Author Topic: National Park In Uttarakhand - उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध अभ्यारण्य  (Read 35286 times)

पंकज सिंह महर

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यदि आप इन पार्कों से संबंधित जानकारी चाहते हैं तो इन दूरभाष नम्बरों पर सम्पर्क कर सकते हैं।

१- नन्दादेवी बायोस्फियर रिजर्व, गोपेश्वर
श्री परमजीत सिंह, निदेशक फोन-01372-252497
                              आ०-01372-253430

२- राजाजी नेशनल पार्क, देहरादून
श्री जे०एस० पाण्डेय, निदेशक, फोन- 0135-2621669

३- पं० गोविन्द बल्लभ पंत, उच्चस्थलीय प्राणी उद्यान, नैनीताल,
श्री विवेक पाण्डॆय, निदेशक, फोन- 05942-237927

४- कार्बेट टाइगर रिजर्व, रामनगर
श्री राजीव भरतरी, निदेशक, फोन- 05947- 251376,
                                               253977
                                               

पंकज सिंह महर

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जिम कार्बेट पार्क, रामनगर।

यह गौरवशाली पशु विहार है। यह रामगंगा की पातलीदून घाटी में ५२५.८ वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ है।  कुमाऊँ के नैनीताल जनपद में यह पार्क विस्तार लिए हुए है। दिल्ली से मुरादाबाद - काशीपुर - रामनगर होते हुए कार्बेट नेशनल पार्क की दूरी २९० कि.मी. है।  कार्बेट नेशनल पार्क में पर्यटकों के भ्रमण का समय नवम्बर से मई तक होता है।  इस मौसम में की ट्रैवल एजेन्सियाँ कार्बेट नेशनल पार्क में सैलानियों को घुमाने का प्रबन्ध करती हैं।  कुमाऊँ विकास निगम भी प्रति शुक्रवार के दिल्ली से कार्बेट नेशनल पार्क तक पर्यटकों को ले जाने के लिए संचालित भ्रमणों (कंडक टेड टूर्स) का आयोजन करता है। कुमाऊँ विकास निगम की बसों में अनुभवी गाइड होते हैं जो पशुओं की जानकारी, उनकी आदतों को बताते हुए बातें करते रहते हैं।
       यहाँ पर शेर, हाथी, भालू, बाघ, सुअर, हिरन, चीतल, साँभर, पांडा, काकड़, नीलगाय, घुरल और चीता आदि 'वन्य प्राणी' अधिक संख्या में मिलते हैं।  इसी तरह इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं।  जहाँ इस वन्य पसु विहार में अनेक प्रकार के भयानक जन्तु पाये जाते हैं, वहाँ इस पार्क में ६०० से लगभग रंग - बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं।  यह देश एक ऐसा अभयारण है जिसमें वन्य जन्तुओं की अनेक जातियाँ - प्रजातियों के साथ पक्षियों का भी आधिक्य रहता है।  आज विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं है, जहाँ के पर्यटक इस पार्क को देखने नहीं आते हों।

पंकज सिंह महर

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जिम कार्बेट पार्क का इतिहास
« Reply #32 on: April 23, 2008, 04:30:41 PM »

अंग्रेज वन्य जन्तुओं की रक्षा करने के भी शौकीन थे।  सन् १९३५ में रामगंगा के इस अंचल को वन्य पशुओं के रक्षार्थ सुरक्षित किया गया।  उस समय के गवर्नर मालकम हेली के नाम पर इस पार्क का नाम 'हेली नेशनल पार्क' रखा गया।  स्वतंत्रता मिलने के बाद इस पार्क का नाम 'रामगंगा नेशनल पार्क' रख दिया गया।  स्वतंत्रता के बाद विश्व में जिम कार्बेट नाम एक प्रसिद्ध शिकारी के रुप में फैल गया था।  जिम कार्बेट जहाँ अचूक निशानेबाज थे वहाँ वन्य पशुओं के प्रिय साथी भी थे।  कुमाऊँ के कई आदमखोर शेरों को उन्होंने मारकर सैकड़ों लोगों की जानें बचायी थी।  हजारों को भय से मुक्त करवाया था।  गढ़वाल में भी एक आदमखोर शेर ने कई लोगों की जानें ले ली थी।  उस आदमखोर को भी जिम कार्बेट ने ही मारा था।  वह आदमखोर गढ़वाल के रुद्र प्रयाग के आस-पास कई लोगों को मार चुका था।  जिम कार्बेट ने 'द मैन ईटर आफ रुद्र प्रयाग' नाम की पुस्तकें लिखीं।
       भारत सरकार ने जब जिम कार्बेट की लोकप्रियता को समझा और यह अनुभव किया कि उनका कार्यक्षेत्र बी यही अंचल था तो सन् १९५७ में इस पार्क का नाम 'जिम कार्बेट नेशनल पार्क' रख दिया गया और जिम कार्बेट नेशनल पार्क जाने वाले पर्यटक इसी मार्ग से जाते हैं।  नैनीताल से आनेवाले पर्यटक इस संग्रहालय को देखकर ही आगे बढ़ते हैं।

पंकज सिंह महर

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जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था।  इनका जन्म २५ जुलाई १८७५ ई. में हुआ था।  जिम कार्बेट बचपन से ही बहुत मेहनती और नीडर व्यक्ति थे।  उन्होंने कई काम किये।  इन्होंने ड्राइवरी, स्टेशन मास्टरी तथा सेना में भी काम किया और अनेत में ट्रान्सपोर्ट अधिकारी तक बने परन्तु उन्हें वन्य पशुओं का प्रेम अपनी ओर आकर्षित करता रहा।  जब भी उन्हें समय मिलता, वे कुमाऊँ के वनों में घूमने निकल जाते थे।  वन्य पशुओं को बहुत प्यार करते।  जो वन्य जन्तु मनुष्य का दुश्मन हो जाता - उसे वे मार देते थे।
       जिम कार्बेट के पिता 'मैथ्यू एण्ड सन्स' नामक भवन बनाने वाली कम्पनी में हिस्सेदारा थे।  गर्मियों में जिम कार्बेट का परिवार अयायरपाटा स्थित 'गुर्नी हाऊस' में रहता था।  वे उस मकान में १९४५ तक रहे।  ठंडियों में कार्बेट परिवार कालढूँगी वाले अपने मकान में आ जाते थे।  १९४७ में जिम कार्बेट अपनी बहन के साथ केनिया चले गये थे।  वे वहीं बस गये थे।  केनिया में ही अस्सी वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हो गया। जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे।  उन्हीं की तरह उनकी बहन ने भी विवाह नहीं किया।  दोनों भाई-बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का दु:ख बाँटते रहे। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे।
      जिम कार्बेट एक कुशल शिकारी थे।  वे शिकार करनें में यहाँ दक्ष थे, वहीं एक अत्यन्त प्रभावशील लेखक भी थे।  शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है।  उनकी 'भाई इंडिया' पुस्तक बहुत चर्चित है।  भारत-प्रेम उनका इतना अधिक था कि वे उसके यशगान में लग रहते थे।  कुमाऊँ और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था।  ऐसे कुमाऊँ - गढ़वाल के हमदर्द व्यक्ति के नाम पर गढ़वाल-कुमाऊँ की धरती पर स्थापित पार्क का होना उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाने के ही बराबर है।  अत: जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र भी गौरवान्वित हुआ है, जिम कार्बेट के प्रति यह कुमाऊँ-गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है।  इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है।  आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रुप में आदर से लिया जाता है।

पंकज सिंह महर

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जिम कार्बेट पार्क:

आज यह पार्क इतना समृद्ध है कि इसके अतिथि-गृह में २०० अतिथियों को एक साथ ठहराने की व्यवस्था है।  यहाँ आज सुन्दर अतिथि गृह, केबिन और टेन्ट उपलब्ध है।  खाने का उत्तम प्रबन्ध भी है।  ढिकाल में हर प्रकार की सुविधा है तो मुख्य गेट के अतिथि-गृह में भी पर्याप्त व्यवस्था है।
      रामनगर के रेलवे स्टेशन से १२ कि.मी. की दूरी पर 'कार्बेट नेशनल पार्क' का गेट है।  रामनगर रेलवे स्टेशन से छोटी गाड़ियों, टैक्सियों और बसों से पार्क तक पहुँचा जा सकता है।
       बस सेवाएँ भी उपलब्ध हैं।  दिल्ली से ढिकाला तक बस आ-जा सकती है।  यहाँ पहुँचने के लिए रामनगर कालागढ़ मार्गों का भी प्रयोग किया जा सकता है।  दिल्ली से ढिकाला २९७ कि.मी. है।  दिल्ली से गाजियाबाद-हापुड़-मुरदाबाद-काशीपुर-रामनगर होते हुए ढिकाला तक का मार्ग है।  मोटर की सड़क अत्यन्त सुन्दर है।

हेम पन्त

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Pankaj Da...Thanks for the detailed information about Jim Corbette...
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जिम कार्बेट का पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कार्बेट था।  इनका जन्म २५ जुलाई १८७५ ई. में हुआ था।  जिम कार्बेट बचपन से ही बहुत मेहनती और नीडर व्यक्ति थे।  उन्होंने कई काम किये।  इन्होंने ड्राइवरी, स्टेशन मास्टरी तथा सेना में भी काम किया और अनेत में ट्रान्सपोर्ट अधिकारी तक बने परन्तु उन्हें वन्य पशुओं का प्रेम अपनी ओर आकर्षित करता रहा।  जब भी उन्हें समय मिलता, वे कुमाऊँ के वनों में घूमने निकल जाते थे।  वन्य पशुओं को बहुत प्यार करते।  जो वन्य जन्तु मनुष्य का दुश्मन हो जाता - उसे वे मार देते थे।
       जिम कार्बेट के पिता 'मैथ्यू एण्ड सन्स' नामक भवन बनाने वाली कम्पनी में हिस्सेदारा थे।  गर्मियों में जिम कार्बेट का परिवार अयायरपाटा स्थित 'गुर्नी हाऊस' में रहता था।  वे उस मकान में १९४५ तक रहे।  ठंडियों में कार्बेट परिवार कालढूँगी वाले अपने मकान में आ जाते थे।  १९४७ में जिम कार्बेट अपनी बहन के साथ केनिया चले गये थे।  वे वहीं बस गये थे।  केनिया में ही अस्सी वर्ष की अवस्था में उनका देहान्त हो गया। जिम कार्बेट आजीवन अविवाहित रहे।  उन्हीं की तरह उनकी बहन ने भी विवाह नहीं किया।  दोनों भाई-बहन सदैव साथ-साथ रहे और एक दूसरे का दु:ख बाँटते रहे। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में जब कोई आदमखोर शेर आ जाता था तो जिम कार्बेट को बुलाया जाता था। जिम कार्बेट वहाँ जाकर सबकी रक्षा कर और आदमखोर शेर को मारकर ही लौटते थे।
      जिम कार्बेट एक कुशल शिकारी थे।  वे शिकार करनें में यहाँ दक्ष थे, वहीं एक अत्यन्त प्रभावशील लेखक भी थे।  शिकार-कथाओं के कुशल लेखकों में जिम कार्बेट का नाम विश्व में अग्रणीय है।  उनकी 'भाई इंडिया' पुस्तक बहुत चर्चित है।  भारत-प्रेम उनका इतना अधिक था कि वे उसके यशगान में लग रहते थे।  कुमाऊँ और गढ़वाल उन्हें बहुत प्रिय था।  ऐसे कुमाऊँ - गढ़वाल के हमदर्द व्यक्ति के नाम पर गढ़वाल-कुमाऊँ की धरती पर स्थापित पार्क का होना उन्हें श्रद्धा के फूल चढ़ाने के ही बराबर है।  अत: जिम कार्बेट के नाम पर यह जो पार्क बना है, उससे हमारा राष्ट्र भी गौरवान्वित हुआ है, जिम कार्बेट के प्रति यह कुमाऊँ-गढ़वाल और भारत की सच्ची श्रद्धांजलि है।  इस लेखक ने भारत का नाम बढ़ाया है।  आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी के रुप में आदर से लिया जाता है।


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गोविंद  राष्ट्रीय  उद्यान

 वर्ष  1965 में पंडित  गोविंद  बल्लभ  पन्त के  नाम पर  गोविंद  पशुविहार   (शरण-स्थली) के तौर  पर घोषित  किया गया  था। वर्ष  1990 में इसे  राष्ट्रीय  उद्यान  के रूप  में अधिसूचित  किया गया  जिसमें  टोन्स  वन डिविजन  के सम्पूर्ण  सुपिन  रेंज को  समाहित  किया गया।
 953 वर्ग  किमी के  भू-भाग  में चीड़, नीले चीड़, बांज, रोडोडेन्ड्रोन, देवदार, देवदारू, स्प्रूस, सरू, भूज  एवं अल्पाइन  जड़ी-बूटियों  एवं झाड़ियों  के घने  जंगल हैं।  इस क्षेत्र  के प्राणियों  में सामान्य  लोमड़ी, लंगूर, जंगली  बिल्ली, लाल बंदर, हिमालयीन  काले भालू, भूरे भालू, बार्किंग  डीयर, साम्भर, कस्तूरी  मृग, भारतीय  चितराला, तेंदुआ, सेराव, टहर, मरमट  और हिम  तेंदुआ  शामिल  हैं।

फेजेन्ट जैसे मोनल, वेस्टर्न होर्न्ड चीमर खलीजपेऊरा पाट्रिज, खलीज के साथ-साथ चुकोर और ब्लैक पाट्रिज निचली ऊंचाईयों के पक्षी-प्रजातियों में शामिल हैं।
चो, हिम कबूतर, हिमालयीन नट क्रैकर अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र में पाए जाते हैं जबकि मध्यवर्ती ऊंचाई वाले क्षेत्र में लाल चोंच वाले बैब्लर, नीले मटरी चिलबिल, लाल चोंच वाले स्कारलेट, मिनीवेट, वर्डिडर, फ्लाइकैचर और भूरे पंखों वाले ब्लैक वर्ड पाए जाते हैं।

मनोरम हर की दुन घाटी भी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर स्थित है।

घूमने का सबसे अच्छा समय जून से सितंबर तक का होता है। इस इलाके की ऊंचाई समुद्र स्तर से 1400 से 6100 मीटरों तक है।

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केदारनाथ  कस्तूरी  मृग पार्क

उत्तराखण्ड  के चमोली  जिले में  अवस्थित  इस घाटी  को 1972 में  कस्तूरी  मृग शरण-स्थली  घोषित  किया गया  जिससे  कि कस्तूरी  मृग के  इसके कस्तूरी  के लिए  हो रहे  अंधाधुंध  शिकार  को रोका  जा सके।  यह शरणास्थली  केदारनाथ  फारेस्ट  डिवीजन  के 967.2 वर्ग  किमी में  फैली हुई  है।


इस एरिया में बांज, देवदार, चीड, देवदारू, स्प्रूस, सरू, नीले चीड़ तथा रोडोडेन्ड्रोन, अखरोट एवं बनखोर के पेड़ पाए जाते हैं। इस क्षेत्र के वन्य प्राणियों में बार्किंग डीयर, साम्भर, जंगली बिल्ली, पेंथर ब्लैक बीयर, घोरल और जंगली सूअर शामिल है। इनके अलावा भारल, टहर, हिम तेंदुआ, कस्तूरी मृग, सेराव एवं हिमालयनी भूरा भालू भी यहां मिलते हैं। पक्षियों में खलीज, को क्लास एवं मोनल फेजेन्ट तथा स्नो पाट्रिज शामिल हैं।

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Kedarnath Anctuary :

 Stretched about 967 Sq.Kms. the Kesarnath Sanctuary was established in the year 1972 in the one of the most pious region of Garhwal.Surrounded by the breathtakingly spectacular view of snow covered peaks of the great Himalayan mountain range ,

 rivers , glaciers , valleys and forests it is one of the most site seeing scentuary in this region. It is located in the Kedarnath region thats why it is so famous and most visited natural place by the tourist of different countries for various reason.

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Askot Sanctuary:

Askot sanctuary is situated in Pithoragrah district of state WildlifeUtaranchal.Surrounded by the mountain and forest this picturesque greens Askot Sanctuary is a best dwelling place for wild animals. Its Lying in the lap of Kumaon Himalayas at a height of 5412 ft.,

the sanctuary is visited by many Indian and foreign scientists for the research projects. The sanctuary is a house of many wild animals such leopard,deer,beers,kakars and a great variety of birds .

 

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