Author Topic: Places Famous For Their Speciality - उत्तराखंड के विभिन्न शहरो की विशेषता  (Read 15003 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देवीधुरा Champawat के काफल बहुत प्रसिद्ध है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देहरादून लीची के लिए भी प्रसिद्ध है ! यहाँ के लीची भी बहुत मशहूर है !

पंकज सिंह महर

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श्रीनगर, गढ़वाल की बाल मिठाई भी बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन ओरिजिन इनका भी अल्मोड़ा ही है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Uttarakhand ke Harshil Ke aalu famous


हर्षिल का इतिहास का संबंध अंग्रेजों से अलग नहीं हो सकता। 19वीं सदी के प्रारंभ में फ्रेड़रिक विल्सन यहां बस गये, जिन्होंने यहां के वासियों को आलू तथा सेब पैदा करना सिखाया तथा इस पूरे क्षेत्र में यहां के सेब काफी स्वादिष्ट हैं।


राजेश जोशी/rajesh.joshee

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Devidhura is in Champawat District not in Almora
देवीधुरा अल्मोडा के काफल बहुत प्रसिद्ध है !

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Thanks Joshi ji for the correction actually Champawat naya District bana hai isliye error ho gaya hoga kya kahte ho aap?

Devidhura is in Champawat District not in Almora
देवीधुरा अल्मोडा के काफल बहुत प्रसिद्ध है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Salt Area =
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Salt area which is in Almora District is also famous for "Mirch". This area is also known for brave Soldiers during the Freedom Struggle of nation.   

vivekpatwal

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Salt Area =
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Salt area which is in Almora District is also famous for "Mirch". This area is also known for brave Soldiers during the Freedom Struggle of nation.   

यां का वीर सल्टिया मानी, हम तेरी भलाई ल्युला,

अल्मोडा जिले का सबसे बड़ा ब्लाक भी है सल्ट, नैनीताल और पौडी गढ़वाल जिले से इसकी सीमाए जुडी हुयी है,

Rajen

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संस्कृतियों को जोड़ने वाला सेतु था जौलजीवी मेला (Jaagran News) Nov 19, 10:32 pm

अस्कोट(पिथौरागढ़)। सामूहिक सम्मेलन के पर्व मेले उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के जनजीवन का अभिन्न हिस्सा रहे है। यहां वर्ष भर किसी न किसी क्षेत्र में कोई न कोई मेला आयोजित होता रहता है। इनमें से सीमांत जिले पिथौरागढ़ के जौलजीवी मेले का अपना एक अलग महत्व है। काली और गोरी नदी के संगम पर लगने वाला यह मेला एक नहीं बल्कि तीन-तीन देशों की संस्कृतियों को जोड़ने वाले सेतु के रूप में प्रसिद्ध रहा है।

आजादी से पूर्व अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में की भांति पाल राजाओं की अस्कोट रियासत का क्षेत्र भी सड़क व हाट बाजारों से विहीन था। लोगों को रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिये मीलों पैदल चलकर अल्मोड़ा या टनकपुर जैसे दूरस्थ शहरों में जाना पड़ता था। लोगों की इसी दिक्कत को देखते हुये अस्कोट रियासत के तत्कालीन राजा गजेन्द्र बहादुर पाल ने एक मेले के आयोजन का निर्णय लिया। ताकि लोग अपनी जरूरत की चीजें मेले से खरीद सकें। मेला स्थल के रूप में उन्होंने तल्ला व मल्ला अस्कोट नाम के दे भागों में बटी अपनी रियासत के मध्य में काली व गोरी नदी के संगम पर स्थित जौलजीवी को चुना। जहां वर्ष 1914 में पहली बार मेले का आयोजन हुआ। तब से प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की संक्रांति से प्रारम्भ होकर पूरे एक महीने तक चलने वले इस मेले में धीरे-धीरे भारत के दिल्ली, कलकत्ता, बरेली, हरिद्वार, मथुरा, आगरा, अल्मोड़ा व टनकपुर आदि शहरों के अलावा पड़ौसी देश नेपाल और तिब्बत से भी व्यापारी पहुंचने लगे। पड़ौसी देश से भी भारी संख्या में मेलार्थियों के पहुंचने से मेले ने भव्य रूप ले लिया। भारतीय क्षेत्रों के स्थानीय उत्पाद, तिब्बत के ऊन से बनी वस्तुओं तथा नेपाल के हुमला-जुमला के घोड़े जौलजीवी मेले का मुख्य आकर्षण बने।

परंतु 1962 में भारत-चीन युद्ध का असर इस मेले पर भी पड़ा। युद्ध के बाद मेले में तिब्बती सामान और वहां के जनमानस की शिरकत धीरे-धीरे कम होने लगी। बाद में जौलजीवी मेले के सरलीकरण के फैसले से मेले की मौलिक रौनक फीकी होती चली गई। इसी का नतीजा है कि कभी तीन-तीन देशों की सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक विरासत के एकीकृत भव्य स्वरूप का प्रतीक रहा ऐतिहासिक जौलजीवी मेला आज एक व्यापारिक मेला बनकर रह गया है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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दयारा बुग्याल: जंगल में मोर नाचा किसने देखा

SOURCE DAINIK JAGARN

उत्तरकाशी। कुदरत मेहरबान होने से दयारा बुग्याल में बर्फ की परत चढ़ने लगी है। मौसम का यह मिजाज रहा तो कुछ ही दिनों में यह स्कीइंग के लिए फील्ड तैयार हो जाएगा। यहां से प्रकृति के मेहरबान होते हुए भी सरकार ने मुंह मोड़ा हुआ है। सब कुछ होते हुए भी सड़क न होने से रोपवे ही एक मात्र सहारा है। इसलिए दयारा पहुंचकर स्कीइंग करवाने की वर्षो पुरानी योजना सिर्फ कागजों में ही धूल फांक रही है।

करीब 28 वर्ग किमी में फैला दयारा बुग्याल सर्दियों में पांच से छह फुट तक बर्फ से ढका रहता है जो लगातार चार महीनों तक जमी रहती है। यही बातें इसे स्कीइंग के लिये राज्य में सबसे आदर्श बुग्याल बनाती हैं। सबसे पहले अस्सी के दशक में कुछ स्थानीय लोगों ने इस बुग्याल से बाहरी दुनिया को रूबरू कराना शुरू किया।

स्की के शौकीनों ने निजी तौर पर वहां पहुंच कर स्कीइंग भी शुरू कर दी, लेकिन सरकारी मदद के अभाव में अभी तक यह औली की तरह विश्व विख्यात नहीं हो पाया है। स्थानीय लोगों की लगातार मांग पर सूबे में रही सरकारों की ओर से रोपवे बनवाने के आश्वासन मिलते रहे, लेकिन,अभी तक अस्तित्व में नहीं आ सका है।

 लिहाजा दयारा की स्थिति 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा वाली बनी हुई है'। सूबे की पिछली सरकार ने चालीस करोड़ रुपये लागत की दयारा पर्यटन महायोजना बनाई थी। इसमें दयारा को विंटर गेम्स के लिए तैयार करने के लिये रोपवे सहित सभी बुनियादी सुविधाएं जुटाने की रुपरेखा तैयार की गई थी। इसके तहत टाटा कसंल्टेंसी से बुग्याल व आस पास के क्षेत्र का सर्वे भी कराया गया।

 कंपनी ने रिपोर्ट तैयार कर शासन को भी सौंप दी थी, लेकिन हैरतअंगेज तरीके से यह महायोजना गायब हो गई। इसके बाद पांच करोड़ रुपए की केंद्रीय पर्यटन निधि से दयारा बुग्याल के नजदीकी रैथल व बार्सू गांव से ट्रैक रूट निर्माण, कम्यूनिटी सेंटर, आवास गृह, सीवर लाइन, टूरिस्ट हट आदि बनवाए गये।

स्थानीय लोगों की लगातार मांग व आवश्यकता को देखते हुए सरकार की ओर से रोपवे का काम पीपीपी मोड पर देने का विचार किया गया। बीते तीन वर्षो से धरातल पर इस दिशा में कोई भी कार्य नहीं हो पाया है,

 

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