Author Topic: Champawat - चम्पावत  (Read 58934 times)

पंकज सिंह महर

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #40 on: March 31, 2008, 12:57:23 PM »
पूर्णागिरी - पिथौरागढ़ में पूर्णागिरी का जहाँ धार्मिक महत्व है - वहाँ इस स्थल का पर्यटन की दृष्टि से भी विशेष महत्व है। टनकपुर से केवल २६ किलोमीटर की दूरी पर यह भव्य धार्मिक स्थान बसा है। यहाँ पर पूर्णागिरी का पीठ है, इसलिए कुछ लोग इस स्थल को 'पुण्यगिरी' के नाम से पुकारना अधिक पसन्द करते हैं। इस दिव्य स्थान पर पहुँचकर मानव का मन सांसारिक छल-कपटों से हटकर अनायास निर्मल हो जाता है। इस स्थान का यह एक ऐसा चमत्कार है जिसे नास्तिक से नास्तिक मनुष्य भी अनुभव करता है। पुण्यादेवी के भक्तों की तो यहाँ सदैव भीड़ लगी रहती है, परन्तु चैत्रमास के नवरात्रों में तो यहाँ पैर रखने की भी जगह कठिनाई से मिलती है। मनोकामना प्राप्ति हेतु हजारों भक्त यहाँ पहुँचते हैं। 'पुण्यादेवी' क्षेत्र में पर्यटक, सैलानी भी अधिक पहुँचते हैं। टनकपुर से यहाँ पहुँचना सरल होता है।

पंकज सिंह महर

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #41 on: March 31, 2008, 01:01:56 PM »
पूर्णागिरी- शक्ति पीठ

नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चम्पावत जनपद में अवस्थित पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर है । कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था । प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं । यह स्थान टनकपुर से मात्र १७ कि.मी. की दूरी पर है । अन्तिम १७ कि.मी. का रास्ता श्रद्धालु अपूर्व आस्था के साथ पार करते हैं ।

लेकिन शरद् ॠतु की नवरात्रियों के स्थान पर मेले का आनंद चैत्र की नवरात्रियों में ही अधिक लिया जा सकता है क्योंकि वीरान रास्ता व इसमें पड़ने वाले छोटे-छोटे गधेरे मार्ग की जगह-जगह दुरुह बना देते हैं । चैत्र की नवरात्रियों में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर यहाँ आते हैं । अपूर्व भीड़ के कारण यहाँ दर्शनार्थियों का ऐसा ताँता लगता है कि दर्शन करने के लिए भी प्रतीक्षा करनी पड़ती है । मेला बैसाख माह के अन्त तक चलता है ।

ऊँची चोटी पर गाढ़े गये त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहाँ सती का नाभि प्रवेश गिरा था ।

पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है -

"पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्व व्यापी वर सम्पदा के अधिर्वक्य में इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं ।"

यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है । जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते । टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढ़ने के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहाँ पहुँचते हैं । रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है । क्षणिक लापरवाही अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है । नीचे काली नदी का कल-कल करता रौख स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है । रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है ।

मेले के लिए विशेष बसों की व्यवस्था की जाती है जो टनकपुर से ठुलीगाढ़ तक निसपद पहुँचा देती है । भैरव पहाड़ और रामबाड़ा जैसे रमणीक स्थलों से गुजरने के बाद पैदल यात्री अपने विश्राम स्थल टुन्नास पर पहुँचते हैं जहाँ भोजन पानी इत्यादि की व्यवस्थायों हैं । यहाँ के बाद बाँस की चढ़ाई प्रारम्भ होती है जो अब सीढियाँ बनने तथा लोहे के पाइप लगने से सुगम हो गयी है । मार्ग में पड़ने वाले सिद्ध बाबा मंदिर के दर्शन जरुरी हैं ।

रास्ते में चाय इत्यादि के खोमचे मेले के दिनों में लग जाते हैं । नागा साधु भी स्थान-स्थान पर डेरा जमाये मिलते हैं । झूठा मंदिर के नाम से ताँबे का एक विशाल मंदिर भी मार्ग में कोतूहल पैदा करता है ।

प्राचीन बह्मादेवी मंदिर, भीम द्वारा रोपित चीड़ वृक्ष, पांडव रसोई आदि भी नजदीक ही हैं । ठूलीगाड़ पूर्णागिरी यात्रा का पहला पड़ाव है ।

झूठे मंदिर से कुछ आगे चलकर काली देवी तथा महाकाल भैंरों वाला का प्राचीन स्थान है जिसकी स्थापना पूर्व कूमार्ंचल नरेश राजा ज्ञानचंद के विद्वान दरबारी पंडित चंद्र त्रिपाठी ने की थी । मंदिर की पूजा का कार्य बिल्हागाँव के बल्हेडिया तथा तिहारी गाँव के त्रिपाठी सम्भालते हैं ।

वास्तव में पूर्णागिरी की यात्रा अपूर्व आस्था और रमणीक सौन्दर्य के कारण ही बार-बार श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी इस ओर आने को उत्साहित सा करती है । इस नैसर्गिक सौन्दर्य को जो एक बार देश लेता है वह अविस्मरणीय आनंद से विभोर होकर ही वापस जाता है । कुमाऊँ क्षेत्र के कुमैंये, पूरब निवासी पुरबिये, थरुवाट के थारु, नेपाल के गौरखे, गाँव शहर के दंभ छोड़े निष्कपट यात्रा करने वाले श्रद्धालु मेले की आभी को चतुर्दिक फैलायो रहते हैं ।

पंकज सिंह महर

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #42 on: March 31, 2008, 01:07:01 PM »
टनकपुर

भारत की स्वाधीनता प्राप्ति के पहले कुमाऊं के शेष भागों की तरह ही टनकपुर भी कई रजवाड़ों के वंश द्वारा शासित रहा है। वर्तमान 6ठी सदी से पहले यहां कुनिनदों का शासन था। उसके बाद खासों, फिर नंदों का और मौर्यों का शासन हुआ। माना जाता है कि राजा बिंदुसार के समय खासों ने विद्रोह कर दिया था, जिसे उनके उत्तराधिकारी सम्राट अशोक ने दबाया। इस समय कुमाऊं में कई सरदारों तथा राजाओं ने शासन किया।
6ठी से 12वीं सदी के बीच कुमाऊं में कत्यूरी वंश शक्तिशाली बना और उस समय चंदों की प्रधानता 12वीं सदी में हुई, जब उन्होंने कुमाऊं के अधिकांश भागों पर कब्जा कर लिया और वर्ष 1790 तक यहां शासन करते रहे। उन्होंने कई प्रमुखों को परास्त किया तथा पड़ोसी राज्यों से युद्ध भी किया। वर्ष 1790 में स्थानीय रूप से गोरखियाल कहे जाने वाले गोरखों ने कुमाऊं पर कब्जा कर चंद वंश का अंत कर दिया।

वर्ष 1815 तक गोरखों का दमनकारी शासन चलता रहा। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें परास्त कर कुमाऊं का शासन संभाला। एक सूत्र के अनुसार टनकपुर का नाम एक अंग्रेज टनक के नाम पर पड़ा है पर इसका कोई प्रमाण नहीं है तथा यह संभव भी नहीं लगता। एक अन्य वर्णनानुसार टनकुपर अंग्रेजों द्वारा स्थापित एक आधुनिक शहर था जिसकी स्थापना वर्ष 1880 में उस जगह हुई जहां पहले ब्रह्मदेव शहर बसा था।

वर्ष 1947 में जब भारत स्वाधीन हुआ तो कुमाऊं, उत्तर प्रदेश राज्य का एक भाग बना। वर्ष 1972 में अल्मोड़ा जिले का चंपावत तहसील को पिथौरागढ़ में मिला दिया गया तथा सितंबर 15, 1997 को चंपावत को एक स्वतंत्र जिला बनाया गया, जिसका भाग टनकपुर बना। वर्ष 2000 में चंपावत नये राज्य उत्तराखंड का एक भाग घोषित हुआ जिसे तब उत्तरांचल कहा जाता था।

वर्ष 1952 तक टनकपुर एक गांव ही था, जब इस शहर में शहरी क्षेत्र समिति की स्थापना हुई। वर्ष 1958 में इसे सूचित क्षेत्र (नोटीफायड एरिया) कमिटि बनाया गया तथा वर्ष 1971 में नगरपालिका कमेटी की स्थापना हुई।

हलिया

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #43 on: March 31, 2008, 02:28:07 PM »
आजकल पूर्णागिरी का मेला पूरे जोरों पर है।  नवरात्रों में यहां बहुत भीड़ हो जाती है।

पूर्णागिरी- शक्ति पीठ

नैनीताल जनपद के पड़ोस में और चम्पावत जनपद में अवस्थित पूर्णागिरी का मंदिर अन्नपूर्णा शिखर पर ५५०० फुट की ऊँचाई पर है । कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था । प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं । यह स्थान टनकपुर से मात्र १७ कि.मी. की दूरी पर है । अन्तिम १७ कि.मी. का रास्ता श्रद्धालु अपूर्व आस्था के साथ पार करते हैं ।

लेकिन शरद् ॠतु की नवरात्रियों के स्थान पर मेले का आनंद चैत्र की नवरात्रियों में ही अधिक लिया जा सकता है क्योंकि वीरान रास्ता व इसमें पड़ने वाले छोटे-छोटे गधेरे मार्ग की जगह-जगह दुरुह बना देते हैं । चैत्र की नवरात्रियों में लाखों की संख्या में भक्त अपनी मनोकामना लेकर यहाँ आते हैं । अपूर्व भीड़ के कारण यहाँ दर्शनार्थियों का ऐसा ताँता लगता है कि दर्शन करने के लिए भी प्रतीक्षा करनी पड़ती है । मेला बैसाख माह के अन्त तक चलता है ।

ऊँची चोटी पर गाढ़े गये त्रिशुल आदि ही शक्ति के उस स्थान को इंगित करते हैं जहाँ सती का नाभि प्रवेश गिरा था ।

पूर्णगिरी क्षेत्र की महिमा और उसके सौन्दर्य से एटकिन्सन भी बहुत अधिक प्रभावित था उसने लिखा है -

"पूर्णागिरी के मनोरम दृष्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौन्दर्य की महिमा अवर्णनीय है, प्रकृति ने जिस सर्व व्यापी वर सम्पदा के अधिर्वक्य में इस पर्वत शिखर पर स्वयं को अभिव्यक्त किया है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का कोई भी क्षेत्र शायद ही इसकी समता कर सके किन्तु केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना पथ आलोकित कर सके हैं ।"

यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है, नेपाल इसके बगल में है । जिस चोटी पर सती का नाभि प्रदेश गिरा था उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते । टनकपुर के बाद ठुलीगाढ़ तक बस से तथा उसके बाद घासी की चढ़ाई चढ़ने के उपरान्त ही दर्शनार्थी यहाँ पहुँचते हैं । रास्ता अत्यन्त दुरुह और खतरनाक है । क्षणिक लापरवाही अनन्त गहराई में धकेलकर जीवन समाप्त कर सकती है । नीचे काली नदी का कल-कल करता रौख स्थान की दुरुहता से हृदय में कम्पन पैदा कर देता है । रास्ते में टुन्नास नामक स्थान पर देवराज इन्द्र ने तपस्या की, ऐसी भी जनश्रुती है ।

मेले के लिए विशेष बसों की व्यवस्था की जाती है जो टनकपुर से ठुलीगाढ़ तक निसपद पहुँचा देती है । भैरव पहाड़ और रामबाड़ा जैसे रमणीक स्थलों से गुजरने के बाद पैदल यात्री अपने विश्राम स्थल टुन्नास पर पहुँचते हैं जहाँ भोजन पानी इत्यादि की व्यवस्थायों हैं । यहाँ के बाद बाँस की चढ़ाई प्रारम्भ होती है जो अब सीढियाँ बनने तथा लोहे के पाइप लगने से सुगम हो गयी है । मार्ग में पड़ने वाले सिद्ध बाबा मंदिर के दर्शन जरुरी हैं ।

रास्ते में चाय इत्यादि के खोमचे मेले के दिनों में लग जाते हैं । नागा साधु भी स्थान-स्थान पर डेरा जमाये मिलते हैं । झूठा मंदिर के नाम से ताँबे का एक विशाल मंदिर भी मार्ग में कोतूहल पैदा करता है ।

प्राचीन बह्मादेवी मंदिर, भीम द्वारा रोपित चीड़ वृक्ष, पांडव रसोई आदि भी नजदीक ही हैं । ठूलीगाड़ पूर्णागिरी यात्रा का पहला पड़ाव है ।

झूठे मंदिर से कुछ आगे चलकर काली देवी तथा महाकाल भैंरों वाला का प्राचीन स्थान है जिसकी स्थापना पूर्व कूमार्ंचल नरेश राजा ज्ञानचंद के विद्वान दरबारी पंडित चंद्र त्रिपाठी ने की थी । मंदिर की पूजा का कार्य बिल्हागाँव के बल्हेडिया तथा तिहारी गाँव के त्रिपाठी सम्भालते हैं ।

वास्तव में पूर्णागिरी की यात्रा अपूर्व आस्था और रमणीक सौन्दर्य के कारण ही बार-बार श्रद्धालुओं और पर्यटकों को भी इस ओर आने को उत्साहित सा करती है । इस नैसर्गिक सौन्दर्य को जो एक बार देश लेता है वह अविस्मरणीय आनंद से विभोर होकर ही वापस जाता है । कुमाऊँ क्षेत्र के कुमैंये, पूरब निवासी पुरबिये, थरुवाट के थारु, नेपाल के गौरखे, गाँव शहर के दंभ छोड़े निष्कपट यात्रा करने वाले श्रद्धालु मेले की आभी को चतुर्दिक फैलायो रहते हैं ।


Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #44 on: March 31, 2008, 02:40:58 PM »
Great info Mahar ji +1 karma aapko.

हेम पन्त

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #45 on: July 19, 2008, 10:45:21 AM »
चम्पावत का एक नजारा--


प्रहलाद तडियाल

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Re: चम्पावत जिला - CHAMPAWAT -
« Reply #46 on: July 19, 2008, 10:50:48 AM »
Good Info..........

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #47 on: September 24, 2009, 01:56:10 PM »
 
                                       गोरिल या गोलू देवता मंदिर


गोलू देवता, जिन्हें गोरिल या ग्वाल देवता भी कहा जाता है, कुमाँऊ के लोकप्रीय देवता हैं जिनके बारे में अनेक गीत लोग सदियों से गाते आ रहें हैं। यह न्याय के देव हैं तथा ये निर्दयता एवं अन्याय से पीड़ित असहाय लोगों को न्याय प्रदान करते हैं। यहां एक शिकायत पटी रखी है, जिसमें लोग न्याय के लिये अपना आवेदन पत्र डालते हैं।
माना जाता है कि यह मंदिर चंपावत के राजा कत्यूरी को समर्पित है जो अपने अटल न्याय एवं स्पष्ट तरीकों के लिये प्रसिद्ध थे एवं जो स्वयं ही विमाता के सुनियोजित षड्यंत्र के शिकार थे, जिसने उन्हें एक एक लोहे के पिजड़े में बंद कर एक नदी में फेंक दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि वे चंपावत के जाने-माने राजा हरीश चंद गोरिल के मामा थे, जिनकी मृत्यु के बाद उनकी पूजा भी लोकदेव हारू के रूप में होती है।
 
 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #48 on: September 24, 2009, 01:57:22 PM »
 
                                              राजा का चबूतरा

बालेश्वर मंदिर के समय एवं शैली के अनुसार ही नगर पंचायत कार्यालय के ठीक विपरीत राजा का चबूतरा निर्मित है। मूल सुंदर भवनों में बहुत से भाग नहीं बचे है; पर इसके अवशेषों से स्पष्ट है कि इस प्लेटफार्म के सिरे जो पत्थर से निकाले गये हैं वहां एक बितान को समर्थन दे रहे कई खंभे रहे होंगे। पुराने समय में इसका उपयोग चंद शासकों द्वारा सभाओं के आयोजन तथा न्याय करना होता होगा।
 

सुधीर चतुर्वेदी

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Re: Champawat - चम्पावत
« Reply #49 on: September 24, 2009, 01:58:25 PM »
                                                   नागनाथ मंदिर

[color=#0000ff]तहसील कार्यालय के पास स्थित यह मंदिर नागनाथ को समर्पित है। मूल मंदिर कुमाऊं के चंद शासकों द्वारा निर्मित है तथा यही वह जगह है जहां उन्होंने कई प्रशासनिक निर्णय लिये। कहा जाता है कि नागनाथ नामक एक साधु ने यहां समाधि ली थी और इसलिये इस मंदिर का नाम नागनाथ पड़ा।[/color]

 

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