Author Topic: Har Ki Dun,Valley Of Gods,Uttarakhand-हर की दून उत्तराखंड  (Read 27137 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हिमाच्छादित चोटियों की तलहटी में दूर-दूर तक हरे घास के मैदान, वहां खिले फूल और नदी की कल-कल की आवाज, कुदरत हर की दून घाटी पर इस कदर मेहरबान है कि यहां आने वाले पर्यटक इसके सम्मोहन में कैद होकर रह जाते हैं। पर्यटकों के पसंदीदा इस क्षेत्र में अध्यात्म की खोज में जुटे साधुओं के लिए, तो स्वर्ग की अनुभूति देने वाला है।

उत्तरकाशी से करीब 176 किमी दूर तालुका गांव से हरकीदून का पैदल मार्ग शुरू होता है। रास्ते में पड़ने वाले परंपरागत शैली में बने लकड़ी की तीन से चार मंजिला भवनों की सुंदरता देखते ही बनती है। लकड़ी के इन भवनों पर दरवाजे पर गणेश और खिड़की पर नारायण के नक्काशी कर बनाए गए चित्र पहाड़ की समृद्ध काष्ठ कला की कहानी बयान करते हैं।

 उत्तरकाशी के अंतिम गांव ओसला से कुछ दूर चलते ही प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। करीब 3565 मीटर ऊंचाई से शुरू हरकीदून क्षेत्र शुरू होता है। इस ऊंचाई पर हिमालय की बंदरपूंछ, स्वर्गारोहिणी, रंगलाना, काली चोटी, व्हाइट पीक समेत कई चोटियों का नजारा किया जा सकता है। स्वर्गारोहिणी का उल्लेख महाभारत में मिलता है।

 इसके मुताबिक अंतकाल में पांडव इसी चोटी के रास्ते स्वर्ग गए थे। शायद यही वजह है कि इस क्षेत्र का नाम हरि की घाटी यानि हरकीदून रखा गया हो। रुपिन और सुपिन नदी यहां से सर्प की भांति जमीन पर रेंगती हुई नजर आती हैं। इन नदियों के संगम पर पोखू देवता के प्राचीन मंदिर स्थित हैं, जहां हर साल सैकड़ों श्रद्धालुओं पूजा अर्चना के लिए जाते हैं।

यहां दूर तक बुग्यालों में खिले फूलों की महक पूरी घाटी को महकाती है। इसके अलावा दुर्लभ प्रजाति के वन्य जीव भी यहां विचरण करते नजर आते हैं, लेकिन प्रकृति के इस सुंदरतम स्थल के विकास को लेकर पर्यटन विभाग अभी तक कोई सटीक योजना नहीं बना पाया है। पर्यटक आते हैं और घूम कर चले जाते हैं, मगर उन्हें यहां कोई सुविधा तक मुहैया नहीं करवाई जाती। इस बाबत क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आरएस यादव बताते हैं कि योजना शासन को भेजी गई है।



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हर की दून जाने के दो मार्ग हैं। एक मार्ग हरिद्वार से ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चंबा, धरासू, बडकोट, नैनबाग से पुरौला तक और दूसरा देहरादून से मसूरी, कैंप्टी फाल, नौगांव, नैनबाग से पुरौला तक जाता है। पुरौला सुंदर पहाडी कस्बा है और चारों ओर पहाडों से घिरा बडा कटोरा जैसा लगता है। बस्ती के चारों ओर धान के खेत, फिर चीड के वृक्ष और उनके ऊपर से झांकती पर्वत श्रृखलाएं।

पुरौला से आगे है सांखरी जोहर की दून का बेस कैंप है। यहां तक बसें और टैक्सियां आती हैं। इसके बाद शुरू होती है लगभग 35 किमी. की ट्रैकिंग यानी पद यात्रा। यह खांई बद्यान क्षेत्र कहलाता है और यहां के सीधे-सादे निवासी अब भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित हैं। सांखरी में आपको पोर्टर और गाइड मिल जाएंगे और आप रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपनी रोमांचक यात्रा शुरू कर सकते हैं।

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सांखरी समुद्रतल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर है और यहीं से प्रारंभ होता है गोविंद पशु विहार का क्षेत्र, जिसमें प्रवेश करने के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी पडती है। सूपिन नदी को पार करते ही आप स्वप्न लोक में पहुंच जाते हैं।

चीड, सुरमई, बंाझ, बुरांस के घने जंगल और सूपिन नदी के किनारे-किनारे वन्य जीव-जंतुओं को निहारते 12 किमी. का सफर तय करके आप 1900 मीटर की ऊंचाई वाले कस्बे तालुका पहुंचते है। तब थोडा विश्राम का मन करने लगता है। चाहें तो यहां रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं, गढवाल मंडल पर्यटन निगम के विश्राम गृह में जिसकी बुकिंग हरिद्वार से ही हो जाती है।

 तालुका से सवेरे थोडा जल्दी निकलना पडेगा क्योंकि अगला पडाव है ओसला गांव जो लगभग 13 किलोमीटर की पद यात्रा के बाद आता है। सूपिन नदी ही आपकी मार्ग दर्शक रहेगी और पथरीली पगडंडियां कई बार पहाडी झरनों के बीच से आपको ले जाएंगी जहां आपको ट्रैकिंग शूज आपको उतारने पड सकते हैं।

 यहां से देवदार के जंगल शुरू होते हैं। रई, पुनेर, खर्सो और मोरू के पेडों पर मोनाल, मैना और जंगली मुर्गियां आपको कैमरा निकालने के लिए विवश कर देंगी। बीच में एक छोटा सा गांव पडेगा गंगाड जहां की लकडी के बने सुंदर छोटे-छोटे घर आपका मन मोह लेंगे।

यहां आप चाय पी सकते हैं जो आपको तरोताजा कर देगी और आप शाम ढलने से पहले ही ओसला पहुंच जाएंगे। ओसला की समुद्र तल से ऊंचाई है लगभग 2800 मीटर। यहां रात्रि विश्राम की सुविधाएं हैं। प्रात: सूपिन नदी को पार लगभग 200 मीटर की खडी चढाई चढ कर आप बुग्यालों में पहुंच जाते हैं। सूपिन का साथ यहीं तक है।

 दूर तक फैले हरे घास के मैदानों में हवा में झूमते लहराते रंग बिरंगे फूलों की छटा देख कर लगता है जैसे आप किसी और लोक में आ गए हैं। बर्फीले पर्वतों की चोटियां इतने पास लगती हैं मानो आप हाथ बढा कर छू लेंगे। नीचे देवदार के जंगल और दूर तक दिखती टेढी-मेढी सूपिन नदी को अलविदा कर फूलों के गलीचों, दलदलों जमीन पर बने पथरीले रास्तों पर कूदते-फांदते बंदर पुंछ, स्वर्गरोहिणी और ज्यूधांर ग्लेशियर से घिरी फूलों की घाटी में पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है।

ओसला से यहां की दूरी लगभग 10 किमी है। सारा मार्ग बहुत ही मनोहर है। पहाडी ढलानों पर दूर तक एक ही रंग के फूलों की कई चादर। बीच-बीच में चट्टानों और कहीं कहीं भोजपत्र के पेड। इन्हीं भोज वृक्षों की ढाल पर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद, उपनिषद और आरण्यकों की रचनाएं लिखी थी।



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हर की दून का ट्रैक बहुत कठिन नहीं, इसके लिए ज्यादा अभ्यास की जरूरत नहीं पडती। शरीर मौसम व ऊंचाई के अनुकूल हो तो अच्छी सेहत वाले इसे बिना किसी खास तकलीफ के कर सकते हैं। द्व21 हजार फुट की ऊंचाई वाली स्वर्गारोहिणी चोटी के लिए बेस कैंप के तौर पर भी हर की दून का इस्तेमाल किया जाता है।

 द्वहर की दून के लिए यूथ हॉस्टल जैसी कई संस्थाएं हर साल ट्रैकिंग अभियान चलती हैं। आप चाहें तो अपने स्तर पर भी वहां जा सकते हैं। साखंरी में गाइड व पोर्टर मिल जाएंगे। द्वयहां जाने का सर्वोत्तम समय अप्रैल से अक्टूबर के बीच है।

रास्ते में कई जगहों पर (यहां तक की हर की दून में भी) गढवाल मंडल विकास निगम के रेस्टहाउस मिल जाएंगे। लेकिन इनके लिए बुकिंग पहले करा लें। देहरादून या ऋषिकेश, कहीं से भी पुरौला-सांखरी के लिए सडक मार्ग का सफर शुरू किया जा सकता है।

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