Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Champawat - चम्पावत

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where eagles dare:
bahut sundar anil bhai, shall plan my visit & explore Champawat area post monsooon :) thanks for so beautiful pics :)

Anil Arya / अनिल आर्य:

--- Quote from: where eagles dare on April 09, 2011, 01:09:13 PM ---bahut sundar anil bhai, shall plan my visit & explore Champawat area post monsooon :) thanks for so beautiful pics :)

--- End quote ---
OK We shall visit together  whole Uttarakhand. I may arrange the event for active/interested forum members, depends that my presence in Uttarakhand during post monsoon.

kundan singh kulyal:
पाताल रुद्रेश्वर

पाताल रुद्रेश्वर रीठा साहिब (दिउड़ी या  शिरैधार) से १० किलोमीटर और देवी धुरा से ढोलीगाँव के रस्ते लगभग २५ किलोमीटर दूर "बारशी" गाँव जिला चम्पावत मैं एक प्राकृतिक गुफा हैं. पाताल रुद्रेश्वर की जानकारी १९९३ मैं गाँव के ही एक बालक ने इसकी जानकारी दी इससे पहले इस गुफा को च्मेडों खान या घर (चमकादड़ों का निवास) कहते थे कोई भी इस गुफा मैं नहीं जाता था एक दिन गाँव का एक १४ वर्षीय बालक अपने गायों को इस गुफा के पास चारा रहा था तो वो उस गुफा के अन्दर गया किसी गाँव वाले ने उसको उस गुफा मैं जाते देखा तो जब वो बहार निकला तो उसने पूछा इसके अन्दर क्यों गया तो उस बालक ने बताया मैंने कल रात सपने मैं ये गुफा देखी जैसा मैंने सपने मैं देखा था हकीकत मै वैसी ही गुफा हैं तब उस आदमी ने गाँव वालों को सारी बात बताई उसी समय गाँव के कुछ लोग वहां गए  और गुफा के अन्दर जो देखा वो किसी चमत्कार से कम नहीं था वहां पर ३ छोटी छोटी गुफाएं है जिनमें चमकादड रहते हैं और एक बड़ी गुफा हैं जो किसी चमत्कार से कम नहीं हैं इस गुफा के अन्दर एक साथ ५०० से ६०० आदमी आ सकते हैं गुफा के अन्दर एक छोटा सा कुंड हैं जिसके किनारे पर बैल रुपी सफ़ेद पत्थर की आकृति बनी हैं और कुंड के बीचोंबीच सफ़ेद पत्थर का  शिव लिंग बना हुवा है शिव लिंग के उप्पर प्राकृतिक  रूप से पानी की ५ धाराएँ  उप्पर चट्टान से गिरती हैं इस जगह पर गुफा की उचाई ज्यादा नहीं हैं लगभग ४ या ५ फिट होगी  इस कुंड से ६ मीटर की दूरी पर चट्टान मैं कान लगाने से एसी आवाज आती हैं जैसे की चट्टान के अन्दर बहुत बड़ी नदी बह रही हो जब इस गुफा के बारे मैं लोगों को जानकारी मिली तो  दूर दूर से इस गुफा को देखने वालों का ताँता लगा रहता था आज भी बहुत दूर दूर से लोग यहाँ इस प्राकृतिक गुफा के दर्शन करने आते हैं इस गुफा के अन्दर प्रवेश करते ही एसा अनूभव होता हैं की जैसे साक्षात् शिव के दर्शन हो गए हो कितना सकून मिलता है यहाँ एसा लगता हैं की आज भी भगवन शिव यही पर तपस्या कर रहे हैं इस गुफा के दर्शन से ही पता चलता हैं कि इस गुफा का महत्व कितना है  परन्तु जितना इस गुफा का महत्व हैं उतना महत्व इस को नहीं मिलपाया इस जगह को सरकार ने भी कोई महत्व नहीं दिया यह इसी बात से मालूम हो जाता हैं की ये जगह रीठा मोटर मार्ग से ६ किलोमीटर की दूरी पर है जब इस गुफा का पता चला तो यहाँ तक मोटर मार्ग बनाने का कार्य भी शुरू हुवा आज कितने साल बीत गए अभी तक भी मात्र ६ किलोमीटर मोटर मार्ग नहीं बन पाया हैं.

kundan singh kulyal:
लधौन्धुरा पर्वत

लधौन्धुरा पर्वत यह पर्वत चम्पावत जिले मैं धुनाघाट रीठा साहिब मोटर मार्ग से लगभग ६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है यहाँ पर शिवजी का पौराणिक और एतिहासिक मंदिर हैं इस इलाके मैं यह सबसे उंच पर्वत है बताया जाता हैं की यहाँ भगवन शिव ने तपस्या की थी इस पर्वत के दूर दूर तक कोई भी गाँव नहीं हैं सुन्दर बंज बुरुंज काफल के घने ब्रक्षों से सुशोभित यह पर्वत मन को मोह लेता हैं  यहाँ के दर्शन करने जाने वाले श्रद्धालु को एक दिन पहले से ही शुद्ध शाकाहारी भोजन करना पड़ता हैं माशाहरी यहाँ तक की लह्शुन प्याज खाकर जाने वाले ब्यक्ति इस मंदिर तक नहीं पहुच पते हैं कई लोगोने इस कहावत को अजमाया भी हैं सच मैं ओ जंगल मैं भटक गए थे ये बातें हमने अपने बुजर्गों से सुनी हैं एक बहुत पुरानी घटना है एक राजा शिकार करते करते इस बन मैं आ गया किसी महात्मा ने उस राजा को बोला यहं शिकार करना बर्जित हैं राजन यहाँ पर शिव का मंदिर हैं वह अहंकारी राजा उस महात्मा की बात कहाँ मानने वाला राजा शिकार करते करते आगे बन मैं निकल गया राजा जंगल मैं भटक गया और राजा पर बिछूरों (बड़ी मधुमाखी) ने हमला कर दिया राजा बहुत घायल हो गया एसी अवस्था मैं राजा के पास कोई भी रास्ता नहीं था एक ही रास्ता था भगवन शिव से क्षमा मागने का जब उस राजा ने भगवन शिव से क्षमा याचना की तो वह ठीक हो गया और अपनी राजधानी वापस लौट गया कुछ ही दिनों के पश्चात फिर वो भगवन शिव के दर्शनों के लिए उस मंदिर मैं आया और एक चांदी का छत्र चढ़ा गया वो चांदी का छत्र  आज भी उसी मंदिर मैं वैसा ही रखा हैं वो छत्र देखने से उस समय की घटी वो घटना याद आ जाती हैं यहाँ कार्तिक पूर्णिमा को बहुत बड़ा मेला लगता हैं बहुत दूर दूर से यहाँ इस मेले मैं श्रद्धालु भाग लेने आते हैं इस समय यहाँ बहुत ठण्ड रहती हैं फिर भी पूरी रात यहाँ श्रधालुओं का जमघट लगा रहता हैं रात भर झोडा चंचरी और हुडकी मुसरबीन के धुन  मैं नाचते गाते गोंवों के लोगों के देखकर खुद भी उनलोगों के साथ कब नाचने लगे पता ही नहीं चलता आज ज्यादातर मेलों मैं स्टेज शो देखने को मिलते हैं परन्तु यहाँ वो सब मिलता हैं जो किसी भी मेले मैं आज देखने को नहीं मिलता ओ हैं हमारे पूर्वजों की बिराशत कुमाउनी लोक गीत और कुमाउनी लोक नृत्य कब शुबह हुई पता ही नहीं लगता इस मेले का एक और महत्व हैं यहाँ पर कांसे और ताम्बे के मिश्रण से बनी घंटीयां चढ़ाई जाती हैं उन घंटियों मैं पानी भरकर गूंगे बच्चों को पिलाते हैं गूंगे बच्चे बोलने लग जाते हैं यहाँ सच्चे मन से आये हुवे श्र्धलुवो की मनोकाना पूरी होती हैं इस मेले का ब्योपरिक दृष्टि से भी बहुत महत्व हैं स्थानीय कारीगरों द्वारा निर्मित औजार बर्तन आदि बहुत सारी वश्तुवें मिलती हैं पहले यहाँ दूर दूर के ब्योपारी आया करते थे समय के साथ कम ब्योपारी आने लगे हैं इस मेले को सरकार की ओर से कुछ भी सहायता नहीं मिलती यहाँ तक की सुरक्षा के नाम पर एक होम गार्ड तक इस मेले मैं नहीं रहता यहाँ तक की पीने का पानी तक की ब्यवस्था नहीं रहती स्थानीय लोगों की लगन और मेहनत से ही इस मेले का आयोजन किया जाता हैं जितना इस इस्थान का महत्व हैं उतना ही सरकार ने इस जगह की अनदेखी की हैं फिर भी यहाँ लगाने वाला मेले का माहौल ही रोमांचक रहता हैं यहाँ कुदरत के ओ नज़ारे देखने को मिलते हैं जो एक प्रकिर्ति प्रेमी की चाहत होती हैं चैत बैसाग के महीने मैं तो यहाँ की प्राकिर्तिक सुन्दरता का वर्णन करना बहुत मुस्किल हैं               

कुन्दन सिंह कुल्याल  लाधिया घाटी (चम्पावत)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


Baleshwar Temple Champawat

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