Author Topic: Haldwani The Gateway of Kumaon,Uttarakhand- हल्द्वानी,कुमाऊँ का द्वार  (Read 25987 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हल्द्वानी उत्तराखंड के नैनीताल जिले में स्थित एक नगर है जो काठगोदाम के साथ मिलकर हल्द्वानी-काठगोदाम नगरपालिका बनाता है। हल्द्वानी उत्तराखंड के सर्वाधिक जनसँख्या वाले नगरों में से है, और इसे "कुमांऊ का प्रवेश द्वार" भी कहा जाता है। कुमाँऊनी भाषा में इसे "हल्द्वेणी" भी कहा जाता है क्यूंकि यहाँ "हल्दू" प्रचुर मात्रा में मिलता था।

सन् १८१६ में गोरखाओं को परास्त करने के बाद गार्डनर को कुमांऊ का आयुक्त नियुक्त किया गया। बाद में जॉर्ज विलियम ट्रेल ने आयुक्त का पदभार संभाला और १८३४ में हल्दुवानी का नाम हल्द्वानी रखा।

ब्रिटिश अभिलेखों से हमें ये ज्ञात होता है कीइस स्थान को १८३४ में एक मंडी के रूप में उन लोगों के लिए बसाया गया था जो शीत ऋतु में भाभर में आया करते थे।

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हल्द्वानी, में आप सभी आगंतुक महानुभाओं का स्वागत है


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                      इतिहास  में क्या कहा गया है हल्द्वानी के बारे में
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मुग़ल इतिहासकारों ने इस बात का उल्लेख किया है की १४ वीं शताब्दी में एक स्थानीय शाशक, ज्ञान चाँद जो चाँद राज-वंश से सम्बंधित था, दिल्ली सल्तनत पधारा और उसे भाभर-तराई तक का क्षेत्र उस समय के सुलतान से भेंट स्वरुप मिला। बाद में मुग़लों द्बारा पहाडो पर चडाई करने का प्रयास किया गया, लेकिन क्षेत्र की कठिन पहाड़ी भूमि के कारण वे सफल नहीं हो सके।

सन् १८५६ में सर हेनरी रैम्से ने कुमांऊ के आयुक्त का पदभार संभाला। १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के दौरान इस क्षेत्र पर थोड़े समय के लिये रोहिलखंड के विद्रोहियों ने अधिकार कर लिया। तत्पश्चात सर हेनरी रैम्से द्वारा यहाँ मार्शल लॉ लगा दिया गया और १८५८ तक इस क्षेत्र को विद्रोहियों से मुक्त करा लिया गया।

इसके बाद सन् १८८२ में रैम्से ने नैनीताल और काठगोदाम को सड़क मार्ग से जोड़ दिया। सन् १८८३-८४ में बरेली और काठगोदाम के बीच रेलमार्ग बिछाया गया। २४ अप्रैल, १८८४ के दिन पहली रेलगाड़ी लखनऊ से हल्द्वानी पहुंची और बाद में रेलमार्ग काठगोदाम तक बढा दिया गया।

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सन् १९०१ में यहाँ की जनसँख्या ६,६२४ थी और सयुंक्त प्रान्त के नैनीताल ज़िले के भाभर क्षेत्र का मुख्यालय हल्द्वानी में ही स्थित था। और साथ ही ये कुमांऊ मण्डल और नैनीताल ज़िले की शीत कालीन राजधानी भी हुआ करता था। सन् १९०१ में आर्य समाज भवन और १९०२ में सनातन धर्मं सभा का निर्माण किया गया।

 सन् १८९९ में यहाँ तहसील कार्यालय खोला गया जब इसे नैनीताल ज़िले के चार भागों में से एक भाभर का मुख्यालय बनाया गया और कुल ४ कस्बों और ५११ ग्रामों के साथ इसकी कुल जनसँख्या ९३,४४५ (१९०१) थी, और ये ३,३१३ वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ था।

 १८९१ तक अलग नैनीताल ज़िले के बनाने से पहले तक ये कुमांऊ ज़िले का भाग था जिसे अब अल्मोड़ा ज़िले के नाम से जाना जाता है।

सन् १९०४ में इसे "अधिसूचित क्षेत्र" की श्रेणी में रखा गया और १९०७ में हल्द्वानी को क़स्बा क्षेत्र घोषित किया गया। हल्द्वानी से ४ किमी दूर दक्षिण में स्थित गोरा पड़ाव नामक क्षेत्र है।

१९ वीं सदी के मध्य में यहाँ एक ब्रिटिश कैंप हुआ करता था जिसके नाम पर इस क्षेत्र का नाम पड़ा। "गोरा" शब्द ब्रिटिशों लिए उपयोग में लाया जाने वाला कठबोली शब्द था।

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हल्द्वानी से ८ किमी उत्तर में रानीबाग नमक स्थान है जहाँ हिन्दुओं का पवित्र चित्रशिला नामक श्मशान घाट है। उत्तरायणी नामक मेला प्रतिवर्ष मकर संक्रांति(१३-१४ जनवरी प्रतिवर्ष) के दिन यहाँ लगता है। कुमांउनी बोली में इसे घुघुतिया भी कहते हैं।

हल्द्वानी के दक्षिण में पंतनगर विश्वविद्यालय स्थित है जो कृषि अनुसंधान के लिए प्रसिद्द है। पूर्व में गौला नदी बहती है और पश्चिम में लामचुर और कालाडुंगी के उपजाऊ कृषि मैदान है जो विश्व-प्रसिद्द कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में मिलते हैं।

अपने प्रसिद्द पहाड़ी खानपान के अतिरिक्त हल्द्वानी और आसपास के क्षेत्रों में देखने के लिए बहुत कुछ है जैसे दूर तक फैले धूमिल ग्राम, झुलावदार पर्णपाती वन और नगरीय फैलावों से बाहर खुला क्षेत्र।

कई प्रसिद्द व्यक्ति इस क्षेत्र से सम्बंधित है जैसे गोविन्द वल्लभ पन्त, नारायण दत्त तिवारी इत्यादि।

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हल्द्वानी २९.२२° उ ७९.५२° पू के अक्षांश पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई ४२४ मीटर है। भूवैज्ञानिक रूप से हल्द्वानी एक पीडमोंट (piedmont) ग्रेड पर बसा हुआ है जिसे भाभर कहा जाता है, जहां पहाड़ी नदियाँ भूमिगत होकर गंगा के मैदानी क्षेत्रों में पुनः प्रकट होती हैं। ऐतिहासिक रूप से ये एक स्थानीय व्यापार केंद्र रहा है और कुमांऊ के पहाड़ी क्षेत्रों और गंगा के मैदानी क्षेत्रों के बीच एक व्यस्त केंद्र भी।

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संस्कृति और जीवन शैली

सन् २००१ की भारतीय जनगणना के अनुसार हल्द्वानी-काठगोदाम नगर पालिका क्षेत्र की कुल जनसँख्या २,७९,१४० है। कुल जनसँख्या में से ५३% पुरुष और ४७% महिलाएं हैं।

 हल्द्वानी-काठगोदाम की साक्षरता दर ६९% है, जो राष्ट्रीय औसत ६५% से ऊपर है। पुरुष साक्षरता दर है ७३% और महिला साक्षरता दर है ६५%। हल्द्वानी-काठगोदाम की १४% जनसँख्या ६ वर्ष से ऊपर की है।

यद्यपि यहाँ के सभी सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं पर कुमांउनी लोगों का बोलबाला है, लेकिन बहुत से क्षेत्रों और धर्मों के लोग हल्द्वानी में रहते हैं। यहाँ के खानपान, पहनावे, बोलियों, और वास्तुशिल्प में विविधता देखी जा सकती है।

 २ दशक पहले तक ही ये एक छोटा कस्बा था, लेकिन बहुत से कारणों से यहाँ पिछले कुछ वर्षों में तेजी से नगरीकरण बढ़ा जिसके चलते ये एक स्थानीय व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ है और यहाँ कई आधारभूत सुविधाओं में वृद्धि हुई है जैसे सड़क, अस्पताल, विक्रय केंद्र इत्यादि।


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हल्द्वानी में ऐसे कई विद्यालय है जो बहुत ऊँचे स्तर की शिक्षा प्रदान करते है और ये उत्तराखंड के आवासीय पहाड़ी स्कूलों के तुलना में सस्ते हैं।

कुछ प्रमुख विद्यालय है:- सैकरैड हार्ट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, श्री गुरु तेग बहादुर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, नैनी वैली स्कूल, केंद्रीय विद्यालय, निर्मला कॉन्वेंट उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, महर्षि विद्या मंदिर, कुईंस पब्लिक स्कूल, संत थेरेसा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, संत पॉल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, आर्यमान विक्रम बिड़ला अध्ययन संस्थान, बीरशिबा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, आम्रपाली संस्थान-लामाचौर, डी.ए.वी. सेंटेनरी पुब्लिक स्कूल, द हेरिटेज स्कूल जो यहाँ के सर्वोत्तम विद्यालयों में से एक है,

 बिड़ला विद्या मंदिर, दीक्षांत इंटरनेशनल प्री- स्कूल, जी.आई.सी, जी.जी.आई.सी, महात्मा गाँधी इंटर कॉलेज, एम.बी. इंटर कॉलेज, और एच.एन. इंटर कॉलेज।

इसके अतिरिक्त निकट के पंतनगर में स्थित गोविन्द वल्लभ पन्त कृषि और प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय जो कृषि अनुसंधान के लिए देश का प्रमुख संस्थान है।

सुशीला तिवारी मेमोरियल द्वारा संचालित एक आयुर्विज्ञान संस्थान। इसके अतिरिक यहाँ एक एन.आई.आई.टी केंद्र भी है, जो स्थानीय युवाओं को वैश्विक आई.टी उद्योग में वृत्ति बनाने में सहायता देता है। इन सबके अतिरिक्त यहाँ बहुत से लघु-अवधि के लिए आजीविका उन्मुख ट्रेनिंग भी देते है जैसे इज़ीज्ञान, आई.आई.जे.टी, वीटा इत्यादि।


 

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