भाग लेेने के लिए नौटी में जबर्दस्त भीड़ जुटी है। हालांकि पूजा छह दिसंबर से नौटी में उफराई देवी के मंदिर में शुरू हो गई थी। जिसमें मंगलवार को नंदादेवी राजजात की मनौती के ये मुख्य आयोजन होंगे। सोमवार को नौटी के समीप ही बैनोली गांव के लोग परंपरागत खाद्य एवं पूजा सामग्री और गाजे-बाजे के साथ नौटी पहूंचे और मौड़वी की पूजा में शामिल हुए। इसी मौड़वी पूजा के बाद नंदादेवी राजजात का साल और तिथियों की घोषणा की जाती है।

(Source Webdunia.com)

vipin gaur

  • Newbie
  • *
  • Posts: 23
  • Karma: +0/-0
नन्दा देवी राजजात जो कि दुनिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। जिसमेँ कि सर्वप्रथम चमोली जनपद के घाट(नन्दप्रयाग से मात्र 18 किमी आगे) मेँ नन्दाकिनी नदी की आँचल मेँ बसेँ "कुरुड़" गाँव से बाजे भुंकारे के साथ नन्दादेवी की नवीँ सदी पूर्व राजराजेश्वरी नन्दा देवी तथा दशौली क्षेत्र की ईष्ट साक्षात नन्दा भगवती की दो स्वर्णमयी डोलियाँ जाती हैँ
इसके पीछे से चौसिँग्योँ को ले जाया जाता है तथा उसके बाद काँसुवा के कुँवर अपनी छँतोली लेकर चलते हैँ ।

नन्दा देवी की डोलियोँ के साथ कन्नौजी गौड़ (कुरुड़ के पुजारी) चलते हैँ।

राजजात की शुरुआत तब होती है जब नन्दा के क्षेत्र मेँ दुर्भिक्ष(अपशगुन) पैदा होता है।
यह अपशगुन चौसिँग्या खाड़ू के रुप मेँ होते हैँ

2013 मेँ नन्दा देवी धाम कुरुड़ के सामने लुन्तरा गाँव मे तथा एक चौसिँग्या खाड़ू कुरुड़ गाँव के ही अनुसूचित जाति के नन्दा देवी के ओजी पुष्कर लाल के यहाँ तथा हाल ही मेँ एक चौसिँग्या कुरुड़ के समीप सुंग गाँव मे भी हुआ है।
सन 2000 मेँ ये चरबंग मेँ पैदा हुआ था
और इस बार 3 चौसिँग्या कुरुड़ क्षेत्र मे पैदा होने के कारण लोगोँ को परम विश्वास हो गया कि कुरुड़ ही नन्दा राजजात का मुख्य थान है।

नन्दा देवी राजजात के मुख्य दो मुख्य रास्ते हैँ
1--प्रथम रास्ता कुरुड़ से  चरबंग,कुण्डबगड़,धरगाँव, फाली उस्तोली सरपाणी लॉखी भेँटी स्यारी,बंगाली बूंगा डुंग्री कैरा-मैना सूनाथराली, राडीबगड़  चेपड़यू कोटि, रात्रि नन्दकेशरी इच्छोली हाट रात्रि फल्दियागाँव काण्डई,लब्बू ,पिलखड़ा ,ल्वाणी ,बगरीगाड रात्रि मुन्दोली लोहाजंग,कार्चबगड़ रात्रि वाण लाटू देवता तथावाण से होमकुण्ड ।
नन्दकेशरी मेँ अद्भुत नजारा रहता है यहाँ पर काँसुवा तथा नौटी की राजछतोली का मिलन कुरुड़ बधाण की नन्दा राजराजेश्वरी से होता है यहीँ से राजजात का प्रारम्भिक बिन्दु शुरु होता है यहाँ पर कुमाउँ की जात भी अपनी छंतोलियोँ के साथ शामिल होती है तथा यहाँ से यात्रा कई पड़ावोँ से  होकर वाण पहुँचती है।

तथा नन्दा देवी राजजात का दूसरा रास्ता
2--नन्दा देवी दशोली की डोली का कुरुड़ से धरगाँव कुमजुग
से कुण्डबगड़, लुणतरा,कांडा मल्ला,खुनाना,लामसोड़ा लाटू मन्दिर माणखी,चोपड़ा कोट.चॉरी  काण्डई
खलतरा,मोठा  चाका,सेमा बैराशकुण्ड
 बैरो,इतमोली,मटई, दाणू मन्दिर
पगना देवी मन्दिर भौदार,चरबंग ल्वाणी
 सुंग,बोटाखला रामणी आला,जोखना, कनोल से वाण लाटू देवता। ये रास्ता नन्दाकिनी के साथ साथ चलता है ।रामणी में  विशाल भव्य मेला लगता है रामणी मेँ आते आते कुरुड़  नन्दा देवी डोली के साथ कुरुड़ कीनन्दामय लाटू, हिण्डोली, दशमद्वार की नन्दामय लाटू, मोठा का लाटू, केदारु पौल्यां, नौना दशोली की नन्दादेवी, नौली का लाटू, बालम्पा देवी, कुमजुग से ज्वाल्पा देवी की डोली, ल्वाणी से लासी का जाख, खैनुरी का जाख, मझौटी की नन्दा, फर्सवाण फाट के जाख, जैसिंग देवता, काण्डई लांखी का रुप दानू, बूरा का द्यौसिंह, जस्यारा, कनखुल, कपीरी, बदरीश पंचायत, बदरीनाथ की छतोली, उमट्टा, डिम्मर, द्यौसिंह, सुतोल, स्यारी, भेंटी की भगवती, बूरा की नन्दा, रामणी का त्यूण, रजकोटी, लाटू, चन्दनिय्यां, पैनखण्डा लाटा की भगवती आदि २०० से अधिक देवी-देवताओं का मिलन होता है।अतः रामणी एक पवित्र स्थल है ।रामणी मेँ जाख देवता का अद्भुत कटार भेद दर्शन भी होता है।यहां से आगे कुरुड़ की नन्दा के पीछे पीछे चलते वाण पहुँचते हैँ जहाँ पर राजजता के दोनो रास्ते मिलकर एक हो जाते हैँ  वाण मेँ स्वर्का का केदारु, मैखुरा की चण्डिका, घाट कनोल होकर तथा रैंस असेड़ सिमली, डुंगरी, सणकोट, नाखाली व जुनेर की छलोलियां चार ताल व चार बुग्यालों को पार करके वाण में राजजात में शामिल होती हैं।।

वाण राजजात का आखिरी गाँव है। यहाँ से आगे वीरान है।
वाण गाँव के बाद गेरोली पातळ में रण की धार नामक जगह पर देवी नंदा ने आखिरी राक्षस को मार गिराया था। लाटू की वीरता से प्रसन्न होकर देवी ने आदेश दिया कि आगे से वो ही यात्रा की अगुवाई करेंगे। रण की धार के बाद यात्री कालीगंगा में स्नान कर तिलपत्र आदि चढाते हैं!
रास्ते मेँ वेदिनी बुग्याल है।
बेदिनी  बुग्याल उत्तराखंड का सबसे बड़ा और सुंदर बुग्याल माना जाता है। यहाँ पर यात्री वैतरणी  कुंड  में स्नान करते हैं। राजकुंवर यहाँ पर अपने पित्तरों की पूजा करते हैं। एक बांस पर धागा बाँधा जाता है। श्रद्धालु धागा थामकर अपनें पित्तरों का तर्पण करते हैं। हर साल यहाँ पर नन्दा धाम कुरुड़ की नन्दा देवी की जात होती है।रास्ते मेँ
पातर  नचौणिया है। कहा जाता है कि यहाँ पर कन्नौज के रजा यशधवल ने पात्तर यानि नाचने-गाने वालियों का नाच गाना देखा। यशधवल के इस कृत्य से नंदा कुपित हो गयी और देवी के श्राप से नाचने-गाने वालियां शिलाओं में परिवर्तित हो गयी!
आगे कैलवा विनायक है।यहाँ से हिमालय का बहुत ही सुंदर दृश्य दिखता है। यहाँ से बेदिनी, आली और भूना बुग्याल देखते ही बनते हैं।
इस जगह  कन्नौज के राजा की गर्भवती रानी वल्लभा ने गर्भ की पीड़ा के समय विश्राम किया था। यहीं पर उसने एक शिशु को जन्म भी दिया था। इस दौरान राजा का लाव-लश्कर रूपकुंड में डेरा डाले रहा। गर्भवती रानी की छूत से कुपित होकर देवी के श्राप से ऐसी हिम की आंधी चली कि राजा के सारे सिपाही और दरबारी मारे गए।चेरिनाग से  रूपकुंड के लिए यात्रा बहुत ही खतरनाक रास्तों से गुजरती है। चट्टानों को काटकर बनायीं गयी बेतरतीब सीढ़ियां यात्रा को और मुश्किल बना देती हैं।रूपकुंड का  निर्माण भगवान् शिव ने नंदा की प्यास बुझाने के लिए किया था। मौसम के अनुसार अपना रूप और आकार बदलने के लिए विख्यात रूपकुंड बहुत ही सुंदर दिखता  है।खतरनाक  उतार-चढ़ाव के कारण ज्युरांगली को मौत की घाटी भी कहा जाता है।ज्युरांगली  के खतरनाक उतार-चढ़ाव के बाद यात्री शिला समुद्र में विश्राम के लिए रुकते हैं।
शिला समुद्र  में रात्रि विश्राम के बाद होमकुंड के लिए प्रस्थान करते हैं। होमकुंड पहुंचकर यात्री पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पर चौसिँग्या खाड़ू को छोड़ दिया जाता है।
vipin gaur

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22