Author Topic: Khatling Glacier Tehri, Uttarakhand,खतलिंग ग्लेशियर टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड  (Read 15569 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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खतलिंग ग्लेशियर चीन की सीमा से सटा हुआ है। उत्तराखंड के गांधी कहलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता व राजनेता स्व. इन्द्रमणि बडोनी ने इस उपेक्षित किन्तु पर्यटन की दृष्टि से राष्ट्रीय महत्ता युक्त व राष्ट्र की संप्रभुता के लिए संवेदनशील इस क्षेत्र को पर्यटन की मुख्यधारा में लाने के लिए तत्कालीन आयुक्त श्री सुरेन्द्र सिंह पांगली के साथ मिलकर ऐतिहासिक खतलिंग महायात्रा का श्रीगणेश किया था।

बड़ोनी जी के जीते जी देश भर के पर्यावरणविद्, संस्कृतिकर्मियों व सेनानी खतलिंग की यात्रा करते थे और खतलिंग को महादेव के पांचवे धाम के रूप में विकसित करने का स्वप्न देखते थे, किन्तु स्व. बडोनी की मृत्यु और पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद खतलिंग महायात्रा, खतलिंग मेले में बदल गई और विगत 8-10 वर्षों से यहां लोगों का आवागमन एकदम बंद होने से इस क्षेत्र पर चीन के कब्जा कर लेने के समाचार मीडिया में आने लगे।


स्थानीय जनता में राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित इन आधा दर्जन बांधों के प्रति आक्रोश इसी कारण से है कि, राज्य के शासन में संलग्न सभी सरकारों के मंत्री श्रीमती इंदिरा हृदयेश, हीरा सिंह बिष्ट, जनरल टी.पी. एस.रावत, मातवर सिंह कंडारी अथवा राज्य योजना आयोग में उपाध्यक्ष रहे वर्तमान सांसद विजय बहुगुणा हों अथवा वर्तमान केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री श्री हरीश रावत सभी ने यहां आकर खतलिंग सहस्त्रताल क्षेत्र को पांचवां क्षेत्र घोषित किया किन्तु यह क्षेत्र फिर भी प्रशासनिक दृष्टि से उपेक्षित रहा और अब निजी स्वार्थों के लिए जनप्रतिनिधि व राजनेता बांधों के विकास का पर्याय बता रहे हैं।
 
 खतलिंग ग्लेशियर के ठीक नीचे 11 मेगावाट की खरसोली विद्युत परियोजना, उसके थोड़ी दूर पर रुद्रादेवी, कल्याणी, कंजरी, विरोद  व रीड में भिलंगना नदी पर इन लघु बांधों का निर्माण प्रस्तावित है। दक्षिण भारत की कंपनी टंडा मुंडी सहित कई निजी बांध कंपनियों को निर्माण का ठेका दिया जा रहा है।
 

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ऋषिकेश से 75 कि.मी. दूर टिहरी पहुंचने के बाद 20 कि.मी. पर धुत्तू नामक गांव है। यहां से भील सरोवर के लिए पैदल यात्रा प्रारम्भ होती है। 10-10 कि.मी. की दूरी पर रीह व गंगी नामक दो स्थान हैं। गंगी से आगे भीलगंगा नदी के किनारे-किनारे चलते हुए खतलिंग ग्लेशियर तक पहुंच जाते हैं। पास ही में भील सरोवर नामक विशाल झील है। यह झील भीलांगना नदी का उद्गम स्रोत है।

कल्याणी से एक मार्ग खतलिंग ग्लेशियर की ओर जाता है जो लटकते हिमनद के लिए प्रसिद्ध है। यह ग्लेशियर जोगिन, कीर्तिस्तम्भ, बर्तेकांता व स्फटिक नामक हिम-शिखरों के बीच ऊंची चोटी पर लटकता सा घाटी में फैला है।

 यहां निकट ही दो-तीन हिमानी झीलें हैं, एक द्रौपदी ताल जिसके आस-पास घास के बगीचे हैं।
उत्तराखण्ड में अनेक प्रमुख पर्यटक तथा ऐतिहासिक स्थल है, इसमें नैनीताल, मसूरी, पौडी, अल्मोडा, चम्पावत, रानीखेत, खिर्सू, दयारा बुग्याल, औली, खतलिंग, वेदिनी, बुग्याल, फूलों की घाटी, लैंसडाउन, लाखामण्डल, चकराता, पाताल भुवनेश्वर, गंगोलीहाट, जौलजीवी, पूर्णागिरी, चितई, कटारमल, कौसानी, जागेश्वर, द्वाराहाट, सोमेश्वर, पिण्डारी ग्लेशियर आदि प्रसिद्ध स्थल हैं।

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ये घुत्तु गाँव जो की भिलंगना नदी के किनारे पर बसा हुवा है और यहीं से शुरू होता खतलिंग ग्लेसिर की शुरुआत


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जनपद टिहरी के विकासखण्ड भिलंगना का अखोड़ी सबसे बड़ा गांव है। यह गांव हिन्दाव पट्टी के उन ग्यारह गांवों में से एक है जो नगदी फसलों की पैदावार के लिये जाना जाता है। इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनायें मौजूद हैं। स्व बडोनी के व्यक्तिगत प्रयासों से खतलिंग ग्लेशियर की खोज की गयी थी। इस क्षेत्र को पर्यटन के नक्शों पर लाने के लिये पैदल और सुगम रास्ता बनाने का मार्ग को भी प्रशस्त किया गया। इस प्रयास से खतलिंग ग्लेशियर की धार्मिक यात्रा शुरू हो पायी थी।

जो यहां के स्थानीय निवासियों के लिये नई आशाये जगाने और छोटे-मोटे रोजगार के लिये महत्वपूर्ण साबित हुआ। स्थानीय लोगों के द्वारा देखा गया सपना साकार होने लगा लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और इसकी व्यवस्था जैसे तैसे स्थानीय स्तर पर की गयी। पर्यटन के नक्शों पर इस गांव को लाने के लिये बडोनी जी के प्रयास जारी रहे। उन्होंने अनेकों ऐसे कारनामें कर दिखाये जो सरकार भी न कर सकी। उन्होंने घुत्तू से केदारनाथ जाने वाले अति प्राचीन पैदल मार्ग की खोज की।

 जिसके चलते केदारनाथ की दूरी सिमट कर यहां से केवल 22 किलोमीटर रह गयी। इन सब चीजों के पीछे वह चाहते थे कि ऐसा कुछ नये रहस्यों को उजागर करने से यहां के स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा और पलायन पर रोक लग सकेगी।





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उत्तराखंड में एक वक्त 7,941 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बर्फ से ढँका रहता था, जो यहाँ के भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 15 प्रतिशत क्षेत्र है। यमुना, गंगा और काली नदी समेत उनकी कई सहस्रधाराएँ इसी क्षेत्र में जन्म लेती हैं, लेकिन यह क्षेत्र लगातार सिमट रहा है। यहाँ के तमाम ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

चार धामों की यात्रा के अलावा साहसिक पर्यटन के प्रेमियों में खतलिंग ग्लेशियर के दर्शन को पाँचवाँ धाम दर्शन माना जाता है। यहीं से केदारनाथ तक पैदल यात्रा क्षेत्र भी है। पिछले हफ्ते इसी यात्रा मार्ग पर ट्रैकिंग के लिए कुछ पर्यटकों का दल भारी बर्फबारी में फँसने से राज्य में हड़कंप मच चुका है।

बमुश्किल इस यात्री दल के तीन पर्यटकों को हेलिकॉप्टरों से निकाला गया तो छः अन्य लोगों को दो दिन बाद त्रियुगी नारायण क्षेत्र में आईटीबीपी एवं पुलिस की गठित टीमों ने पैदल रास्ते से जाकर ढूँढ निकाला





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पाँचवें धाम खतलिंग को जाने वाले मार्ग पर फँसे इन पर्यटकों ने वन विभाग से यहाँ जाने की अनुमति नहीं ली थी। इस क्षेत्र में कस्तूरी मृग क्षेत्र होने से यहाँ जाने की पूर्वानुमति आवश्यक है। 3,700 मीटर की ऊँचाई पर खतलिंग ग्लेशियर पहुँचने के रास्ते में चौकी बुग्याल रुद्रागंगा, हिमानी गुफा, दुमलिया ताल भी दर्शनीय हैं। यहाँ से सात किलोमीटर की दूरी तय कर गंगोत्री पहुँचा जा सकता है। यहाँ से साढ़े छः हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित सतलिंग तेज चमकता है।


स्फटिक लिंग जो ग्रेनाइट धातु से बना है, पर बर्फ नहीं टिकती और भगवान शिव का आत्मलिंग का खिताब इसे प्राप्त है । 6,460 मीटर जोगिन चोटी, मयाली टॉप के रास्ते वासुकीताल होते हुए 14 किलोमीटर दूरी तय कर केदारनाथ धाम पहुँचना संभव है । मयाली टॉप की चोटी से तिब्बत का इलाका दिखाई देता है।


हिमालय में तैंतीस हजार वर्ग किलोमीटर में ग्लेशियर फैले हैं जो पूरे हिमालय क्षेत्र के 17 प्रतिशत रहे हैं। गोमुख, मिलम, पिंडारी, खतलिंग व नामिक जैसे उत्तराखंड के हजारों ग्लेशियर पानी की मीनारों का काम करते हैं। हजारों साल पहले गौमुख ग्लेशियर गंगोत्री से मिलता था, लेकिन आज गंगोत्री व गोमुख के बीच की दूरी 19 किलोमीटर है।


पिछले दो सौ वर्षों में गंगोत्री व गोमुख के बीच की दूरी ही नहीं बढ़ी। ग्लेशियर का स्नाउट भी खिसकता जा रहा है। मिलम ग्लेशियर 1828 में मिलम गाँव से दो किलोमीटर पर बताया गया जो अब छः किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर है। खतलिंग ग्लेशियर का मुख जो चौकी ताल पर था, अब सात किलोमीटर दूर है। पिंडारी ग्लेशियर भी काफी पीछे चला गया।


बढ़ते लोग, बढ़ता ताप : सन्‌ 1808 तक गंगोत्री क्षेत्र में गंगा की मूर्ति के पूजन की परंपरा थी, लेकिन यहाँ दस-पंद्रह लोग ही रहते थे। गंगा की मूर्ति के साथ ये लोग भी अपने गाँवों में वापस चले जाते थे।

 1981 की जनगणना में गंगोत्री की स्थाई आबादी लगभग 125 के आसपास थी जो आज हजारों तक पहुँच चुकी है। साधु-संन्यासी ही काफी पहले पहुँचे थे। चार धामों में से बद्रीनाथ में ही यह संख्या श्रद्धालुओं के हिसाब से लाख तक पहुँचती थी। अब यहाँ एक हफ्ते में लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं।

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