दयारा बुग्याल: जंगल में मोर नाचा किसने देखा
SOURCE DAINIK JAGARN
उत्तरकाशी। कुदरत मेहरबान होने से दयारा बुग्याल में बर्फ की परत चढ़ने लगी है। मौसम का यह मिजाज रहा तो कुछ ही दिनों में यह स्कीइंग के लिए फील्ड तैयार हो जाएगा। यहां से प्रकृति के मेहरबान होते हुए भी सरकार ने मुंह मोड़ा हुआ है। सब कुछ होते हुए भी सड़क न होने से रोपवे ही एक मात्र सहारा है। इसलिए दयारा पहुंचकर स्कीइंग करवाने की वर्षो पुरानी योजना सिर्फ कागजों में ही धूल फांक रही है।
करीब 28 वर्ग किमी में फैला दयारा बुग्याल सर्दियों में पांच से छह फुट तक बर्फ से ढका रहता है जो लगातार चार महीनों तक जमी रहती है। यही बातें इसे स्कीइंग के लिये राज्य में सबसे आदर्श बुग्याल बनाती हैं। सबसे पहले अस्सी के दशक में कुछ स्थानीय लोगों ने इस बुग्याल से बाहरी दुनिया को रूबरू कराना शुरू किया।
स्की के शौकीनों ने निजी तौर पर वहां पहुंच कर स्कीइंग भी शुरू कर दी, लेकिन सरकारी मदद के अभाव में अभी तक यह औली की तरह विश्व विख्यात नहीं हो पाया है। स्थानीय लोगों की लगातार मांग पर सूबे में रही सरकारों की ओर से रोपवे बनवाने के आश्वासन मिलते रहे, लेकिन,अभी तक अस्तित्व में नहीं आ सका है।
लिहाजा दयारा की स्थिति 'जंगल में मोर नाचा, किसने देखा वाली बनी हुई है'। सूबे की पिछली सरकार ने चालीस करोड़ रुपये लागत की दयारा पर्यटन महायोजना बनाई थी। इसमें दयारा को विंटर गेम्स के लिए तैयार करने के लिये रोपवे सहित सभी बुनियादी सुविधाएं जुटाने की रुपरेखा तैयार की गई थी। इसके तहत टाटा कसंल्टेंसी से बुग्याल व आस पास के क्षेत्र का सर्वे भी कराया गया।
कंपनी ने रिपोर्ट तैयार कर शासन को भी सौंप दी थी, लेकिन हैरतअंगेज तरीके से यह महायोजना गायब हो गई। इसके बाद पांच करोड़ रुपए की केंद्रीय पर्यटन निधि से दयारा बुग्याल के नजदीकी रैथल व बार्सू गांव से ट्रैक रूट निर्माण, कम्यूनिटी सेंटर, आवास गृह, सीवर लाइन, टूरिस्ट हट आदि बनवाए गये।
स्थानीय लोगों की लगातार मांग व आवश्यकता को देखते हुए सरकार की ओर से रोपवे का काम पीपीपी मोड पर देने का विचार किया गया। बीते तीन वर्षो से धरातल पर इस दिशा में कोई भी कार्य नहीं हो पाया है,