कौसानी उत्तराखंड का एक खूबसूरत छोटा सा हिल स्टेशन है जो मुख्यतः हिमालय दर्शन के लिए जाना जाता है. यह कवि सुमित्रानंदन पन्त की जन्मभूमि भी है, साथ ही यहाँ आसपास चाय के बागान और प्राचीन मंदिर भी स्थित हैं. अपनी हाल की उत्तराखंड की यात्रा में मैंने ये सब जाना और कौसानी का पूरा आनंद लिया. परन्तु जिस जगह ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया वो है!
अनासक्ति आश्रम. गांधीजी के अल्प निवास से प्रसिद्द हुआ यह स्थान अब गांधीजी के जीवन की झांकियों और उनके जीवन दर्शन के लिए जाना जाता है. यहाँ रूकने की भी व्यवस्था है. आश्रमवासियों को कुछ नियमों का पालन करना होता है, जैसे प्रार्थना सभा में अनिवार्य उपस्थिति, मद्य-मांस आदि का पूर्णतयः निषेध इत्यादि.
यहाँ आने वाले लोग भी प्रार्थना सभा में शामिल हो सकते हैं जो कि एक नियत समय पर होती है. हम भी प्रार्थन सभा में अपने पूरे परिवार के साथ शामिल हुए. पहले गांधीजी को प्रिय भजनों का गान हुआ, साथ ही कुछ संस्कृत मंत्रों का उच्चारण किया गया. फिर देश के कोने-कोने से आये लोगों ने अपनी-अपनी भाषा में भजन गाये. हालाँकि पूर्णतय हिन्दू धर्मं से सम्बंधित भजनों या मंत्रो का गान कुछ अटपटा लगा. पर किसी और तरह की प्रार्थनाओ पर कोई रोक है, ऐसा भी नहीं लगा.
हर उम्र और देश के हर हिस्से से आये लोगों की भीड़ आश्वस्त कर रही थी कि गाँधी अब भी उतने ही स्मरणीय हैं जितने राम, कृष्ण, नानक, मुहम्मद या ईसा. छोटे बच्चों को जिनमें हमारे बच्चे भी शामिल थे ध्यानमग्न होकर गांधीजी के प्रिय भजन गाते देख लगा कि पॉप संगीत की धुन पर हर वक्त झूमने वाले ये बच्चे रघुपति राघव पर भी झूमना जानते हैं. लगभग एक घंटे की इस प्रार्थना सभा में लोग बड़ी श्रध्दा के साथ बैठे थे. इस आडम्बररहित गाँधी मंदिर में मुझ जैसे मंदिर ना जाने वाले लोगों का सिर भी श्रध्दा से झुकता है.