हर की दून फूलों की घाटी यह भी
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फूलों की घाटी का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां चमोली जनपद की प्रसिद्ध तीर्थ स्थली बद्रीनाथ धाम के पास गंधमादन पर्वत पर स्थित फूलों की घाटी या वैली ऑफ फ्लावर्स। इतनी ही सुंदर पर अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध फूलों की एक और घाटी उत्तराखंड राज्य में उत्तरकाशी जनपद के मौरी विकास खंड स्थित टांस घाटी में है जो हर की दून के नाम से पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है।
हर की दून जाने के दो मार्ग हैं। एक मार्ग हरिद्वार से ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चंबा, धरासू, बड़कोट, नैनबाग से पुरौला तक और दूसरा देहरादून से मसूरी, कैंप्टी फाल, नौगांव, नैनबाग से पुरौला तक जाता है। पुरौला सुंदर पहाड़ी कस्बा है और चारों ओर पहाड़ों से घिरा बड़ा कटोरा जैसा लगता है। बस्ती के चारों ओर धान के खेत, फिर चीड़ के वृक्ष और उनके ऊपर से झांकती पर्वत श्रृंखलाएं।
पुरौला से आगे है सांखरी जोहर की दून का बेस कैंप है। यहां तक बसें और टैक्सियां आती हैं। इसके बाद शुरू होती है लगभग 35 किमी. की ट्रैकिंग यानी पद यात्रा। यह खांई बद्यान क्षेत्र कहलाता है और यहां के सीधे-सादे निवासी अब भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित हैं। सांखरी में आपको पोर्टर और गाइड मिल जाएंगे और आप रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपनी रोमांचक यात्रा शुरू कर सकते हैं।
सांखरी समुद्रतल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर है और यहीं से प्रारंभ होता है गोविंद पशु विहार का क्षेत्र, जिसमें प्रवेश करने के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी पड़ती है। सूपिन नदी को पार करते ही आप स्वप्न लोक में पहुंच जाते हैं।
चीड़, सुरमई, बांझ, बुरांस के घने जंगल और सूपिन नदी के किनारे-किनारे वन्य जीव-जंतुओं को निहारते 12 किमी. का सफर तय करके आप 1900 मीटर की ऊंचाई वाले कस्बे तालुका पहुंचते है। तब थोड़ा विश्राम का मन करने लगता है। चाहें तो यहां रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं, गढ़वाल मंडल पर्यटन निगम के विश्राम गृह में जिसकी बुकिंग हरिद्वार से ही हो जाती है।
प्रात: सूपिन नदी को पार लगभग 200 मीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ कर आप बुग्यालों में पहुंच जाते हैं। सूपिन का साथ यहीं तक है। दूर तक फैले हरे घास के मैदानों में हवा में झूमते लहराते रंग बिरंगे फूलों की छटा देख कर लगता है जैसे आप किसी और लोक में आ गए हैं। बर्फीले पर्वतों की चोटियां इतने पास लगती हैं मानो आप हाथ बढ़ा कर छू लेंगे।
नीचे देवदार के जंगल और दूर तक दिखती टेढ़ी-मेढ़ी सूपिन नदी को अलविदा कर फूलों के गलीचों, दलदलों जमीन पर बने पथरीले रास्तों पर कूदते-फांदते बंदर पुंछ, स्वर्गरोहिणी और ज्यूधांर ग्लेशियर से घिरी फूलों की घाटी में पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। ओसला से यहां की दूरी लगभग 10 किमी है। सारा मार्ग बहुत ही मनोहर है। पहाड़ी ढलानों पर दूर तक एक ही रंग के फूलों की कई चादर। बीच-बीच में चट्टानों और कहीं कहीं भोजपत्र के पेड़। इन्हीं भोज वृक्षों की ढाल पर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद, उपनिषद और आरण्यकों की रचनाएं लिखी थी।
हर की दून समुद्रतल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर है। रात्रि विश्राम के लिए विश्राम गृह हैं। रात्रि में जब ग्लेशियर टूटते हैं तो लगता है मानों भगवान शंकर का डमरू बज रहा है। रंग बिरंगे फूलों के गलीचे, चांदी सी चमकती नदियां और चारों ओर बर्फीली चोटियां.. क्या स्वर्ग की परिकल्पना इससे अलग हो सकती है?