उत्तरकाशी जनपद के सीमांत विकास खंड मोरी में जहां एक ओर कलाप गुफा, भ्रराडसर ताल, फूलों की घाटी हरकीदून व देवक्यारा हैं, वहीं केदारकांठा जैसे अनेक रमणीक बुग्याल, ताल व तीर्थ स्थल भी हैं। केदारकांठा धार्मिक व सांस्कृतिक स्थल होने के साथ-साथ मनोहारी पर्यटन स्थल भी है। पुराणों में वर्णन है कि कौरव व पांडवों के युद्ध के बाद पांडवों पर कुलघाती होने का पाप लगा था।
जनश्रुति है कि इस पाप के प्रायश्चित के लिए वे शिवजी को प्रसन्न करना चाहते थे, लेकिन शिवजी उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने शिवजी का पीछा किया और शिवजी नंदी का रूप धारण कर देव वन मोरी से होते हुए केदारकांठा पहुंचे। केदारकांठा में पांडवों ने शिवजी का मंदिर बनाने के लिए उन्हें मनाया। भीम पत्थर लेकर भी आए, जो आज भी मूल्ला नामक स्थान पर एक पहाड़ी पर रखे हुए बताये जाते हैं।
यह पत्थर आसपास के पत्थर से बिलकुल भिन्न हैं। पांडवों के अनुरोध केबावजूद शिवजी गाय की आवाज सुनकर यह कहते हुए चले गये कि यहां आबादी नजदीक है, मैं यहां नहीं रहूंगा। शिवजी नंदी रूप में ही सरनौल, कुथनौर होते हुए केदारकांठा पहुंचे। यहां पहुंचकर शिवजी भैंसे के रूप में परिवर्तित हो गये और अन्य भैंसों के साथ चरने लगे।