Author Topic: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड  (Read 24780 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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भागीरथ प्रयास करते हुए एक साधु ने स्कंद पुराण में वर्णित वसुधाराको बद्रीनाथ मंदिर के समीप शिवालिककी पहाडियोंमें खोज निकालने का दावा किया है। यह क्षेत्र भगवान नारायण की तपोस्थलीके रूप में विख्यात है। वैसे अभी तक प्रशासनिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की गई है। पानी के सेंपलजांच के लिए भेजे गए हैं।

आधुनिक भागीरथ बद्रीनाथ मंदिर के प्रतिनिधि विनय स्वरूप महाराज ने बताया कि वह गत छह सालों से आदि बद्रीनाथ के पास शिवालिककी पहाडियोंमें वसुधाराको ढूंढ रहे थे। 29नवंबर 2007को वे उस पहाडी के पास पहुंच गए जहां उन्हें वसुधाराके होने का आभास हुआ। उन्होंने पहाडी में खुदाई शुरू कर दी। एक के बाद एक अष्ट वसुधाराओंमें छह को खोद निकाला। सभी धाराओं ने निकले वाले पानी में अलग-अलग प्रकार के तत्व हैं। वसुधारामें विभिन्न प्रकार के तत्व विद्यमान हैं।
विनय स्वरूप का कहना है कि स्कंद पुराण के वैष्णवखंड बदरिकाश्रममाहात्म्य में आदि बद्रीनाथ के आसपास ही वसुधाराके होने का जिक्र किया गया है, लेकिन उसमें यह नहीं दर्शाया गया है कि आदि बद्रीनाथ के किस दिशा में है।

 गंधक युक्त इस पानी के पीने व नहाने से मनुष्य विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है। अब इस पानी को पाने के लिए हर रविवार को लोगों की लंबी कतार भी लगने लगी है।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #1 on: November 19, 2009, 02:20:02 AM »


स्कंद पुराण में कार्तिकेयनने भी अपने पिता शंकर भगवान से वसुधाराके महत्व के बारे में पूछा है, जिसमें शंकर भगवान ने कहा है कि वसुधारामें स्नान करने से मनुष्य समस्त प्रकार के पापों से मुक्ता हो जाता है। स्कंद पुराण में जिस वसुधाराका जिक्र किया गया है यदि यह वही वसुधाराहै तो यह सबसे बडी उपलब्धि है।

 अभी तक सरस्वती की ही तलाश की जा रही थी। संयोग से जिस दिन वसुधारामिली थी प्रदेश की पर्यटन मंत्री किरण चौधरी ने उस दिन आदि बद्रीनाथ का दौरा किया। उस दौरान विनय स्वरूप ने वसुधाराके पानी का सैंपल लेकर जांच के लिए किरण चौधरी को सौंपा था।
डीसीनितिन यादव ने पहाडों से पानी की धारा निकलने की बात स्वीकार की।

 उन्होंने पानी में गंधक व फास्फोरस खनिज तत्व होने की पुष्टि करते हुए कहा कि वन विभाग द्वारा उन्हें पानी के सैंपल भेजे गए थे, जिन्हें जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया है। प्रयोगशाला से रिपोर्ट आने के बाद ही जल धारा की वास्तविकता का पता चल पाएगा। इस संबंध में पुरातत्व विभाग को भी एक रिपोर्ट भेजी गई है, जिससे इसके प्राचीन महत्व के बारे में भी जानकारी मिल सके।

उधर, सरस्वती शोध संस्थान के अध्यक्ष दर्शनलालजैन ने भी पानी की धारा मिलने की पुष्टि करते हुए सैंपल जांच के लिए भेजे जाने की बात कही है।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #2 on: November 19, 2009, 02:20:33 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #3 on: November 19, 2009, 02:20:54 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #4 on: November 19, 2009, 02:23:06 AM »
वसुधारा ,अलकनन्दा के तट पर धर्मवन से आगे ’वसुधारा‘ नामक तीर्थ है। बदरीनाथ से लगभग 7 कि0मी0 दूर यह स्थल अत्यन्त रमणीय तथा प्राकृतिक वैभव से परिपूर्ण है। यहां पर जलधारा अति ही उच्च शिखर से गिरती है तथा वायु के थपेडों से बिखर कर जल के कण मोती से झरते हैं।

 उनके स्पर्श मात्र से मन-प्राण पुलकित हो जाते हैं। जब अष्टवसुओं ने देवर्षि नारद से इस स्थान की प्रशंसा सुनी तो उन्होंने यहां पर 30,000 वर्षों तक तप किया और भगवान विष्णु के प्रत्यक्ष दर्शन एवं अविचल षिक्त का वर प्राप्त किया। वसुओं की तपस्थली ही ’वसुधारा‘ के रूप में प्रसिद्ध हैं।



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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #5 on: November 19, 2009, 02:23:39 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #6 on: November 19, 2009, 02:24:07 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #7 on: November 19, 2009, 02:25:47 AM »
वसुधारा से आगे ’लक्ष्मीवन‘ है, इससे आगे सहस्रधारा, पंचधारा द्वादशदित्य, चतुःश्रोत आदि तीर्थों से आगे बढकर चक्रतीर्थ के दर्शन बडे दिव्य हैं। चक्रतीर्थ से आगे सत्यपथ (सतोपन्थ) नामक तीर्थ है-


त्रिकोणमंडितं तीर्थ नाम्नां सत्यपथस्मृतम्।
दर्शनीयं प्रयत्नेन सवैः पापमुमुक्षुमिः।।


सत्यपथ तीर्थ में त्रिकोण क्षील के दर्शन निःसन्देह समस्त पापों की निवृति कर देते हैं। पर्वतीय भोटिया जनजाति के लोग यहां पर अस्थिविसर्जन के उपरान्त श्राद्ध करते है। यहां पर पितर प्रत्यक्ष होकर पिण्ड दान स्वीकार करते हैं। जिस पितर के निमित्त पिण्ड दिया गया हो उसके पद-चिह्व वहां की रेती में प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं।

सत्यपथ से आगे दायीं ओर सूर्यकुण्ड, एवं बायीं ओर सोमकुण्ड हैं जहां पर सुर्यदेव एवम् चन्द्रा ने तप किया। इससे आगे स्वर्गारोहण पर्वत के दर्शन होते हैं। मार्ग दुर्लम है नमस्कार कर लौटना ही श्रेयस्कर है।

इसी प्रकार बदरीक्षेत्र के नर पर्वत पर वेद धाराओं की स्थिति बडी मनोहारी है। यहीं पर ’शेषनेत्र‘ भी है। इससे ऊपर अलकाबांक के दर्शन अति फलदायी कहे गये है। अलकापुरी कुबेरजी की राजधानी है। जहां पर यक्ष-किन्नर भाव से विचरण करते हैं।

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #8 on: November 19, 2009, 02:26:36 AM »

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Re: Vasudhara Uttarakhand वसुधारा उत्तराखंड
« Reply #9 on: November 19, 2009, 02:28:49 AM »
कहा जाता है कि- पांडव युद्ध जीत चुके थे . मारे गए सगे सम्बन्धियों के श्राद्ध और कृष्ण को द्वारिका के लिए विदा करने के बाद उन्होंने राज-काज में मन लगाने की भरसक कोशिश की मगर ध्रतराष्ट्र और गांधारी की उदासी और कटाक्ष उन्हें बेचैन किये रहते .



 उनका दिल जीतने की कोशिश भी उन्होंने बहुत की मगर एक दिन देखा तो दोनों बूढे-बुढ़िया किसी को बगैर कुछ बताये महल से कहीं जा चुके थे . वो दोनों फिर लौट कर न आये मगर उनकी उदासी का चीत्कार महल के हर कोने में चमगादडों की तरह लटका था जो रात को पांडवों को और बेचैन कर देता . तो क्या करें !

 आखिरकार ये तय हुआ कि अभिमन्यू के पुत्र परीक्षित को राज-काज सौंपकर महा-प्रस्थान किया जाए . परंपरा तो संन्यास की थी मगर संन्यास के लिए जो स्थिरता चाहिए वो न थी . लगता था कि ध्यान लगा कर बैठे भी तो उसी धर्म युद्ध की चीखें सुनाई देंगी सो संन्यास नहीं . तो? बस चलते रहेंगे और थक कर गिर जाने वाले को कोई पीछे मुड कर न देखेगा.

 पांडव आजीवन लड़े थे सो बुढापे में एडियाँ रगड़ कर मरने को तैयार न थे . सो वो महा-प्रयाण पर निकल पड़े . बद्रीनाथ{Badrinath;( UTTARAKHAND)} से करीब पांच किलोमीटर पर है भारत का अंतिम गाँव माणा . आगे दो किलोमीटर पर वो स्थान है जहाँ द्रौपदी ने प्राण त्यागे ,फिर और चार किलोमीटर चलें तो आता है वसुधारा प्रपात . कहते हैं

यहाँ सहदेव ने प्राण त्यागे और अर्जुन ने अपना गांडीव . मान्यता है कि यदि इस प्रपात कि बूँदें आप पर पड़ें तो आप पुण्यात्मा हैं वर्ना पापी . बहरहाल वीडियो को फुल वोल्यूम पर देखें और समुद्र तल से करीब १३,५०० फ़ुट की ऊंचाई पर जल और वायु की ध्वनि को अनुभव करें

 

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