Author Topic: Har Ki Dun,Valley Of Gods,Uttarakhand-हर की दून उत्तराखंड  (Read 26972 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हर की दून जाने के दो मार्ग हैं। एक मार्ग हरिद्वार से ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चंबा, धरासू, बडकोट, नैनबाग से पुरौला तक और दूसरा देहरादून से मसूरी, कैंप्टी फाल, नौगांव, नैनबाग से पुरौला तक जाता है। पुरौला सुंदर पहाडी कस्बा है और चारों ओर पहाडों से घिरा बडा कटोरा जैसा लगता है।

 बस्ती के चारों ओर धान के खेत, फिर चीड के वृक्ष और उनके ऊपर से झांकती पर्वत श्रृखलाएं। पुरौला से आगे है सांखरी जोहर की दून का बेस कैंप है। यहां तक बसें और टैक्सियां आती हैं। इसके बाद शुरू होती है लगभग 35 किमी. की ट्रैकिंग यानी पद यात्रा। यह खांई बद्यान क्षेत्र कहलाता है और यहां के सीधे-सादे निवासी अब भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित हैं।

 सांखरी में आपको पोर्टर और गाइड मिल जाएंगे और आप रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपनी रोमांचक यात्रा शुरू कर सकते हैं। सांखरी समुद्रतल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर है और यहीं से प्रारंभ होता है गोविंद पशु विहार का क्षेत्र, जिसमें प्रवेश करने के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी पडती है। सूपिन नदी को पार करते ही आप स्वप्न लोक में पहुंच जाते हैं।

 चीड, सुरमई, बंाझ, बुरांस के घने जंगल और सूपिन नदी के किनारे-किनारे वन्य जीव-जंतुओं को निहारते 12 किमी. का सफर तय करके आप 1900 मीटर की ऊंचाई वाले कस्बे तालुका पहुंचते है। तब थोडा विश्राम का मन करने लगता है। चाहें तो यहां रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं, गढवाल मंडल पर्यटन निगम के विश्राम गृह में जिसकी बुकिंग हरिद्वार से ही हो जाती है।

 तालुका से सवेरे थोडा जल्दी निकलना पडेगा क्योंकि अगला पडाव है ओसला गांव जो लगभग 13 किलोमीटर की पद यात्रा के बाद आता है। सूपिन नदी ही आपकी मार्ग दर्शक रहेगी और पथरीली पगडंडियां कई बार पहाडी झरनों के बीच से आपको ले जाएंगी जहां आपको ट्रैकिंग शूज आपको उतारने पड सकते हैं। यहां से देवदार के जंगल शुरू होते हैं। रई, पुनेर, खर्सो और मोरू के पेडों पर मोनाल, मैना और जंगली मुर्गियां आपको कैमरा निकालने के लिए विवश कर देंगी।

 बीच में एक छोटा सा गांव पडेगा गंगाड जहां की लकडी के बने सुंदर छोटे-छोटे घर आपका मन मोह लेंगे। यहां आप चाय पी सकते हैं जो आपको तरोताजा कर देगी और आप शाम ढलने से पहले ही ओसला पहुंच जाएंगे। ओसला की समुद्र तल से ऊंचाई है लगभग 2800 मीटर। यहां रात्रि विश्राम की सुविधाएं हैं। प्रात: सूपिन नदी को पार लगभग 200 मीटर की खडी चढाई चढ कर आप बुग्यालों में पहुंच जाते हैं।

 सूपिन का साथ यहीं तक है। दूर तक फैले हरे घास के मैदानों में हवा में झूमते लहराते रंग बिरंगे फूलों की छटा देख कर लगता है जैसे आप किसी और लोक में आ गए हैं। बर्फीले पर्वतों की चोटियां इतने पास लगती हैं मानो आप हाथ बढा कर छू लेंगे।

 नीचे देवदार के जंगल और दूर तक दिखती टेढी-मेढी सूपिन नदी को अलविदा कर फूलों के गलीचों, दलदलों जमीन पर बने पथरीले रास्तों पर कूदते-फांदते बंदर पुंछ, स्वर्गरोहिणी और ज्यूधांर ग्लेशियर से घिरी फूलों की घाटी में पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है।

 ओसला से यहां की दूरी लगभग 10 किमी है। सारा मार्ग बहुत ही मनोहर है। पहाडी ढलानों पर दूर तक एक ही रंग के फूलों की कई चादर। बीच-बीच में चट्टानों और कहीं कहीं भोजपत्र के पेड। इन्हीं भोज वृक्षों की ढाल पर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद, उपनिषद और आरण्यकों की रचनाएं लिखी थी। हर की दून समुद्रतल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर है। रात्रि विश्राम के लिए विश्राम गृह हैं।

 रात्रि में जब ग्लेशियर टूटते हैं तो लगता है मानों भगवान शंकर का डमरू बज रहा है। रंग
बिरंगे फूलों के गलीचे, चांदी सी चमकती नदियां और चारों ओर बर्फीली चोटियां.. क्या स्वर्ग की परिकल्पना इससे अलग हो सकती है? खास बातें द्वहर की दून का ट्रैक बहुत कठिन नहीं, इसके लिए ज्यादा अभ्यास की जरूरत नहीं पडती।

 शरीर मौसम व ऊंचाई के अनुकूल हो तो अच्छी सेहत वाले इसे बिना किसी खास तकलीफ के कर सकते हैं। द्व21 हजार फुट की ऊंचाई वाली स्वर्गारोहिणी चोटी के लिए बेस कैंप के तौर पर भी हर की दून का इस्तेमाल किया जाता है। द्वहर की दून के लिए यूथ हॉस्टल जैसी कई संस्थाएं हर साल ट्रैकिंग अभियान चलती हैं। आप चाहें तो अपने स्तर पर भी वहां जा सकते हैं। साखंरी में गाइड व पोर्टर मिल जाएंगे। द्वयहां जाने का सर्वोत्तम समय अप्रैल से अक्टूबर के बीच है।

रास्ते में कई जगहों पर (यहां तक की हर की दून में भी) गढवाल मंडल विकास निगम के रेस्टहाउस मिल जाएंगे। लेकिन इनके लिए बुकिंग पहले करा लें। देहरादून या ऋषिकेश, कहीं से भी पुरौला-सांखरी के लिए सडक मार्ग का सफर शुरू किया जा सकता है।

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way to kedaar kaantha


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vew of swarga rohini peak from har ki dun


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sankari village har ki dun


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This is agood trek for a small group for nature excursion since the valley is full of flora and fauna. One can spend time with herbs & shrubs for medicinal purpose. Also photography too has great area to snaps for variety of birds & nature. This is a holly place.

 Also it is a base of Swargarohini ht. 21000 ft. In our old granth (books) it is mentioned that Pandav went to Swarga (Heavan) through this mountain. This is a place where you can find  Trees of Bhojpatra flower Bramhakamal.

 Swargarohini and Jaundar Glacier is at south-east of Har-ki-dun. Towards west you can see Bandar Punch. Duryodhan is a God of few community here, you can find temple of Duryodhan. People servives on farming Rice, Rajma, Charas. They use wood of Deodar tree for their house.

 You can find many people using Hukka for smoking. One can smell of pine while having hukka. Also because of popularity of this area for trekking Portary is another way to earn for locals here. They generally work under thekedar.

      To reach here first stop will be Dehradun. From Dehradun you should go to Sankri(150 Km). From Sankri actual trek starts. You may experience many landslides on the way. Accordingly you should arrange your schedule. Next stop  is Taluka 13 km away from Sankri. From Taluka to Seema is 16 km. From Seema to Har-ki-dun a 14 km strenuous walk. Once you reach to the destination you will forget the tiring walk & enjoy the beauty. It's better to walk early morning else you need to face changing atmosphere.

You can spend a day for visit to Jaundar Glacier. You can find UP forest house for rest or Gadhwal Nigam's Rest house for stay. Their charges are nominal. You should book months before the trek to avoid discomfort.



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 VEW OF  DHAARKOT VILLAGE FROM HAR KI DUN


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उत्तराखंड के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थित हर की दून घाटी पौराणिक भूमि होने के साथ.साथ अनोखी संस्कृति. वेशभूषा एवं लोकभाषा को अपने आगोश में संजोये हुए है

पर्यटन विकास परिषद से मिली जानकारी के अनुसार पौराणिक कथाओं की भूमि हर की दून समुद्रतल से 03 हजार 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित .भगवान शिव. की घाटी उत्तराखंड के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में विद्यमान है1 इसकी सीमा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र को जोडे हुए है

 जिसके कारण यह हिमालयी संस्कृति का प्रभाव है1 हर की दून घाटी में रहने वाले लोगों की वेषभूषा ..हिमाचली परिधानों.. के समरूप है और यहां की लोकभाषा उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र से जुडी हुयी है जो घाटी के दक्षिण में पडता है 1 यह जोडने वाला समाज है

और यहां अनेक पति .बहु पति. रखने की प्रथा सामान्य रूप से प्रचलन में है जैसा कि महाभारत में पांच पाण्डव भाइयों जिनका विवाह द्रौपदी से हुआ था उसी रिवाज का अनुसरण यहां के लोग भी करते हैं



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GHRAAT IN HAR KI DUN


 

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