जय माँ कलिंका ..गंगोलीहाट पिथोरागढ़ उत्तराखंड
स्वंय श्री शंकराचार्य जी ने इस स्थान पर शक्तिपीठ की स्थापना की थी
हाट कालिका
जब मां महाकाली राक्षसों का नाश करते करते उग्र हो गईं तो महादेव शिव जी उनके रास्ते में लेट गये जिन पर पांव पढ़ते ही मां शांत हुई थी उससे बाद मां महाकाली गंगोलीहाट के जंगल में (वर्तमान में जहां पर मंदिर है) निवास करने लगी जब शंकराचार्य जी यहां पहुंचे तो उन्होंने मां को एक पिण्डी रूप में यहां पर स्थापित कर दिया था जिसके ऊपर अब एक छत्र लगा हुआ है। इसी के ठीक पीछे एक बिस्तर भी हैं इस बिस्तर पर मां रात में आराम करती हैं रोज पुजारी बिस्तर लगाकर जाते हैं और मंदिर को बंद कर दिया जाता है सुबह उस बिस्तर पर ऎसे चिन्ह आज भी मिलते हैं कि रात में कोई वहां पर सोया हो।
जय मां कलिंका !