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Pindari Glacier Trip by Keshav Bhatt- चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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धाकुड़ी से सुबह निकलना बेहतर रहता है. वैसे अब ज्यादातर टै्कर लोहारखेत से धाकुड़ी होते हुए एक ही दिन में खाती गांव पहुंचने का लक्ष्य रखते हैं. पिंडारी या अन्य ग्लेशियर से वापसी में वो धाकुड़ी रूकना पसंद करते हैं, ताकि चिल्ठा टाॅप भी हो लें. आज आपको पिंड़ारी ग्लेशियर मार्ग में अगला पढ़ाव द्ववाली तक ले चलेंगे. कुल पैदल दूरी लगभग 19 किलोमीटर. यात्रा से पहले अपनी वॉटर बोटल में पानी भरना ना भूलें.
लगभग 1982 मीटर की उंचाई पर बसा खाती गांव यहां से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर है. धाकुड़ी से खर्किया तक तीनेक किलोमीटर का ढलान है. फरवरी से अप्रैल माह तक इस रास्ते के दोनों ओर बुरांश की लालीमा छिटकी मिलती है. करीब डेढ किलोमीटर के बाद रास्ते के किनारे वन विभाग द्वारा बनाया गया हर्बल गार्डन है. वन विभाग ने 2008 में इसे जड़ी-बूटी के साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनाया था. लेकिन इस हर्बल गार्डन के हालात देख ऐसा कुछ लगता नहीं है. गार्डन में थाम रिंगाल, तेज पत्ता, थुनेर-टेक्सास बकाटा, अतीस, जटामासी, कुटकी, सालम मिश्री की पौंध भी लगाई गई लेकिन वन विभाग का ये प्रयास रंग नहीं ला सका. कुछ कदमों के बाद जंगल खत्म होते ही बांई ओर दूर तक फैले पहाड़ों की गोद में बसे बधियाकोट से लेकर वाच्छम तक दर्जनों गांवों की झलक दिखती है.
थोड़ा आगे भगदाणुं नामक जगह है. भगदाणुं लगभग दस-पन्द्रह मवासों का रास्ते के दोनों ओर फैला हुआ छोटा सा गांव है। करीब किलोमीटर भर उतार के बाद मिलता है खर्किया. पहले के और आज के खर्किया में बहुत अंतर आ गया है. अब यहां पर टूरिस्टों के रूकने के लिए तीनेक साल पहले एक ‘प्रिन्स’ नामक रैस्ट हाउस भी बन गया है. यहां तक कर्मी होते हुए कच्ची सड़क भी पहुंच गई है. हांलाकि सड़क के हालात बहुत सही नहीं हैं लेकिन जीपों में सामानों के साथ सवारियां भी किसी तरह यहां तक पहुंच ही जाती हैं. खर्किया से एक रास्ता सीधी नीचे उतार में पिंडर नदी को पार कर उंचाई में बसे वाच्छम गांव को जाता है. दूसरा रास्ता दाहिने को हल्के उतार के बाद हल्की चढ़ाई लिए हुए उमुला, जैकुनी, दउ होते हुए खाती गांव को है. अब जैकुनी व दउ में भी टूरिस्टों के रहने के लिए स्थानीय लोगों ने अपने रैस्ट हाउस भी बना लिए हैं. रास्ते में घने पेड़-झाडि़यों के झुरमुटों के मध्य बने गधेरों से कल-कल बहता पानी हर किसी के मन को खींचता सा है.
खाती से आधा किलोमीटर पहले तारा सिंह का संगम लाॅज भी है. खाती गांव इस यात्रा मार्ग का अंतिम गांव है, जहां पर सुंदर व गहरी घाटी तथा पिंडर नदी का किनारा है. खाती गांव में पीडब्लूडी के साथ ही स्थानीय लोगों के करीब आधा दर्जन रैस्ट हाउस हैं. गांव से आधा किलोमीटर आगे निगम का रैस्ट हाउस भी है. इस गांव के ज्यादातर युवा पर्वतारोहण में माहिर हैं. गांव में काली मंदिर की भी काफी महत्ता है.
खाती में आप दिन का भोजन लेकर कुछ पल आराम कर आगे की यात्रा के लिए अपने को तैंयार कर लें. स्वादिष्ट भोजन यहां कुछ दुकानों में आपकी डिमांड पर आधे घंटे में तैंयार हो जाता है.
2013 की आपदा के बाद से अब यहां से आगे के रास्ते के हालात काफी बदल गए हैं. तब पिंडर व कफनी क्षेत्र में लगातार बारिश से पिंडर नदी में आई भयानक बाढ़ अपने साथ कर्णप्रयाग तक सभी पुलों को बहा ले गई. द्ववाली से मलियाधौड़ तक पिंडर नदी के किनारे बना आरामदायक पैदल रास्ता भी इस आपदा की भेंट चढ़ गया. हांलाकि अभी यहां रास्ता बन रहा है लेकिन ये रास्ता कब तक बन जाएगा कहा नहीं जा सकता.
2013 से पहले खाती से आगे टीआरसी होते हुए पिंडर नदी के किनारे मलियाधौड़ को जाना होता था. अब एक नया संकरा रास्ता गांव वालों ने गांव में काली मंदिर के बगल से पिंडर नदी के पास तक खुद ही ईजाद कर लिया है. इस रास्ते की जानकारी गांव में ही मिल जाएगी कि कौन सा रास्ता अभी ठीक है.
खाती से द्ववाली पहले दस किलोमीटर था लेकिन अब मलियाधौड़ से पिंडर नदी के साथ-साथ दांए-बांए होते हुए यह करीब एक किलोमीटर ज्यादा हो गया है. वैसे रास्ते में कई खूबसूरत झरने आपकी थकान मिटाने के लिए हैं. द्ववाली तीव्र पहाड़ी ढलानों के अत्यन्त संकुचित घाटी क्षेत्र में है. यहां पर पिंडर व कफनी नदियों का संगम होता है. पिंडर नदी आगे गढ़वाल की ओर बहकर कर्णप्रयाग में अलकनंदा से संगम बनाती है. द्ववाली में पीडब्लूडी के साथ ही निगम व स्थानीय दुकान वालों के वहां रहने की व्यवस्था है. यहां से पिंडारी तथा कफनी ग्लेशियर के लिए रास्ते बंट जाते हैं.....
अभी जारी है..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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सुंदरढूंगा ग्लेशियर... जैसा कि नाम से ही जाहिर है. सुनहरा या सुंदर पत्थर. इस बारे में किवदंतियां हैं कि ग्लेशियर के नजदीक एक बड़े पत्थर के पास से सोने के कण निकलते थे. इस बारे में कुछ कहानियां भी गढ़ी गई हैं. कहा जाता है कि एक अनवाल (भेड़-बकरियां चराने वाला चरवाहा) ने ग्लेशियर से निकलने वाली नदी के बगल में बड़े पत्थर के पास अपने कपड़े धोने के बाद जब पानी से बाहर निकाले तो उसके कपड़े में सोने की चमक लिए कुछ कण चिपके मिले. हांलाकि इस बारे में कई शोध भी हुए लेकिन ये सब मात्र पुराने जमाने के लोगों की अपनी कहावतें ही बन कर रह गई. बाद में कुछ शोधार्थियों ने ये निष्कर्ष निकाला कि सूर्य की किरणों की लालिमा में नदी में बहते रेत के कण सुनहरे दिखने की वजह से स्वर्ण का आभास सा कराती हैं.
बहरहाल! अब स्वर्ण को छोड़ दें तो ये घाटी भी अपने आप में बहुत सुंदर है. इस घाटी में जाना भी चुनौती से कम नहीं है. यहां जाने के लिए आपके पास टेंट, स्लीपिंग बैग, मेटरस, स्टोव समेत रोजमर्रा का राशन होना जरूरी है. इस क्षेत्र में जातोली गांव के बाद कठहलिया में बना रेस्ट हाउस अभी शुरू नहीं हुवा है. सुंदरढूंगा ग्लेशियर टै्क में जाने के लिए आपको ये सब व्यवस्था खाती या जातोली गांव से करनी होती है.
तो अब द्ववाली से चलते हैं वापस खाती गांव की ओर. कफनी नदी में पैदल पुल पार करने के बाद पिंडर नदी के किनारे-किनारे तक खाती गांव की यात्रा आपको याद ही होगी. खाती में पहुंचते ही आज वहीं रूक कर गांव में घुमने का आनंद तो अब वहीं मिलेगा. पीडब्लूडी गेस्ट हाउस से नीचे गांव की गलियों में अंदर जाते ही यहां गुजर-बसर कर रहे लोगों की कठिन जिंदगी की झलक आपको हर ओर मिलेगी. यहां घुमते हुए आपको हर कोई मुस्कुराते हुए नमस्ते से स्वागत करते मिलेगा. ये वो स्वालंभी लोग हैं जो अपनी मुस्कुराहट में अपना दर्द छुपा लेते हैं. ज्यादातर मकान संयुक्त रूप से जुड़े हैं. उनके आंगन, जिन्हें बाखलियां कहते हैं, में बच्चों की अठखेलियां भी देखने को मिल ही जाएगी. हर घर के आंगन में लकडि़यों समेत घास का ढेर रहता है, जो कि बर्फबारी के बाद दोएक महिने तक उनकी और उनके जानवरों की जरूरतों को पूरी करता है. यहां लोग सीधे और सरल हैं. लाईट से अभी ये गांव वंचित ही है, लेकिन फिर भी हर घर की छत पर डिश मौजूद रहती है. जनरेटर चलाकर संयुक्त तौर पर कभी कभार पिक्चरों का आनंद भी ये ले लेते हैं. सोलर लाईट से लगभग हर घर रात को जगमगाता ही है.
बहरहाल्! पिंडारी व कफनी ग्लेशियर जाने के बाद थकान होना लाजिमी है. और फिर यदि आपने सुंदरढूंगा ग्लेशियर जाने का मन बनाया है तो उसकी तैंयारी के साथ ही थकान मिटाने के लिए एक दिन खाती गांव में रूकना जरूरी है.
आज इतना ही........
अभी जारी है.....


By Keshav Bhatt

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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जातोली में रूप सिंह और उसका बेटा भी सुंदरढूंगा घाटी में जाने के लिए सभी इंतेजाम कर लेते हैं. रूप सिंह की जातोली तथा कठहलिया में कुटिया में भी ट्रैकरों के लिए रहने की अच्छी व्यवस्था है.
तों अब चलें सुंदरढूंगा की ओर. थोड़ा सुंदरढूंगा के बारे में जानकारी ले लें. सुंदरढूंगा घाटी को वर्षों से हर कोई सुंदरढूंगा ग्लेशियर के नाम से जानता है. अब ये नाम कैसे और कब किसने रख दिया होगा इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी मेरे पास नहीं है. बहरहाल् सुंदरढूंगा कोई ग्लेशियर नहीं है. मैक्तोली, थारकोट, पन्वालीद्वार, मृगथूनी आदि चोटियों की जड़ में फैले विस्तार को ही एक तरह से सुंदरढूंगा घाटी कहा जाता है. यहां कठहलिया से आगे मैक्तोली तथा थारकोट ग्लेशियर से उद्गमित नदियों का संगम है.
तो अब चलें....
आज लगभग बारह किलोमीटर तक की यात्रा कठहलिया तक है. गांव के बीचों-बीच से रास्ता उप्पर चढ़ाई को है. जो कि किलोमीटर भर बाद अब आपको कई साहसिक अनुभव कराएगा. दूर नीचे संकरी घाटी में बहती सुंदरढूंगा नदी का शोर यहां तक भी सुनाई देता है. नदी अपने होने का एहसास इस रास्ते में हर पल कराते रहती है. कुछ आगे चलने पर रास्ता संकरा हो नीचे की ओर गधेरे में ले जाता है. इसे सावधानी से पार करना होता है. बरसात में गुस्से से उफनाए इस तरह के कई गधेरे नदियों को चुनौती देते से महसूस होते हैं. इस रास्ते में इस तरह के कई गधेरों में उप्पर-नीचे, रड़-बगड़... रड़-बगड़ कर पार करने के बाद फिर घने जंगल में चलने का आनंद ही कुछ और है. जातोली से करीब सातेक किलोमीटर की इस रोमांचक व साहसिक यात्रा के बाद जंगल खत्म होते ही सामने नदी दोनों ओर अपना फैलाव लेते दिखती है. 2747 मीटर की उंचाई पर इस जगह को स्थानीय लोग दुधियाढौंग कहते हैं. पहले नदी के किनारे-किनारे सुरक्षित रास्ता कठहलिया की ओर जाता था, लेकिन अब यहां से नदी ने करीब तीनेक किलोमीटर का रास्ता अपने आगोश में ले लिया है. अब ये रास्ता राज्य सरकार के नुमाइंदे हकीकत में कब बनाएंगे ये मालूम नहीं.
दुधियाढौंग से आगे का रास्ता अब थोड़ा खतरनाक हो गया है. वर्तमान में यहां चट्टानों को पकड़ते हुए उप्पर-नीचे उतरते हुए अपना सामान कभी आगे तो कभी पीछे साथियों को पकड़ाते हुए एक-दूसरे का हाथ पकड़ते हुए इसे पार करना पड़ रहा है. इसे पार करने के बाद सांस में सांस वापस लौटती है. आगे फिर मखमली बुग्याल शुरू होते ही सुंदरढूंगा घाटी विस्तार लिए हुए दिखती है. कठहलिया से करीब आधा किलोमीटर पहले निगम का ढांक बंगला बन चुका है लेकिन अभी ये सुचारू नहीं हुवा है. कठहलिया में रूप सिंह ने वर्षों पहले एक हट (झोपड़ी) बनाई थी जो आज भी है. इसमें रूका भी जा सकता है. नहीं तो रात का ठिकाना टैंट में बिताना बेहतर हुवा.
कठहलिया से दो रास्ते फूटते हैं. एक सीधे मैक्तोली ग्लेशियर से आ रही नदी के किनारे-किनारे दाहिने ओर को उंचाई को होते हुए लगभग 4320 मीटर की उंचाई पर मैक्तोली ग्लेशियर को है, जो कि यहां से लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर है. दूसरा रास्ता बाईं ओर थारकोट ग्लेशियर से आ रही नदी के किनारे-किनारे चढ़ाई लिए सुखराम गुफा को है. यह रास्ता अब कई जगहों पर टूटने से खतरनाक हो गया है. सुखराम गुफा में अब जाना नहीं ही होता है. ट्रैकर पहले इस गुफा के नीचे रूकते थे. यहां नौ जून 2004 को भारी बारिश व बर्फबारी के चलते गुफा टूट गई. इस हादसे में तब रेपिड ऐक्सन के पांच जवानों की दब जाने से मौत हो गई और हमारे हरिद्वार के पत्रकार साथी त्रिलोक भट्ट समेत कई लोग बुरी तरह घायल हो गए थे.
कठहलिया, बैलूनी बुग्याल की जड़ में है. यहां से बैलूनी बुग्याल के लिए खड़ी चढ़ाई लिए हुए रास्ता है. कठहलिया से करीब दोएक किलोमीटर बाद बैलूनी बुग्याल का विस्तार है. बैलूनी एक तरह से लगभग 45 डिग्री की ढलान लिए हुए खड़ा-तिरछा बुग्याल है. यहां पर टैंट लगाने के लिए भी जगह है. पानी थोड़ा सौ मीटर नीचे की ओर है. कठहलिया से बैलूनी बुग्याल होते हुए बांई ओर को लगभग सात किलोमीटर की दूरी पर 3587 मीटर की उंचाई पर देवी कुंड है. इससे आगे लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर 4877 मीटर की उंचाई पर नाग कुंड है.
बैलूनी बुग्याल से देवी कुंड के रास्ते में दो किलोमीटर पहले एक अन्य दूसरा रास्ता भी दाहिने ओर लगभग 3900 मीटर की उंचाई पर सुखराम गुफा को जाता है. ये रास्ता अभी सुरक्षित है.
अब जरा समझो कि इस घाटी में क्या कुछ कैसे करना है. कठहलिया पहुंचने के बाद दूसरे दिन सुबह नाश्ता सात बजे तक निपटा लें. आज यहां से मैक्तोली ग्लेशियर जाकर साम करीब तीनेक बजे तक वापस आया जा सकता है. दिन में खाने के लिए कुछ बिस्किट, चाकलेट, पानी बोतल के साथ ही टार्च जरूर रख लें. आपके साथ आए एक पोर्टर/गाईड आपके साथ रास्ता दिखाने के लिए साथ चलेगा. दूसरा वहीं कैम्प साइड में आपके साम के भोजन, पानी आदि की व्यवस्था में लगा रहेगा.
इसके अगले दिन बैलूनी बुग्याल में कैम्प लगाएं. यहां से अगले दिन देवी कुंड तथा नाग कुंड के दर्शन के बाद साम को कैम्प साइड में आराम फरमा सकते हैं. यहां जाने के लिए भी दिन में खाने के लिए कुछ बिस्किट, चाकलेट, पानी बोतल के साथ ही टार्च जरूर रख लें. गाईड आपके साथ चलेगा ही.
अब थोड़ा सा और बचा है.....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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अंतिम किस्त..
तो.... सुंदरढूंगा घाटी से अब वापस चलें. गाईड पोर्टर आपको जातोली तक छोड़ देंगे. जातोली में एक रात बिताने के बाद अगले दिन यहां से धाकुड़ी या फिर सौंग के खलीधार स्थित निगम के रेस्ट हाउस का लक्ष्य रखें. रात्रि विश्राम वहीं करने के बाद सौंग पहुंचने के बाद आपको वाहन मिल जाएगा.
अब इस मार्ग में दूसरे सड़क मार्ग की थोड़ी सी जानकारी आपसे मैं और बांच लूं.
इस टै्किंग रूट में अब धाकुड़ी से आगे खर्किया तक कच्ची सड़क बन गई है. लेकिन अभी ये सड़क बरसातों में करीब तीनेक माह तक बंद हो जाती है. इसके लिए दो मोटर मार्ग हैं. एक है बागेश्वर, भराड़ी, सौंग, लोहारखेत, चौड़ास्थल, पेठी, कर्मी, विनायक धार, धूर होते हुए खर्किया तथा दूसरा मार्ग बागेश्वर, कपकोट, डोटिला, चीराबगड़, परमटी, गांसू, गोदियाधार, सरण, कर्मी, तोली, विनायक धार, धूर होते हुए खर्किया तक है. धूर से बांई ओर को सड़क तीख होते हुए बधियाकोट को निर्माणाधीन है. खर्किया तक जाने के लिए अभी दूसरा मार्ग कपकोट-सरण—कर्मी से ही ज्यादा आवाजाही है. पहले मार्ग की अपेक्षा ये मार्ग छोटा है.
बहरहाल् ये दोनों मोटर मार्ग कच्चे और कई जगहों पर खतरनाक बने हैं. हांलाकि कपकोट-कर्मी मोटर मार्ग के चौड़ीकरण का काम चल रहा है, लेकिन सड़क के गड्ढों की वजह से इस मार्ग में चलने वाली जीपें रेंगती सी लगती हैं. कई जगहों में कीचड़ की वजह से ये सड़क जानलेवा बनी है. बागेश्वर से कपकोट होते खर्किया तक पहुंचने में लगभग चार घंटे तक लग जाते हैं, जबकि ये दूरी लगभग सत्तर किलोमीटर ही है.
ये मोटर मार्ग अभी सिर्फ जीपों के साथ ही मोटर बाईकों के चलने लायक हैं. यदि आप बाईक में सफर करना चाहते हैं तो अपने साथ पंचर किट, पंप जरूर रखें.
हिमालयी क्षेत्र की यात्रा के लिए कुछ कायदे-कानूनों से भी आपको अवगत करवा दूं, ताकि बे-वजह आप परेशां ना हों. यात्रा मार्ग में पड़ने वाले गांवों की रीति-रिवाजों का सम्मान कीजिए. अनुशासन के साथ ही शांति बनाए रखें. प्राकृतिक जल स्रोतों को गंदा ना करें. जंगली जानवर, जैसे घुरड़, काकड़, मोनाल, भालू आदि के दिखने पर शोर ना करें. ये आपका नहीं उनका घर है. आपने जिस जगह में रात्रि विश्राम के लिए टैंट लगाया हो या जिस रेस्ट हाउस में रहे हों, वहां आस-पास गंदगी ना फैलाएं. प्लास्टिक, थैलियां रास्तों में ना फैंके, अपने साथ वापस लाकर निगम के कूड़ादान में डालें. अपनी टीम में चलने में जो कमजोर हों उन्हें हर रोज बदल-बदल कर सबसे आगे रखिए, ताकि उनका मनोबल बना रहे. ग्रुप में कभी भी दूरी ना बनाएं, साथ-साथ चलें. उंचाई पर संकरे रास्ते पर चलते हुए ध्यान रहे कि कोई पत्थर आपसे नीचे ना गिरे और ना ही कभी पत्थर नीचे गिराएं. अकसर इस तरह की घटनाओं से बड़ी दुर्घटना का खतरा रहता है. भूस्खलन क्षेत्र (स्लाईडिंग जोन) में एक-एक करके सावधानी से खामोश होकर चलें. जंगलों में आग ना लगाएं. ग्लेशियर से निकलने वाली बर्फानी नदियों का बहाव काफी तेज होता है. इन्हें पैदल पुलों से पार करते वक्त सावधानी बरतें. हिमालयी क्षेत्र का मौसम पल-पल बदलते रहता है. चलते वक्त कभी अत्यधिक बारिश हो जाने पर घबराएं नहीं, सुरक्षित मैदान वाले स्थान पर थोड़ा ठहर लें. वस्तुस्थिति के अनुसार अपने विवेक से काम लें. अत्यधिक आत्मविश्वास से बचें.
पिंडर घाटी समेत उत्तराखंड में अन्य हिमालयी क्षेत्रों में जाने के लिए आप बागेश्वर में मेरे अनुभवी पर्वतारोही साथी संजय परिहार (09412985919, 09760880320) तथा भुवन चौबे (09411710503, 08449269770, 05963-221051) से सम्पर्क कर सकते हैं.

तो अब... पिंडर घाटी क्षेत्र में फैले ग्लेशियरों तक की यात्रा करने के लिए आपके पास सभी विकल्प हैं कि आप किस तरह से अपनी सुखद यात्रा करना चाहेंगे..

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