Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Details Of Tourist Places - उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का विवरण

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
नंदप्रयाग


धार्मिक पंच प्रयागों में से दूसरा नंदप्रयाग अलकनंदा नदी पर वह जगह है जहां अलकनंदा एवं नंदाकिनी नदियों का मिलन होता है। ऐतिहासिक रूप से शहर का महत्व इस बात में है कि यह बद्रीनाथ मंदिर जाते तीर्थयात्रियों का पड़ाव स्थान होता है साथ ही यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल भी है। वर्ष 1803 में आई बाढ़, शहर का सब कुछ बहा ले गयी जिसे एक ऊंची जगह पर पुनर्स्थापित किया गया। नंदप्रयाग का महत्व इस तथ्य से भी है यह स्वाधीनता संग्राम के दौरान ब्रिटिश शासन के विरोध का स्थानीय केंद्र रहा था। यहां के सपूत अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का योगदान इसमें तथा कुली बेगार प्रथा की समाप्ति में, सबको हमेशा याद रहेगा।
 
ऐतिहासिक महत्व के स्थान

 

 
       नाम : हिलारी बिंदु
पता : नंदप्रयाग 
दूरभाष : नंदप्रयाग 
सम्पर्क व्यक्ति : प्रकाश फोनिया, कार्यपालक अधिकारी, नगर पंचायत 
दिशा : संगम के समीप
 
विशेष रूचि के मंतव्य : नगर पंचायत ने उस स्थान को चिह्नित कर दिया है जहां सर एडमंड हिलारी ने महानगर से आकाश के अभियान को छोड़ा था। कहा जाता है कि भगवान बद्रीनाथ ने सपने में आकर उन्हें वह अभियान छोड़ने का आदेश दिया था। नगर पंचायत द्वारा इस क्षेत्र के विकास के लिये 20 लाख रूपये खर्च करने की एक योजना है ताकि रीवर राफ्टिंग (नदी-बेड़ायन) की शुरूआत की जा सके। इस स्थान का उपयोग अभी सैनिक कर्मचारियों द्वारा तथा विदेशियों द्वारा नीचे ऋषिकेश तक बेड़ायन अभियान के लिये किया जाता है। फिर भी, यह कार्य-कलाप व्यापारिक स्तर पर नहीं किया जाता है।
 

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:


रूद्रप्रयाग

रूद्रप्रयाग उत्तराखण्ड के सर्वाधिक नए जिले रूद्रप्रयाग का मुख्यालय है जो कठोर एवं दुर्गम क्षेत्रों को पार करते हुए केदारनाथ एवं बद्रीनाथ मंदिर की ओर जाते हुए प्राचीन तीर्थयात्रियों के लिये विश्रामस्थल रहा है। अलकनंदा एवं मंदाकिनी का संगम अलंकनंदा नदी पर बसे पवित्र पांच प्रयागों में से एक है। फिर भी यह केवल एक संगम ही नहीं है बल्कि भगवान शिव एवं भगवान विष्णु का मिलनस्थल भी है क्योंकि मंदाकिनी केदारनाथ पहाड़ से निकलकर भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करती है तों अलकनंदा भगवान विष्णु का। यह एवं कई श्रद्धालु मंदिर रूद्रप्रयाग को पवित्र स्थान बनाते है।
 
ऐतिहासिक महत्व
 :
 रूद्रप्रयाग का संगम अद्भुत इस माने में है कि इसके चारों ओर दो विशाल पथरीली घाटियां है जो संगम पर एक होने के लिये तेजी से नीचे आती मंदाकिनी एवं अलकनंदा द्वारा निर्मित हैं। एक साथ मिलने से पहले कीचड़युक्त अलकनंदा के जल से मंदाकिनी का हरा-गहरा जल अलग होता है। आलंकारिक रूप से यह केवल दो नदियों का मात्र एक संगम ही नहीं है बल्कि यही वह जगह है जहां भगवान शिव एवं भगवान विष्णु मिलते हैं क्योंकि केदारनाथ से आती मंदाकिनी भगवान शिव का प्रतिनिधित्व करती है तो बद्रीनाथ पर्वत से निकली अलकनंदा भगवान विष्णु का।

घाट पर बैठकर आप घंटों गुजार सकते है या फिर संगम की सीढ़ियों पर जा सकते हैं अन्य जगहों की तरह जल की धारा तीव्र नहीं होती है। प्रवाहित जल की आवाज सुनते हुए सच में आपको शांति मिलती है।
प्रत्येक दिन शाम को होने वाली गंगा आरती देखने योग्य है।
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

बड़कोट

यमुना नदी के किनारे उत्तरकाशी जिले के रवाँई घाटी में बड़कोट का सुंदर शहर अवस्थित है। अपनी निर्जनता के कारण शेष गढ़वाल से कटे रवाँई के लोग ऐसी संस्कृति में पले हैं जो शेष गढ़वाल की संस्कृति के समान होते हुए भी भिन्न है तथा यही कारण है कि यह क्षेत्र अत्याधिक रूचि पूर्ण है। बड़कोट बंदरपूँछ श्रृंखला के अद्भुत दृश्य को गौरवांवित भी करता है जो प्राकृतिक सौंदर्य की संपदा से परिपूर्ण है। यमुनोत्री धाम के रास्ते पर अवस्थिति के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।
परंपरागत/
ऐतिहासिक महत्व : मंदिर में शिवलिंग तथा 11 रूद्र स्वंभू है। यह मालूम नहीं है कि प्राचीन काल में कब उन पूजित प्रतिमाओं की स्थापना हुई। भगवान शिव की पूजा यहां चंद्रेश्वर की भांति होती है जो चंद्रमा को अपनी जटाओं पर धारण किये रहते हैं। इसका संबंध समुद्र मंथन के रहस्य से है जब समुद्र का मंथन हुआ तो उसमें से विष के अलावा 14 रत्नों का भी उदय हुआ जिनमें से चंद्रमा भी एक था।
 
विशेष रूचि के मंतव्य : वर्ष 2004 में मंदिर के ढांचे का पुनरूद्धार हुआ जिसे जौनसारी/हिमाचली लकड़ियों एवं पत्थरों से पैगोडा श्रेणी कि शैली में निर्मित किया गया।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तरकाशी
उत्तरकाशी एक ऐसा शहर है जिसके हर पहलु को देखने के लिये उत्सुक होगें। गंगोत्री से सान्निध्य के कारण यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। मूल रूप से उत्तरकाशी अपने आप में एक मंदिरों का शहर है और उससे भी अधिक यह भगवान शिव की नगरी है। यहां एक कहावत है कि उत्तरकाशी में जितने कंकड़ हैं, उतने ही शंकर हैं। शहर के 32 मंदिरों में से कई मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। उत्तरकाशी में आध्यात्म की जड़े गहरी एवं प्राचीन है। यहां की बड़ी संख्या के मंदिरों में, अपने पसंदीदा देवों के दर्शन के लिये हजारों-हजार भक्त प्रतिदिन पंक्तिबद्ध रहते हैं, प्रत्येक दिशा से हिन्दी सिनेमा की धुनपर भजन का शोर रहता है, घाटों पर अपने शरीर एवं आत्मा को शुद्ध करने के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है तथा साधुओं एवं आस्तिकों के रहने के लिये यहां कई आश्रम हैं।
 सामुदायिक भवन/ सभागार/ बारात घर
 पूजा के स्थान
 ऐतिहासिक महत्व के स्थान
 पार्क
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ऐतिहासिक महत्व के स्थान

 

 
       नाम  : हिमालयन म्यूजियम
पता  : नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउनटेनरिंग, उत्तरकाशी
ई-मेल : nimutk2004@sancharnet.in
टेलीफोन : 01374-222123 / 224663
ऐतिहासिक महत्व : नेहरु पवर्तारोहण संस्थान परिसर में अपने ढंग का अकेला गढ़वाल में यह म्युजियम है, जिसमें पर्वतारोहण उपकरण, विभिन्न, अभियानों का इतिहास, आरोहियों के चित्र, चोहियों के चित्र आदि प्रदर्शित हैं।
 

 


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

चंबा

मसूरी, ऋषिकेश, टिहरी, नई टिहरी एवं धरासू से आने वाली सड़कों के चौराहे पर स्थित चंबा मानो टिहरी जिले का हृदय है। इस चौराहे से आगंतुक टिहरी के किसी कोने और चार धामों को आसानी से पहुंच पाते हैं। चंबा की प्राकृतिक मनोहरता, खासकर सूर्यास्त तथा बंदरपूंछ और भागीरथी 1,2,3 जैसे पर्वतों के दृश्य, दिल लुभा लेती है। यहां के सेबों के बागानों और फूलों से महकते वातावरण के बीच आप बेशक मानसिक और शारीरिक शांति पाएगें।

पूजा के स्थल

श्रीबागेश्वर महादेव मंदिर

भगवान शिव की पूजा बाघ की छाल में लिपटे बागेश्वर की तरह होती है। यहां का लिंगम स्वयंभू है एवं प्राचीन काल से ही स्थापित है। मूलत; लिंगम का पता घने जंगल में चला जो इस जगह था। चरवाहे अपने मवेशियों को यहां चराने लाया करते थे और उनमें से एक को महसूस हुआ कि एक गाय कभी भी दूध नहीं देती। एक दिन उसने गाय का पीछा किया और देखा कि उस गाय ने अपना दूध उस शिवलिंग पर बहा दिया। उसने अपनी कुल्हाड़ी से उस शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया। इसका एक अंश टूटकर कुछ दूर एक गांव में जा गिरा जहां आज भी उसकी पूजा होती है।
 
 
विशेष मंतव्य
 :
 यहां की पूजित प्रतिभा कोठारी वंश के कुल देवता हैं जो पास के एक गांव के वासी हैं, और पीड़ियों पहले यहां आकर बस गये थे। मंदिर की देखभाल गांव के बुजुर्गों की एक समिति करती है। समिति द्वारा एकत्रित कोष से भी हाल ही में इस मंदिर का पुनरूद्धार हुआ।
 

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