धरती पर वैकुंठ
छह मई को यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे और इसी के साथ आरंभ हो जाएगी आस्था में पगी चारधाम यात्रा। उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ पहुंचकर विराम लेती है, जिसे श्रद्धालु 'भू-वैकुंठ' यानी धरती का स्वर्ग भी कहते हैं..।
जब आने-जाने के साधन इतने उन्नत नहीं थे, तब गृहस्थी की जिम्मेदारियों से निवृत्त होकर दंपति पैदल चारधाम यात्रा किया करते थे। जो दंपति सकुशल वापस लौट आते, उनके आने की खुशी में पूरा गांव उत्सव मनाता था। इस मौके पर पूरे गांव को भोज कराने का भी आयोजन होता था। माना जाता था कि चार धाम यात्रा से उन्होंने जो पुण्य अर्जित किया है, उसका अंश पूरे गांव को प्राप्त होगा। कालांतर में सुविधाओं के विकास से चारधाम यात्रा को पूरी दुनिया में ख्याति मिली और श्रद्धालुओं के लिए यह देवभूमि पुण्यभूमि बन गई।
यात्रा का श्रीगणेश गंगाद्वार से
चारधाम यात्रा की शुरुआत हरिद्वार से मानी गई है। हरिद्वार को श्रीविष्णु के साथ-साथ शिव का द्वार भी माना जाता है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगाजी यहीं मैदान में प्रवेश करती हैं। इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार भी कहा गया है। यहीं देवभूमि के प्रथम दर्शन भी होते हैं। मान्यता है कि यहां गंगाजी में डुबकी लगाने के बाद शुरू गई यात्रा पुण्यदायी होती है।
भक्ति से मोक्ष तक का पथ
जीवन में भक्ति का विशेष महत्व है। इसीलिए धर्मग्रंथ सर्वप्रथम यमुनाजी के दर्शन की सलाह देते हैं। यमुनाजी को भक्ति का उद्गम माना गया है, जबकि गंगाजी को ज्ञान की अधिष्ठात्री। यानी गंगा साक्षात सरस्वती स्वरूपा हैं। माना गया है कि ज्ञान जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है।
यमुनोत्री धाम मंदिर के पुजारी आचार्य पवन उनियाल कहते हैं, 'सूर्य पुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना भक्ति का स्रोत हैं। इसी कारण यमुनोत्री धाम चारधाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है। कहा गया है कि चैत्र शुक्ल, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी व भैयादूज के दिन यमुना के पावन जल में स्नान करने से जीव को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।'
यमुनोत्री धाम के बाद गंगोत्री की ओर प्रस्थान करने का विधान है। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष पं.संजीव सेमवाल कहते हैं, 'गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते हैं। इस दिन गंगोत्री धाम पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ ही मंदिर के गर्भगृह में पाषाण मूर्ति एवं अखंड जोत के दर्शन करते हैं। यह क्रम गंगा सप्तमी यानी गंगा अवतरण दिवस तक जारी रहता है, जिसे निर्वाण दर्शन कहा गया है। स्कंद पुराण सहित अन्य धर्मग्रंथों में इसका माहात्म्य बताया गया है।'
गंगोत्री के बाद यात्रा केदारनाथ धाम की ओर प्रस्थान करती है। इस धाम के मंदिर पुजारी शिवशंकर लिंग कहते हैं, 'सदियों से चली आ रही परंपरा और केदारखंड में चारधाम यात्रा का विशेष उल्लेख हुआ है। चारधाम यात्रा मनुष्य को अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति दिलाकर पुण्य देती है। भगवान केदारनाथ का मंदिर पूरी दुनिया में अनूठा है। देश के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक इस पावन धाम के दर्शन मात्र से करोड़ों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।'
जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरि के चरणों में है। शास्त्रों में कहा गया है कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बद्रीविशाल की शरण में जाना चाहिए। यह भी मान्यता है कि यहां ब्रšाकपाली में पिंडदान करने से मनुष्य भव-बाधाओं से तर जाता है। इसीलिए बद्रिकाश्रम को भू-वैकुंठ कहा गया है। लेकिन, यह विधान उनके लिए है, जो चारों धाम की यात्रा करते हैं। श्रीबद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी जेपी सती कहते हैं, 'अध्यात्म की दृष्टि से बद्रीपुरी मुक्ति का धाम है और मुक्ति से पूर्व पात्रता के लिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य का होना जरूरी है। मन में अनुराग हो, तो जीवात्मा बंधन में रहकर मुक्त नहीं हो सकती। इसलिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य के लिए यमुनोत्री, गंगोत्री व केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनारायण के दर्शन करने से सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त होती है।'
मिलता है पुण्यों का फल
चारधाम यात्रा का पहला दिन करोड़ों पुण्यों का फल देने वाला माना गया है। इसी दिन चारों तीर्थो में अखंड जोत के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि निरपेक्ष भाव से इस पवित्र ज्योति के दर्शन किए जाएं, तो समस्त पाप मिट जाते हैं। व्यावहारिक रूप से भी देखें, तो सूर्य की पहली किरण, वर्षा की पहली फुहार, स्नेह का पहला स्पर्श भला किसे नहीं सुहाते।
कब खुलेंगे कपाट
यमुनोत्री : 6 मई
गंगोत्री : 6 मई
केदारनाथ : 8 मई
बद्रीनाथ : 9 मई