Author Topic: Champawat - चम्पावत  (Read 59009 times)

where eagles dare

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #110 on: April 09, 2011, 01:09:13 PM »
bahut sundar anil bhai, shall plan my visit & explore Champawat area post monsooon :) thanks for so beautiful pics :)

Anil Arya / अनिल आर्य

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #111 on: April 09, 2011, 01:21:01 PM »
bahut sundar anil bhai, shall plan my visit & explore Champawat area post monsooon :) thanks for so beautiful pics :)
OK We shall visit together  whole Uttarakhand. I may arrange the event for active/interested forum members, depends that my presence in Uttarakhand during post monsoon.

kundan singh kulyal

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #112 on: February 04, 2012, 05:08:36 PM »
पाताल रुद्रेश्वर

पाताल रुद्रेश्वर रीठा साहिब (दिउड़ी या  शिरैधार) से १० किलोमीटर और देवी धुरा से ढोलीगाँव के रस्ते लगभग २५ किलोमीटर दूर "बारशी" गाँव जिला चम्पावत मैं एक प्राकृतिक गुफा हैं. पाताल रुद्रेश्वर की जानकारी १९९३ मैं गाँव के ही एक बालक ने इसकी जानकारी दी इससे पहले इस गुफा को च्मेडों खान या घर (चमकादड़ों का निवास) कहते थे कोई भी इस गुफा मैं नहीं जाता था एक दिन गाँव का एक १४ वर्षीय बालक अपने गायों को इस गुफा के पास चारा रहा था तो वो उस गुफा के अन्दर गया किसी गाँव वाले ने उसको उस गुफा मैं जाते देखा तो जब वो बहार निकला तो उसने पूछा इसके अन्दर क्यों गया तो उस बालक ने बताया मैंने कल रात सपने मैं ये गुफा देखी जैसा मैंने सपने मैं देखा था हकीकत मै वैसी ही गुफा हैं तब उस आदमी ने गाँव वालों को सारी बात बताई उसी समय गाँव के कुछ लोग वहां गए  और गुफा के अन्दर जो देखा वो किसी चमत्कार से कम नहीं था वहां पर ३ छोटी छोटी गुफाएं है जिनमें चमकादड रहते हैं और एक बड़ी गुफा हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं इस गुफा के अन्दर एक साथ ५०० से ६०० आदमी आ सकते हैं गुफा के अन्दर एक छोटा सा कुंड हैं जिसके किनारे पर बैल रुपी सफ़ेद पत्थर की आकृति बनी हैं और कुंड के बीचोंबीच सफ़ेद पत्थर का  शिव लिंग बना हुवा है शिव लिंग के उप्पर प्राकृतिक  रूप से पानी की ५ धाराएँ  उप्पर चट्टान से गिरती हैं इस जगह पर गुफा की उचाई ज्यादा नहीं हैं लगभग ४ या ५ फिट होगी  इस कुंड से ६ मीटर की दूरी पर चट्टान मैं कान लगाने से एसी आवाज आती हैं जैसे की चट्टान के अन्दर बहुत बड़ी नदी बह रही हो जब इस गुफा के बारे मैं लोगों को जानकारी मिली तो  दूर दूर से इस गुफा को देखने वालों का ताँता लगा रहता था आज भी बहुत दूर दूर से लोग यहाँ इस प्राकृतिक गुफा के दर्शन करने आते हैं इस गुफा के अन्दर प्रवेश करते ही एसा अनूभव होता हैं की जैसे साक्षात् शिव के दर्शन हो गए हो कितना सकून मिलता है यहाँ एसा लगता हैं की आज भी भगवन शिव यही पर तपस्या कर रहे हैं इस गुफा के दर्शन से ही पता चलता हैं कि इस गुफा का महत्व कितना है  परन्तु जितना इस गुफा का महत्व हैं उतना महत्व इस को नहीं मिलपाया इस जगह को सरकार ने भी कोई महत्व नहीं दिया यह इसी बात से मालूम हो जाता हैं की ये जगह रीठा मोटर मार्ग से ६ किलोमीटर की दूरी पर है जब इस गुफा का पता चला तो यहाँ तक मोटर मार्ग बनाने का कार्य भी शुरू हुवा आज कितने साल बीत गए अभी तक भी मात्र ६ किलोमीटर मोटर मार्ग नहीं बन पाया हैं.

kundan singh kulyal

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #113 on: February 05, 2012, 02:10:21 PM »
लधौन्धुरा पर्वत

लधौन्धुरा पर्वत यह पर्वत चम्पावत जिले मैं धुनाघाट रीठा साहिब मोटर मार्ग से लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ पर शिवजी का पौराणिक और एतिहासिक मंदिर हैं इस इलाके मैं यह सबसे उंच पर्वत है बताया जाता हैं की यहाँ भगवन शिव ने तपस्या की थी इस पर्वत के दूर दूर तक कोई भी गाँव नहीं हैं सुन्दर बंज बुरुंज काफल के घने ब्रक्षों से सुशोभित यह पर्वत मन को मोह लेता हैं  यहाँ के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालु को एक दिन पहले से ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना पड़ता हैं माशाहरी यहाँ तक की लह्शुन प्याज खाकर जाने वाले ब्यक्ति इस मंदिर तक नहीं पहुच पते हैं कई लोगोने इस कहावत को अजमाया भी हैं सच मैं ओ जंगल मैं भटक गए थे ये बातें हमने अपने बुजर्गों से सुनी हैं एक बहुत पुरानी घटना है एक राजा शिकार करते करते इस बन मैं आ गया किसी महात्मा ने उस राजा को बोला यहं शिकार करना बर्जित हैं राजन यहाँ पर शिव का मंदिर हैं वह अहंकारी राजा उस महात्मा की बात कहाँ मानने वाला राजा शिकार करते करते आगे बन मैं निकल गया राजा जंगल मैं भटक गया और राजा पर बिछूरों (बड़ी मधुमाखी) ने हमला कर दिया राजा बहुत घायल हो गया एसी अवस्था मैं राजा के पास कोई भी रास्ता नहीं था एक ही रास्ता था भगवन शिव से क्षमा मागने का जब उस राजा ने भगवन शिव से क्षमा याचना की तो वह ठीक हो गया और अपनी राजधानी वापस लौट गया कुछ ही दिनों के पश्चात फिर वो भगवन शिव के दर्शनों के लिए उस मंदिर मैं आया और एक चांदी का छत्र चढ़ा गया वो चांदी का छत्र  आज भी उसी मंदिर मैं वैसा ही रखा हैं वो छत्र देखने से उस समय की घटी वो घटना याद आ जाती हैं यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को बहुत बड़ा मेला लगता हैं बहुत दूर दूर से यहाँ इस मेले मैं श्रद्धालु भाग लेने आते हैं इस समय यहाँ बहुत ठण्ड रहती हैं फिर भी पूरी रात यहाँ श्रधालुओं का जमघट लगा रहता हैं रात भर झोडा चंचरी और हुडकी मुसरबीन के धुन  मैं नाचते गाते गोंवों के लोगों के देखकर खुद भी उनलोगों के साथ कब नाचने लगे पता ही नहीं चलता आज ज्यादातर मेलों मैं स्टेज शो देखने को मिलते हैं परन्तु यहाँ वो सब मिलता हैं जो किसी भी मेले मैं आज देखने को नहीं मिलता ओ हैं हमारे पूर्वजों की बिराशत कुमाउनी लोक गीत और कुमाउनी लोक नृत्य कब शुबह हुई पता ही नहीं लगता इस मेले का एक और महत्व हैं यहाँ पर कांसे और ताम्बे के मिश्रण से बनी घंटीयां चढ़ाई जाती हैं उन घंटियों मैं पानी भरकर गूंगे बच्चों को पिलाते हैं गूंगे बच्चे बोलने लग जाते हैं यहाँ सच्चे मन से आये हुवे श्र्धलुवो की मनोकाना पूरी होती हैं इस मेले का ब्योपरिक दृष्टि से भी बहुत महत्व हैं स्थानीय कारीगरों द्वारा निर्मित औजार बर्तन आदि बहुत सारी वश्तुवें मिलती हैं पहले यहाँ दूर दूर के ब्योपारी आया करते थे समय के साथ कम ब्योपारी आने लगे हैं इस मेले को सरकार की ओर से कुछ भी सहायता नहीं मिलती यहाँ तक की सुरक्षा के नाम पर एक होम गार्ड तक इस मेले मैं नहीं रहता यहाँ तक की पीने का पानी तक की ब्यवस्था नहीं रहती स्थानीय लोगों की लगन और मेहनत से ही इस मेले का आयोजन किया जाता हैं जितना इस इस्थान का महत्व हैं उतना ही सरकार ने इस जगह की अनदेखी की हैं फिर भी यहाँ लगाने वाला मेले का माहौल ही रोमांचक रहता हैं यहाँ कुदरत के ओ नज़ारे देखने को मिलते हैं जो एक प्रकिर्ति प्रेमी की चाहत होती हैं चैत बैसाग के महीने मैं तो यहाँ की प्राकिर्तिक सुन्दरता का वर्णन करना बहुत मुस्किल हैं               

कुन्दन सिंह कुल्याल  लाधिया घाटी (चम्पावत)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #114 on: April 03, 2012, 01:49:34 PM »


Baleshwar Temple Champawat

पंकज सिंह महर

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #115 on: August 13, 2012, 05:59:19 AM »
रीठासाहिब-चम्पावत


Pawan Pathak

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #116 on: August 13, 2015, 11:50:50 AM »
मठ में सतयुग से जलती आ रही है  अखंड धूनी  बलि प्रथा के घोर विरोधी थे गोरखनाथ
बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का योग अवतार माना जाता है। इसी के चलते सिद्ध व्यक्ति गोरखनाथ की जन्म-मृत्यु का कोई दिन नहीं है। कहा जाता है कि इंसान की बलि का विरोध करते-करते बाबा गोरखनाथ नेपाल और इससे लगे इस इलाके में पहुंचे। मानव बलि को बढ़ावा देने वाले नेपाल के राजा को सबक सिखाने के लिए उनके नाम पर गोरखा फौज बनी, जिसने बलि समर्थक राजा को मात दी। नेपाल में राजशही के दौरान राजमुद्रा और राजमुकुट में गोरखनाथ के चरणपादुका के चिन्ह होते थे।
सतीश जोशी ‘सत्तू’
चंपावत। चंद एवं कत्यूर राजवंशों की राजधानी रहे और भगवान विष्णु के कुर्मावतार के लिए मशहूर चंपावत नगर और उसके आसपास जहां प्रकृति ने दोनों हाथों से अपना अकूत खजाना लुटाया है, वहीं इस क्षेत्र में स्थित धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की मौजूदगी इलाके में कुछ खास होने का अहसास कराती है। उत्तराखंड की देवभूमि में दूरदराज इलाकों में बिखरी आध्यात्मिक स्थलों में सदियों पुरानी परिपाटी पीढ़ी दर पीढ़ी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है। ऐसा ही एक सुविख्यात स्थान है गुरु गोरखनाथ धाम। यह स्थान त्रिजुगी अखंड धूनी जलने के लिए प्रसिद्ध है। गुरु गोरखनाथ के दरबार के बारे में मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना कर शिशुओं की अकाल मौत के खतरे को टाला जा सकता है।
चंपावत जिला मुख्यालय से तकरीबन 33 किलोमीटर की दूरी पर पड़ोसी देश नेपाल की सीमा से लगे मंच कस्बे में नैसर्गिक सौंदर्य के बीच गुरु गोरखनाथ का अनादिकाल से स्थापित मठ अपने प्राकृतिक वैभव से सभी को बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है। आस्था के इस केंद्र में सतयुग से अखंड जल रही धूनी का प्रसाद भभूति के रूप में दिया जाता है। इस त्रिजुगी धूनी में केवल बांज की लकड़ी को धोकर जलाने की परंपरा है। यहां अखंड हवन कुंड में रोज दो बार पूजा होती है। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ में मठ की स्थापना चंद राजाओं के दौर में हुई थी। उससे पहले तक यहां केवल स्थायी रूप से धूनी जलती रहती थी। दंतकथाओं में गुरु गोरखनाथ को सब देवताओं का गुरु माना जाता है। शिशुओं की अकाल मौत रोकने के अलावा कई अन्य वरदानों के लिए भी इस दरबार की मान्यता है। जन्म के कुछ समय बाद काल के शिकार होने वाले बच्चों के माता-पिता संतान की रक्षा के लिए यहां दरबार में बच्चों को चढ़ाकर वापस ले जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से शिशुओं पर मंडराता खतरा खत्म हो जाता है। मठ में सौंठ, लंगोट और हवन सामग्री को चढ़ावे के रूप में स्वीकार किया जाता है।
गुरु गोरखनाथ धाम
•मान्यता : यहां पूजा-अर्चना से नहीं होती शिशुओं की अकाल मौत
•प्रसाद के रूप में मिलता है अखंड धूनी की राख का प्रसाद


Source- http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150812a_010115006&ileft=403&itop=148&zoomRatio=186&AN=20150812a_010115006

Pawan Pathak

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #117 on: September 07, 2015, 02:29:07 PM »
सौंदर्य की अद्भुत मिसाल है श्यामलाताल झील
टनकपुर। पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग में सूखीढांग क्षेत्र में स्थित श्यामलाताल झील अपनी सुंदरता से सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। गर्मी के दिनों में इस झील का आनंद उठाने दूर दराज से बड़ संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
टनकपुर से करीब 25 किमी. दूर श्यामलाताल में रामकृष्ण मिशन का खूबसूरत स्वामी विवेकानंद आश्रम और करीब पौन किमी. लंबी व दो सौ मीटर चौड़ झील स्थित है। अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्यता से भरपूर इस झील को भले ही पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित करने की ठोस पहल न की गई हो मगर झील की सौंदर्यता का आनंद लेने आने वाले पर्यटकों की संख्या कम नहीं है। गर्मी के दिनों में स्थानीय लोग तो सैर सपाटे के लिए कभी-कभार परिवार के साथ झील का रुख तो करते ही हैं, बाहरी क्षेत्रों से भी काफी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। विशेषकर यहां बंगाली पर्यटकों की अधिक आवाजाही रहती है। ठहरने के लिए कुमंविनि ने झील के किनारे पर्यटक आवास गृह बनाया है वहीं झील की सैर के लिए दो पैडल वोट भी हैं। अलबत्ता झील को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने को किए गए यह प्रयास नाकाफी हैं।


Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20090427a_008115004&ileft=-5&itop=71&zoomRatio=137&AN=20090427a_008115004

 

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