Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Shikhar, Bageshwar Religious & Tourism Track- शिखर धार्मिक एवं पर्यटन स्थल

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
This is the Peak season to visit Shikhar. Summer season.

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Mool narayan Mandir(shikar) near Dharamgarh, Uttrakhand

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Himalayan peaks frm mool narayan mandir Mt Maiktoli, Mt Nandadevi, Mt Panwalidwar, Mt Changuch


Himalayan peaks frm mool narayan mandir Mt Maiktoli, Mt Nandadevi, Mt Panwalidwar, Mt Changuch

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Pawan Pathak:
21Oct2015 को लगेगा क्षेत्र का नवमी का मेला
सनगाड़ के नौलिंग मंदिर पर है लोगों की गहरी आस्था
महेश पाठक
धरमघर (बागेश्वर)। सनगाड़ गांव स्थित श्री श्री 1008 नौलिंग देव का मंदिर क्षेत्र के लोगों की आस्था का केंद्र है। लोगों का विश्वास है संतानहीन जो भी महिला मंदिर में अखंड दीपक जलाती है उसे नौलिंग देवता प्रसन्न होकर संतान सुख देते हैं। आश्विन महीने के अष्टमी और नवमी के नवरात्र पर मंदिर में मेला लगता है। इस बार मेला 21 अक्तूबर 2015 को लग रहा है। मंदिर कमेटी ने मेले को भव्य और आकर्षक बनाने के लिए सभी प्रबंध कर लिए हैं।
दुग नाकुरी तहसील के सुदूरवर्ती सनगाड़ ग्राम पंचायत में नौलिंग देव का भव्य मंदिर है। नौलिंग जी शिखरवासी श्री श्री 1008 मूल नारायण के दूसरे पुत्र हैं। उनका जन्म पचार गांव के नौले में हुआ था। नौले में जन्म लेने के कारण उन्हें वहां धोबी नौलिंग के नाम से जाना जाता है। मूलनारायण ने अपने बड़े पुत्र बंज्यैण जी को भनार क्षेत्र की जिम्मेदारी दी। सनगाड़ में सनगड़िया नाम के राक्षस के आतंक को समाप्त करने के लिए नौलिंग जी को सनगाड़ भेजा। दैत्य का वध करने के बाद नौलिंग जी की वहीं पूजा होने लगी। यहां माता भगवती भी पहले से ही विराजी हैं। पहले मंदिर बहुत छोटा था। 1990 के दशक में पंजाब संगरूर के उदासीन अखाड़े के दिवंगत ब्रह्मलीन श्री महंत बद्री नारायण दास की अगुवाई में मंदिर का भव्य निर्माण हुआ। लोगों का विश्वास है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में सच्चे मन से पहुंचता है। नौलिंग जी उसकी सभी मनोकामनाओं को पूरी कर देते हैं। संतानहीन महिलाएं मंदिर में व्रत रखकर 24 घंटे की तपस्या करती हैं। इससे उन्हें संतान प्राप्त हो जाती है। नौलिंग जी ओलावृष्टि से फसलों रक्षा करते हैं। पहले लोग मनौती पूरी होने पर यहां बकरियों की बलि देते थे। न्यायालय के निर्देश पर अब यहां बलिप्रथा पर रोक लग गई है। अधिकतर श्रद्धालु मनौती पूरी होने पर मंदिर में बलिदान की जगह अब घंटियां, शंख, चांदी के छत्र और प्रसाद बनाने के काम आने वाले बर्तन अर्पित करते हैं। मंदिर की व्यवस्थाएं ट्रस्ट के हाथों है। मंदिर में पूजा पाठ की जिम्मेदारी गोंखुरी के पंत लोगों के पास है जबकि पुजारी मोहली गांव के धामी लोग हैं। नवरात्र पर्व पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20151019a_015115003&ileft=458&itop=522&zoomRatio=137&AN=20151019a_015115003

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