Author Topic: Chopta Tungnath Mini Switzerland of Uttarakhand-चोपता तुंगनाथ उत्तराखंड  (Read 67248 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
तुंगनाथ का इतिहास


घने देवदार, बाँज, बुरांश, थुनेर के वृक्षों के बीच अत्यंत शोभनीय मक्कू मठ का इतिहास प्रथम शताब्दी पूर्व माना जाता है। मार्कण्डेय ऋषि की तपस्थली कहा जाने वाला यह क्षेत्र देवासुर संग्राम और आर्य व अनार्य जातियों की संघर्ष गाथायें अपने में समेटे हुए है। प्राचीन आदिवासी मौर जातियाँ ग्रीष्म काल में अपने पशुओं के साथ बुग्यालों की प्राकृतिक सुषमा में तथा शीतकाल में मक्कू में रह कर जीवनयापन करती थी।

ये आदिवासी जातियाँ कालान्तर में बौद्ध धर्म से प्रभावित हो गयी थीं। बाद में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिये आदि शंकराचार्य द्वारा यहाँ पर मठ की स्थापना करनी आवश्यक समझी गई तथा पंचकेदार में एक तुंगनाथ मठ की स्थापना की गई। सनातन धर्म के प्रभाव से वर्णाश्रम व्यवस्था में समाहित हो गईं आदिवासी जातियों के अस्तित्व के लक्षण आज भी विराजमान हैं। बाद में यहाँ पर ब्राह्मण व राजपूत जातियाँ भी आकर रहने लगीं।

प्राचीन सभ्यता का यह केन्द्र 1803 ई. के भूकम्प में तहस-नहस हो गया। अनुमान है कि उस विध्वंस के बाद इसकी एक चौथाई आबादी ही शेष रह गयी थी। प्राचीन काल से ही गाँव की परिधि चन्द्रशिला शिखर (समुद्र की सतह से 9375 मी.) तक फैली हुई है।

इसका क्षेत्रफल 221.462 हेक्टेयर है। यहाँ तुंगनाथ जी के दो मंदिर हैं, एक गाँव में और दूसरा समुद्र सतह से 3250 मी. की ऊँचाई पर स्थिापित है। दोनों की आकृति व रूप समान हैं। अंतर सिर्फ इतना है एक छः महीने बर्फ से ढँका रहता है तो दूसरा साल भर खुला रहता है। मंदिरों पर खुदे कुछ पौराणिक चिन्हों का उल्लेख मिलता है जिनमें से कुछ अनुमान से पढ़े जा सकते हैं।

सैंकड़ों वर्षों तक यह गाँव ज्योतिष व संस्कृत के अध्ययन का केन्द्र बना रहा। इसकी विशिष्ट स्थिति के कारण नागपुर मंडल के अन्य गाँव इससे ईर्ष्या करते रहे। एक गढ़वाली कहावत में इसे देखा जा सकता है – ‘‘ध्यूल पर घाम भी है चि, तामि पर आदु भी रौंधा त रा जान्दा त जा।’’

अर्थात् मंदिर पर धूप भी है, छोटे बर्तन में आटा भी, रहते हैं तो रहो, जाते हो तो जाओ। परन्तु अपने अस्तित्व के लिये इस गाँव के लोगों ने वनों के बीच अपनी सामुदायिकता व आदर भावना को एक परंपरा के रूप में विकसित किया। इस विशिष्टता को ‘मक्कू बोला’ स्वभाव के नाम से जाना जाता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
चोपता तुंगनाथ

उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडिया और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं..चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है-चोपता तुगंनाथ। बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढवाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।

जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढे इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है। इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते।

सबसे खास बात ये है कि पूरे गढवाल क्षेत्र में या अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और सैलानियों की साधारण पहुंच में है।



Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
चोपता: बर्फ पड़ी, पर नहीं पहुंच रहे पर्यटक


रुद्रप्रयाग। एक ओर सरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के दावे कर रही है, वहीं पर्यटक स्थलों तक पर्यटकों को आवागमन में आने वाली दिक्कतें दूर करने की ओर जमीन पर कोई कोशिश नहीं की जा रही। रुद्रप्रयाग के पर्यटक स्थल चोपता के प्रति सरकारी लापरवाही इस बात की तस्दीक करती है। इस सीजन में यहां अच्छी बर्फबारी हुई, जिसका दीदार करने देशी- विदेशी सैलानी इस ओर रुख भी कर रहे हैं, लेकिन बर्फ न हटाने से गत एक महीने से सड़क बंद है। ऐसे में पर्यटक आधे रास्ते से वापस लौटने को मजबूर हैं।

जिले के चोपता पर्यटक स्थल को मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से जाना जाता है। यहां के मखमली बुग्याल हर मौसम में पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। बर्फबारी के बाद तो इसके सौंदर्य पर चार चांद लग जाते हैं। इस बार भी दिसंबर में चोपता में अच्छी बर्फबारी हुई, जिसके बाद यहां देशी विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचे, लेकिन चोपता को जाने वाला मोटरमार्ग अधिक बर्फबारी के कारण बंद हो चुका है। इसके चलते अधिकांश लोग चोपता तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। हालांकि दुगलबिट्टा व इससे कुछ आगे तक जाने में पर्यटक सफल रहे।

सरकारी बेरुखी का आलम यह है कि बर्फबारी के एक महीने बाद भी चोपता- मंडल मोटरमार्ग नहीं खोला जा सका है। हालांकि, स्थानीय टैक्सी व ट्रक चालक अभ्यास होने के कारण आसानी से निकल रहे हैं, लेकिन पर्यटकों के वाहन बर्फ में फंस रहे हैं। बर्फ पर टायरों के फिसलने की वजह से दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। यही वजह है कि पर्यटक दुगलबिट्टा से आगे वाहनों पर नहीं जा रहे। हालांकि, यहा से पैदल भी चोपता तक जाया जा सकता है, लेकिन इस मार्ग पर घने वन होने के कारण जंगली जानवरों का भय बना रहता है।

 कलकत्ता से चोपता में बर्फबारी का लुत्फ लेने पहुंचे श्यामा प्रसाद बनर्जी की मुराद पूरी नहीं हो सकी। हालांकि, वह दुगलबिट्टा व इससे तीन किमी आगे बनियांकुंड तक गए, लेकिन वह चोपता तक नहीं पहुंच सके। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग ऊखीमठ के सहायक अभियंता एचएस नेगी ने बताया कि मोटरमार्ग पर पड़ी बर्फ को हटाया जा रहा है, जल्द ही इस पर वाहनों की आवाजाही शुरू कर दी जाएगी।


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
FIRST GATEWAY TO TUNGNATH TEMPLE


Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
समुद्रतल से १३,०७२ फीट की ऊंचाई पर बसा तुंगनाथ धाम पर्वतीय क्षेत्र का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। पचास फीट ऊंचे इस इंदिर की बनावट और कला देखते ही बनती है। देखनेवाली बात यह है कि यह धाम जितनी अधिक ऊंचाई पर बसा है यहां पहुंचना उतना ही आसान और कम समय लगता है। चमोली के ठीक बद्रीनाथ और केदारनाथ के बीच गोपेश्वर-ऊखीमठ मोटर मार्ग पर चोपता नामक चट्टी से पैदल तीन किलोमीटर चढ़ाई के बाद तुंगनाथ धाम पहुंच जाते हैं।

यह मंदिर किस काल का है और किसने बनाया इसकी प्रामाणिक जानकारी अभी तक नहीं मिल पाई है। क्षेत्रीय लोग पाण्डवॊं द्वारा निर्मित बताते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने उत्तराखंड यात्रा के दौरान इस मंदिर को बनाया था। मंदिर के गर्भगृह में शंकराचार्य की भव्य मूर्ति है, तो पाण्डवॊं की भी प्रतिमायें हैं।

वेदव्यास और काल भैरॊ की दो अष्टधातु की मूर्तियों सहित गर्भगृह में दुर्लभ मूर्तियों की भरमार है। लगभग सभी प्रमुख देवी-देवता यहां आसीन हैं। एक फुट ऊंचा उत्तर की ओर झुका श्यामवर्णी शिवलिंग विशेष दर्शनीय है। स्थानीय लोग इसे शिवजी की बांह कहते हैं। इसकी भी दिलचस्प लोककथा है।

एक बार पाण्डव श्राप मुक्ति के लिए बाबा भोलेनाथ को खुश करने के लिए घूमते-घूमते केदारनाथ पहुंचे।

 शिवजी कुपित थे और पांडवॊं को दर्शन देना नहीं चाहते थे। केदारनाथ में जहां स्थानीय लोगों की भैंसें चर रही थी, वहीं शिवाजी ने एक भैंसे का रूप धारण कर लिया और भैसों के झुण्ड में शामिल हो गये। अचानक ही एक असाधारण और नये भैंस को टपका देखकर भीम को बेहद आश्चर्य हुआ। उन्हें शक हुआ कि कहीं शिवजी की करामात तो नहीं है।

भीम ने सोचा एक संकरी घाटी से सभी भैंसे गुजरेंगी, वहीं भीम पांव जमाकर खड़े हो गए। कुछ देर में सभी भैंसें गुजर गईं लेकिन भैंस बने शिव ही पीछे रह गये और धर्मसंकट में पड़ गये। वे कैसे भीम की टांगों के नीचे से गुजरें? भीम माजरा समझ गये। उन्होंने उस असाधारण भैंस को पकड़ना चाहा तो भैंस जमीन के अन्दर धंसने लगी भीम केवल पृष्ठभाग ही पकड़ पाये। कहा जाता है कि शिवजी के ये अंग विग्रह के रूप में पांच जगहों पर निकले।

 पृष्ठभाग केदारनाथ में निकला। जहां आज भी मुख्यत: इसकी पूजा होती है। मध्य भाग मदमहेश्वर में निकला, बाहें तुंगनाथ, मुंह रुद्रनाथ और जटायें कल्पनाथ में प्रकट हुईं। ये पांचों पांच धाम पंचकेदार के नाम से जाने जाते हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

                                सर्वाधिक ऊंचाई पर तुंगनाथ
                            =================

पंचकेदार में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर। समुद्रतल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर भी उत्तर भारतीय वास्तुशैली में बना है। यह उत्तरांचल का सबसे ऊंचा शिवमंदिर भी है। जबकि मार्ग में पैदल चढ़ाई लगभग 3 किमी ही है।

उखीमठ-गोपेश्वर बस मार्ग पर स्थित चोपता से इसकी यात्रा शुरू होती है। बांस व बुरांस के वृक्षों से घिरे इस मार्ग से होकर यात्री जब वृक्षहीन ऊंचाई पर पहुंचते हैं तो दूर तक फैले बुग्याल उनका मन मोह लेते हैं। विशाल प्रांगण में स्थित तुंगनाथ मंदिर के प्रवेशद्वार के  पास दो शेरों की मूर्तियां स्थित हैं। मंदिर के गर्भगृह में स्थित स्वयंभू लिंग शिव भुजा स्वरूप है। पास ही शंकराचार्य की प्रतिमा भी है। श्रद्धालु गर्भगृह में शिवलिंग के निकट तक पहुंचकर पूजा करते हैं। मंदिर की पृष्ठभूमि में दुग्धधवल हिमशिखर दिखते हैं।

मंदिर के पास से ही एक मार्ग चंद्रशिला शिखर की ओर जाता है। दो किमी का मार्ग तय कर जब सैलानी चंद्रशिला पीक पर पहुंचते हैं तो सामने विशाल पर्वतश्रृंखला के समानांतर खड़े होने का अहसास होता है।

 यहां से गोपेश्वर के आसपास का दृश्य भी देखा जा सकता है। रुद्रनाथ के पास है वैतरणी रुद्रनाथ मंदिर भी प्रकृति की अद्वितीय पवित्रता के मध्य लगभग 2300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर के सामने हिमशिखरों की कतार में नंदादेवी एवं त्रिशूल जैसे पावन शिखर हैं। रुद्रनाथ तक पहुंचने के तीन मार्ग हैं और तीनों ही प्राकृतिक सुषमा के परिपूर्ण किंतु निर्जन हैं।

 एक मार्ग गोपेश्वर के निकट सगर नामक गांव से पनार के मनमोहक बुग्यालों के मध्य से जाता है। दूसरा मंडल गांव से अनुसूया देवी मंदिर होकर रुद्रनाथ पहुंचता है। तीसरा कल्पेश्वर से उर्गम एवं दुमब गांव होकर जाता है। यह मार्ग सबसे लंबा है। इस मार्ग से प्राय: ट्रेकिंग के शौकीन लोग जाते हैं। रुद्रनाथ मंदिर पहाड़ी के सहारे बड़े से स्थान पर एक गुफा के रूप में मौजूद है। इसके सामने के भाग को मंदिर का आकार प्रदान कर प्रवेशद्वार बनाया गया है। मंदिर के गर्भगृह में शिव की मुखाकृति बनी है। काले पाषाण की मुखाकृति में शिव रौद्र मुद्रा में दिखते हैं।

चट्टान के सहारे कुछ छोटे मंदिर भी बने हैं। जंगल, पहाड़ी नदियां, फूलों भरी घाटियां पार कर श्रद्धालु रुद्रनाथ पहुंचते हैं तो उनका मन वहां कुछ दिन ठहरने को जरूर करता है। मंदिर के निकट सूर्यकुंड, चंद्रकुड, नारदकुंड, ताराकुंड व मानसकुंड भी दर्शनीय हैं।



 एक किमी नीचे उतर कर आप वैतरणी में स्नान कर सकते हैं। लोग यहां आकर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं। मान्यता है कि आत्माएं वैतरणी नदी पार करके ही दूसरे जीवन में प्रवेश करती है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

                                                हिमालय से एकाकार कराता है चोपता तुंगनाथ
                                         =============================


उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडि़या और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं..चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है-चोपता तुगंनाथ।

 बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढ़वाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है।

 इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे खास बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में या अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और सैलानियों की साधारण पहुंच में है।  ऋषिकेश से गोपेश्वर या फिर ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। ये दोनों स्थान बेहतर सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और ऊखीमठ से चौबीस किलोमीटर की दूरी पर है।

21febytrp308मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ की मजा लेने जाते हैं। स्विट्जरलैंड का अनुभव करने के लिए तो यह जरूरी है ही। यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे सफर बढ़ता जाता है।

रुद्रप्रयाग पहुँचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोड़कर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिए चालक को गाड़ी चलाते हुए काफी सावधानी बरतनी होती है।

मार्ग अत्यंत लुभावना और खूबसूरत है। आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दीदार होने लगते हैं। चोपता की ओर बढ़ते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और मनोहारी दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22