Author Topic: Lohaghat : Hill Station - लोहाघाट  (Read 83035 times)

हेम पन्त

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Re: Lohaghat : Hill Station - लोहाघाट
« Reply #120 on: February 10, 2012, 04:18:23 AM »

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: Lohaghat : Hill Station - लोहाघाट
« Reply #121 on: May 27, 2012, 07:01:19 AM »

Pawan Pathak

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Re: Lohaghat : Hill Station - लोहाघाट
« Reply #122 on: October 12, 2015, 05:27:07 PM »

114 वर्ष पूर्व पड़े थे स्वामी के कदम
विवेकानंद की प्रेरणा से ही स्थापित हुआ अद्वैत मायावती आश्रम

लोहाघाट। आज से ठीक 114 वर्ष पूर्व लोहाघाट से नौ किमी दूर सघन वनों के बीच स्थित मायावती स्थान में स्वामी विवेकानंद के चरण रज पड़ने से यहां की धरा धन्य हो गई थी। स्वामी की कल्पना थी कि हिमालय क्षेत्र में एक ऐसे स्थान में मठ स्थापित किया जाए जहां से दुनिया के लिए अद्वैत एवं वेदांत की रसधारा प्रवाहित की जाए। स्वामी काठगोदाम से प्रतिकूल मौसम में पैदल यात्रा करते हुए 03 जनवरी 1901 को दोपहर में मायावती पहुंचे। यहां से कुदरत का नजारा देखकर वह अपनी थकान भूल गए।
स्वामी की प्रेरणा से स्थापित यह दिव्य स्थल आज दुनिया के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। स्वामी इच्छा थी कि वह जीवन के अंतिम दिनों में इसी स्थान में विश्राम कर अपने को ध्यान में लगाएं। यहां आने पर स्वामी ने भाव विभोर होकर कहा था कि ‘मुझे मेरी संकल्पना का स्थल मिल गया है’। स्वामी ने इस स्थान में एक पखवाड़े तक विश्राम कर प्रकृति से सीधा साक्षात्कार किया। श्रीराम कृष्ण मिशन की ओर से संचालित मठों में अद्वैत आश्रम मायावती एवं बेलूर मठ को समान दर्जा प्राप्त है। यहां किसी भी प्रकार की पूजा नहीं होती है।


Source-http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110104a_003115009&ileft=586&itop=754&zoomRatio=178&AN=20110104a_003115009

Pawan Pathak

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Re: Lohaghat : Hill Station - लोहाघाट
« Reply #123 on: October 12, 2015, 05:28:22 PM »
ओझल पड़ी हैं स्वामी विवेकानंद से जुड़ी यादें
चंपावत। चंपावत आज भले ही हाशिये पर हो लेकिन इसका अतीत काफी दमदार था। आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद समेत अनेकों महापुरुषों के चरणों से ये धरती धन्य हुई है, लेकिन इस क्षेत्र में महापुरुषों की धरोहरों को सहेजा नहीं गया है। चंपावत शहर से एक किमी. दूर बने स्मृति स्तंभ की दुर्दशा उनकी अनदेखी का गवाह बनी है।
सांस्कृतिक वैभव एवं आध्यात्मिक समृद्धता वाले चंपावत में वर्ष 1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में चमत्कारी व्याख्यान से हिंदू धर्म के गौरव से विश्व को रूबरू कराने वाले स्वामी विवेकानंद ने तीन साथियों के साथ चंपावत में रात्रि प्रवास किया था। युगनायक विवेकानंद पुस्तक में उनकी यात्रा का ब्यौरा दिया गया है।
स्वामी जी ने वर्ष 1901 में मायावती से चंपावत तक की दूरी डोली में बैठकर तय की थी। उन्हें मायावती से एक हथिया नौले वाले रास्ते से डोली में यहां लाया गया था। इस धर्म यात्रा में उनके साथ दो शिष्य स्वामी सदानंद एवं स्वामी विरजानंद के अलावा गुरु भाई एवं रामकृष्ण देव के दूसरे शिष्य स्वामी शिवानंद जी घोड़े पर सवार होकर यहां पहुंचे थे। चंपावत में 18 जनवरी 1901 की रात को उन्होंने जिला पंचायत के डाकबंग्ले (वर्तमान में टीवी रिले केंद्र) में प्रवास किया था। यहां स्वामी जी को अलौकिक अनुभव हासिल हुए थे। यहां से दियूरी होते हुए टनकपुर गए थे, लेकिन ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक धरोहर वाले इन स्थलों को सहेजने के लिए कुछ भी नहीं किया गया।
हाल इस कदर खराब है कि एक दशक पूर्व स्थापित स्मृति पटल में लिखे वाक्य मिट चुके हैं। पूरे परिसर में एक भी प्रतिमा नहीं है, जिस कमरे में स्वामी जी ने रात्रि प्रवास किया वह कक्ष अब दूरदर्शन विभाग के पास है और इसमें उनका कार्यालय है। स्वामी जी की स्मृति से जुड़े अन्य स्थलों की स्थिति भी बदहाल है।
पर्यटन विभाग भी मानता है कि ऐसे स्थलों को सहेजने से जिले के पर्यटन मानचित्र पर प्रभाव पड़ेगा। जिला पर्यटन अधिकारी जीडी उपाध्याय का कहना है कि बंगाल ही नहीं पूरे देश से बड़ी संख्या में सैलानी स्वामी विवेकानंद से जुड़े स्थलों को देखने के लिए उमड़ते हैं।
चंपावत का डाक बंग्ला जिसमें स्वामी विवेकानंद ने रात्रि विश्राम किया था।

स्मृति पटल बना ओझल पटल
चंपावत। स्वामी विवेकानंद जी के यहां के प्रवास की स्मृति को चिर अक्षुण्ण रखने के लिए उनके विश्राम स्थल में स्मृति स्तंभ बनाया गया। प्रवास की एक शताब्दी पूरी होने पर वर्ष 2001 में इस स्तंभ को तत्कालीन जिला पंचायत अध्यक्ष स्वर्गीय मदन सिंह महराना ने स्थापित किया था। उस वक्त स्वामी जी के कलकत्ता से आए शिष्य रामकृष्ण मिशन पालीटेक्निक के सचिव स्वामी सत्यबोधानंद जी ने भी उन स्थलों का दौरा किया था, लेकिन एक दशक में स्मृति पटल में अंकित तमाम शब्द मिट चुके हैं। साथ ही इसे सहेजने के लिए पंचायत ने बीते पांच वर्ष में एक भी रुपया खर्च नहीं किया है। जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी राजेश कुमार का कहना है कि स्मृति पटल को सुरक्षित रखने के लिए निर्देश दिए गए हैं। साथ ही मिट गए वाक्यों को दुबारा लिखवाया जाएगा। वैसे बताते चलें कि सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक, गुरु गोरखानाथ, नामी शिकारी जिम कार्बेट जैसे अनेक प्रसिद्ध महापुरुष यहां आए।
Source-http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110112a_004115003&ileft=350&itop=1150&zoomRatio=130&AN=20110112a_004115003

 

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