Author Topic: Famous Caves In Uttarakhand - उत्तराखंड मे प्रसिद्ध गुफाये  (Read 47782 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Here is information about Lakhuwaudiyar.
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अल्मोड़ा। लखुउडियार के चित्र लोगों को अचंभित करने वाले हैं। हजारों साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नहीं हुआ है। उत्तराखंड में अब तक के ज्ञात प्रागऐतिहासिक कालीन चित्रित शैलाश्रयों में लखुउडियार के चित्र सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण हैं। इन चित्रों की विशेषता है कि यह एक काल के नहीं बल्कि अलग-अलग कालों के मानव ने बनाए हैं।

एसएसजे परिसर के इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर डा.विद्याधर सिंह नेगी का कहना है कि इसी शैली के शैलाश्रय मध्य प्रदेश के भीमवेटका, पंचमणि व उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं। डा.नेगी ने बताया कि लखुउडियार में सबसे प्राचीनतम चित्रण में श्वेत रंग का प्रयोग किया गाया है। उसके बाद के काल में श्याम रंग से चित्र उकेरे गए हैं, जबकि तीसरे काल के चित्रों में गेरुवे रंग का प्रयोग किया गया है। यह बात तो निश्चित है कि चित्र इतने प्राचीन हैं कि उनमें अधिकांश चित्रों का फोटो नहीं आ पाते हैं लेकिन यह चित्र स्थल पर जाकर देखे जा सकते हैं।

डा.नेगी बताते हैं कि इन शैलाश्रयों पर उन्होंने लंबे समय तक काम किया। आज भी नया कुछ जानने के लिए अवसर मिलने पर वह लखुउडियार अवश्य जाते हैं। उन्होंने बताया कि अब तक के अध्ययन से पता चलता है कि सर्वप्रथम उकेरे गए चित्र दब गए हैं। उनका मानना है कि अपने-अपने काल में कलाकारों ने प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया होगा। सबसे अंतिम काल में गेरुवे रंग का प्रयोग हुआ, यही कारण है कि इन चित्रों की बहुतायत लखुउडियार में देखने को मिलती है। यह मौके पर देखने से पता लगता है कि शैलाश्रय किसी जमाने में बहुत विशाल रहा होगा। 4 से 5 हजार साल पुराना यह शैलाश्रय अब धीरे-धीरे टूटता जा रहा है। मौजूदा दौर में इनकी ऊपरी छत भी टूट रही है। जल रिसाव से जगह-जगह चित्र खराब हो चुके हैं या धुंधले पड़ चुके हैं।

हालांकि इनकी देखरेख पुरातत्व विभाग कर रहा है लेकिन काल के थपेड़ों से यह कितने संरक्षित रह पाएंगे कहना मुश्किल है। बहरहाल सैकड़ों की संख्या में सैलानी, शोध छात्र व विशेषज्ञ अध्ययन के लिए यहां आते हैं। शैलाश्रय में उकेरे गए चित्र कहीं पर हस्तबद्ध मानव श्रृंखला के रूप में विद्यमान हैं तो कहीं लबादाधारी मानव का चित्र भी देखने को मिलते हैं। कहीं पर नृत्य मुद्रा में मानव श्रृंखला दृष्टिगोचर होती है जो यहां के लोक नृत्य 'झोड़ा' की भावाभिव्यक्ति करती जान पड़ती है। कई जगह पशुओं का अंकन है, जिनमें पूंछ, भारी शरीर वाले पशुओं की आकृति अंकित है।

एक विशिष्ट आकृति जो आज भी स्पष्ट है, वह है एक चौकोर घर। इसके सामने खड़ी है सुरक्षा की मुद्रा में मानव आकृति। इसके अलावा एक 14 पैरों वाले सरीसृप की आकृति विशेष आकर्षण का केंद्र है।

यही नहीं इस शैल चित्र में जहां लहरदार रेखाओं के जरिये जल की मौजूदगी दर्शाई गई है वहीं इंद्रधनुष की आकृति भी उकेरी गई है। पुरातत्ववेत्ता प्रो.एमपी जोशी लहरदार रेखाओं को जल का द्योतक बताते हैं।

इसके अतिरिक्त पुरातत्व विज्ञान के प्रतिष्ठित विद्वान प्रो.एमपी जोशी, प्रो.डीपी अग्रवाल का मानना है कि यह शैलाश्रय चित्रण मध्य पाषाण एवं ताम्र पाषाण कालीन हो सकते हैं। इन चित्रों में कहीं भी आखेट का दृश्य अंकित नहीं है। इसलिए इसे बनाने वाले नितांत अन्न संग्रहण व खानाबदोश जीवन व्यतीत करते होंगे। बहरहाल इन चित्रणों का उल्लेख समय-समय पर अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययन के अनुसार किया है जिनमें मुख्य रूप से पुरातत्ववेत्ता व इतिहासकार प्रो.एमपी जोशी, डा.डीपी अग्रवाल, डा.तारा चन्द्र त्रिपाठी, डा.यशोधर मठपाल सहित अनेक विद्वान शामिल हैं।

(Source : Dainik Jagran)

हेम पन्त

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Studies on Himalayan caves to help in climate forecast
« Reply #21 on: November 28, 2010, 11:10:24 PM »
Source - PTI
 
Himalayan limestone caves will be an effective instrument of forecasting the climate of the region in future with the help of studies being conducted on the climatic trend of the last 3,000 years, says a geologists working on it.
 
 
"We will not only be able to find the climatic trends in Himalayan region during last 3,000 years but also forecast the future trends as well," said Dr B S Kotlia, a geologist of Kumaun University who is working on three projects of studying limestone caves in Uttarakhand in order to determine the climatic conditions in the past.

"We are studying year-to-year climatic conditions of last three thousand years in Uttarakhand making these limestone caves a symptom of climate change," he said.
Kotlia said that his studies on limestone caves of the region will focus on the climatic conditions that had prevailed during the last 3,000 years.

"It will reflect the rainfall and temperature from year to year as well as the trend of climate," he said.

The Himalayan caves are made of limestone which contains calcium carbonate which is soluble in water, he said.

"As raindrops fall on calcium carbonate, it dissolves with water and a blank part of other stones remains during the course of a period of thousands of years as carving on the caves," said Kotlia.

"Every year, rainfall forms a ring on the stone in an upward direction. We study that ring at 400 times magnified form before doing uranium thorium dating on them," said Kotlia, adding, if a limestone rock has to be studied for climate change it should contain at least 1 PPM of uranium on it.

Asked why he did not take the period prior to 3,000 years, Kotlia said in the time before that the Himalayan region was fully snow-covered for about 22,000 years.

"From 16,000 years back in time from today, the snow, which had covered the area upto Haldwani and Kotdwar started melting and thereafter the climate of the region changed frequently, witnessing thousand times extreme cold and hot conditions, symptoms of which are still seen in the limestone caves," he said.

According to the geologist, he has studied 32 caves in Pithoragarh, Chaukhutia (Almora) and Chakrata (Garhwal) for his project along with some lakes of Garhwal.

"Some of these caves are as high as 3-storeyed buildings bearing on them the marks of various frequencies of climate in the last 3,000 years," said Kotlia.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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A new Cave has been discovered in District Bageshwar
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पौराणिक महत्व की गुफा देखने वालों का तांता
  Apr 16, 09:17 pm    बताएं           जागरण कार्यालय, बागेश्वर: कांडा के पंगचौड़ा गांव में ग्रामीणों द्वारा खोजी गयी पौराणिक महत्व की गुफा को देखने वालों का तांता लगा हुआ है। इधर पुरातत्व विभाग की एक टीम शीघ्र ही गांव का दौरा गुफा का सर्वे करेगी।
गौरतलब है कि कांडा के पंगचौड़ा गांव में ग्रामीणों ने पौराणिक महत्व की गुफा खोजी है। गुफा के भीतर झरना, सरोवर व अन्य आकृतियां हैं। जिससे प्रतीत होता है कि गुफा पौराणिक काल की है। कांडा के कालिका मंदिर के पुजारी अर्जुन सिंह माजिला ने बताया कि गुफा को देखने के लिए आस पास के गांवों सहित दूर दराज के लोग भी पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों ने पंगचौड़ा गांव में मिली गुफा को पाताल भुवनेश्वर की तर्ज पर धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की मांग प्रदेश सरकार से की है। इधर पुरातत्व विभाग की टीम ने भी शीघ्र ही पंगचौड़ा गांव का भ्रमण कर गुफा का जायजा लेने की बात कही है।
    http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7592732.html


मोहन जोशी

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मित्रो

लखुउड़यार की परसिद गुफाये भी पेटसाल -  बारेछिना के पास है जिनका एतिहासिक महत्व है आज भी पर्यटक  वहा  गुफवो को देखने आते है
मोहन जोशी

Hisalu

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स्कंद पुराण में नाम दिया है गुप्त सरस्वती

गुफा में रहने वाली गुप्तगंगा इन दिनों मुहाने पर
पिथौरागढ़। गंगोलीहाट में गुप्त गंगा के नाम से जानी जाने वाली नदी इन दिनों उफनाकर गुफा के बाहर तक आ पहुंची है। पौराणिक ग्रंथों में दर्ज यह नदी आम दिनों में गुफा के अंदर बहती है लेकिन इन दिनों गुफा के मुहाने पर है जो लोगों के कौतूहल का कारण बनी है। दरअसल काल्पनि शैल पर्वत में स्थित गुप्तगंगा को स्कंद पुराण में गुप्त सरस्वती बताया गया है। स्कंद पुराण के मानसखंड को कुमाऊं के देवस्थलों का प्रमाणिक इतिहास माना जाता है।
गंगोलीहाट तहसील मुख्यालय से सात किलोमीटर पैदल रास्ते पर 7000 फीट की ऊंचाई में शैल पर्वत में गुप्तगंगा नामक गुफा के भीतर गंगा मौजूद हैं। रेत पट्टिका से भरी यह गंगा जलमग्न रहती है। गुफा में मुहाने से 20 मीटर अंदर बढ़ने पर अथाह जल के दर्शन होते हैं। इन दिनों तीन फीट चौड़ी, चार फीट ऊंची सुरंगनुमा गुफा में मुहाने तक पानी है। पांच हजार साल पहले महर्षि वेद व्यास रचित स्कंद पुराण के मानसखंड में शैलपर्वत महात्म्य के 96वें अध्याय के 98वें श्लोक में गुप्त गंगा का वर्णन इस प्रकार किया गया है।
पुराणों में है जिसका प्रमाण-
तदूर्ध्व शैलसम्भूता पुण्या गुप्तसरस्वती
सरयूसंगमे पुण्या संमिलन्मुनिसत्तमा:
ततो वायुसरे स्नात्वा च विधिवत् सन्तर्प्य च पितृंस्तथा
महेंद्रभवनम याति मानवो नृपसत्तम
जिसका अर्थ है कि शैल पर्वत से उत्पन्न गुप्त सरस्वती का सरयू के साथ संगम है। वहां स्नानादि करने पर महेंद्र भवन (शिवलोक) प्राप्त होता है। वहीं शांङकरी का भी पूजन होता है। मानसखंड में गुप्तगंगा का गुप्त सरस्वती के रूप में वर्णन होने से पुरातन मान्यता को बल मिला है। तमाम रहस्यों को अपने भीतर समेटे गुप्तगंगा को विकसित करने की दरकार है।


रामेश्वर और जान्हवी में निकलता है गुप्तगंगा का जल
पिथौरागढ़। रामेश्वर स्थित सरयू और गंगोलीहाट के महाकाली मंदिर के समीप स्थित 11वीं सदी में स्थापित जान्हवी के नौले में गुप्तगंगा का जल प्रवाहित होता है। जाखनी निवासी बहादुर सिंह भंडारी (54) बताते हैं कि साठ के दशक में बुजुर्गों ने गुप्तगंगा के जल में चूना डालकर परीक्षण किया था तो चूनायुक्त पानी रामेश्वर और जान्हवी के नौले में निकला था।


पहली बार बनी कोई धर्मशाला
पिथौरागढ़। गुप्तगंगा अथवा गुप्त सरस्वती में दर्शनार्थियों की सुविधा के लिए पहली बार श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े के संत चेतन गिरी महाराज के प्रयासों से मई 2013 में धर्मशाला का निर्माण हुआ है। इलाके में कई धर्मशाला और मंदिरों का निर्माण करा चुके संत चेतन गिरी गुप्तगंगा को सिद्ध स्थल बताते हैं। गुफा में जाएं पर सावधानी से गर्मियों में पानी वाले अंतिम छोर के साथ ही बीच में एक स्थान पर आक्सीजन की कमी है।


source: http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20130914a_004115005&ileft=-5&itop=816&zoomRatio=130&AN=20130914a_004115005

Pawan Pathak

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गुफा के भीतर मौजूद है जलकुंड
चंडाक में मिली अद्भुत गुफा
पिथौरागढ़। जिला मुख्यालय के नजदीक चंडाक में 200 मीटर लंबी गुफा का पता चला है। गुफा के भीतर शिलाओं में शिवलिंग, अष्टकमल, गणेश, शंख समेत तमाम प्रकार की आकृतियां बनी हुई हैं। इसके भीतर स्थित जलकुंड आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। गुफा को देखने के लिए भारी तादाद में लोग पहुंच रहे हैं।
चंडाक स्थित पशुपतिनाथ मंदिर से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर मिली यह गुफा काफी प्राचीन मानी जा रही है। क्षेत्र के बाशिंदों ने बताया कि कुछ साल पहले तक इस स्थान पर एक मुहाना था जो कुछ समय बाद झाड़ियों और घास से दब गया। एक दिन बात-बात में उस मुहाने की चर्चा छिड़ने पर लोगों ने मुहाने को ढूंढने और उसके भीतर जाने का निर्णय लिया। वर्ष 2010 में क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता त्रिलोक सिंह बिष्ट के नेतृत्व में लोगों ने मुहाने की सफाई की। त्रिलोक सिंह बताते हैं कि अंदर प्रवेश करते ही वे आश्चर्य में पड़ गए। भीतर एक कुंड में काफी पानी जमा था। गुफा की छत से पानी टपक रहा था। देवी-देवताओं की मूर्तियों से पटी गुफा में पूजा-अर्चना की गई है।उन्होंने गुफा को अद्भुत बताते हुए कहा कि गुफा के विकास के लिए हरसंभव प्रयास किए जाएंगे।

Source-http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20101026a_001115006&ileft=586&itop=396&zoomRatio=269&AN=20101026a_001115006




 

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