Author Topic: Chopta Tungnath Mini Switzerland of Uttarakhand-चोपता तुंगनाथ उत्तराखंड  (Read 66725 times)

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                                 फलासी तुंगनाथ
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फलासी  उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक गाँव है। यहाँ पर भगवान तुंगनाथ का प्राचीन मन्दिर है।फलासी तुंगनाथ का एक अन्य दृश्यमन्दिर में भगवान शिव (तुंगनाथ) का आपरुप (ऐसी मूर्ति, लिंग आदि जो मनुष्य निर्मित न होकर स्वयं प्रकट होती है) लिंग है। इसके अतिरिक्त भगवती चण्डिका एवं गणेश जी हैं। इस मन्दिर में शिव (भगवान तुंगनाथ) की प्रधानता है, जबकि तुंगनाथ के एक अन्य मन्दिर जो कि सतेरा में है उसमें शक्ति (नारी देवी) की प्रधानता है। मन्दिर में सामान्य पूजा पास के ही फलासी गाँव के लोग करते हैं।
मन्दिर प्राचीन दक्षिण शैली का बना है। यद्यपि बाद में इसका पुनुरुद्धार किया गया लेकिन प्राचीन शैली की सुन्दरता को कायम रखने का प्रयत्न किया गया। मन्दिर में कुछ पुरानी मन्दिर की दीवारों पर बनी मूर्तियों के अवशेष हैं जिनसे पता चलता है कि पुराने समय में मन्दिर की दीवारों पर दक्षिण शैली में सुन्दर मूर्तियाँ बनी रही होंगी।मन्दिर का स्वामित्व पास के राजपूत थोकदारों के पास होता है।



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                             देवी की बन्याथ
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मन्दिर में लगभग १२ सालों बाद भगवती चण्डिका की बन्याथ (यात्रा) होती है। यात्रा के पहले देवी के प्रतीक बरमा ठंगुरु (छड़ी के ऊपर डोली स्थापित की गई होती है) की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यात्रा के दौरान बरमा ठंगुरु को मन्दिर के क्षेत्र में आने वाले सभी गाँवों में घर-घर एवं सभी देवस्थानों पर ले जाया जाता है।

चार राजपूत जाति के पुरुष (जिन्हें एर्वला कहा जाता है) महीनों तक कठिन एवं पवित्र जीवन शैली का निर्वाह करते हुये बरमा ठंगुरु को ले जाते हैं। साथ में गणेश देवता की डोली जाती है जिसे ब्राह्मण ले जाता है। इसके अतिरिक्त भूत्योर (भूत) देवता साथ जाता है।
चण्डिका देवी के प्रतीक बरमा ठंगुरु को लिये एर्वालेयात्रा की समाप्ति पर यज्ञ होता है। मन्दिर के ऊपर कुछ सीढ़ीनुमा खेत हैं जिनमें से एक में यज्ञ कुण्ड बनाया जाता है। यज्ञ में कर्मकाण्ड ग्राम बेंजी के ब्राह्मणों द्वारा करवाया जाता है जबकि ग्राम मयकोटी के ब्राह्मणों के पास आचार्य पद होता है। यज्ञ की समाप्ति पर बरमा ठंगुरु को पृथ्वी के नीचे पधरा दिया जाता है।

साथ ही बरमा ठंगुरु को ले जाने वाले एर्वालों की एक झोंपड़ी होती है जिसे जला दिया जाता है, इसके पीछे यह मान्यता है कि भगवती को कई महीने साथ रहने से एर्वालों के प्रति मोह हो जाता है और वह उन्हें अपने साथ ले जाना चाहती है, इसलिये भगवती को यह जताने के लिये कि अब उनका सम्बंध समाप्त हो चुका है उनकी झोपड़ी को जला दिया जाता है।

बन्याथ की समाप्ति पर चण्डिका यज्ञ का एक दृश्य


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चण्डिका देवी के प्रतीक बरमा ठंगुरु को लिये एर्वाले


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फलासी तुंगनाथ का एक अन्य दृश्य


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हिमालय से एकाकार कराता है चोपता तुंगनाथ
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उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडि़या और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल दुनिया का एहसास कराते हैं..चमोली की शांत फिजाओं में ऐसा ही एक स्थान है-चोपता तुगंनाथ।

बारह से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर बसा ये इलाका गढ़वाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहां मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने लायक होती है।

 इसीलिए अनुभवी पर्यटक इसकी तुलना स्विट्जरलैंड से करने में भी नहीं हिचकते। सबसे खास बात ये है कि पूरे गढ़वाल क्षेत्र में या अकेला क्षेत्र है जहां बस द्वारा बुग्यालों (ऊंचाई वाले स्थानों पर मीलों तक फैले घास के मैदान) की दुनिया में सीधे प्रवेश किया जा सकता है। यानि यह असाधारण क्षेत्र श्रद्धालुओं और सैलानियों की साधारण पहुंच में है।

 ऋषिकेश से गोपेश्वर या फिर ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर यहां पहुंचा जा सकता है। ये दोनों स्थान बेहतर सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और ऊखीमठ से चौबीस किलोमीटर की दूरी पर है।

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मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। हालांकि यात्रा बाकी समय में भी की जा सकती है लेकिन बर्फ गिरी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है। जाने वाले लोग जनवरी व फरवरी के महीने में भी यहां की बर्फ की मजा लेने जाते हैं। स्विट्जरलैंड का अनुभव करने के लिए तो यह जरूरी है ही। यह पूरा पंचकेदार का क्षेत्र कहलाता है।

 ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए अलकनंदा के किनारे-किनारे सफर बढ़ता जाता है। रुद्रप्रयाग पहुँचने पर यदि ऊखीमठ का रास्ता लेना है तो अलकनंदा को छोड़कर मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। यहां से मार्ग संकरा है। इसलिए चालक को गाड़ी चलाते हुए काफी सावधानी बरतनी होती है। मार्ग अत्यंत लुभावना और खूबसूरत है।

आगे बढ़ते हुए अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा सा कस्बा है जहां से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दीदार होने लगते हैं। चोपता की ओर बढ़ते हुए रास्ते में बांस और बुरांश का घना जंगल और मनोहारी दृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं।

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चोपता समुद्रतल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर तुंगनाथ मंदिर है, जो पंचकेदारों में एक केदार है। सच पूछिए तो चोपता भ्रमण का असली मजा तुंगनाथ जाए बिना नहीं उठाया जा सकता।

 चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार कराता है। यहां पर प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर के दर्शन करने के बाद यदि आप हिम्मत जुटा सके  तो मात्र डेढ़ किमी. की ऊंचाई चढ़ने के बाद चौदह हजार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है.. जहां ठीक सामने छू लेने लायक हिमालय का विराट रूप किसी को भी हतप्रभ कर सकता है।

चारों ओर पसरे सन्नाटे में ऐसा लगता है मानो आप और प्रकृति दोनों यहां आकर एकाकार हो उठे हों। तुंगनाथ से नीचे जंगल की खूबसूरत रेंज और घाटी का जो नजारा उभरता है, वो बहुत ही अनूठा है। चोपता से करीब आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवहरयिा ताल पहुँचा जा सकता है जो कि तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण दिशा में है।

 इस ताल की कुछ ऐसी विशेषता है जो इसे और सरोवरों से विशिष्टता प्रदान करती है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब स्पष्ट नजर आने लगते हैं।

 इस सरोवर का कुल व्यास पांच सौ मीटर है। इसके चारों ओर बांस व बुरांश के सघन वन हैं तो दूसरी तरफ एक खुला सा मैदान है। चोपता से गोपेश्वर जाने वाले मार्ग पर कस्तूरी मृग प्रजनन फार्म भी है।

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चोपता मार्ग बर्फ से दो सप्ताह से बंद


    

बर्फ से चोपता दुगलविटटा-गोपेश्वर मार्ग पिछले दो सप्ताह से अटा पड़ा है। इससे यहां से आवाजाही पूरी तरह बंद है। वही पर्यटक बर्फ  को देखने दूर क्षेत्रों से आ रहे हैं।
पिछले साल दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भारी बर्फबारी के बाद चोपता-दुगलबिटटा-गोपश्वर मार्ग पूरी तरह से बंद पड़ा है, ऊखीमठ से मक्कू बैण्ड तक ही वाहन आवाजाही कर पा रहे हैं, जबकि यहां से पर्यटक यहां से आगे पैदल ही जा रहे हैं। चोपता मे तो दो फीट तक बर्फ होने से यहां पर्यटक नहीं पहुंच पा रहे हैं, लेकिन दुगलबिट्टा तक आसानी से चार किमी पैदल चल कर पर्यटक पहुंच रहे हैं।


 वहीं मार्ग बंद होने से चोपता से गोपेश्वर मोटर मार्ग दो सप्ताह से बंद है व वाहनों की आवाजाही भी पूरी तरह से ठप पड़ी है। ऐसे में लोगों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष चण्डी प्रसाद भट्ट ने कहा कि लोनिवि को कहा गया कि तत्काल मार्ग से बर्फ हटाई जाए ताकि यहां से आवाजाही सुनिश्चित की जा सके।
वहीं लोनिवि के अधीशासी अभियंता राजेश पंत ने कहा कि बर्फ को हटाने के लिए कार्य किया जा रहा है। शीर्घ मार्ग को यातायात के लिए खोल दिया जाएगा।
   

 

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