Author Topic: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड  (Read 24841 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #10 on: November 19, 2009, 02:34:28 AM »
 वैष्णवखंड बदरिकाश्रममाहात्म्य में आदि बद्रीनाथ के आसपास ही वसुधाराके होने का जिक्र किया गया है, लेकिन उसमें यह नहीं दर्शाया गया है कि आदि बद्रीनाथ के किस दिशा में है। गंधक युक्त इस पानी के पीने व नहाने से मनुष्य विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है। अब इस पानी को पाने के लिए हर रविवार को लोगों की लंबी कतार भी लगने लगी है।

स्कंद पुराण में कार्तिकेयनने भी अपने पिता शंकर भगवान से वसुधाराके महत्व के बारे में पूछा है, जिसमें शंकर भगवान ने कहा है कि वसुधारामें स्नान करने से मनुष्य समस्त प्रकार के पापों से मुक्ता हो जाता है। स्कंद पुराण में जिस वसुधाराका जिक्र किया गया है यदि यह वही वसुधाराहै तो यह सबसे बडी उपलब्धि है।

अभी तक सरस्वती की ही तलाश की जा रही थी। संयोग से जिस दिन वसुधारामिली थी प्रदेश की पर्यटन मंत्री किरण चौधरी ने उस दिन आदि बद्रीनाथ का दौरा किया। उस दौरान विनय स्वरूप ने वसुधाराके पानी का सैंपल लेकर जांच के लिए किरण चौधरी को सौंपा था।

डीसीनितिन यादव ने पहाडों से पानी की धारा निकलने की बात स्वीकार की। उन्होंने पानी में गंधक व फास्फोरस खनिज तत्व होने की पुष्टि करते हुए कहा कि वन विभाग द्वारा उन्हें पानी के सैंपल भेजे गए थे, जिन्हें जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया है।

 प्रयोगशाला से रिपोर्ट आने के बाद ही जल धारा की वास्तविकता का पता चल पाएगा। इस संबंध में पुरातत्व विभाग को भी एक रिपोर्ट भेजी गई है, जिससे इसके प्राचीन महत्व के बारे में भी जानकारी मिल सके।

उधर, सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलालजैन ने भी पानी की धारा मिलने की पुष्टि करते हुए सैंपल जांच के लिए भेजे जाने की बात कही है।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #11 on: November 19, 2009, 02:34:57 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #12 on: November 19, 2009, 02:36:49 AM »
 वनस्पतिक महायज्ञ अपने आप में एक ऐसी ऊर्जा प्रदान करता है जिससे जीव की स्मरण शक्ति तेज होती है। मनुष्य को अनेक प्रकार की व्याधियों से मुक्ति मिलती है।

 यही नहीं यज्ञ में विधि पूर्वक शामिल होने पर अकाल मृत्यु जैसी स्थिति को टाला जा सकता है। ऐसे में आदिबद्री आश्रम में 15 सौ साल बाद हो रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का महत्व और बढ़ जाता है। इस महायज्ञ में 24 लाख श्री सुक्त और पुरु सुक्त की मंत्रों का जाप व हवन होगा। जिससे अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ होगी।

नाना प्रकार के रोग व्याधि, भूत-प्रेत, काल सर्प, अकाल मृत्यु, गृह बाधा, आपसी कलह और भी संपूर्ण व्याधियों का इस वनस्पतिक यज्ञ के गंध से निवृत्ति होगी। आदिबद्री आश्रम के ब्रह्मचारी श्री विनय स्वरूप महाराज का कहना है कि योनि मूलक सिंधु वन की स्वर्णिम तपो भूति सदैव से जीव के लिए आशीर्वादित रही है।

आदिबद्री में आपको नंगे पांव चलने से सूर्य की ऊर्जा का लाभ होता है। यहां की रेत में सोना की मात्रा होती है। वहीं वसुधारा जल का सेवन निरोग बनाती है और केदार नाथ मनुष्य जीवन को शांति प्रदान करते है। वनस्पतिक महायज्ञ अपने आप में एक ऐसी ऊर्जा प्रदान करता है जिससे जीव की स्मरण शक्ति तेज होती है। अकाल मृत्यु की स्थिति के बारे में कहे कि जो भी जीव ऐसी स्थिति में हो वह केवल सरस्वती के जल का आचमन व वसुधारा का स्नान कर हवन करे तो अकालमृत्यु जैसी स्थिति से छुटकारा मिल सकता है।

 उन्होंने कहा कि इस वनस्पतिक महायज्ञ में सांसों के बीमार आदमी भी हवन में बैठ सकते है। उनको भी हवन की सुगंध आराम प्रदान करेगा। यह यज्ञ प्रकृति के साथ-साथ जीव जन्तु को भी एक विशेष बल प्रदान करेगा। ब्रह्मचारी का कहना है कि भूमंडल के सर्वश्रेष्ठ संत दंडी स्वाती के संरक्षण में यह यज्ञ संपादित होगा।

आचार्य शंकर ने बताया है कि यज्ञ क्रिया अगर प्रणव जाप करने वाले यती दंडी साधु अगर यज्ञ की संरक्षण करते है वह यज्ञ संपूर्ण रोगों से मुक्ति देता है। इस महायज्ञ में 24 लाख श्री सुक्त और पुरु सुक्त की मंत्रों का जाप व हवन होगा। जिससे अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ होगी। यज्ञ में शामिल होने के पूरे देश से दशनाम साधुओं को जमावड़ा शुरू हो गया है।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #13 on: November 19, 2009, 02:37:22 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #14 on: November 19, 2009, 02:38:01 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #15 on: November 19, 2009, 02:38:28 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #16 on: November 19, 2009, 02:46:55 AM »
बद्रीनाथ धाम से चार किमी दूर माणा गाँव है। इंडो-मंगोलियन जाति के लोगों का भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित यह एक अंतिम गाँव है। इसके निकट महाभारत के रचयिता वेद व्यास की गुफा 'व्यास गुफा' तथा सरस्वती नदी पर प्राकृतिक पुल 'भीम पुल' और
122 मीटर ऊँचा मनोरम जल प्रपात 'वसुधारा प्रपात' जैसे महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #17 on: November 19, 2009, 02:51:11 AM »
ऋषि दयानन्द का स्वलिखित जीवनवृत

वसुधारा (प्रसिद्ध तीर्थ‌ व यात्रा स्थान‌) पर विश्राम करके माना ग्राम के निकटवर्ती प्रदेश में होता हुआ उसी सांय लगभग आठ बजे बद्रीनारायण जा पहुँचा | मुझे देखकर रावलजी और उनके साथी जो घबराये हुए थे,विस्मय‌ प्रकाश पूर्वक पूछने लगे - "आज सारा दिन तुम कहाँ रहे ?" तब मैंने सब वृतान्त क्रमबद्ध सुनाया | उस रात्रि कुछ आहार करके जिससे मेरी शक्ति लौटती हुई जान पड़ी, मैं सो गया | दूसरे दिन प्रातः शीघ्र ही उठा और रावल जी से आगे जाने की आज्ञा माँगी | और अपनी यात्रा से लौटता हुआ रामपुर [फुट् नोट‌ - यहाँ 'रामनगर' नाम होना चाहिये |

 की और चल पड़ा | उस सायं चलता चलता एक योगी के घर पहुँचा | वह बड़ा तपस्वी था | रात्रि उसी के घर काटी | वह पुरुष जीवित ऋषि और साधुओं में उच्च कोटी का ऋषि होने का गौरव रखता था | धार्मिक विषयों पर बहुत काल तक उसका मेरा वार्तालाप हुआ | अपने संकल्पों को पहले से अधिक दृढ़ करके मैं आगामी दिन प्रातः उठते ही आगे को चल दिया |

कई वनों और पर्वतों से होता हुआ चिलका घाटी से उतर कर मैं अन्ततः रामपुर ['रामनगर'] पहुँच गया | वहाँ पहुँच कर मैंने प्रसिद्ध‌ रामगिरि के स्थान पर निवास किया | यह पुरुष पवित्राचार और आध्यात्मिक जीवन के कारण अति प्रसिद्ध‌ था | मैँने उसको विचित्र प्रकृति का पुरुष पाया | अर्थात वह सोता नहीं था, वरन् सारी सारी रातें उच्चस्वर से बातें करने में व्यतीत करता | वह बातें प्रकट में अपने साथ करता हुआ ही प्रतीत होता था | प्रायः हमने उच्च स्वर से चीख मारते हुये उसे सुना |

पर वस्तुतः जब उठ कर देखा तो उसके कमरे में उसके अतिरिक्त और कोई पुरुष दिखाई न दिया | मैं ऐसी वार्ता से अत्यन्त विस्मित हुआ | जब मैंने उसके चेलों और शिष्यों से पूछा तो उन विचारों ने केवल यही उत्तर दिया कि इनकी प्रकृति ही है | पर मुझे यह कोई न बता सका कि इसका क्या रहस्य है |

 अन्त को स्वयं जब मैंने उस साधु से कई बार एकान्त में चर्चा की तो मुझे ज्ञात हो गया कि वह क्या बात थी | इस प्रकार मैं यह निश्चय करने के योग्य हो गया कि अभी वह जो कुछ करता है वह पूरी पूरी योग विद्या का फल नहीं है, प्रत्युत पूरी में अभी उसे न्यूनता है और यह वह वस्तु नहीं कि जिसकी मुझे जिज्ञासा है | यह पूरा योगी नहीं यद्यपि योग में कुछ गति रखता है |

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #18 on: November 19, 2009, 02:57:35 AM »
जगमोहन जयरा जी ने भी इस गढ़वाली गीत मैं वसुधारा का वर्णन किया है !

ह्यूचलि डाडयू की चली हिंवाली ककोर

रंगमतु है, नचण लगे मेरा मन को मोर।

धौली गंगा को छालूं पाणी

भागीरथी का जोल

डेव प्रयाग रघुनाथ मंदिर

नथुली सी पँवोर - ह्यूचली� ....

आरू घिंगारू, बांज, बुँरास

सकिनी झका झोर

लखि पाखे बण माँग बिरडी

चकोरी को चकोर - ह्यूचली� ....

ड़ांड की रसूली कुलैंई

झुपझूपा चवोर

उचि डाडी चौडंडो बथोऊ

गैरी गंगा भवोर - ह्यूचली� ...

वसुधारा को ठण्डो पाणी

केदार को ठौर

त्रिजुगी नारैण तख

बद्री सिर मौर

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #19 on: November 19, 2009, 03:00:04 AM »
व्यास जी ने महाभारत की रचना इसी स्थल पर की है। सरस्वती गंगा पर माणा गांव के पास भीम ने एक बड़ी शिला रखकर पुल का निर्माण किया था।

 इस शिलापुल से होकर यात्री वसुधारा प्रपात और सतोपंथ की ओर जाते हैं। आगे स्वर्गारोहण पर्वत है। सरस्वती गंगा के उत्तरी किनारे पर जो पर्वत शुरु होता है उसके मध्य में श्यामकर्ण घोडे का एक चित्र उभरा हुआ है। यह व्यास गुफा के ठीक सामने है।

 माणा गांव में मारछा जाति के लोग रहते हैं। इनका व्यवसाय पशुपालन और तिब्बत के साथ व्यापार है। पुराने समय में भेड़-बकरियां पर खाने पीने का सामान लादकर ये लोग ही पहुंचाते थे। पुराने गढवाल के उत्तरी भाग का सारा कारोबार इनके पास था। माणा के पास से बहती सरस्वती गंगा अलकनंदा में मिलती है। इसे उत्तराखंड का पहला प्रयाग केशव प्रयाग कहते हैं।

 

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