वसुधारा से आगे ’लक्ष्मीवन‘ है, इससे आगे सहस्रधारा, पंचधारा द्वादशदित्य, चतुःश्रोत आदि तीर्थों से आगे बढकर चक्रतीर्थ के दर्शन बडे दिव्य हैं। चक्रतीर्थ से आगे सत्यपथ (सतोपन्थ) नामक तीर्थ है-
त्रिकोणमंडितं तीर्थ नाम्नां सत्यपथस्मृतम्।
दर्शनीयं प्रयत्नेन सवैः पापमुमुक्षुमिः।।
सत्यपथ तीर्थ में त्रिकोण क्षील के दर्शन निःसन्देह समस्त पापों की निवृति कर देते हैं। पर्वतीय भोटिया जनजाति के लोग यहां पर अस्थिविसर्जन के उपरान्त श्राद्ध करते है। यहां पर पितर प्रत्यक्ष होकर पिण्ड दान स्वीकार करते हैं। जिस पितर के निमित्त पिण्ड दिया गया हो उसके पद-चिह्व वहां की रेती में प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं।
सत्यपथ से आगे दायीं ओर सूर्यकुण्ड, एवं बायीं ओर सोमकुण्ड हैं जहां पर सुर्यदेव एवम् चन्द्रा ने तप किया। इससे आगे स्वर्गारोहण पर्वत के दर्शन होते हैं। मार्ग दुर्लम है नमस्कार कर लौटना ही श्रेयस्कर है।
इसी प्रकार बदरीक्षेत्र के नर पर्वत पर वेद धाराओं की स्थिति बडी मनोहारी है। यहीं पर ’शेषनेत्र‘ भी है। इससे ऊपर अलकाबांक के दर्शन अति फलदायी कहे गये है। अलकापुरी कुबेरजी की राजधानी है। जहां पर यक्ष-किन्नर भाव से विचरण करते हैं।