Author Topic: Kashipur: Historical City - काशीपुर: एक ऎतिहासिक नगर  (Read 14777 times)

पंकज सिंह महर

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Kashipur was known as Govishan during the time of harsha (606-647 AD), when Yuan-Chwang (631-641 AD) visited this region. The ruins of the large settlement of those days are still to be seen near the city. Kashipur is named after Kashinath Adhikari, the founder of the township and one of the officers of the Chand rulers of Kumaon in the middle age.

Poet Gumani has written a poem on thsi town. Girital and Drona sagar are well known spots and are associated with the story of the Pandavas. The Chaiti mela is the best known fair of Kashipur. Today Kashipur is an important industrial township. In autumn (after mansoon) one can see the snowclad peaks of Trishul and its surroundings.

पंकज सिंह महर

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Kashipur was known as Govishan during the time of harsha (606-647 AD), when Yuan-Chwang (631-641 AD) visited this region. The ruins of the large settlement of those days are still to be seen near the city. Kashipur is named after Kashinath Adhikari, the founder of the township and one of the officers of the Chand rulers of Kumaon in the middle age.

Poet Gumani has written a poem on this town. Girital and Drona sagar are well known spots and are associated with the story of the Pandavas. The Chaiti mela is the best known fair of Kashipur. Today Kashipur is an important industrial township. In autumn (after mansoon) one can see the snowclad peaks of Trishul and its surroundings.

Drona Sagar is believed to be associated with Guru Dronacharya, the legendary warrior and teacher in the Mahabharata. This place was once very auspicious and revered as the last pilgrimage spot after the Gangotri, Yamunotri, Badrinath and Kedarnath Dhams. The ‘Skand Puran’ states that the water of this place is as holy as that of the sacred river Ganga.

Kashipur a tiny city in devbhoomi Uttarakhand. Uttarakhand is known as the home of gods all cities are blessed with natural beauty, culture is a heritage.
KASHIPUR is famous for providing high quality Seeds many seed plants have come up in this region and they are now supplying High Quality Seeds in every part of the Country.


पंकज सिंह महर

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काशीपुर उत्तरांचल के तराई इलाके में बसा छोटा सा खूबसूरत शहर है। इस शहर का इतिहास हर्षवर्धन ( ६०६-६४७) से लेकर महाभारत काल तक जाता है। हर्ष के समय के पुरास्थल अभी भी यहा देखे जा सकते है।

पुराणों में इसको उज्जनक नाम से लिखा गया है। हर्ष के समय काशीपुर को गोविषाण के नाम से जाना जाता था। चीनी यात्री ह्वेन सांग (६३१-६४१) ने भी काशीपुर की यात्रा की थी। मेरा ननिहाल भी काशीपुर का ही है इसलिए पिछले दिनो यहां जाना हुआ। सोचा की यहां से आप सबका भी परिचय करवा दिया जाए।
काशीपुर के इतिहास को खोजने के लिए यहां सबसे पहले १९५२ में खुदाई की गई। उसके बाद १९७०-७२ और सबसे आखिर में २००२-०३ में यहां खुदाई की गई। यहां हुई खुदाई में हर्ष के समय के मंदिर और शहर के अवशेष मिले हैं।आज के शहर से लगभग दो किलोमीटर दूर पुरानी बसावट मिली है। यहां मिले मिट्टी के बर्तनो, सिक्को, इमारतों की बनावट से ये पता चलता है कि शहर महाभारत काल से ही अस्तित्व में है।

अभी जो फोटो आप देख रहें हैं वो वहां मिले मंदिर के हैं जो कि हर्ष के समय का है। इस को पक्की ईंटो से बनया गया है। बाहरी दीवारो पर लगी ईटो की चमक आज पन्द्रह सौ साल बाद भी बरकरार है। ये इलाका लगभग छ सौ एकड में फैला हुआ है। यहा आज भी पूरा शहर दबा पडा है। पुरे इलाके में उस जमाने की ईटें बिखरी पडी हैं। आप को एहसास होगा कि जैसे सदियों पुराना इतिहास आप के साथ चल रहा है

पंकज सिंह महर

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द्रोणसागर में ही भारतीय पुरातत्व विभाग का संग्राहलय भी है जिसमें काशीपुर की खुदाई से मिली चीजो को रखा गया है। यहा से काशीपुर के इतिहास की जानकारी ली जा सकती है।


पंकज सिंह महर

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चैती मेला - काशीपुर  

चैती का मेला इस क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला है जो नैनीताल जनपद में काशीपुर नगर के पास प्रतिवर्ष चैत की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है । इस स्थान का इतिहास पुराना है । काशीपुर में कुँडश्वरी मार्ग जहाँ से जाता है, वह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है । इस स्थान पर अब बालासुन्दरी देवी का मन्दिर है । मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं ।

यूँ तो शाक्त सम्प्रदाय से सम्बन्धित सभी मंदिरों में नवरात्रि में विशाल मेले लगते हैं लेकिन माँ बालासुन्दरी के विषय में जनविश्वास है कि इन दिनों जो भी मनौती माँगी जाती है, वह अवश्य पूरी होती है । फिर भी नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ पड़ता है । बालासुन्दरी के अतिरिक्त यहाँ शिव मंदिर, भगवती ललिता मंदिर, बृजपुर वाली देवी के मंदिर, भैरव व काली के मंदिर हैं । वैसे माँ बालासुन्दरी का स्थाई मंदिर पक्काकोट मुहल्ले में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के यहाँ स्थित है । इन लोगों को चंदराजाओं से यह भूमि दान में प्राप्त हुई थी । बाद में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया । बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती है ।

कहा जाता है कि आज जो लोग इस मन्दिर के पंडे है, उनके पूर्वज मुगलों के समय में यहाँ आये थे । उन्होंने ही इस स्थान पर माँ बालासुन्दरी के मन्दिर की
स्थापना की । कहा जाता है कि तत्कालीन मुगल बादशाह ने भी इस मंदिर को बनाने में सहायता दी थी ।

नवरात्रियों में यहाँ तरह-तरह की दूकानें भी अपना सामान बेचने के लिए लगती हैं । थारु लोगों की तो इस देवी पर बहुत ज्यादा आस्था है । थारुओं के नवविवाहित जोड़े हर हाल में माँ से आशीर्वाद लेने चैती मेले में जरुर पहुँचते हैं । देवी महाकाली के मंदिर में बलिदान भी होते हैं । अन्त में दशमी की रात्रि को डोली में बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है । मेले का समापन इसके बाद ही होता है ।

प्राय: चैती मेले का रंग तभी से आना शुरु होता है जब काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचता है । डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है । डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है

पंकज सिंह महर

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प्रसिद्ध लोक कवि गुमानी पंत जी भी काशीपुर शहर में निवास करते थे,
काशीपुर पर ही गुमानी जी ने यह भी लिखा है :

जहाँ पूरी गरमा गरम तरकारी चटपटी
दही बूरा दोने भर भर भले ब्राह्मण छकें |
छहे न्यूते वारे सुनकर अठारे बढ़ गए
अजब देखा काशीपुर शहर सारे जगत में ||

गुमानी जी का जन्म काशीपुर में हुआ और वह काशीपुर के तत्कालीन राजा गुमान सिंह देव के दरबार में कवि रहे. गुमानी जी द्वारा काशीपुर के बारे में लिखे गये अनेक पदों मे से एक यह है


यहाँ ढेला नद्दी उत बहत गंगा निकट में
यहाँ भोला मोटेश्वर रहत विश्वेश्वर वहाँ
यहाँ सण्डे दण्डे कर धर फिरें शाँडउत ही
फरक क्या है काशीपुर शहर काशी नगर में?       
 

Devbhoomi,Uttarakhand

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भीमशङ्कर महादेव,मंदिर काशीपुर



भीमशंकर महादेव काशीपुरय् भगवान शिवया नांजाःगु देगः व तीर्थ स्थान ख। थनया शिवलिङ्ग सिक्क तःग्वारा जूगुलिं थ्व द्यःयात मोटेश्वर महादेव (हिन्दीइ मोटा धाःगु ग्वारा ख) धका नं धाइगु या । पुराणय् नं थ्व देगःया वर्णन यानातःगु खनेदु। आसामय् शिवया द्वादश ज्योर्तिलिङ्गय् छगू भीमशङ्कर महादेवया देगः नं ख। काशीपुरया देगःयात वय्‌कःयागु हे रुप धका धाइगु या।

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खुर्पीताल से कालढूँगी मार्ग होते हुए काशीपुर को एक सीधा मार्ग चला जाता है।  काशीपुर नैनीताल जिले का एक प्रसिद्ध नगर है, और मुरादाबाद व लालकुआँ से रेल द्वारा जुड़ा है।  नैनीताल से यहाँ निरन्तर बसें आती रहती हैं।  कुमाऊँ के राजाओं का यह एक मुख्य केन्द्र था।  तराई - भाबर में जो भी वसूली होती थी उसका सूबेदार काशीपुर में ही रहता था।


चीनी यात्री हृवेनसांग ने भी इस स्थान का वर्णन किया था।  उन्होंने इस स्थान का उल्लेख 'गोविशाण' नाम से किया था प्राचीन समय से ही काशीपुर का अपना भौगोलिक, सांस्कृतिक व धार्मिक महत्व रहा है।

कालाढूँगी/हल्द्वानी से काशीपुर मोटर-मार्ग में काशीपुर शहर से लगभग ६ कि.मी. पहले देवी का एक काफी पुराना मन्दिर है यहाँ पर चैत्र मास में चैती मेला विशेष रुप से लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं तथा अपनी मनौतियाँ मनाते और माँगते हैं।  देवी के दर्शन करने के लिए यहाँ काफी भीड़ उमड़ पड़ती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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नवरात्रि के महीने में यहाँ मेला लगता है! आप सब को नवरात्रियो की शुभकामनाये!

 

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