Author Topic: Pauri: A Cultural City Of Uttarakhand - पौड़ी: एक सांस्कृतिक शहर  (Read 24988 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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तो फलस्वाड़ी की भूमि में समाई थी माता सीता

पौड़ी गढ़वाल। यूं तो देवभूमि उत्तराखंड में कई धार्मिक मेले आयोजित होते हैं, लेकिन पौड़ी जनपद के कोट ब्लाक का मंस्यार मेला मां सीता के धरती में समाने की मान्यता पर आयोजित होता है। मेले की विशेषता यह है कि मेले के आयोजन में फलस्वाड़ी में प्रतीक के रूप में धरती से सीता माता का दुर्लभ सफेद पत्थर निकलता है। इसकी वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना की जाती है।

मंडल मुख्यालय से सटा कोट ब्लाक धार्मिक उत्सव के लिए ही जाना जाता है। इन्हीं उत्सवों में से एक मंस्यार मेला इस क्षेत्र को धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष पहचान दिलाता है। कोट ब्लाक की सितनस्यूं पट्टी के कोटसाड़ा गांव में हर साल दीपावली के ठीक ग्यारह दिन बाद एकादश के अवसर पर मंस्यार मेला आयोजित होता है। इस मेले को लेकर धार्मिक मान्यता है कि इसी कोटसाडा गांव के निकट फलस्वाड़ी गांव के खेतों में सीता माता धरती में समाई थीं।

मान्यता है कि कोटसाडा में रामायण के लेखक बाल्मीकि का आश्रम था और पूर्व मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र भगवान ने सीता माता को त्याग दिया गया था। सीता इसी कोटसाड़ा स्थित बाल्मीकि के आश्रम पहुंचीं। इसी आश्रम में उन्होंने लव व कुश का पालन पोषण किया। बताते हैं कि राम चंद्र जी द्वारा अश्व मेघ के घोडे़ को लव और कुश ने देवल नामक क्षेत्र में अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद इसी स्थान पर अयोध्या की सेना को लव और कुश ने पराजित किया था।

इसके बाद भगवान राम सीता माता को लेने पहुंचे तो वह कोटसाड़ा के निकट फलस्वाड़ी के खेतों में धरती में समा गई। इसी मान्यता को लेकर इस क्षेत्र में वर्षाें से मंस्यार का मेला आयोजित होता आ रहा है। इस मेले से ठीक एक दिन पहले क्षेत्र के देवल गांव में अनाज की दूंण-कंडी (उपहार की टोकरी) एवं निशांण (देवी-देवताओं के विशेष झंडे) बनाए जाते है, जबकि अगले दिन विधिवत पूजा-अर्चना के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु कोटसाड़ा पहुंचते है। इसके बाद यहीं से कुछ ही दूरी पर स्थित फलस्वाड़ी नामक जगह के खेतों में माता सीता का आह्वान किया जाता है।
मान्यता है कि ठीक उसी रात कोटसाड़ा के किसी एक पंडित के स्वप्न में आकर सीता माता नियत जगह बताती हैं। फिर बताए गए स्थान पर चारों ओर पांच निशांण(देवी-देवताओं के झंडे ) को लेकर श्रद्धालु खडे़ रहते है। इसके बाद इस स्थान पर खुदाई की जाती है। मान्यता है कि खुदाई के दौरान धरती से प्रतीकात्मक रूप में सीता माता दुर्लभ किस्म का सफेद पत्थर निकलता है।

 इसकी विधिवत पूजा की जाती है। कोटसाड़ा गांव में आज भी सीता माता मंदिर मौजूद है। इसके अलावा एक अन्य मान्यता यह भी है कि पहले इसी फलस्वाड़ी के खेतों में सीता माता के बालों के प्रतीकात्मक रूप में विशेष प्रकार की घास भी निकलती थी। प्रसिद्ध चित्रकार बी. मोहन नेगी बताते है कि यह मेला क्षेत्र को विशेष पहचान तो दिलाता ही है, साथ ही यहां के लोग भी इस पौराणिक महत्व की धरोहर को जीवित रखे हुए है।

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पौड़ी जिले का लैंसडाउन शहर दिल्ली से 8 घंटे की दूरी पर सड़क मार्ग पर स्थित है। यहाँ गढ़वाल राइफल का रेजीमेंटल सेंटर है तथा साल में 4-5 बार बर्फ पड़ती है।

कम मानवीय हस्तक्षेप के कारण लैंसडाउन शहर में सड़कों तथा मकानों के पास बांज (ओक), बुरांस आदि प्रजातियों के पुराने पेड़ों के झुरमुट मिलते हैं जिनके बीच से बर्फबारी में गुजरने पर मजा कई गुना बढ़ जाता है।

लैंसडाउन के आगे गढ़वाल का कमिश्नरी मुख्यालय पौड़ी तथा उससे आगे खिर्सू भी साल में दो-तीन बार तो बर्फ से नहा ही जाता है।
 रुद्रप्रयाग जिले का चोफता (10 हजार फुट) तथा देवरिया ताल और गुप्तकाशी के पास जाखधार से लेकर त्रिजुगी नारायण तक जाड़ों में खूब बर्फबारी होती है।


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                    भैरवनाथ और मैठाणा देवी डोली की शोभायात्रा निकली
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श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल)। कुंभ स्नान के बाद प्राचीन भैरवनाथ मंदिर और मैठाणा देवी की डोली शोभायात्रा शुक्रवार देर सांय श्रीकोट गंगानाली पहुंची।

डोलियों को एक भव्य शोभायात्रा के साथ शिव मंदिर से प्राचीन भैरवनाथ बुट भैरव मंदिर तक ले जाया गया। ओंकारानंद स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ यह शोभायात्रा नागराजा मंदिर होते हुए श्रीकोट गंगानाली के सभी क्षेत्रों से होते हुए गयी।

भैरवनाथ मंदिर पहुंचने पर पंडित मधुसूदन घिल्डियाल ने विशेष पूजा अर्चना के साथ ही हवन भी कराया।इस अवसर पर भैरवनाथ मंदिर परिसर में एक विशाल भंडारे का भी आयोजन किया गया।

नारायणबगड़। असेड़ गांव में आयोजित मेले के समापन पर सैकड़ों श्रद्धालुओं ने देवी-देवताओं को भेंट अर्पण कर क्षेत्र की सुख समृद्धि की कामना की। असेड़ महादेव के पुजारी बलवंत सिंह व दुर्लभ सिंह ने बताया बैशाखी पर्व पर लगने वाले इस पौराणिक मेले का आयोजन सदियों से होता रहा है

 और मेले में मृत्युंजय महादेव, भूमियाल देवता व मां जगदंबा की मूर्तियों की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है। मंदिर प्रांगण में मृत्युंज्जय महादेव की डोली के साथ नृत्य गान व प्रसाद ग्रहण के साथ मेला संपन्न होता है।


SOURCE DAINIK JAGRAN

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पौडी गढ़वाल उत्तराखंड का एक जिल्ला, जिसका मुख्यालय, पौडी मे है। अल्मोड़ा, हरिद्वार, टेहरी, नैनी तल, चमोली, रुद्र पर्याग, हरिद्वार, देहरादून जिल्लों से घिरा यह जिला  उत्तर प्रदेश  के बिज्नोर से भी इस जिल्ले की सीमायें जुड़ी हुई हैं।
पौडी गढ़वाल, गढ़वाल राज्य का एक अंश था जब श्रीनगर राज्य की राजधानी थी, परन्तु बाद मे पुरा गढ़वाल ब्रिटिश गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा। देश के स्वतंत्र होने के बाद पौडी गढ़वाल के दो भाग किए गए एक हिस्सा चमोली गढ़वाल बना, और उत्तराखंड बन ने के बाद रुद्र पर्याग भी एक और भाग अलग जिल्ला बनाया गया।

प्रकृति की सुरम्य गोद मे बसा यह जिल्ला पर्यटन स्थलों से भरपूर है, पौडी जिल्ले के रोम-रोम मे बसी है प्रकृति की सुन्दरता, पौडी नगर से भी हिमालय का नज़ारा देखा जा सकता है, यहाँ से हिमालय की “चौखम्बा” पर्वत श्रेदियाँ देखि जा सकती हैं, समुद्र तट से १८१४ मीटर की ऊंचाई पर स्थित पौडी शहर
मनमोहक शहर है, पौडी से एक मनमोहक दृश्य इस चित्र मे दिख रहा है जिसमे हिमालय की श्रेणियों के दृश्य हैं और चौखम्बा पर्वत का दृश्य दिखाई दे रहा है।

पौडी मे अन्य मन्दिर इस पारकर से हैं-
देवी मंदिर — देवल गढ़
ज्वाल्पा देवी मंदिर - पौडी ( पाती सेन के नज्दीग)
दुर्गा देवी मंदिर– कोटद्वार से १३ कम। दूरी पर पूरी कोटद्वार मोटर मार्ग मे स्थित।
किशोरी मठ — १६८२ मे बना पौराणिक मंदिर
शंकर मठ — १७ वीं सदी का यह मंदिर आदि guru shankara charya ने बनाया है। यह श्रीनगर से ३ कम की दूरी पर है।

बिनसर महादेव — समुद्र तट से २४८० मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर थैली सेन से २२ किलो मीटर की दूरी पर है, यह पुरानी शिल्पकला का अद्बुद सजीव चित्रण है।

कांदा मंदिर — पौडी से ४४ किलोमीटर और देहाल्चौरी से १ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
देवेल — पौडी से १४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

लाल धांग –yah mandir kotdwar haridwar marg par sthit hai, kotdwar se 27 kilometer ki doorie par sthit hai
hariyali devi — yah mandir 1480 meter ki unchai par sthit hai, pokhri gaon ke paas se paidal rasta hai।

राजेश्वरी देवी मंदिर– पौडी कोटद्वार मार्ग पर स्थित, यह जो लगभग ७२ किलोमीटर कोटद्वार से और २७ किलोमीटर पूरी शहर से है, यहाँ का “गिंदी” मेला प्रसिद्ध है।

डंडा नागराज मंदिर — पौडी से लगभग ४२ किलोमीटर दूरी पर स्थित है, अप्रिल मे प्रसिद्ध कौथिग (मेला) होता है।

खैरालिंग महादेव — मुन्द्नेश्वर मे स्थित यह प्रसिद्ध मंदिर है।

संगुदा देवी मंदिर — यह मंदिर सत्पुली और बंघात के पास मे स्थित है।

गढ़वाल मंडल, उत्तराखंड के दो मंडलों मे से एक मंडल है, जो तिब्बत, हिमाचल परदेश , उत्तर परदेश से घिरा हिमालय के अंचल मे बसा हुआ है। ७ जिल्ले इसमे समाहित हैं जो इस परकार से हैं - पौडी गढ़वाल, टेहरी गढ़वाल, चमोली, रुद्र पर्याग, उत्तर काशी, देहरादून, हरिद्वार। गढ़वाल मंडल का पर्शाश निक कार्यालय पौडी गढ़वाल मे है। चूँकि यह पर्वतीय क्षेत्र है इसलिए यहाँ पर घाटियाँ और पर्वत श्रेणियां हैं, मुख्य पर्वत श्रेणियां ” नंदा देवी (२५६६१ फीट), कमेत (२५४१३ फीट) ,त्रिसुल (२३३८२ फीट), बद्रीनाथ (२३२१० फीट), दुन्गिरी (२३१८१g फीट), केदारनाथ(२२८५३ फीट)।

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Hindolakhal podi garhwal


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बडियार गॉंव जिल्ला पौड़ी गढ़वाल


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Satpuli podi garhwal


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