इतिहास
भारत की स्वाधीनता प्राप्ति से पहले चंपावत भी कुमाऊं के शेष भागों की तरह कई रजवाड़ों के वंशों द्वारा शासित रहा है। 6ठी सदी से पहले यहां कुनिनदासों ने शासन किया। इसके बाद खासों, नंदों तथा मौर्यों का का रहा। माना जाता है कि राजा बिंदुसार के कार्याकाल में खासों ने विद्रोह कर दिया था जिसे उनके उत्तराधिकारी महान अशोक ने दबाया। इस खास राजवंश के शासन के दौरान कुमाऊं पर कई छोटे सरदारों तथा राजाओं का अधिकार रहा।
6ठी से 12वीं सदी के बीच कत्यूरी वंश ही शक्तिशाली हुआ एवं इस वंश ने कुमाऊं के अधिकांश भागों पर इस बीच शासन किया।
परंतु इस बीच भी चंद शासकों ने चंपावत पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया। चंपावत एक प्राचीन राजधनी शहर है तथा कहा जाता है कि इस जगह ही पहली बार कुमाऊं का सामाजिक एवं सांस्कृतिक ताना-बाना बुना गया। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर वर्ष 953 में प्रथम चंद वंश के राजा सोम चंद ने चंपावत की स्थापना की। वर्ष 1563 तक यहां चंदों का मुख्यालय रहा उसके बाद चंदों ने अपनी राजधानी अल्मोड़ा में स्थानांतरित कर ली। चंपावत नाम दामन कोट के राजा अर्जुन देव की पुत्री चंपावती के नाम पर पड़ा। माना जाता है कि चंपावती का सोम देव के साथ विवाह होने से चंद राज्य का विस्तार संभव हुआ।
12वीं सदी में चंदों की प्रधानता हुई जब उन्होंने अधिकांश कुमाऊं पर अधिकार जमा लिया और वर्ष 1790 तक वहां शासन किया। अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिये उन्होंने कई प्रमुखों को परास्त किया तथा पड़ोसी राज्यों के साथ युद्ध भी किया। इस वंश पर केवल एक बार विराम तब आया जब गढ़वाल के पंवार राजा प्रद्युम्न शाह ने कुमाऊं पर शासन किया जिसे प्रद्युम्न चंद के नाम से जाना गया। वर्ष 1790 में स्थानीय रूप से गोरखियाल कहे जाने वाले गोरखों ने कुमाऊं पर कब्जा कर चंद वंश का अंत कर दिया।
गोरखा शासकों का शोषण वर्ष 1815 में समाप्त हुआ जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें परास्त कर कुमाऊं को अपने अधीन कर लिया। दि हिमालयन गजेटियर (वोल्युम III, भाग I, वर्ष 1882) में लिखते हुए ई टी एटकिंस ने कहा है कि वर्ष 1881 में चंपावत की कुल जनसंख्या 356 थी तथा यह कर उप-संग्राहक का मुख्यालय था। उसने यह भी बताया है कि उस समय पुराना चंद राजमहल विध्वंश के कगार पर था यद्यपि पुराने किले के अवशेष बचे थे। एटकिंस “राजमहल के बारे में बताता है, "राजमहल के विध्वंश के बीच बचे इसकी नींव तथा एक बालकनी के दरवाजे के साथ आयताकार आंगन के बाहर 10 वर्ग फीट का एक जलाशय था तथा इसके निकट ही तीन या चार मंदिर समतल क्षेत्र पर 100 वर्ग फीट के एक ठोस चट्टान पर स्थित था। वे नींव 20 फीट व्यास के थे तथा जिसके ऊपर एक मेहराबी गुंबद था तथा ये सब उत्तम कारीगरी के पत्थरों से निर्मित थे। वे निश्चय ही काफी पुराने थे क्योंकि इनमें कुछ स्वाभाविक तौर पर समकालीन विध्वंश मंदिर के ऊपर स्थित थे और कई जगह पुराने बलूतों के अवशेष दिख पड़ते थे।"
अंग्रेजों के शासन काल के अंत में स्थानीय कार्यदलों एवं प्रेस ने जनजागरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जो घृणित बेगार प्रथा तथा लोगों के जनाधिकार से संबंधित था। इन आंदोलनों का स्वाधीनता आंदोलन में मिलन हो गया और वर्ष 1947 में स्वाधीनता प्राप्त हुई। तब कुमाऊं उत्तर प्रदेश का एक भाग बन गया। वर्ष 1972 में अल्मोड़ा जिले का चंपावत तहसील पिथौरागढ़ में शामिल कर लिया गया तथा सितंबर 15, 2000 में चंपावत नये राज्य उत्तराखंड का एक भाग बना जिसे तब उत्तरांचल कहते थे।