Author Topic: Nainital - नैनीताल  (Read 79157 times)

पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #70 on: March 20, 2008, 01:49:39 PM »
हिमांशु जी,
           उत्कृष्ट कार्य, .......और चित्र श्रृंखला अपेक्षित हैं।

हेम पन्त

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #71 on: March 20, 2008, 02:09:09 PM »
यह रोपवै से ली गयी फोटो है.ठीक इसी एंगल पर एक फोटो मैने भी ली है, अपने कैमरे से... झील में तैरती हुयी नाव चींटियों की तरह दिखती है...

Naini Jheel...




पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #72 on: March 24, 2008, 02:51:13 PM »
Nainital is connected to National Highway No. 87.  Regular roadways buses run from Delhi, Agra, Dehradun, Haridwar, Lucknow, Kanpur & Bareilly daily . Beside this luxury coaches are available from Delhi for this place .

Distances of some nearby cities from Nainital are as follows.

                    In K.M.s

Almora 64
Pithoragarh 186
Ranikhet 62
Champawat 160
Kausani 117
Kathgodam 34
Haldwani 40
Lalkua 60
Ramnagar 65
Bareilly 140
Lucknow 400
Agra 403
Delhi 310
Dehradun 300
Haridwar 245
Badrinath 334

 

पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #73 on: March 25, 2008, 10:35:31 AM »
नैनीताल जाण को बाट


पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #74 on: March 25, 2008, 10:55:27 AM »
nainital lake before 1880 ad


पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #75 on: March 25, 2008, 11:02:56 AM »
अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल का राजभवन

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #76 on: June 02, 2008, 01:15:16 PM »
a magical view of Naini Lake in dark:

राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #77 on: June 02, 2008, 02:00:55 PM »
IVRI, Mukteshwar Nainital

पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #78 on: August 18, 2008, 04:22:30 PM »
नैनीताल अंग्रेज़ी भारत के कुमायूं मण्डल का एक भाग था । मध्य काल में यहाँ पहले कत्यूरी और फिर चन्द्र राजाओं का शासन था । उस समय नैनीताल शहर तो नहीं था, पर काशीपुर (जो अब उधमसिहं नगर में है) एक विकसित शहर था और कुमायूं के राजाओं की शरद काल की राजधानी था ।

18 वी सदी के अंत में यहाँ गोरखों का साम्राज्य स्थापित हो गया था और उन्होंने सन् 1804 तक गढ़वाल को भी कब्जे में ले लिया था । गढ़वाल के राजा के अनुरोध पर ईस्ट इंडिया कम्पनी ने हस्तक्षेप किया और 1914 में गोरखों को देहरादून में पराजित किया । उसके बाद अंग्रेज़ कुमायूं में घुस गए तथा सन् 1915 में गोरखा सेना को अल्मोड़ा के निकट पूरी तरह पराजित कर दिया । उन्होने गढ़वाल का काफी भाग और पूरा कुमायूं अपने अधिकार में ले लिया । यह पूरा क्षेत्र गढ़वाल, कूमायूं और तराई के जिलो में बाँट दिया गया । अंग्रेज़ो ने भीमताल के इलाके में 1930 के आसपास चाय के बगीचे लगाये ।

उस समय नैनीताल पूरा जंगल था और चरवाहे उसको चारागाह और विश्राम के लिए उपयोग में लाते थे । यह स्थान पुराणों में त्रि-ऋषि-सरोवर के नाम से जाना जाता था और इसको शक्ति पीठ में भी मान्यता मिली हुई थी । यहाँ नेनादेवी और पाषाण देवी के मंदिर भी स्थापित थे । 1939 ईसवी में एक अंग्रेज़ व्यापारी बैरन शिकार खेलते हुये यहां पहुँचे । वह यहां के सौन्दर्य से इतने प्रभावित हुये कि व्यापार को छोड़कर यहां एक शहर बसाने के प्रयास में लग गये । अल्मोड़ा के व्यापारियों को यहां मकान बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया । पहली बार 1941 में कलकता के "इंगलिश मैन" में अल्मोड़ा के पास एक सुन्दर ताल के पता लगने का समाचार छपा ।

उसके बाद विकास बहुत तेजी से हुआ । नैनीताल शीघ्र ही एक लोकप्रिय सैरगाह बन गया और 1950 में यहां नगरपरिषद भी स्थापित हो गई । कुमायूं और तराई के जिले अल्मोड़ा और नैनीताल जिलों में पुन: गठित कर दिये गये । नैनीताल जिला हाल ही में नैनीताल और उधमसिहं नगर में बाटँ दिया गया है ।

1962 में नैनीताल, संयुक्त प्रान्त की ग्रीष्म कालीन राजधानी बन गया । इसका विकास और तेजी से होने लगा । आज नैनीताल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र है । यहां कुमायूं विश्वविद्यालय का मुख्यालय और उत्तराखण्ड का उच्च न्यायालय भी स्थित है । यह पूरा क्षेत्र तालों तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए जग प्रसिद्ध है ।

पंकज सिंह महर

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Re: नैनीताल - QUEEN OF HILL STATION
« Reply #79 on: August 18, 2008, 04:26:27 PM »
प्रसिद्ध लेखक पण्डित बद्रीदत्त पाण्डे अपनी कुमाँऊ का इतिहास में लिखा है, कि नन्दा देवी (देवी) का मूल निवास स्थान नन्दगिरि की चोटी पर था। यह कहा जाता है कि चन्द वंश की प्रथम राजधानी चम्पावत में थी। 1563 में तत्कालीन राजा भीष्म चन्द ने राजधानी बदल कर अल्मोडा नगर में स्थानान्तरित पर दी। उनके वंशज राजा बाज बहादुर चन्द ने 1638 से 1678 तक राज्य किया तथा 1673 में गढवाल पर विजय प्राप्त की, ऐसा कहा जाता है कि जूनागढ किले पर अधिकार करने के उपरान्त नन्दादेवी की मूर्ति ले जाई गई। एक पौराणिक कथा के अनुसार विजयी सेना नन्दा की देवी (पालकी) सहित रात्रि के लिए सीमा पर स्थित कोट नामक स्थान पर रुके, दूसरे दिन सुबह जब देखा तो नन्दा की मूर्ति दो भागो में बँटी थी। सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये, काफी विचार विमर्श के पश्चात् यह निश्चय किया गया कि मूर्ति का आधा भाग कोट में स्थापित पर दिया जाय जबकि आधा भाग अल्मोडा ले जाया जाय। इस प्रकार से कोट बैजनाथ वब स्थान है जहाँ नन्दा देवी कोट की माई (कोट की माँ) कहलाती है।

नन्दादेवी महोत्सव सर्व प्रथम 1903 में लाला मोतीराम साह द्धारा प्रराम्भ कराया गया। इस समय तथा बाद कुछ वर्षो तक यह उत्सव छोटे पैमाने पर मनाया जाता रहा। 1926 के बाद यह मेला राम सेवक सभा द्धारा आयोजित किया जाता रहा है। अब इसका वृहद रुप देखने को मिलता है। 2007 में इस मेले के आयोजन के 104 वर्ष हो चुके है। यह नैनीताल में आयोजित किया जाने वाला एकंमात्र मेला है। यह अगस्त – सितम्बर में आयोजित किया जाता है।

ऐसा विश्वास किया जाता है कि नन्दादेवी अपने भक्तो को आर्शिवाद प्रदान करती है। विवादित महिलायें अपने पूरे परिधान व रुकावट के साथ देवी की पूजा करते है। मेले में कई प्रकार के नृत्य तथा सास्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है, जैसै:- झोडा, छपेली आदि। नैनीताल एक धर्म निरपेक्ष नगर है।यह सभी धर्मो एव विश्वासो के लोग साथ-साथ रहते है। नन्दादेवी महोत्सव सभी धर्मो के लोगो द्धारा मनाया जाता है।

 

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