Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Champawat - चम्पावत

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पंकज सिंह महर:
रीठासाहिब-चम्पावत

Pawan Pathak:
मठ में सतयुग से जलती आ रही है  अखंड धूनी  बलि प्रथा के घोर विरोधी थे गोरखनाथ
बाबा गोरखनाथ को भगवान शिव का योग अवतार माना जाता है। इसी के चलते सिद्ध व्यक्ति गोरखनाथ की जन्म-मृत्यु का कोई दिन नहीं है। कहा जाता है कि इंसान की बलि का विरोध करते-करते बाबा गोरखनाथ नेपाल और इससे लगे इस इलाके में पहुंचे। मानव बलि को बढ़ावा देने वाले नेपाल के राजा को सबक सिखाने के लिए उनके नाम पर गोरखा फौज बनी, जिसने बलि समर्थक राजा को मात दी। नेपाल में राजशही के दौरान राजमुद्रा और राजमुकुट में गोरखनाथ के चरणपादुका के चिन्ह होते थे।
सतीश जोशी ‘सत्तू’
चंपावत। चंद एवं कत्यूर राजवंशों की राजधानी रहे और भगवान विष्णु के कुर्मावतार के लिए मशहूर चंपावत नगर और उसके आसपास जहां प्रकृति ने दोनों हाथों से अपना अकूत खजाना लुटाया है, वहीं इस क्षेत्र में स्थित धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की मौजूदगी इलाके में कुछ खास होने का अहसास कराती है। उत्तराखंड की देवभूमि में दूरदराज इलाकों में बिखरी आध्यात्मिक स्थलों में सदियों पुरानी परिपाटी पीढ़ी दर पीढ़ी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है। ऐसा ही एक सुविख्यात स्थान है गुरु गोरखनाथ धाम। यह स्थान त्रिजुगी अखंड धूनी जलने के लिए प्रसिद्ध है। गुरु गोरखनाथ के दरबार के बारे में मान्यता है कि यहां पूजा-अर्चना कर शिशुओं की अकाल मौत के खतरे को टाला जा सकता है।
चंपावत जिला मुख्यालय से तकरीबन 33 किलोमीटर की दूरी पर पड़ोसी देश नेपाल की सीमा से लगे मंच कस्बे में नैसर्गिक सौंदर्य के बीच गुरु गोरखनाथ का अनादिकाल से स्थापित मठ अपने प्राकृतिक वैभव से सभी को बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है। आस्था के इस केंद्र में सतयुग से अखंड जल रही धूनी का प्रसाद भभूति के रूप में दिया जाता है। इस त्रिजुगी धूनी में केवल बांज की लकड़ी को धोकर जलाने की परंपरा है। यहां अखंड हवन कुंड में रोज दो बार पूजा होती है। कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ में मठ की स्थापना चंद राजाओं के दौर में हुई थी। उससे पहले तक यहां केवल स्थायी रूप से धूनी जलती रहती थी। दंतकथाओं में गुरु गोरखनाथ को सब देवताओं का गुरु माना जाता है। शिशुओं की अकाल मौत रोकने के अलावा कई अन्य वरदानों के लिए भी इस दरबार की मान्यता है। जन्म के कुछ समय बाद काल के शिकार होने वाले बच्चों के माता-पिता संतान की रक्षा के लिए यहां दरबार में बच्चों को चढ़ाकर वापस ले जाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से शिशुओं पर मंडराता खतरा खत्म हो जाता है। मठ में सौंठ, लंगोट और हवन सामग्री को चढ़ावे के रूप में स्वीकार किया जाता है।
गुरु गोरखनाथ धाम
•मान्यता : यहां पूजा-अर्चना से नहीं होती शिशुओं की अकाल मौत
•प्रसाद के रूप में मिलता है अखंड धूनी की राख का प्रसाद

Source- http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150812a_010115006&ileft=403&itop=148&zoomRatio=186&AN=20150812a_010115006

Pawan Pathak:
सौंदर्य की अद्भुत मिसाल है श्यामलाताल झील
टनकपुर। पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग में सूखीढांग क्षेत्र में स्थित श्यामलाताल झील अपनी सुंदरता से सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। गर्मी के दिनों में इस झील का आनंद उठाने दूर दराज से बड़ संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
टनकपुर से करीब 25 किमी. दूर श्यामलाताल में रामकृष्ण मिशन का खूबसूरत स्वामी विवेकानंद आश्रम और करीब पौन किमी. लंबी व दो सौ मीटर चौड़ झील स्थित है। अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्यता से भरपूर इस झील को भले ही पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित करने की ठोस पहल न की गई हो मगर झील की सौंदर्यता का आनंद लेने आने वाले पर्यटकों की संख्या कम नहीं है। गर्मी के दिनों में स्थानीय लोग तो सैर सपाटे के लिए कभी-कभार परिवार के साथ झील का रुख तो करते ही हैं, बाहरी क्षेत्रों से भी काफी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। विशेषकर यहां बंगाली पर्यटकों की अधिक आवाजाही रहती है। ठहरने के लिए कुमंविनि ने झील के किनारे पर्यटक आवास गृह बनाया है वहीं झील की सैर के लिए दो पैडल वोट भी हैं। अलबत्ता झील को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने को किए गए यह प्रयास नाकाफी हैं।


Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20090427a_008115004&ileft=-5&itop=71&zoomRatio=137&AN=20090427a_008115004

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