घड़ियाली का संबंध स्थानीय देवी-देवताओं से है जैसे कि नागारिया नरसिंह, गोरिल या निरंकार। देवी और पांडव वर्त ढोल और दमाऊं की धुन पर गाये जाते हैं। बजाने वालों को दास या औजी कहा जाता है जो कि पारंपरिक तौर पर दर्जी होते हैं। मंडान रचाना अब पौड़ी में कम हो गया है। परंतु लोग उन दिनों को याद करते है जब सम्पूर्ण समुदाय रात-भर रूक कर इसे देखता, जब स्थानीय देवी-देवता नर्तकों को वशीभूत कर लेते और वे नर्तक अचेत होकर केवल नाचते ही नहीं वरन्, वैसे कारनामे कर डालते जो किसी साधारण सजीव व्यक्ति के बस का नहीं होता था।
लोकगीत के विषय साधारणत: लोगों की वीरता का बखान होता, जैसे कि एक छोटी लड़की के बारे में बूमकाल कलिंका गीत, जिसमें उस लड़की ने गोरखों के आक्रमण पर उन्हें चेतावनी दी थी या तीलू रतेली के बारे में जिसे कत्यूरी वंश से यातना मिली थी।