Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (

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Bhishma Kukreti:

                         पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या पर्यटन उद्यम का संगठनात्मक बनावट
                                    Structure in  Tourism Management and Hospitality Management

(   Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--10  )


                                    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 10

                                                    लेखक : भीष्म कुकरेती                             
                                                 (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
         पर्यटन व्यापार एक जटिल व्यापार है।  पर्यटन कोई फैक्ट्री या कारखाना नही है जिसमे उत्पाद बनाया और उत्पाद बेच बेच दिया। या पर्यटन सीधी  सेवा नहीं है भी नही कि सेवा दी जाय।
            पर्यटन व आथित्य एक जटिल व्यापार है या सेवा है जिसमे कई संगठन या बनावट होते हैं जिसके मालिक या कार्यकारी अलग अलग होते हैं , जो अलग अलग दिशाओं से एक ही उदयेश की प्राप्ति करते हैं। जैसे बद्रीनाथ मंदिर में पर्यटकों के आने हेतु कई संगठन कार्यरत होते हैं।
                   प्रत्येक क्षेत्र के पर्यटन विकास हेतु कोइ एक ही मॉडल काम नही कर सकता है।  यहाँ तक कि एक ही स्थिति वाले विभिन्न पर्यटन क्षेत्रों के लिए एक मॉडल सफल नहीं हो सकता है। जैसे हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के पर्यटन विकास हेतु एक ही मॉडल काम नही आयेगा।
  प्रत्येक पर्यटन , यात्रा , आतिथ्य व्यापार में निम्न संगठन कार्यरत होते हैं।

                            उत्प्रेरक , प्रेरक सरकारी संगठन

 केंद्रीय सरकारी संगठन - कसी भी रास्ट्र  की नीतियां , नीतियों का कार्यावनीकरण , केंद्रीय सरकारी संगठन पर्यटन के विकास के लिए आवश्यक संगठन होता है। कानून -नियम व्यवस्थाएं भी इसी श्रेणी मी आते हैं
राज्य सरकारी संगठन -राज्य के सरकारी संगठन पर्यटन का एक विशेष अंग होते हैं  जो पर्यटन , यात्रा , आथित्य व्यापार को दिशा व गति  है।
स्थानीय सरकारी संगठन - स्थानीय सरकारी संगठन जैसे ग्राम पंचायत , नगर पालिका संस्थान पर्यटन , यात्रा , आथित्य व्यापार के लिए आवश्यक कारक होते हैं।
सरकारी स्वायत संस्थान -कई अलग अलग स्तर के सरकारी स्वायत संस्थान भी पर्यटन के मुख्या अंग होते हैं। एस्योरेंस , इन्सुएरेंस संस्थान इस श्रेणी में आते हैं
गैर सरकारी स्वायत संस्थाएं - गैर सरकारी संगठन (NGO) भी पर्यटन , यात्रा व आथित्य व्यापार को कई तरह से सहायता देते हैं।
                         वितरण संबंधी संगठन

गैर सरकारी व्यापारिक संस्थान -पर्यटन संबंधित या गैर पर्यटन से संबंधित सभी संस्थान पर्यटन को गति देते हैं। होटल आदि पर्यटन संबंधी संगठन की श्रेणी में आते हैं तो गैर पर्यटन संस्थान जैसे स्थानीय स्तर के कुटीर उद्योग आदि ग्राहकों को वस्तुएं सप्लाई करते हैं।
यात्रा उद्यम - पर्यटन , यात्रा , आतिथ्य व्यापार के लिए यात्रा उद्यम एक महत्वपूर्ण कारक है।
पारम्परिक प्रचार , प्रसार, विज्ञापन  माध्यम - पारम्परिक प्रचार , प्रसार, विज्ञापन  माध्यम भी पर्यटन -आथित्य उद्यम के वितरण अंग होते हैं।
गैर पारम्परिक माध्यम - गैर पारम्परिक माध्यम जैसे मोबाइल , इंटरनेट माध्यम इस श्रेणी में आते हैं।  भविष्य में अन्य माध्यम आयेंगे और ये माध्यम पर्यटन वितरण के अंग बनते जायेंगे।



Copyright @ Bhishma Kukreti 8 /12/2013

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Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल

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   उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; पिथोरागढ़ ,कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; अल्मोड़ा ,कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; द्वारहाट ,कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; चम्पावत कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; बागेश्वर ,कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट;नैनीताल कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट;  उधम सिंह नगर कुमाऊं, उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; हरिद्वार ,उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; गंगासलाण, गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; चमोली गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; रुद्रप्रयाग ,गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड पर्यटन व आथित्य प्रबंधन की बनावट या संगठनात्मक बनावट;

Bhishma Kukreti:



                        पहाड़ों में कृषि , वानकी व शिक्षा में उन्नति ही पर्यटन का ध्येय होना चाहिए

                    Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand


          (Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--11  )


                                    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 11

                                                    लेखक : भीष्म कुकरेती                             
                                                 (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
                                                   ऐतिहासिक सत्य :दे दे बाबा सुई तागा तुई छे हमर ब्वेई बाबा
                    यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अशोक व गुप्त काल के बाद समस्त भारत में कृषि अन्वेषण , कृषि औजार , उद्यान कृषि अन्वेषण , दुग्ध उद्यम अन्वेषण , फूल कृषि अन्वेषण , वानकी अन्वेषण , औषधि अन्वेषण , पशु संबर्धन अन्वेषण में गुणात्मक गिरावट आयी। जहां ब्रिटिश काल से भारत के अन्य भागों में कृषि अन्वेषण में क्रान्ति आती रही वहीं उत्तराखंड के पहाड़ों में तीन हजार साल से चली आ रही कृषि संबंधी व्यवसाय व वानकी व्यवसाय में भयंकर गिरावट आयी। कारण यह था कि राजकर इस तरह के थे कि लोगों ने परिवार पालन तक ही कृषि व वानकी व्यवसाय को सीमित कर दिया था। यही कारण है कि माधो सिंह भंडारी के पावड़े प्रसिद्ध होने के बाद भी गढ़वाल -कुमाऊं में नहरों का प्रचलन हुआ ही नही। जल घराटों का दोहन अन्य ऊर्जा स्रोत्र के लिए हुआ ही नही।
                                         पर्यटन याने भीख
यदयपि पहाड़ी भीख  नही मांगते किन्तु मौर्या काल के बाद कृषि , वानकी , औषधि व्यवसाय में गिरावट से पहाड़ के ग्रामीण पर्यटकों से केवल उन वस्तुओं की अपेक्षा तक सीमित रह गये थे जो पहाड़ों में दुर्लभ था।  यह कहावत रुपया मांग -दे दे बाबा सुई तागा तुई छे हमर ब्वेई बाबा 'बतलाता है कि पहाड़ियों ने ब्यापार को समाप्त ही क्र दिया था।  पहाड़ों में वणिक जाती का ना होना , पहाड़ों में शिल्पकार (हरिजन ) समाज का केवल 15 % होना इस बात का द्योतक है कि पहाड़ियों ने पहाड़ों में कृषि व वानकी तत्तसंबंधी उद्यमों को तिलांजलि दी थी।
                                       पर्यटन से  कृषि , औषधीय व वानकी संबंधी  उद्यम विकास की अपेक्षा

बहुत से वुद्धिजीवी पर्यटन विकास में केवल धन अर्जन की सम्भावनाएं तलासते हैं। किन्तु पर्यटन से केवल धन तलासना पहाड़ों की मुख्य समस्या नही हल कर सकता है। पर्यटन से केवल धन तलासना आपदा से अधिक नुकसान को बुलावा देगा जैसे इस साल की आपदा में हुआ।
 वास्तव में उत्तराखंड में पर्यटन विकास का असली उद्येश्य निम्न होना चाहिए -
१-उत्तराखंड के सभी धार्मिक स्थलों में पहाड़ों में उगे फूल उपयोग में आयें
२- उत्तराखंड में पर्यटकों की उदर पूर्ति पहाड़ों में उपजे अनाज , सब्जियों , दालों , तेल ,घी आदि से ही हो. ऐसी पर्यटन व्यवस्था का निर्माण हो कि पहाड़ों के कृषि उपज के लिए निर्यात के नये वितरण मार्ग खुलें
३-उत्तराखंड में पर्यटकों को पहाड़ों में उपजी चाय , दूध , दही  , फल आदि मिलें
४ -उत्तराखंड में पर्यटकों के मनोरंजन  केवल गढ़वाल -कुमाऊं -हरिद्वार संस्कृति व कला से ही अधिक हो
५ -उत्तराखंड में प्रत्येक पर्यटक केवल पहाड़ में  कुटीर उद्यम निर्मित यादगार  वस्तु  या सोविनियर अधिक से अधिक खरीदे।
६ - छोटे छोटे घराटों की असीमित ऊर्जा से संचालित सिंचाई के साधन को पर्यटन गामी बनाया जाय या पर्यटन उद्यम घराट निर्मित ऊर्जा को बढ़ावा दे।
७- पर्यटन को वानकी अन्वेषण के साथ जोड़ा जाय।
८- पर्यटन से पहाड़ों के वानकी व कृषि उद्यम , औषधीय उद्यम  , चारा उद्यम , औषधीय व इनके अन्वेषण को आशातीत बल मिले
९-पर्यटन को कृषि औजार या वानकी औजार , दुग्ध उद्यम यंत्र अन्वेषण के साथ जोड़ा जाना चाहिए।
 १०-पर्यटन के लिए प्रवीण -कौशल युक्त श्रमिक या स्किल्ड लेबर  प्रशिक्षण के लिए पहाड़ों में ही प्रशिक्षण संस्थान खुलें ना कि शहरों में
११-कुछ ही सर्किट की प्रसिद्धि से इन स्थलों पर पर्यटकों का भारी दबाब हो रहा है।  आज समय आ गया है कि सैकड़ों अन्य धार्मिक स्थल व मेलों को प्रचारित कर यह दबाब कम किया जाय।
           उत्तर प्रदेस व अब उत्तराखंड राज्य सरकारें  उत्तराखंड में  पर्यटन में आशातीत वृद्धि का ढोल पीटती आयीं हैं।  किन्तु हमारे समाज ने यह नही पूछा कि इस पर्यटन से पहाड़ों में क्या फूलों का उत्पादन बढ़ा है ?नागरिकों को प्रशासन व नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या पर्यटन वृद्धि से पहाड़ों में सब्जी उत्पादन बढ़ा है ? विद्धिजीवियों को सरकारी महकमे को पूछना चाहिए कि क्या पर्यटन उद्यम विकास से पहाड़ी दाल , फल ,शहद का उत्पादन बढ़ा है ? सभी को प्रश्न करना चाहिए क्या पर्यटन से पहाड़ों में दुग्ध उद्यम पोषित हुआ है ? एक सदाबहार प्रश्न यह भी है कि क्या पर्यटन उद्यम की आंकड़ों में चाय उद्यम में नई स्फूर्ति के आंकड़े है ? इस प्रश्न को कौन पूछेगा कि क्या पर्यटन उद्यम ने ग्रामीण रेशे उद्योग को गति प्रदान की है ? क्या किसी प्रशाशनिक अधिकारी या  नेता के पास कोई जबाब है कि पर्यटक अपने साथ कौन सी पहाड़ी वस्तु बद्रीनाथ या नैनीताल से सोविनियर या यादगार वस्तु ले जाते हैं ?  प्रश्न यह भी है कि वह कौन सी पहाड़ी कला है जो उत्तराखंड में आधुनिक पर्यटन से विकसित हुयी है ? क्या यह शर्म की बात नही है कि जब बद्रीनाथ मंदिर को फूलों से सजाया जाता है तो वे फूल पहाड़ों में नही उगाये जाते अपितु निर्यात किये जाते हैं।  कोटद्वार या पौड़ी में नजीबाबाद से दूध की गाडी देर से पंहुचे तो होटल में चाय नही मिलती है। क्या यह पर्यटन विकास है कि दूध का निर्यात करना पड़ता है ?
 
 पहाड़ों में पर्यटन हजारों साल से चल रहा है।  ब्रिटिश काल से ही पहाड़ी लोग होटलों में काम करते आये हैं। किन्तु क्या ग्रामीण इलाकों में क्या  होटल मैनेजमेंट के प्रशिक्षण केंद्र खुले हैं ? क्या हमारी शिक्षा पाठ्यक्रमों में पर्यटन प्रबंधन आवश्यक विषय है ?
प्रश्न यह भी है कि पहाड़ों के ग्राम प्रधान व अन्य लोकल सेल्फ गवर्मेंट के कर्ता  -धर्ता आधुनिक पर्यटन के बारे में कितने प्रशिक्षित हैं ?
   आज व अभी से हमें उत्तराखंड में पर्यटन विकास के मुख्य उदस्यों में बदलाव लाने पड़ेंगे और कहना पड़ेगा कि उत्तराखंड के पर्यटन का ध्येय पहाड़ों में कृषि , वानकी , औषधीय , दुग्ध , पशु उद्यम, कुटीर उद्यम , जल उद्यम आदि अन्य ग्रामीण उद्यम विकास होना चाहिए।



Copyright @ Bhishma Kukreti 9 /12/2013

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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वारा , गढ़वाल

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    Notes on Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Haridwar , Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Pithoragarh Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Bageshwar Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Champawat Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Almora Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Nainital Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Udham Singh Nagar Uttarakhand ; Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Gangasalan Garhwal Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Pauri Garhwal Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Chamoli Garhwal Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Rudraprayag Garhwal Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Garhwal Uttarkashi Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Tehri Garhwal Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Dehradun  Uttarakhand ;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand, Central Himalaya Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand, North India ;;Basic Chief Aims and Objectives of Tourism and Hospitality Development in Uttarakhand, South Asia ;

Bhishma Kukreti:



                     उत्तराखंड परिपेक्ष में पर्यटन स्थल प्रबंधन व्याख्याएं

                   Destination Management in Context of Uttarakhand Tourism Development

(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--21  )

 

                                          उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 21
                                                       लेखक : भीष्म कुकरेती                             
                                                    (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )


                                                    पर्यटक स्थल की परिभाषाएं
           पर्यटन प्रबंधन में विद्वानो द्वारा कई विचारों की परिभाषाओं में अंतर है।  पर्यटक स्थल के बारे में भी विचार व परिभाषाओं में असमानता है।  जैसे मेरे लिए अब मेरा पैतृक गाँव वास्तव में पर्यटक स्थल ही है।  किन्तु देखा जाय तो वह गाँव साधारण स्थिति में पर्यटक स्थल नही है।
                          बीगर  (2005 ) के अनुसार पर्यटक स्थल वह भौगोलिक स्थल  (गाँव , प्रदेस , देस , महाद्वीप या क्षेत्र ) है जिसे मेहमान अपने पर्यटन हेतु चुनाव करता है। पर्यटक स्थल में रहने , खाने , खरीददारी , मनोरंजन या मेहमान के उदेश्य की पूर्ति हेतु कार्य अथवा क्रियाओं की सुविधा होनी आवश्यक है। अत: यही कारण है कि पर्यटक स्थल एक प्रतियोगी इकाई है जिसमे व्यापार की रणनीति निहित होती है।  याने कि पर्यटक स्थल में मेहमान व मेजवान के मध्य व्यापार भी होना चाहिए।  यही कारण है कि यद्यपि मेरे लिए मेरा  पैतृक गाँव पर्यटक स्थल भले ही हो किन्तु वह गाँव पर्यटक स्थल नही है क्योंकि मेजवानों ने मेरी सुविधा हेतु कोई व्यापारिक रणनीति नही बनायी है।  मेरे पैतृक गाँव से पांच किलोमीटर दूर सिलोगी बाजार है वहाँ मेरी सुविधाओं हेतु व्यापारियों ने रणनीति तहत दुकाने खोली हैं।  अत: मेरा गाँव पर्यटक स्थल नही है किन्तु सिलोगी बजार एक पर्यटक स्थल है।
 योरपियन कमीसन (2000 ) के अनुसार पर्यटक स्थल पर्यटकों के लिए एक निश्चित किया हुआ व विकसित स्थल है जहां प्रशासनिक या अप्रशाशनिक , व्यापारी या सस्थानो द्वारा पप्रीतक की सुविधाओं का आदान प्रदान होता है।
                                      पर्यटक स्थल व पर्यटक स्थल प्रबंधन में प्रतियोगिता  का समावेश

                       आधुनिक व प्राचीन पर्यटन में एक विशेष अंतर यह है कि आधुनिक पर्यटक स्थलों में प्रतियोगिया का समावेश एक आवश्यक तत्व है।  अब पर्यटन व पर्यटक स्थल प्रतियोगिता से प्रभावित होते हैं। पाठकों के लिए एक उदाहरण आवश्यक है -कैँडूल (मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल ) में एक स्थान प्रसिद्ध प्रसिद्द है जहां सावित्री को यमराज ने उसके पति सत्यवान का जीवन लौटाया था। यहाँ हर वरस मेला लगता है , किन्तु बहुत ही छोटे स्तर पर।   वहीं मल्ला ढांगू में ही ठंठोली गाँव के ऊपर बेलधार जंगल  में एक पुराना शिवालय है।  पांच दस साल पहले ठंठोली निवासी ने किसी ऋषिकेश के भक्त द्वारा उस शिवालय का जीर्णोद्धार कराया और प्रति वर्ष वहाँ अब सैकड़ों लोग जुटते हैं।  गढ़वाल में सभी जगह शिवालय हैं याने शिवालय साधारण स्थल ही माना जाएगा और सावित्री को पीटीआई का जीवन मिलने का स्थल अति महत्वपूर्ण  स्थल माना चाहिए किन्तु विपणन प्रतियोगिता के कारण बेलधार मंदिर में अधिक भीड़ जुटती है व सावित्री -सत्यवान मिलन स्थल अभी भी एक उपेक्षित स्थल ही है।
           पर्यटक स्थल के विकास में प्रतियोगिता जीतने की रणनीति आज एक सामयिक आवश्यकता है जब कि प्राचीन काल में पर्यटन स्थलों में प्रतियोगिता रणनीति बहुत ही कम मिलती थी।

                            पर्यटक स्थल व पर्यटक स्थल प्रबंधन में पर्यावरण सुरक्षा का समावेश
 आज पर्यटन विकास में केवल प्रतियोगिता धर्म का समावेश ही नही हुआ है अपितु पर्यावरण रक्षा -सुरक्षा भी एक आवश्यक तत्व है।
स्थल का बुद्धितापूर्ण  व सावधानी पूर्वक  उपयोग व उपभोग - पर्यटन स्थल का उपभोग व उपयोग वुद्धिपूर्वक व सावधानी पूर्वक होना पर्यटन स्थल प्रबंधन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। पर्यटन स्थाल का दोहन इस तरह ना हो कि आने वाली पीढ़ी को नुकसान उठाना पड़े।
उन वस्तुओं का प्रयोग ना किया जाय जो पर्यावरण व नई पढ़ी के लिए हानिकारक हों जैसे प्लास्टिक , का उपयोग , गंगा किनारे शौचालय बनाना आदि

स्थल व प्रकृति का दोहन - पर्यटक स्थल का दोहन इतना ना हो कि स्थल की प्रकृति व प्राकृतिक सामर्थ्य ही समाप्त हो जाय।
प्राकृतिक संपदा में उन्नति व सुधार - पर्यटन से प्राकृतिक सम्पदा में सुधार आना चाहिए व सम्पदा की उन्नति होनी चाहिए।

पर्यटन साधनों में आपदा प्रबंधन - प्रत्येक पर्यटन साधन में आपदा प्रबंधन का समावेश आवश्यक है।


                                पर्यटक स्थल व पर्यटन स्थल विकास में मानवीय पहलुओं का समावेश


पर्यटन स्थल विकास व प्रचार -प्रसार में यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि पर्यटन से जुड़ा प्रत्येक मनुष्य प्राकृतिक सम्पदा व प्राकृतिक विधियों पर ही  निर्भर है।
मानव जनसंख्या  जबरदस्त रूप से बढ़ रही है।
संसाधन  उपयोग  में प्रति व्यक्ति की भागीदारी बडग रही है।
मनुष्यों की अधिक क्रियाएँ व प्रतिक्रियाएं वातावरण व प्रकृति की मौलिकता के लिए खतरा बन सकती है.
मनुष्य  के कृत्य मनुष्यता व प्राकृतिक संसाधनो को समय से पहले ही  खत्म कर सकते हैं।
मनुष्य व प्रकृति के मध्य ऐसा जटिल संबंध  है कि भविष्य की भविष्यवाणी करना सरल नही है।

                          पर्यटन विकास में अहिंसा का स्थान
 प्राकृतिक व कृत्रिम संसाधनो का उपयोग हो किन्तु अप्राकृतिक रूप से क्षरण ना हो कि स्थानीय लोग व भावी पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनो से बंचित रह जाय।
पर्यटन विकास से सौहार्द्य नष्ट नही होना चाहिए।
पर्यटन विकास से मानवीय सौहार्द्य पर गलत प्रभाव नही पड़ना चाहिए।
पर्यटन से अन्य जीव जंतुओं व वनस्पति पर विपरीत प्रभाव नही पड़ना चाहिए

       सांस्कृतिक वा ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण
पर्यटन से स्थानीय सामाजिक , सांस्कृतिक , ऐतिहासिक धरोहर का संरक्षण होना चाहिए ना कि क्षरण।
 पर्यटन में  स्थानीय , राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय नियमों का पालन होना चाहिए .
पर्यटन विकास से लाभ वितरण इस तरह न हो कि लाभ कुछ ही लोगों तक सीमित हो जाय अपितु सभी को पर्यटन विकास से लाभ मिलना चाहिए।
पर्यटन विकास से स्थानीय मानव  प्रतियोगिता गुणो में सुधार व  विकास  पर्यटन की प्राथमिकता होती है।

Copyright @ Bhishma Kukreti 20 /12/2013

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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल

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Destination Management in Context of Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Almora Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Nainital Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Champawat Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Bageshwar Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Haridwar, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Pauri Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Chamoli Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Tehri Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Dehradun Garhwal, Uttarakhand Tourism Development;

Bhishma Kukreti:
    पर्यटन स्थल प्रबंधन सिद्धन्तों के परिपेक्ष में उत्तराखंड पर्यटन का विवेचन
                               उत्तराखंड परिपेक्ष में पर्यटन स्थल प्रबंधन सिद्धांत  भाग -२

                   Destination Management in Context of Uttarakhand Tourism Development Part -2 art

(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--22   )

 

                                          उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 22
                                                       लेखक : भीष्म कुकरेती                             
                                          (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )


                  पर्यटन स्थल प्रबंधन सिद्धन्तों के परिपेक्ष में  उत्तराखंड पर्यटन का विवेचन
कल हमने पर्यटन स्थल प्रबंधन के सिद्धांतो की चर्चा की आज मोटे मोटे तौर उत्तराखंड पर्यटन का विवेचन किया जाएगा कि क्या उत्तराखंड सचमुच में पर्यटन विकास कर रहा है ?

जन आकांक्षाएं - यद्यपि जन आकांक्षाओं का आकलन बहुपक्षीय और मापदंड भी एक नही होते हैं।  किन्तु उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी  जनता के मन में यह छवि उभरी है कि उत्तराखंड पर्यटन आम जन आकांक्षाओं अनुसार नही हो रहा है।
स्थानीय श्रम व मानवीय संसाधनो की भागीदारी -यदि उत्तराखंड में पर्यटन विकास हुआ है तो वह स्थानीय श्रम व मानवीय कौशल के साथ भागीदारी निभाने में नाकामयाब रहा है। यदि पर्यटन विकास होता तो अवश्य ही ग्रामीण उत्तराखंड से पलायन रुकता।
प्रशिक्षणों का शहरों में केंद्रीय करण - पर्यटन संबंधी प्रशिक्षण शहरों तक सीमित हैं क्योंकि यदि ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन व्यवस्था होती तो पलायन रुकता।
पौड़ी , पिथारगढ़ जैसे क्षेत्रों की अवहेलना - लगता नही कि ग्रामीण पौड़ी गढ़वाल व पिथोरागढ़ जैसे पर्यटन क्षेत्र में कम विकसित क्षेत्रों को महत्व दिया गया है।  ऋषिकेश , हरिद्वार , देहरादून , नैनीताल जैसे स्थलों में बेइंतहा भीड़ बढ़ी है , किन्तु अन्य नये पर्यटक स्थल अभी भी  संसाधन अथवा विपणन की अनदेखी के कारण विकसित नही हो पाये हैं।  उदाहरणार्थ - खिर्सू , लैंसडाउन , मालनी तट , बेलधार , कैंडूळ उपेक्षित ही हैं।
प्रवासियों को सम्म्लित नही किया गया - ऋषिकेश से शिवपुरी -कौडियाला -व्यासी तट गंगा तट पर राफ्टिंग आदि पर्यटन विकसित हुआ है।  किन्तु इसका आकलन कभी नही हुआ कि लक्ष्मण झूला से लेकर व्यासी  (उदयपुर , तल्ला ढांगू , बिछला ढांगू ) तक के कितने ग्रामवासी इस उद्यम में शामिल हुए हैं और कितने प्रवासी इन उद्यमों से प्रेरित हो अपने गाँवों की ओर वापस आये हैं ?
कृषि को पर्यटन से संबल नही मिला - सबसे अधिक चिंतनीय विषय यह है कि उत्तराखंड में पर्यटन उद्यम को लाभ हुआ किन्तु पहाड़ों में कृषि करना बंद भी हुआ है।  याने कि पर्यटन ने स्थानीय उदयमों को कोई आधारभूत सहायता नही की है। आज भी दूध , फल, फूल  आदि का आयात होता है।
स्थानीय कला वृद्धि - पर्यटन से स्थानीय कुटीर उद्यम जैसे कला को बढ़ावा मिलना चाहिए किन्तु बद्रीनाथ में कोई स्थानीय  (कुटीर उद्योग संबंधी कलाकृति नही दिखती है।
स्थानीय खान -पान को संबल - पर्यटन का एक मुख्य ध्येय यह भी होता है कि स्थानीय भोज्य पदार्थ की विक्री हो किन्तु उत्तराखंड में उलटा हुआ है।  स्थानीय खान पान अब स्थानीय जनता के मध्य भी खत्म हो रहा है और वाह्य खान पान का प्रादुर्भाव अधिक हो रहा है।
पर्यावरण को भयंकर खतरा - उत्तराखंड पर्यटन से पर्यावरण रक्षा कम हो रहा है जब कि पर्यटन पर्यावरण को खतरा पैदा कर रहा है ।
आपदा प्रबंधन का संकट -  पर्यटन स्थल विकास में आपदा प्रबंधन साधनों में अंतर्हित होता है।  किन्तु सन 2013 की आपदा सिद्ध करती है कि उत्तराखंड पर्यटन विकास में आपदाओं की रक्षा की  कोई ठोस योजना नही बनाई गईं थीं।
आनंददायक आर्थिक विकास - स्थानीय पर्यटन विकास का सबसे प्रथम उद्येश होता है कि स्थानीय जनता को आनंददायक आर्थिक मिले किन्तु लगता नही कि उत्तराखंड पर्यटन विकास से स्थानीय जनता को आनंददायक लाभ मिला है

अत: उत्तराखंड पर्यटन विभाग को उपरोक्त विषयों पर गम्भीरता पूर्वक ध्यान देना होगा।


Copyright @ Bhishma Kukreti 23 /12/2013

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Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वारा , गढ़वाल

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Destination Management in Context of Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Almora Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Nainital Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Champawat Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Bageshwar Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Haridwar, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Pauri Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Chamoli Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Tehri Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Uttarkashi Garhwal, Uttarakhand Tourism Development; Destination Management in Context of Dehradun Garhwal, Uttarakhand Tourism Development;

Bhishma Kukreti:
                               पर्यटक स्थल में आकर्षण के आयाम व महत्व -अ

                          उत्तराखंड परिपेक्ष में पर्यटन स्थल प्रबंधन सिद्धांत  भाग -3

                   Destination Management in Context of Uttarakhand Tourism Development Part -3 t

(Tourism and Hospitality Marketing Management for Garhwal, Kumaon and Hardwar series--23   )

 

                                          उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 23
                                                       लेखक : भीष्म कुकरेती                             
                                          (विपणन व विक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 किसी भी पर्यटक स्थल में मुख्य रूप से तीन कारणो से पर्यटक आकर्षित होते हैं -
१- भौगोलिक कारणो से
२-ज्ञान के कारणो से
३- कला के कारणो से
                               
                                 भौगोलिक आकर्षण
जल, पृथ्वी व आकाश की   विशेषताओं के कारण पर्यटक स्थल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। जिअसे उत्तराखंड का प्रत्येक क्षेत्र  प्रत्येक गाँव भी अपनी अभिन्न विषेशताओं के कारण पर्यटक स्थल बन सकता है। नैनीताल , पौड़ी , मसूरी , लैंसडाउन अपने भौगोलिक कारणो से ही पर्यटक स्थल बने या बनाये गए।
                                   ज्ञान से पर्यटन  आकर्षण पैदा करना

 भौगोलिक अथवा अन्य कारणो से पर्यटक स्थल को ज्ञान संसाधन सहायता देते हैं।  अथवा ज्ञान वितरण की सेवा स्वयमेव  पर्यटक स्थल बन जाता है। जैसे मल्ला ढांगू , पौड़ी गढ़वाल में सिलोगी एक निर्जन स्थान था।  किन्तु 1923 में मिडल स्कूल खुलने से सिलोगी एक पर्यटक स्थल में भी परिवर्तित हो गया।  इसी प्रकार देहरादून में डीएवी स्कूल , दून स्कूल ने देहरादून को पर्यटन स्थान बनाने में एक विशेष भूमिका प्रदान की।
 ज्ञान की परिभाषा - कोई भी वह कार्य जो बिना व्यवधान के वाणी द्वारा सम्पन हो वह ज्ञान कहलाता है।
ज्ञान असंख्य हैं किन्तु मुख्य ज्ञान इस प्रकार हैं
मानसिक अशांति व शान्ति ज्ञान
वभिन्न वृति, व्यवहार  ज्ञान
विभिन्न धार्मिक कर्मकांड ज्ञान
भौतिक ज्ञान,  रसायन , जीव  , भूगर्भ ज्ञान व बिज्ञान
ब्रह्माण्ड ज्ञान
संगीत ज्ञान
चिकित्सा व शरीर ज्ञान
युद्ध विज्ञान
मंत्र व तंत्र विज्ञान
नृत्य ज्ञान
स्थापत्य , शस्त्र व यंत्रादि ज्ञान -विज्ञान
शिक्षा ज्ञान
व्याकरण ज्ञान
धार्मिक , सामजिक , सांस्कृतिक , भौगोलिक विधि विधान ज्ञान
उक्तियों का ज्ञान
ज्योतिष ज्ञान
छंद विज्ञानं
वैशिषिकी ज्ञान
तर्क ज्ञान
संख्या योग विज्ञानं
योग विज्ञानं
इतिहास
पुराण व लोक साहित्य
आस्तिक व  नास्तिक मत विज्ञान
अर्थ शास्त्र व वाणिज्य
कामशास्त्र
शिल्पशास्त्र
अलंकार शास्त्र (गहने , मेक अप व सौंदर्यीकरण )
 
काव्य याने साहित्य , फ़िल्में, सांस्कृतिक कार्यक्रम , नाटक आदि
देश भाषा
अवसरानुकूल कथन
वभिन्न धार्मिक मतों का ज्ञान
सामयिक संवैधानिक शास्त्र
अन्य ज्ञान
इन ज्ञानो की सहायता से ही पर्यटक स्थल में साधन जुटाए जाते है



Copyright @ Bhishma Kukreti 24 /12/2013

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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल

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