Author Topic: Devalgarh An Introduction - देवलगढ़: एक परिचय  (Read 24597 times)

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #20 on: June 30, 2008, 06:57:06 PM »
Wahan kya kya hai?

Devalgarh me to nahi par , aap dharidevi ja sakte hain, jo kaliyasaud me hai

Aas paas aur kuch dekhne laayak hai?

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #21 on: July 01, 2008, 10:31:44 AM »
गढ़ नरेश अजयपाल के राज्याभिषेक के एक वर्ष बाद 1501-02 ई0 में चम्पावत के राजा किरती चन्द्र ने उनको पराजित कीया तथा उसके उत्तराधिकारीयों के आक्रमण से चाँदपुर का दुर्भेदगढ़ खण्डर बन गया तो 1512 ई0 में अजयपाल ने देवलगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। परीणाम स्वरूप मन्त्रिगण तथा राजकर्मचारी भी चाँदपुर से उठकर देवलगढ़ के निकट आ बसे। बुधाणी, टकोली, पोखरी आदी गाँव बसने का यही इतिहास बताया जाता है। किंतु प्रस्तुत पंक्तियों का लेखक इस कथन को सर्वथा सत्य नहीं मानता। यदी 1512 ई0 में राजधानी के चांदपुर से उठकर देवलगढ़ बसने पर राजा के बहुगुण वंशी मन्त्री बुधाणी, पोखरी बसे तो पांच वर्ष बाद 1517 ई0 में देवलगढ़ से राजधानी के श्रीनगर चले जाने पर बुधाणी, पोखरी आदी गांव भी उजड़कर श्रीनगर-कीर्तिनगर के निकट बस जाने चाहिये थे, किंतु ऐसा नहीं हुआ। पोखरी के वंश विस्तार से पता चलता है कि ग्राम निश्चित ही बुधाणी से भी बहुत पहले बसा होगा। 1570 ई0 के आसपास यहाँ के वंशज अन्य क्षेत्रों में जाकर बसने लगे थे।

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #22 on: July 01, 2008, 10:38:32 AM »
Wahan kya kya hai?
वहां ये है, धारी देवी का मंदिर....

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #23 on: July 01, 2008, 10:39:32 AM »
ये थोड़ा करीब से


पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #24 on: July 01, 2008, 10:40:37 AM »
देवलगढ़ स्थित राजा का चबूतरा



     देवलगढ़ में थोड़ी ऊंची जगह पर स्थित सोम-की-डंडा या राजा का चबूतरा है। वर्गाकार भवन के पत्थर की दीवारों पर पाली भाषा के लेख अंकित हैं। कहा जाता है कि इस ढांचे से ही राजा अजय पाल न्याय करता था तथा खुदे लेख वास्तव में उसके द्वारा किये गये फैसले ही हैं। नीचे राजा का कार्यालय बना था।

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #25 on: July 01, 2008, 10:41:23 AM »
देवलगढ़ का मूल मंदिर

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #26 on: July 01, 2008, 10:51:56 AM »
धारी देवी/कालिया सौड (श्रीनगर से 18 किलोमीटर दूर।)
श्रीकोट से 15 किलोमीटर दूर कालिया सौड की सड़क है जो एक बार भूस्खलन के लिए जाना जाता है। यद्यपि अभी मानसून के दौरान, भूस्खलन होते रहते है पर ये बहुत हद तक सीमित एवं नियंत्रित रहते हैं। इसके अलावा अधिक महत्वपूर्ण एक किलोमीटर की नदी का रास्ता है जो इस क्षेत्र के लोगों की पूजित प्रमुख देवी धारी देवी  के काली सिद्धपीठ तक ले जाता है।

यहां के पुजारी पाण्डेय के अनुसार, द्वापर युग से ही काली की प्रतिमा यहां स्थित है। ऊपर के काली मठ एवं कालिस्य मठों में देवी काली की प्रतिमा क्रोध की मुद्रा में है पर धारी देवी मंदिर में वह कल्याणी परोपकारी शांत मुद्रा में है। उन्हें भगवान शिव द्वारा शांत किया गया जिन्होंने देवी-देवताओं से उनके हथियार का इस्तेमाल करने को कहा। यहां उनके धार की पूजा होती है जबकि उनके शरीर की पूजा काली मठ में होती है। पुजारी का मानना है कि धारी देवी, धार शब्द से ही निकला है। 

पुजारी मंदिर के बारे में अन्य कथा का पुरजोर खंडन करता है। कहा जाता है कि एक भारी वर्षा की काली रात में जब नदी में बाढ़ का उफान था, धारो गांव के लोगों ने एक स्त्री का रूदन सुना। उस जगह जाने पर उन्हें काली की एक मूर्त्ति मिली जो बाढ़ के पानी में तैर रही थी। एक दैवी आवाज ने ग्रामीणों को इस मूर्त्ति को वही स्थापित करने का आदेश दिया, जहां वह मिली थी। ग्रामीणों ने यह भी किया और देवी को धारी देवी नाम दिया गया।

पुजारी मानता है कि भगवती काली जो हजारों को शक्ति प्रदान करती है, वह लोगों से अपने बचाव के लिये सहायता नहीं मांग सकती थी। पर वह मानता है कि वर्ष 1980 की बाढ़ में प्राचीन मूर्ति खो गयी तथा पांच-छ: वर्षों बाद तैराकों द्वारा नदी से मूर्ति को खोज निकाला गया। इस अल्पावधि में एक अन्य प्रतिमा स्थापित हुई, तथा अब मूल प्रतिमा को पुनर्स्थापित किया गया है। आज देवी की प्राचीन प्रतिमा के चारों ओर एक छोटा मंदिर चट्टान पर स्थित है। प्राचीन देवी की मूर्त्ति के इर्द-गिर्द चट्टान पर एक छोटा मंदिर स्थित है। देवी की आराधना भक्तों द्वारा अर्पित 50,000 घंटियों से की जाती है। अलकनंदा के किनारे कई गुफाएं पास ही हैं।     
 

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #27 on: July 01, 2008, 10:52:59 AM »


देवलगढ़ के पास पौराणिक रानीहाट का मंदिर

पंकज सिंह महर

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #28 on: July 01, 2008, 10:55:59 AM »
श्रीनगर से खिरसू मार्ग पर लगभग 16 किलोमीटर दूर सडक के बायीं और बधाणी गॉव है, यहॉ से देवलगढ के मध्यकालीन प्राचीन मन्दिर समूह की पहाडी पर पहचने के लिए लगभग दो किलोमीटर पैदल चलना पडता है। कहते हैं देवलगढ कांगडा के किसी राजा ने बसाया था। उसने यहॉ गौरी देवी और कंसमर्दिनी की स्थापना की थी। उसी देवल मंदिर के नाम पर इस स्थान का नाम देवलगढ पडा। इतिहासविदों के अनुसार ये मंदिर नौवी से चौदहवीं शताब्दी के मध्य के हैं। 1512 में गढवाल के राजा अजयपाल ने चांदपुर किले से अपनी राजधानी देवलगढ में बसाई और यहॉ सत्यनाथ, कालभैरव और राजराजेश्वरी के श्रीयंत्र की स्थापना की।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: देवलगढ़-एक परिचय
« Reply #29 on: July 01, 2008, 10:57:36 AM »
Great info Pankaj bhai chha gaye aap.

 

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