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Pindari Glacier Trip by Keshav Bhatt- चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Friends,

Our Member Mr Keshav Bhatt has made trip of Pindari Glacier Bageshwar. We will cover his trip details in this thread.

By Keshav Bhatt

[justify]चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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पिंडारी ग्लेशियर जाने वाले टै्किंग के शौकिन अकसर परेशां से रहते हैं. गूगल के साथ ही अन्य जगहों से उन्हें जो आधी-अधूरी जानकारी मिलती है उससे वो पिंडारी के बारे में अपने दिमाग में स्वीट्जरलैंड की तरह मिलता-जुलता एक अलग ही तरह का कोलाज बना लेते है. मसलन कि पिंडारी ग्लेशियर के नजदीक तक मोटरेबल रोड़ है जहां से वो एक ही दिन में पिंड़ारी जाकर वापस आ सकते हैं. कुछेक तो अपनी गाडि़यों में मय परिवार जिसमें उनके वृद्व माॅ-बाप टुकुर-टुकुर देख रहे होते हैं, बागेश्वर में पिंडारी ग्लेशियर जाने का रास्ता पूछते फिरते हैं. इनमें से कईयों को तो समझाते-समझाते मैं खुद ही परेशां हो उठा हूं, भई! ये इंडिया है और उप्पर से आप लोग उत्तराखंड के जिस कोने में अभी पहुंचे हो तो सड़कों का हाल तो आपको मालूम हो ही गया होगा. ऐसे में आप लोग ग्लेशियर के पास सड़क पहुंचने की कल्पना कैसे कर लेते हो.....
वो गूगल समेत यहां के नक्शों का हवाला देते हैं. बमुश्किल मैं उन्हें समझाता हूं कि माॅ-बाप का यदि यहीं फाईनल जीते—जी तर्पण करना है तो आपकी मर्जी नहीं तो इन्हें कौसानी, चौकोड़ी, मुनसियारी, जागेश्वर, नैनीताल आदि जगहों में घुमाकर वापस ले जाओ.
कई बार तो दिल्ली समेत अन्य जगहों से आए चारेक दोस्त अपने जिम करने का हवाला दे पिंड़ारी जाने के लिए रास्ता पूछते हैं. उनमें उत्साह कूट-कूट कर भरा दिखता है. लेकिन जब ये वापस आते हैं तो खिसियाए हो कबूल करते हैं जो कल्पना में सोचा था उससे भयानक ही रहा. लेकिन हमने पिंडारी फतेह कर ही लिया......
टूरिस्टों, टै्करों के लूटने-पिटने के और भी अनगिनत किस्से हैं इस बारे में. बहरहाल! लंबी जद्दोजहद के बाद ख्याल आया कि इस टै्किंग रूट के बारे में जानकारी देने से कुछेकों को थोड़ी मदद ही मिल जाए और वो यहां मानसिक, शारीरिक रूप से अच्छी तरह से तैंयार होकर ही जाएं ताकि वो प्रकृति का लुफत तो उठा सकें.
पिंडर घाटी समेत अन्य ग्लेशियर रूटों में जाने के लिए किस तरह से करनी है तैंयारी. इस बारे में हर पहलू के बारे में, मैं बताने की कोशिश करूंगा.
फिलहाल इस फोटो को ध्यान से देखिएगा. ये इस मार्ग का एक पुराना पढ़ाव सौंग है.....
आज इतना ही.....

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
[justify]चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर....
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पिंडर घाटी क्षेत्र में पिंडारी ग्लेशियर के अलावा, कफनी, सुंदरढूंगा, मैकतोली आदि ग्लेशियर हैं. बागेश्वर से इन क्षेत्रों में जाने के लिए पिंडारी ग्लेशियर पैदल मार्ग में अंतिम गांव खाती तक तीन मार्ग हैं. खाती गांव से इन ग्लेशियरों को जाने के लिए रास्ते अलग हो जाते हैं.
इस मार्ग में अभी केवल पिंडारी ग्लेशियर से पहले पढ़ाव फुर्किया तक रहने के लिए टीआरसी तथा पीडब्लूडी के रेस्ट हाउस हैं. वैसे स्थानीय लोगों की दुकानों में भी इमेरजेंसी में रहने की व्यवस्था हो ही जाती है. इसके लिए आप पहले से ही इन रेस्ट हाउस की बुकिंग करवा सकते हैं. केएमवीएन की वैब सार्इड में जाकर आन लार्इन बुकिंग की सुविधा है. इसके साथ ही कुछ टूर आपरेटर भी हैं. वैसे पिंडर घाटी क्षेत्र के कर्इ लोग पर्यटन के साथ ही हार्इ एल्टी टैकिंग तथा पीक क्लार्इबिंग में भी अच्छे अनुभवी हैं. वो भी इस क्षेत्र से जुड़े हैं. जिनके बारे में जानकारी आपको अंत में दी जाएगी.
इस टैकिंग यात्रा में कुछ जरूरी सामानों की आप लिस्ट बना लें. टार्च, छाता, दो जोड़ी जुराब, टायलट किट, एक विंड प्रूफ जैकेट, चश्मा, वाटर बोटल, रूमाल, कैप, फस्ट एड किट, माचिस/लाईटर, स्लीपर, कुछ खटटी-मीठी टाफी, कुछ चाकलेट व बिस्कुट. बांकी आप अपने पहनावे का सामान अपनी र्इच्छा से रख सकते हैं. ज्यादा कपड़े ना ही रखें तो आपके लिए ठीक रहेगा. जब आप टैकिंग कर रहे होते हैं तो मौसम ठीक रहने पर शरीर में गर्मी रहती है. उस वक्त हाफ टी शर्ट व टाउजर से काम चल जाता है. अपने पढ़ाव में पहुंचते ही अपने कपड़े ना उतारें, बल्कि विंड पू्रफ जैकेट पहन लें. उंचार्इ में शरीर में पानी की मात्रा कम होने पर सिर दर्द की शिकायत पहले दो दिनों में अकसर रहती है. इसके लिए पानी, सूप, जूस, चाय आदि लेते रहें. दवार्इयों से परहेज करें तो अच्छा रहेगा. पहले दो दिन उंचार्इ में जाने पर सिर दर्द की शिकायत रहती है उससे घबराएं नहीं.
बहरहाल!
पहले समझिए मुख्य पैदल मार्ग यात्रा को. बागेश्वर से भराड़ी होते हुए सौंग तक जीपें जाती हैं. सौंग से आगे कच्ची सड़क है, जो अकसर बरसातों में टूटने की वजह से कर्इ महीनों तक बंद पड़ी रहती है. सौंग से दो सड़कें हैं. एक सड़क दाहिने को जाती है जो मोनार होते हुए सूपी, पतियासार गांव तक बनी है. और दूसरी बांर्इ ओर चढ़ार्इ लिए हुए जाती है लोहारखेत, रगड़, चौढ़ास्थल, पेठी, कर्मी, विनायक धार, धूर, खर्किया तक.
सौंग से लोहारखेत पांच किलोमीटर की दूरी पर है. यहां कुमाउं मंडल विकास निगम का रैस्ट हाउस है. इससे पहले सूढि़ंग गांव में पीडब्लूडी का एक खंडहर बंगला है, जहां रूकने की व्यवस्था नहीं है. सौंग से जीपवाले यहां तक बुकिंग करवाने पर दो-तीन सौ रूपये में छोड़ देते हैं. वैसे ये पैदल रास्ता करीब तीनेक किलोमीटर का है. अगर आप बाहर क्षेत्र से आ रहे हैं तो बागेश्वर या अन्य जगहों में दोपहर में पहुंचे हैं तो बागेश्वर में रूकने के बजाय लोहारखेत में रात गुजारने के लिए बढि़या है. सुबह यहां से पैदल चलने में अच्छा रहता है. और समय भी बच जाता है.
आप यदि अपनी गाड़ी लाए हैं और वो एसयूबी नहीं है तो उसे सौंग में ही छोड़ना ठीक रहेगा. आगे की सड़क कच्ची और उबड़-खाबड़ वाली है. इसमें गाड़ी चलाना बाहर से आने वालों के लिए खतरनाक है. सौंग में कुछ दुकानदार वहीं रहते हैं जिनकी सुरक्षा में गाड़ी छोड़ी जा सकती है. वैसे यदि आपको अपनी गाड़ी की चिंता फिर भी सता रही है तो बागेश्वर में सिद्वार्थ होटल में पार्किंग की व्यवस्था है. आप वहां नार्इट स्टे कर वहीं अपनी गाड़ी छोड़ सकते हैं. दूसरे दिन यहीं से आपको भराड़ी-सौंग के लिए जीप मिल जाएगी. सिद्वार्थ होटल बस स्टेशन में ही है. यहां खाती गांव समेत उप्परी क्षेत्र के लोग आते रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर गार्इड, पोटर भी होते हैं. जिनसे आपको काफी मदद मिल जाएगी. इसके लिए होटल के कांउटर में इस बारे में इंक्वारी कर लें.
लोहारखेत से करीब आधा किलोमीटर हल्की मीठी चढ़ार्इ के बाद आगे को जा रही कच्ची सड़क में चलना होता है.
अभी जारी है.....



By Keshav Bhatt, Bageshwar Uttarakhand

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
By Keshav Bhatt, Bageshwar Uttarakhand

[justify]चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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लोहारखेत से धाकुड़ी की पैदल दूरी लगभग नौ किलोमीटर है. समय करीब पांच घंटे मान कर चलिए. चलने से पहले अपनी वॉटर बोटल में पानी जरूर भर लें. हांलाकि पानी इस रास्ते में कई जगहों पर मिलते रहेगा लेकिन स्वयं के पास पानी होना बहुत जरूरी है. इस पैदल रास्ते में दोनों ओर सैकड़ों की तादात में बुरांश के पेड़ हैं. फरवरी से अप्रैल तक इस रास्ते में बुरांश के फूल बिछे रहते हैं. आप यदि खामोशी से चलें तो अपने दुनिया में मगन कई पक्षियों की सुरीली आवाजों का आनंद भी ले सकते हैं. करीब डेढ़ किलोमीटर बाद ये कच्ची सड़क बांई ओर चौढ़ास्थल गांव की ओर को मुड़ जाती है. इस जगह का नाम रगड़ है. यहां से दाहिने को पैदल रास्ते में चलते चले जाना हुवा. आपको हल्की चढ़ाई लिए हुए घना जंगल मिलेगा. जिसकी छांव में चलने का आंनद आपको वहीं मिलेगा. रास्ते में अंग्रेजों के जमाने के बने लकड़ी के पुल भी मिलेंगे. हांलाकि कुछ पुलों की हालात खराब होने पर बमुश्किल उन्हें कई वर्षों बाद सुधारा गया है. पैदल रास्ता धीरे-धीरे पहाड़ के साथ अंदर तक ले जाते हुए दाहिने की ओर मुड़ेगा. एक पथरीली चढ़ाई के बाद मिलेगा झंडी धार. यहां कुछ देर आप अपनी सांसों को आराम दे सकते हैं. यहां एक खूबसूरत मंदिर बुरांश से घिरा हुवा है. पहले यहां एक बुर्जुग परिवार चाय-नाश्ते की दुकान चलाते थे. धीरे-धीरे आवाजाही कम होने पर वो भी इस जगह को छोड़कर चले गए. अब यहां सिर्फ दुकान के खंडहर ही उनकी याद दिलाते हैं.
यहां से आगे कुछ दुरी पर है तल्ला धाकुड़ी. पर्यटन सीजन में यहां एक दुकान खूब चलती है. यदि आप सुबह बिना नाश्ते किए चले हैं तो यहां आपको हल्का नाश्ता मिल जाएगा. यहां पानी के धारे में मीठा पानी भी हर पल सबकी प्यास बुझाते रहता है. यहां से आगे का रास्ता थोड़ी सी चढ़ाई लिए हुए है. कुछ जगहों पर शार्टकट रास्ते भी हैं, लेकिन यदि आप पहली बार जा रहे हैं तो मुख्य रास्ते को ना छोड़े. आगे धीरे—धीरे बुग्याली घास के मैदान आपकी थकान मिटाते चले जाएंगे. कुछ किलोमीटर मीठी चढ़ाई के बाद एक बुग्याली घास का तिरछा मैदान आपको मिलेगा. इस जगह पर जर्मनी के पीटर कोस्ट की याद में एक समाधी है. 56 वर्षीय पीटर तीन जून 2000 को पिंडारी से अपने साथियों के साथ वापस लौट रहे थे. हद्वय गति रूक जाने से उन्होंने यहां पर अंतिम सांस ली.
यहां से अब हल्की चढ़ाई के बाद रास्ता आपको धाकुड़ी के शीर्ष में ले जाएगा. स्थानीय लोग इस जगह को चिल्ठा विनायक धार भी कहते हैं. यहां पहुंचते ही सामने हिमालय को देख आपकी थकान दूर हो जाएगी. यहां से अब धाकुड़ी को एक किलोमीटर का ढ़लान है.
थोड़ा इस जगह की जानकारी भी ले लें. इस जगह से दाएं-बाएं की ओर उंचाई पर बने पुराने दो मंदिरों के लिए दो रास्ते हैं. बांई ओर करीब एक किलोमीटर की दूरी पर कर्मी गांव के शीर्ष में बने मंदिर को कर्मी चिल्ठा मंदिर तथा दाहिने ओर करीब दो किलोमीटर की दूरी पर सूपी गांव के शीर्ष में बने मंदिर को सूपी चिल्ठा मंदिर के नाम से जाना जाता है. यहां के लोगों के मुताबिक सूपी चिल्ठा मंदिर पहले बना है. इस मंदिर की बनावट को देखकर ऐसा लगता भी है. कर्मी चिल्ठा मंदिर को जाते हुए एक खूबसूरत बुग्याल मिलता है. वक्त हो और धाकुड़ी में यदि दो दिन बिताने हों तो इस बुग्याल और मंदिर का दीदार करना ना भूलें. अकसर पिंडारी या अन्य ग्लेशियरों से वापसी में ज्यादातर प्रकृति प्रेमी यहां जाना पसंद करते हैं. कुछ तो अपने टैंट के साथ यही पसर जाते हैं. यहां से गढ़वाल से लेकर नेपाल तक फैले हिमालय की खूबसूरत रेंज दिखती है.
धाकुड़ी लगभग 2550 मीटर की उंचाई पर है. यहां कुमांउ मंडल विकास निगम के साथ ही पीडब्लूडी के रेस्ट हाउस हैं. कुछ दुकानें भी हैं. जिनमें भीड़ होने की स्थिति में रहने की व्यवस्था भी हो जाती है. धाकुड़ी में अभी फाइबर हट बने हैं लेकिन इनका काम पूरा नहीं हुवा है. आपके पास यदि टैंट है तो यहां मैदान में लगाने के बेहतर जगह है.
धाकुड़ी में मौसम प्रायः ठंडा रहता है. अकसर दिसंबर अंत से फरवरी-मार्च तक धाकुड़ी व चिल्ठा टाॅप बर्फ से लदकद रहते हैं. अप्रैल से जून के मध्य तथा सितंबर से दिसंबर तक का मौसम काफी सुहावना रहता है. यहां पीडब्लूडी के बंगले में तैनात हयात सिंह काफी मिलनसार और हसमुंख है. धाकुड़ी में अंग्रेजों के जमाने के बने डांक बंगले बेहतर तकनीक से बने हैं. बाहर खुला हरा-भरा आंगन और अंदर एक बरामदा है. ठंड में कमरे में बने फायर प्लेस में जलती आग कमरे में अच्छी गर्माहट भर देती है. सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त धाकुड़ी के सामने मैक्तोली, नंदा कोट समेत हिमालय की घाटियों में सूरज की लाल रक्तिम किरणों से जो अद्भुत नजारा दिखता है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
धाकुड़ी इस साहसिक पैदल यात्रा का पहला पढ़ाव है.
अभी जारी है..

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Keshav Bhatt 
 
चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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द्ववाली में रात में ही सुबह करीब साढ़े चार उठकर पांच बजे तक पिंड़ारी ग्लेशियर को चलने के लिए तय कर लें. आज फुर्किया होते हुए पिंड़ारी के दर्शन करने के बाद वापस द्ववाली या फुर्किया पहुंचने का लक्ष्य रखें. द्ववाली में आप स्थानीय दुकादार से अगले दिन दोपहर के लिए पराठे बनाने के लिए कह सकते हैं. पराठों के साथ अचार पैक कर साथ में रख लें. ये आपका दोपहर का खाना है. सुबह अपनी तैंयारी के साथ ही पानी की बोटल भर लें. द्ववाली लगभग 2575 मीटर की उंचाई पर है. द्ववाली से पिंडर नदी के किनारे धीरे-धीरे उंचाई लिए हुए रास्ता है. फुर्किया यहां से पांच किलोमीटर की पैदल दूरी पर है. आराम से चलने पर समय करीब दो घंटा मान कर चलें. लगभग 3250 मीटर की उंचाई पर स्थित फुर्किया में पीडब्लूडी का रैस्ट हाउस है. यहां एक दुकान भी है जिसमें पर्यटक सीजन में चाय, खाना मिल जाता है. फुर्किया पहुंचने पर इस दुकान में चाय-नाश्ते का इंतजाम अकसर हो जाता है. नाश्ते के बाद आगे पिंडारी की ओर बढ़ चलें. फुर्किया से लगभग साढ़े आठ किलोमीटर के बाद आपको 3660 मीटर की उंचाई पर पिंडारी ग्लेशियर के दर्शन होंगे. फुर्किया से कुछ पहले टी् लाईन समाप्त हो जाती है. अब आगे बुरांश के साथ अन्य छोटे किस्म के नाना प्रकार के फूल-पौंधे रास्ते के दोनों ओर मिलते हैं. धीरे-धीरे चढ़ाई लिए हुए रास्ते के किनारे मखमली घास आपकी थकान भी मिटाते रहती है. पिंडर नदी के पार उंची पहाड़ की चोटियों को चीरती हुई जल धाराएं बढ़ी ही मनोहारी दिखती हैं. पिंडारी घाटी में पहुंचते ही एक अलग ही दुनियां में पहुंचने का एहसास होता है. सामने छांगुच व नंदा खाट के हिम शिखर आकाश को चूमते से नजर आते हैं. इनके मध्य पसरा पिंडारी ग्लेशियर खींचता सा लगता है. ग्लेशियर से पहले हरे मैदान में बनी कुटिया आकर्षित सी करती है. इस कुटिया में लगभग पच्चीस वर्षों से साधना कर रहे स्वामी धर्मानंद रहते हैं. वो पिंडारी ग्लेशियर के दर्शन को आने वाले हर पर्यटकों का हर हमेशा चाय के साथ हल्का नाश्ते के साथ गर्म जोशी से स्वागत करते हुए मिलते हैं. कुछ पल उनके साथ बिताने के बाद पानी की बोतल में पानी भर लें और आगे भव्य दर्शन के लिए चल पड़ें. यहां से करीब किलोमीटर भर बाद चलने के बाद सामने पिंडारी ग्लेशियर के आप दर्शन कर सकते हैं. मौसम खुशगवार होने पर यहीं बुग्याली घास पर आराम से बैठकर अपने साथ लाए पराठों का लुफ्त अचार के साथ उठाएं.
पिंडारी से छांगूच, नंदा खाट, बल्जुरी के साथ ही नंदा कोट के भव्य दर्शन होते हैं. अंग्रेज शासक मि. ट्रेल के द्वारा खोज गए दर्रे का रास्ता जो कि पिंडारी ग्लेशियर से जोहार के मिलम घाटी के ल्वां गांव में मिलता है, टै्ल पास के नाम से जाना जाता है, काफी अद्भुत और भयानक है. इस ट्रेल दर्रे को पार करने के लिए पर्वतारोही पिंडारी जीरो प्वाइंट को अपना बेस कैम्प बनाते हैं. यहां से आगे एडवासं कैम्प एक स्थापित करने के बाद दो सौ मीटर की रोप फिक्स कर आगे तख्ता कैम्प के बाद एडवासं कैम्प लगाते हैं. ट्रेल दर्रा पार करने के बाद तीखा ढलान है जिसमें लगभग दो सौ मीटर की रोप से उतर कर नंदा देवी ईस्ट ग्लेशियर में कैम्प लगता है. आगे फिर ल्वां ग्लेशियर में हिम दरार, जिन्हें कैरावास भी कहा जाता है को परा कर ल्वां गांव होते हुए नसपुन पट्टी होते हुए मर्तोली, बोगड्यार होते हुए मुनस्यारी पहुंचा जाता है.
थोड़ा सा इस ट्रेल पास का ईतिहास आपसे बांच लूं. पिंडारी ग्लेशियर के प्रसिद्ध ‘ट्रेल पास’ के साथ कुमाऊं के पहले सहायक आयुक्त जार्ज विलियम ट्रेल और सूपी निवासी साहसी मलक सिंह ‘बूढ़ा’ के जज्बे की कहानी जुड़ी हुई है। ट्रेल खुद तो यह दर्रा पार नहीं कर पाए लेकिन उनकी प्रबल इच्छा पर मलक सिंह ने 1830 में इस कठिन दर्रे को पार किया। हालांकि बाद में लोगों ने इस दर्रे को ‘ट्रेल पास’ नाम दे दिया।
पिंडारी ग्लेशियर के शीर्ष पर स्थित इस दर्रे के रास्ते पहले दानपुर और जोहार दारमा के बीच व्यापार होता था। कहा जाता है कि 17वीं सदी के अंत तक पिंडारी ग्लेशियर पिघलने से जगह-जगह दरारें पड़ गई और आवागमन बंद हो गया। अप्रैल 1830 मेें कुमाऊं के पहले सहायक आयुक्त जार्ज विलियम ट्रेल इस दर्रे को खोलकर आवागमन बहाल करने के मकसद से पैदल ही बागेश्वर होते हुए दानपुर पहुंचे। स्थानीय लोगों के साथ उन्होंने दरारों के ऊपर लकड़ी के तख्ते डालकर पिंडारी के इस दर्रे को पार करने का प्रयास किया। लेकिन बर्फ की चमक (रिफ्लैक्सन) से उनकी आंखें बंद हो गईं, वह आगे नहीं बढ़ सके। सूपी निवासी 45 वर्षीय मलक सिंह टाकुली अकेले ही दर्रे को पार करके मुनस्यारी होते हुए वापस लौट आए। बाद में ट्रेेल की आंखेें ठीक हो गईं। उन्होंने मलक सिंह को बुलाकर बूढ़ा (वरिष्ठ) की उपाधि दी। उन्हें पटवारी, प्रधान और मालगुजार नियुक्त करने के साथ ही पिंडारी के बुग्यालों में चुगान कर वसूलने का भी हक उन्हें दिया। मलक सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र स्व. दरबान सिंह बूढ़ा को यह अधिकार मिला। हांलाकि आजादी के साथ यह व्यवस्था खत्म हो गई। दर्रे से गुजरने वाले सामान्य लोगों में मलक सिंह आखिरी व्यक्ति थे। उनके बाद अभी तक सिर्फ प्रशिक्षित पर्वतारोहियों के 86 अभियानों में से 14 दल ही इसे पार कर कर सके हैं।
तो.... अब वापस चलें....
स्वामी धर्मानंद उर्फ बाबाजी के वहां नंदा देवी मंदिर के दर्शन के बाद उतार की ओर कदम खुद-ब-खुद चलते हैं. अब इसका एहसास तो वहीं महसूस होता है......
वापसी में आप और आपकी टीम में उर्जा बची है तो द्ववाली तक देर सायं तक पहुंचना बेहतर रहेगा. यदि थकान महसूस हो रही है तो रास्ते में फुर्किया पढ़ाव है ना....
अभी जारी है.....

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
By Keshav Bhatt, Bageshwar Uttarakhand
चलें क्या पिंडारी ग्लेशियर.......
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2013 में आई आपदा से कफनी ग्लेशियर को जाने वाला रास्ता भी द्ववाली के बाद से टूट गया है. बहरहाल् अभी इसे खोलने के प्रयास चल रहे हैं.
फुर्किया या द्ववाली पहुंचने पर अगले दिन कफनी ग्लेशियर के दीदार करने के लिए तैंयार रहिए. यदि किसी कारणवश आपका रूकना फुर्किया में हो तो यहां से सुबह जल्दी करीब पांच बजे चलने के लिए तैंयार रहिए. और यदि आप रात द्ववाली पहुंच गए हों तो फिर बात ही क्या. तैंयारी के लिए प्रक्रिया वही अपनानी है. कफनी ग्लेशियर के दीदार के बाद वापस उसी दिन द्ववाली लौटना होता है. दिन में भोजन के लिए पराठे व अचार पैक कर लें. पानी की बोतल तो हर हमेशा भरनी हुई. इस काम में नागा ना कीजिए. इसे भार भी मत समझिए. इसका महत्व तब पता लगता है जब कोसों दूर तक पानी नहीं होता और हर किसी के गले से पानी-पानी की आवाज आती है. उस वक्त अपने साथी को पानी पिलाने का आनंद ही कुछ और है.
द्ववाली से कफनी ग्लेशियर की पैदल दूरी ग्यारह किलोमीटर है. मतलब जाना-आना बाईस किलोमीटर. हरे-भरे घास के लंबे मैदान से भरा ये रास्ता इतना खूबसूरत है कि शाम को वापस ठिकाने पर पहुंचने के बाद थकान भी मीठी सी लगती है. द्ववाली में पीडब्लूडी के ढांक बंगले के पीछे निगम के ढांग बंगले के बगल से कफनी ग्लेशियर को हल्की चढ़ाई के बाद फिर कफनी नदी के किनारे-किनारे रास्ता है. जो कि ग्लेशियर तक पुहंचने तक धीरे-धीरे आपको उंचाई की ओर लेते चले जाता है. चार किलोमीटर के बाद बुग्याल की हरी भरी घास शुरू हो जाती है. आगे एक किलोमीटर बाद खुबसूरत जगह खटिया है. अब यहां पर जिला पंचायत ने दो कमरों का रैस्ट हाउस बनाया है. खटिया से आगे बुग्याल की हरी घास में चलने का आंनद वहीं मिलता है. कफनी ग्लेशियर को जाते हुए बाएं ओर बड़ी तीखी आकर्षक चट्टाने हैं. यदि आप शांति से चल रहे हैं तो मोनाल के साथ ही घुरड़, काकड़ भी आपको नाचते हुए नजर आ सकते हैं.
खटिया से मखमली बुग्यालों के बीच से होते हुए लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर 3860 मीटर की उंचाई पर कफनी ग्लेशियर के भव्य दर्शन होते हैं. ग्लेशियर के मुहाने से जिसे स्नो आउट कहा जाता है, से शोर करती हुवी कफनी नदी बलखाती सी अपने अलग ही अंदाज में दिखती है. पिंडारी ग्लेशियर की अपेक्षा इस ग्लेशियर को छूं कर ग्लेशियर होने के एहसास को महसूस किया जा सकता है. पत्थर सी दिखने वाली सख्त ठंडी चट्टान को छूने पर पता लगता है कि ये बर्फ की ठोस परत है. ग्लेशियर के ज्यादा नजदीक ना जाएं. ग्लेशियर के टूटने का खतरा रहता है.
अकसर अप्रैल-मई में कफनी ग्लेशियर से एक किलोमीटर पहले तक बर्फ जमी रहती है. इस सख्त बर्फ में चलने का एक अलग ही रोमांच मिलता है. मौसम खुशगवार हो तो यहां से नंदा कोट के भव्य दर्शन होते हैं.
थोड़ी सी जानकारी आपको नंदा कोट चोटी की भी दे दूं. 6861 मीटर उंची नंदा कोट को साउथ फेस, मतलब पिंडारी ग्लेशियर की ओर से, अभी तक 1995 में बिट्शि पर्वतारोही मार्टेन मोरेन ने ही क्लाइंब किया है. भारत समेत विश्व के पर्वतारोहियों के लिए साउथ फेस से नंदा कोट अभी तक चुनौती बनी है. नंदा कोट दिखने में जितनी सुंदर लगती है, नजदीक जाने पर उतनी ही चुनौती सी देती हुवी महसूस होती है. पिंडारी ग्लेशियर घाटी से इस चोटी में जाने के लिए 3800 मीटर की उंचाई पर कुपियाधौड़ में बेस कैम्प लगाया जाता है. उसके बाद एडवांस कैम्प छांगुज ग्लेशियर में, कैम्प एक शाॅल छांगुज में, कैम्प दो लास्पाधूरा के बेस कैम्प में तथा कैम्प तीन 6000 मीटर पर नंदा भनार के नीचे लगाया जाता है. यहां तक पहुंचने में कई खतरनाक आइस फाल का भी सामना करना पड़ता है. इसके बाद सबमिट कैम्प से 400 मीटर की एक खड़ी बर्फीली दीवार को पार उसी दिन वापस उतरना एक कड़ी चुनौती पर्वतारोहियों के लिए रहती है. नंदाकोट के लंबे ढलान में फैले शिखर के पूर्वी हिस्से को भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने सबमिट माना है.
बहरहाल्! नंदाकोट में सूर्योदय और सूर्यास्त के खूबसूरत दृश्यों को अपनी यादों में कैद करना ही बेहतर है. कफनी ग्लेशियर से वापसी के बाद हरे बुग्याल में आराम करते हुए अचार के साथ पराठों का लुफ्त उठाएं. देर सायं द्ववाली में पहुंचना हो पाता है.
अब कल आगे का सफर करेंगे सुंदरढूंगा ग्लेशियर के लिए. तब तक आराम करें ....
अभी जारी है.....

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