Author Topic: Kedarkantha,Uttarakhand- शिव व पांडवों से जुड़ा है केदारकांठा उत्तराखंड  (Read 13642 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तरकाशी जनपद के सीमांत विकास खंड मोरी में जहां एक ओर कलाप गुफा, भ्रराडसर ताल, फूलों की घाटी हरकीदून व देवक्यारा हैं, वहीं केदारकांठा जैसे अनेक रमणीक बुग्याल, ताल व तीर्थ स्थल भी हैं। केदारकांठा धार्मिक व सांस्कृतिक स्थल होने के साथ-साथ मनोहारी पर्यटन स्थल भी है। पुराणों में वर्णन है कि कौरव व पांडवों के युद्‌ध के बाद पांडवों पर कुलघाती होने का पाप लगा था।

जनश्रुति है कि इस पाप के प्रायश्चित के लिए वे शिवजी को प्रसन्न करना चाहते थे, लेकिन शिवजी उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने शिवजी का पीछा किया और शिवजी नंदी का रूप धारण कर देव वन मोरी से होते हुए केदारकांठा पहुंचे। केदारकांठा में पांडवों ने शिवजी का मंदिर बनाने के लिए उन्हें मनाया। भीम पत्थर लेकर भी आए, जो आज भी मूल्ला नामक स्थान पर एक पहाड़ी पर रखे हुए बताये जाते हैं।

 यह पत्थर आसपास के पत्थर से बिलकुल भिन्न हैं। पांडवों के अनुरोध केबावजूद शिवजी गाय की आवाज सुनकर यह कहते हुए चले गये कि यहां आबादी नजदीक है, मैं यहां नहीं रहूंगा। शिवजी नंदी रूप में ही सरनौल, कुथनौर होते हुए केदारकांठा पहुंचे। यहां पहुंचकर शिवजी भैंसे के रूप में परिवर्तित हो गये और अन्य भैंसों के साथ चरने लगे।

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सहदेव को भान हुआ तो, उन्होंने कहा-शिवजी इन्हीं भैंसों में से एक हैं। भीम ने दोनों पहाडि़यों पर अपने पैर रख दिये और कहा कि जब भैंसें पानी पीने जाएंगीं, तो उनमें से जो शिवजी होंगे, वे पैरों के बीच से लंघन की वजह से नहींं निकलेंगे और उनकी पहचान हो जाएगी। भैंसों के साथ शिवजी भी पानी पीने को आये और पैरों के नीचे आते ही वह धंसने लगे। सहदेव ने उन्हें पहचान लिया।

 जबतक भीम भैंसरूपी शिव की पूंछ पकड़ते, उनका सिर नेपाल पहुंच चुका था। पीठवाला हिस्सा ही केदारनाथ में रुक सका। यहींं पर भोले बाबा का मंदिर विराजमान है। इससे केदारनाथ व केदारकांठा के बीच गहरे संबंध का आभास होता है। यहींं पीछे पोखर में नेरुवा (गणेश) देवता की पत्थर की मूर्ति है।

मान्यता है कि यदि क्षेत्र में वर्षा न हो, तो यह मूर्ति नीचे गिरा दी जाती है। इसे नीचे गिराने से अतिवृष्टि होती है। अधिक वर्षा होने पर इस मूर्ति को फिर सीधा कर देते हैं। यहां हर साल क्ब् जून को मेला लगता है। केदारकांठा के मंदिर में ध्यान लगाने पर दिव्य अनुभूतियां होती हैं।



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प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर उत्तरकाशी जनपद के मोरी प्रखंड के लोगों ने क्षेत्र के बुग्यालों को विकसित कर इनकी जानकारी पर्यटकों तक पहुंचाने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि ट्रेकिंग व राप्टिंग को बढ़ावा मिले तो यहां के युवाओं को रोजगार मिल सकता है।

 इस क्षेत्र में कई बुग्याल होने के साथ-साथ टौंस नदी भी है, जहां रिवर राप्टिंग के लिए पिछले कुछ सालों से दिल्ली व चंडीगढ़ से युवा आ रहे हैं। सरकार ने अब तक इन बुग्यालों के प्रचार प्रसार की दिशा में एक कदम भी नहीं सरकाया है।

मोरी प्रखंड में हरकीदून, सरूताल, केदारकांठा मानेरा व पुष्टारा सहित दर्जनों बुग्याल मौजूद हैं, जहां हर वर्ष देशी व विदेशी पर्यटक पहुंचते हैं।

 पर्यटक यहां ट्रेकिंग का आनंद भी उठाते हैं, लेकिन इन स्थलों का सरकार की ओर से पर्याप्त प्रचार-प्रसार न करने से अधिक पर्यटक नहीं पहुंच पाते हैं। इसके अलावा टौंस नदी पर दिल्ली, चंडीगढ़, मेरठ, आगरा, लखनऊ से हर साल रिवर राप्टिंग के प्रशिक्षण के लिए हजारों युवक आते हैं। इसके प्रचार के साथ ही स्थानीय युवाओं को भी रिवर राप्टिंग का प्रशिक्षण दिया जाए तो रोजगार के साधन बढ़ सकते हैं।

टौंस वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी आरडी पाठक बताते है कि मोरी क्षेत्र के पर्यटक स्थलों को देखने व ट्रेकिंग के लिए यहां हर साल हजारों पर्यटक आते हैं। पिछले दो वर्षो में सांद्रा के पास टौंस नदी में रिवर राप्टिंग करने वाले देश विदेश के युवाओं की संख्या में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है।

 क्षेत्र के साहित्यकार चन्द्रभूषण विजल्वाण, बलवीर सिंह राणा, मोहन सिंह रावत, क्षेत्र प्रमुख पूजा रावत आदि का कहना है कि यहां के बुग्यालों का प्रचार प्रसार करने से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा। इससे यहां के युवाओं को रोजगार भी मिल सकेगा। क्षेत्र के लोगों ने सरकार से केदारकांठा, हरकीदून, पुष्टारा, मानेरा आदि पर्यटक स्थलों तथा बुग्यालों को पयर्टन के रूप में विकसित करने व रिवर राप्टिंग का और अधिक प्रचार प्रसार करने की मांग की है।



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उत्तरकाशी सौड़ उत्तराखंड का पहला ऐसा गांव बन गया है जो पर्यटकों को न सिर्फ होम स्टे व्यवस्था उपलब्ध करवा रहा है, बल्कि गढ़वाली व्यंजन व रात्रि में स्थानीय लोक नृत्य व संगीत की महफिल भी सजा रहा है। प्रकृति की सबसे सुंदर घाटी हरकीदून मार्ग पर उत्तरकाशी से 176 किमी दूर उत्तराखंड के सपनों को सजाने वाला गांव सौड़ बसा है। इस गांव से उच्च हिमालय क्षेत्र की हिमाच्छादित चोटी स्वर्गारोहणी, कालानाग, बंदरपूंछ व रंगलाना जैसी सुंदर चोटियां का खूबसूरत रास्ता गुजरता है।

 ये सभी चोटियां 6,100 से 6,387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से ढ़की चोटियों के साथ इस गांव से हरकीदून घाटी के सम्मोहन सा असर करने वाले पर्यटक स्थलों का रास्ता है। केदारकांठा, भारड़सर, चांगसील, मांजीवण, देवक्यारा जैसे पर्यटक स्थलों पर दूर तलक फैले हरी मखमली घास पर फूलों की खूशबू से महकते बुग्यालों का नजारा देखने के लिए इसी गांव से आगे कदम पर्यटकों के कदम बढ़ते हैं। एक साल पहले तक गांव में पर्यटकों व प्रकृति प्रेमियों को सिर्फ रास्तों से गुजरते हुए देखा जा सकता था,

 लेकिन अब ग्रामीणों ने पर्यटकों को अपने घरों में रात्रि विश्राम की सुविधा उपलब्ध करवानी शुरू कर दी है। गांव को यह प्रेरणा गांव के ही युवक चैन सिंह ने दी। हरकीदून संरक्षण एवं पर्वतारोहण समिति से जुड़े चैन सिंह ने सबसे पहले अपने घर में विश्राम गृह बनाया और पर्यटकों को आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाई। रात्रि व दोपहर के भोजन में गढ़वाली व्यंजन फाफरे की पोली, कंडाली की सब्जी, गहथ की दाल, मडुवे की रोटी और जागला परोसना शुरू किया।

 इससे उन्हें प्रति दिन चार से पांच हजार रुपए की आमदनी हुई। गांव के कुल 75 परिवारों में से अब तक इस व्यवसाय से दस परिवार जुड़ चुके हैं। गांव के प्रदीप रावत, बलवीर रावत, शूरवीर रावत, वचन रावत, भरत रावत, विजेन्द्र रावत, राजमोहन रावत, रजन सिंह, बर्फिया लाल व गंगा सिंह इससे जुड़ चुके हैं। पहले पर्यटकों को सिर्फ होम स्टे व्यवस्था दी जाती थी, अब गांव में हर शाम सांस्कृतिक संध्या भी पर्यटकों के आने की खुशी में आयोजित की जाती है।

 हर रात यहां ढोल-बाजों व रणसिंगे की टंकार पर गांव की महिलाएं व पुरुष स्थानीय लोककला का प्रदर्शन करते हैं। गांव को कांग्रेस सरकार में पर्यटन गांव भी घोषित किया, घोषणा के बाद सरकार गांव को भूल गई। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी आरएस यादव का कहना है कि गांव को लेकर अब योजना तैयार की जा रही है। उन्होंने कहा कि अब तक विभागीय स्तर पर फिलहाल कोई कार्य नहीं हुआ है।







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राज्य के तकरीबन आधा दर्जन नए व पुराने पर्यटक स्थलों को खूबसूरत लुक दिया जाएगा। पीपीपी मोड में इस कार्य का जिम्मा देने से पहले सरकार अपने स्तर पर कार्ययोजना बनाने में जुटी है। राज्य में चार धाम पर्यटन के अलावा अन्य प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर इलाके नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर उभारे जाएंगे। इसके लिए खाका इस ढंग से तैयार किया जा रहा है कि पर्यटक एक बार इससे संबंधित साहित्य व लिखित सामग्री पर नजर डालते ही बेसाख्ता खिंचता चला आए।

ऐसे पर्यटक स्थलों के विशेष तौर पर छह सर्किट तैयार किए गए हैं। पर्यटन मंत्रालय की योजना उक्त स्थलों के लुक को और बेहतरीन बनाने की है। इनमें नैनीताल में लेक सर्किट, पिथौरागढ़ में गढ़ महेश्र्वर अड़कनी, केव सर्किट, पंच प्रयागों देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग व विष्णुप्रयाग, सांकरी-

केदारकांठा-हरकीदून और नई टिहरी लेक को शामिल किया गया है। इन स्थलों का विकास पीपीपी मोड में ही होगा। महकमा प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगा। तय गया किया है कि इन प्रस्तावों को अंतिम रूप देने से पहले तमाम खूबियों-खामियों पर चर्चा होगी। इसके लिए महकमे का दल बाकायदा साइट विजिट करेगा।

 चार धाम पर्यटन के साथ ही विभिन्न स्थलों को सर्किट के रूप में विकसित करने में मंत्रालय खासी रुचि ले रहा है। पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत ने इन प्रस्तावों को जल्द तैयार करने को कहा है। प्रस्तावित पर्यटक स्थलों के विकास पर करीब 25 करोड़ व्यय होंगे। यूआईपीसी की भी इस कार्य में मदद ली जाएगी।



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It was a beautiful morning. Kedarkantha peak was in sight. We had to climb around 2,500 ft to reach a height of 12500 ft (3815 mt) on a steep surface. We started climbing from the word GO.

In between, we had to cross small stretches of snow. After 3.5 hours with sufficient rest in between, we summited the Kedarkantha peak. From the top we could see a lot of snow peak mountains. It was a breath taking view.

 After spending half hour at the peak, we started our descent. Our next camp was at 'Lohasu Thatch' (Thatch means grass land) which was at a height of 9481 ft (2890 mt). There was a 100 mt stretch of snow which we went down sliding. After this point we were caught in hail storm again.

 The hails were hitting us like bullets as we marched towards our next camp. The route was slippery at places as the snow had melted in many places. Rains had stopped by the time we reached our camp. We were It was quite cold as we were closer to snow peaks. All our warm clothing came out.

Few people were wearing 6 layers of clothing. Sky cleared up and we had one of the most beautiful view of the mountains. We had a 180 deg view of a lot of peaks which included Kala nag, swarga rohini and Har ki dun. We could witness beautiful sunset.


http://mail2nagen.blogspot.com/2007/05/kedarkantha-trek.html


 

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