Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 42262 times)

Bhishma Kukreti

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मेरे सपनों का गैरसैण:  हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय स्थापना   !

(Making Gairsain a world Famous Medical Tourist Destination)
मेरे सपनों का गैरसैण: मेडिकल टूरिज्म की अलकापुरी ! श्रृंखला - .. 2
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(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--157 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 157
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स्वप्नदृष्टा - भीष्म कुकरेती ( विपणन आचार्य )

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  किसी भी टूरिस्ट डेस्टिनेशन प्रसिद्धि हेतु केवल एक प्रोडक्ट या एक कॉन्सेप्ट की पर्याप्त  होता  अपितु अन्य प्रोडक्ट्स व विचारों की भी आवश्यकता पड़ती है। गैरसैण को यदि विश्वस्तरीय राजधानी बनाना है तो गैरसैण के 10 किलोमीटर वृत्त में कई अन्य टूरिस्ट प्रोडक्ट्स भी आवश्यक हैं.
   गैरसैण में एक विश्वस्तरीय हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय उतना ही आवश्यक है जितना उत्तराखंड को गैरसैण राजधानी की आवश्यकता है।
     विश्वस्तरीय आतिथ्य प्रबंधन विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र , मनोविज्ञान , एप्लाइड साइंस , फ़ूड ऐंड  बिवरेज , होटल मैनेजमेंट , कृषि विक्री मैनेजमेंट , विभिन्न मैनेजमेंट विषय, मार्केटिंग  आदि विषय तो होंगे ही साथ  में अनुसंधान केंद्र भी आवश्यक है।
       विश्वस्तरीय आतिथ्य विश्वविद्यालय में उत्तराखंड के छात्र ही नहीं , देस व विदेशों से भी छात्र आने आवश्यक हैं।  कम से कम 50 % छात्र विदेशौं से आएं तभी इस विश्वविद्यालय का औचित्य है। विश्वस्तरीय हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय  का मुख्य उद्देश्य शिक्षा पर्यटन को विकसित कर उत्तराखंड को शिक्षा निर्यात का श्रेष्ठतम  केंद्र बनान  होगा।
   गैरसैण में विश्वस्तरीय हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय उत्तराखंड पृतन का ब्रैंड अम्बेसडर ही होगा।
    मेरी राय है कि स्विटजर लैंड के किसी सम्मानित विश्वस्तरीय हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट  संस्थान के साथ अन्य भारतीय वित्तीय निवेशक को साथ लेकर गैरसैण में विश्वस्तरीय हॉस्पिटलिटी मैनेजमेंट विश्वविद्यालय खोला जाना चाहिए। उत्तराखंड शासन को भूमि , जल आदि का प्रबंध करने के अतिरिक्त बाकी प्राइवेट संस्थानों को विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय खोलने का प्रबंध करना चाहिए।

   
     

Copyright@ Bhishma Kukreti
मेरे सपनों का गैरसैण: मेडिकल टूरिज्म की अलकापुरी ! श्रृंखला - ..
 Dream Uttarakhand Capital Gairsain; Dream Uttarakhand (Himalaya )Capital Gairsain; Dream Uttarakhand  (North India) Capital Gairsain; Making Gairsain a Medical Tourist Destination ; Ayurveda Hospitals in Gairsain; Allopathic Hospitals in Gairsain; Homeopathy Hospitals in Gairsain; Ethnic Food Marketing Research Center, Gairsain

Bhishma Kukreti

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फतेशाह -उपेंद्र शाह शाह काल (1684 -1750 ) में प्रभावी पर्यटन स्थलों की स्थापना

Uttarakhand Medical Tourism in Shah Period
(  फतेशाह काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -52

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  52                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--159 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 159

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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 अधिकतर गढ़वाल शासक फतेशाह का काल (1684 -1749 ) व उपेंद्र शाह का काल 1749 -1750 माना जाता है। इस काल में कई घटनायें  उत्तराखंड पर्यटन को आज तक प्रभावित कर रही हैं।

 जटाधर मिश्र कृत -फतेशाहप्रकाश '- जटाधर मिश्र ने फ्तशाहप्रकाश नामक ज्योतिष ग्रंथ रचा।

गुरु राम राय को भूमि दान - फतेशाह ने गुरु राम राय को खुड़बुड़ा , राजपुर , चामासारी गांव प्रदान किये और उसके पौत्र प्रदीपशाह ने धामावाला , धुरत वाला , मिंया वाला व पंडितवाड़ी ने ग्रामदान दिए। धामावाला से ही देहरादून शहर बसने की प्रक्रिया शुरू हुयी।

श्रीनगर में गुरु मंदिर -गुरु राम राय प्रायः श्रीनगर में निवास करते थे। फतेशाह ने श्रीनगर में गुरुमंदिर निर्माण किया था जो संभवतया बिहंगनी बाढ़ में बह गया था।

गुरु दरबार निर्माण -गुरु राम राय की विधवा माता पंजाब कौर ने गुरु शिष्य अवध दास व हरसेवक दास की सहायता से गुरु दरबार निर्माण किया।  गुरु दरबार जहांगीर मकबरे की नकल पर आधारित है। उत्तराखंड में मुगल शैली का पहला भव्य वास्तु उदाहरण है गुरु राम राय दरबार।  वर्तमान में गुरु राम दरबार देहरादून का प्रमुख पर्यटन केंद्र है।
 गुरु गोबिंद सिंह के चेलों का आतंक - गुरु गोबिंद सिंह बिलासपुर में निवास करते थे। पश्चिम गढ़वाल पर गुरु गोबिंद सिंह के चेले हमेशा आतंकी हमला कर गढ़वाल की जनता को लूटा करते थे जो अग्रेजों के आगमन तक होता रहा।
फतेशाह पांवटा में - गुरु गोबिंद सिंह की मध्यस्ता में फतेशाह व सिरमौर नरेश
  फतेशाह  की पुत्री विवाह में गुरु गोबिंद सिंह के  अड़ंगे  ने आगे युद्ध की तयारी करवाई।
 पर्वतीय राजाओं का गुरु गोबिंद सिंह के बिरुद्ध तीन युद्ध हुए जिसमे फतेशाह ने भी भाग लिया।  गुरु गोबिंद सिंह ने विचित्र नाटक में फतेशाह की मृत्यु का सरासर झूठा वर्णन किया है।
  फतेशाह कई सीमाओं से उलझा रहा और पड़ोसियों से युद्ध हुए।
गुरु गोबिंद सिंह के कथन कि उसने हेमकूट सप्तश्रृंग ,गढ़वाल में पिछले जन्म में तपस्या की थी तो उसके मरणोपरांत सिखों गुरुद्वारा की नींव रखी।  जो आज गढ़वाल का एक प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र में बदल गया है।
   लोककथाओं में गढ़ मंत्री पुरिया नैथाणी दिल्ली दरबार में हाजिर हुआ था।  किन्तु कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।

   भूषण कवि का आगमन -भूषण कवि गढ़वाल राजधानी आया था और सीरी नगर राजा की प्रशसा में कवित्व किया था। (शिवराज भूषण चंद 249 )

कवि मतिराम का आगमन -   

 कवि मतिराम ने अपने वृत्तकौमदी में फतेप्रकाश की प्रशंसा की है मतिराम ने यह ग्रंथ मौलराम के पिता मंगतराम को समर्पित किया था।

रतन कवि क्षेमराज का आगमन - रतन कवि क्षेमराज ने फतेप्रकाश की रचना श्रीनगर में की।

 गोकुलनाथ जगन्नाथ मिश्र आगमन - संस्कृत विद्वान् कुछ दिन श्रीनगर में रहे।  उनके रचे ग्रंथ सेंट पीटरस्बर्ग पुस्तकालय में सुरक्षित हैं।


  राजसभा में नवरत्न - फतेशः की राजसभा में सुरेशा नंद बड़थ्वाल , रेवतराम धस्माना , रुद्रिदत्त किमोठी , हरी दत्त नौटियाल , बास्बा नंद बहुगुणा , शशिधर डंगवाल ,सहदेव चंदोला , कीर्तिराम कैंथोला तथा हरिदत्त थपलियाल विद्वान् थे।

 फतेशाहयशोवर्णन - फतेशाह के राजकवि विद्वान् रामचंद्र कंडियाल ने 1665 में इस काव्य ग्रंथ की रचना की थी।

   चित्रकारों को प्रश्रय - फतेशाह ने कई चित्रकारों जैसे ंगतराम को राज प्रश्रय दिया था।  मौलारम मंगतराम का पुत्र था।

   संगीतप्रेमी -फतेशाह संगीत प्रेमी था अतः  अवश्य ही मुस्लिम संगीतकारों का श्रीनगर आना जाना रहा होगा।


          गढ़वाल की छवि वृद्धि


   उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण से सिद्ध है कि  फतेशाह काल में गढ़वाल की छवि प्रसारण दूर दूर तक हुआ व दो प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थलों -गुरु राम राय दरबार और हेमकुंड साहिब (बाद में ही सही ) की स्थपना हई।  ये दोनों स्थल गढ़वाल को आज भी अंतर्राष्ट्रीय छवि दिलाते हैं।


  मुगल काल में  आयुर्वेद शिक्षा

     औरंगजेब काल में फ़्रांस का फ्रांकोइस बर्नियर भारत आया था।  बर्नियर दारा शिकोह का व्यक्तिगत चिकित्स्क रहा फिर औरंगजेब की सभा में चिकित्स्क रहा। बर्नियर ने अपने संस्मरण लिखे थे -जैसे न्यू डिवीजन ऑफ  अर्थ व ट्रैवेल्स इन द मुगल ऐम्पायर।

    बर्नियर ने मुगल काल में भारत में हिन्दुओं द्वारा शिक्षा पर भी प्रकाश डाला है।  बर्नियर अनुसार हिन्दू  विद्यालय मंदिरों में ही थे।  शिक्षा हेतु कोई आधारभूत नियम न थे। कोई प्रकाशित पुस्तकें न थीं।  पंडित पुराण आदि की शिक्षा देते थे।

    उच्च शिक्षा के विश्वविद्यालय सारे भारत में बिखरे थे।  मुख्य  शिक्षा केंद्र -बनारस , मथुरा ,नादिया , मिथिला , तिरहुत , पैठण , कराड , ठट्टे , मुल्तान थे।

    बनारस व नादिया की अधिक प्रसिद्धि थी।

    इन उच्च शिक्षा केंद्रों में भी औपचारिक शिक्षा व्यवस्था तो नहीं थी किन्तु व्यक्तिगत अध्यापक शिक्षा देते थे।

  इन शिक्षा केंद्रों में व्याकरण , दर्शन ,इतिहास , काव्य , खगोल विज्ञान , ज्योतिष , गणित , मानव आयुर्विज्ञान , जंतु आयुर्विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।

      चूँकि आयुर्विज्ञान हेतु कोई औपचारिक विशेष शिक्षा (Specialized ) व्यवस्था न थी उपनिषद व्यवस्था के तहत जिस विद्यार्थी को आयुर्विज्ञान रुचिकर था वह विद्यार्थी अपना आयुर्वेद का गुरु खोजकर उससे आयुर्वेद अध्ययन कर लेता था।  वैसे विद्यार्थी सभी विषयों की शिक्षा ग्रहण करते थे जिसमे मानव व जंतु आयुर्विज्ञान भी सम्मलित थे।  यही कारण है कि भारत में सन 1970  तक सर्वत्र कर्मकांडी ब्राह्मण ही आयुर्वेद चिकित्सक भी होता था।  कुछ कर्मकांडी ब्राह्मण आयुर्वेद में अधिक रूचि लेते थे  तो वे आयुर्वेद औषधि शोधन को मुख्य व्यवसाय बना लेते थे और वैद के नाम से प्रसिद्ध हो जाते  थे।  ग्रामीण व्यवस्था में कर्मकांडी ब्राह्मण अपने बालकों को घर में ही उपरोक्त सभी विद्याओं का ज्ञान कराते थे व इस तरह परम्परागत रूप से आयुर्वेद जीवित रहा व सदियों तक चलता रहा।

     मुगल शासन का प्रभाव अधिकतर शहरों में रहा।  हिन्दू ग्रामीण समाज तक यूनानी औषधियों का प्रचार प्रसार न होने से समाज ने अपनी व्यवस्था स्थापित  थी जिसमे समाज ब्राह्मणों और आयुर्वेद संबंधी शिल्पकारों के जीवन यापन का स्वतः प्रबंध कर लेता था जिससे आयुर्वेद बिना शासकीय संरक्षण के भी सैकड़ों साल तक जीवित रहा।


 गढ़वाल कुमाऊं में आयुर्वेद

       मुगल काल में गढ़वाल कुमाऊं में ब्राह्मणों के बसने का सिलसिला चलता रहा तो ब्राह्मण के द्वारा आयुर्वेद गढ़वाल व कुमाऊं में ज़िंदा रहा।

     गढ़वाल -कुमाऊं में बाहर से कई संस्कृत विद्वान् राजसभाओं में व बद्रीनाथ व अन्य धार्मिक स्थल यात्रा पर आते जाते रहते थे जो स्थानीय विद्वानों को आयरूवेद की नई सूचना भी देते थे जिससे नए ज्ञान का भी आदान प्रदान होता था।  संभवतया इन विद्वानों द्वारा हिमालय की जड़ी बूटियों का ज्ञान मैदानों में प्रसारित होता था।

      जड़ी बूटियों का ज्ञान आयात -निर्यात व्यापारियों से भी प्रसारित होता था।


Copyright @ Bhishma Kukreti  25 /3 //2018

ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;




Bhishma Kukreti

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प्रदीप शाह काल (1717 -1772) व ऋषिकेश =देवप्रयाग मार्ग पर चिकित्सा प्रबंध

Uttarakhand Medical Tourism in Shah Dynasty
(  शाह वंश काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -53

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  53                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--160)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 160

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   किसी भी शाह वंशी राजा ने इतने साल राज नहीं किया जितना प्रदीप शाह ने।  उसके काल को इतिहासकार दो भागों में बांटते है राणी राज और प्रदीप शाह राज।


            राणीराज

   बालक प्रदीप को राज सिंहासन पर बैठाकर उसकी माँ ने राज किया।

  दलबंदी - कुमाऊं की ही तरह जहां विभिन्न सभसद दलों मध्य दलबंदी थी गढ़वाल में भी मेदनीशाह काल से ही राजपूत दल (बाहर से ए राजपूत ) और खस दलों (आदि काल के सैनिक ) में भयंकर दलबंदी चलने लग गयी थी जिसने आगे जाकर गढ़वाल व कुमाऊं को दासता के गर्त में धकेला।  आज भारत में भी भारत को छोड़ स्वार्थ दलबंदी का युग दीख ही रहा है।

  कटोचगर्दी - राणी के शासन में  मेदनीशाह के समय हिमाचल से आये कटोचों की संतानों ने शासन अपने हाथ में ले रखा था और कई अत्त्याचार किये अन्य दल वालों की जघन्य हत्त्या करवाई।  इन्हे बाद में हत्त्या कर मार डाला गया था।

कठैत गर्दी -कटोचों के उत्पाटन के बाद कठैत शासन में दखलंदाजी करने लगे।  कठैतों के अत्त्याचार काल को कठैतगर्दी कहा जाता है

 इस काल में कई नए कर लगे और कई करों में बृद्धि हुयी।

 सदाव्रत - यात्रियों हेतु मंत्री शंकर डोभाल ने सदाव्रत खोले किन्तु बाद में मंत्री खंडूड़ी ने सदाव्रत बंद करवा दिए।


                प्रदीप शाह शासन

  प्रदीप शाह द्वारा शासन में शासन में चुस्ती  आयी , स्थिरता आयी।

 कुमाऊं की सहायता - कुमाऊं पर रोहिला आक्रमण हुआ तो प्रदीप शाह ने कुमाऊं की भरपूर सहायता की और मैत्री संबंध सुदृढ़ किये किन्तु किन्तु कुमाऊं मंत्री शिव दत्त जोशी आदि के कारण दोनों देशों मध्य युद्ध हुआ  फिर मैत्री हुयी। गढ़वाली मंत्रियों ने घूस खाकर राजा के साथ विश्वासघात किया।

 दून प्रदेश - 1757 के लगभग दून प्रदेश पर नजीबुददौला ने दून पर अधिकार कर लिया और पुनः 1770 में दून पर गढ़ववली शाशक ने अधिकार किया। नजीब्बुदौला के शासन में दून ने प्रगति की और दून में व्यापारिक मंडी खुली जो व्यापारिक पर्यटन हितकारी सिद्ध हुआ।

 इस दौरान दक्षिण गढ़वाल पर रोहिलाओं के छापे निरंतर पड़ते रहे।

 मराठों के आक्रमण - मराठे हरिद्वार , सहारनपुर तक पंहुच चुके थे और चंडीघाट -भाभर से होते हुए नजीबाबाद पर उन्होंने आक्रमण किया साथ ही साथ  प्रजा को लूटा। लूटने में किसी भी आक्रमणकारी ने कभी कमी नहीं की।


          स्वचलित।  समाज चलित व शासन चलित पर्यटन प्रबंध

                         

    इस दौरान व भूतकाल में भी गढ़वाल में धार्मिक पर्यटन स्वचलित , समाजचलित व शासन चलित प्रबंध से चलता था। चूँकि तब भारत में व्यापार को निम्न श्रेणी का कार्य समझा जाता था तो शासन का ध्यान यात्राओं से कमाई पर कम जाता था तो शासक जो भी कार्य यात्रियों की सुविधा हेतु करते थे वे धार्मिक व धर्म से फल पाने की इच्छा से करते थे।  मंदिरों की आर्थिक व्यवस्था भूमि दान से व दक्षिणाओं से चलती थी।  यात्रा पथ पर निकटवर्ती ग्रामीण वैद्यों से यात्रियों की चिकत्सा चलती थी।  किन्तु यदि हम सर्यूळ  ब्राह्मणों के इतिहास जो संभवतया आयुर्वेद में अधिक सम्पन थे तो  है कि ब्रिटिश शासन काल से पहले पौड़ी गढ़वाल के हजारों वर्षों से चलते पुराने ऋषिकेश - बद्रीनाथ मार्ग पर व्यासचट्टी या देवप्रयाग तक कोई तथाकथित उच्च वर्गीय ब्राह्मणों का कोई गाँव ही नहीं था।  झैड़ के मैठाणी , व खंड के बड़थ्वाल भी ब्रिटिश काल के बाद ही या कुछ समय पहले बसे होंगे।


                         ऋषिकेश -देव प्रयाग मार्ग में भट्ट या अन्य ब्राह्मण चिकित्स्क


  ऋषिकेश से देवप्रयाग मार्ग पर या आस पास कई गाँवों में ग्राम नाम से उपजी ब्राह्मण जातियां बसी हैं।  जिन्हे उच्च ब्राह्मणों का दर्जा हासिल नहीं था।  क्या ये ब्राह्मण यात्रा मार्ग पर यात्रियों की चिकित्सा करते थे ? ऋषिकेश से देवप्रयाग के मध्य अधिकतर गांव राजपूतों के गाँव हैं और यह भी एक कटु सत्य है कि इन गाँवों में अधिकतर कोई भी राजपूत जाति तथाकथित उच्च राजपूत जाति में नहीं गिनी जाती थी।  ब्रिटिश काल से पहले से ही यात्रा मार्ग पर चट्टी व्यवस्था थी।  यह भी एक अन्य कटु सत्य है कि चट्टी में दुकानदार ब्राह्मण कम ही होते थे अपितु राजपूत अधिक थे।  हाँ श्रीनगर से आगे काला जाति वाले चट्टियों में व्यापार करते थे।

       अब प्रश्न उठता है कि तथाकथित निम्न वर्गीय ब्राह्मण यदि आयुर्वेद जानते थे तो कैसे इन्हे ब्रह्मणों में उच्च पद नहीं मिला ? ब्रिटिश काल में एक प्रथा और चली कि जिस ब्राह्मण जाति के गुरु ब्राह्मण सर्यूळ वह बड़ा ब्राह्मण तो ब्रिटिश काल में सलाण में सर्यूळ बसाये गए जैसे जसपुर ढांगू में बहुगुणा व झैड़ में मैठाणी ,अमाल्डू डबरालस्यूं में उनियाल , उदयपुर में रतूड़ी , थपलियाल आदि। मल्ला ढांगू में नैल -रैंस में बिंजोला भी ब्रिटिश काल में ही बसे होंगे। यह आश्चर्य है कि ना तो बहुगुणा ना ही उनियाल या ना ही रतूड़ियों ने वैदगिरी की।  डबरालस्यूं में डबराल वैदगिरी करते थे।  बडोला, कंडवाल, कुकरेती,  भट्ट ब्राह्मण उदयपुर में वैदकी करते थे।

         यात्रा मार्ग के निकटवर्ती क्षेत्र में ब्रिटिश काल में मल्ला ढांगू में आयुर्वेद चिकित्सा पर किमसार से कुकरेतियों  द्वारा ठंठोली में बसाये गए कण्डवालों का एकछत्र राज रहा।  कंडवाल तल्ला ढांगू व उदयपुर तक चिकित्सा हेतु भ्रमण करते थे। व दूसरे भाग मल्ला ढांगू में बलूणियों का एक छत्र राज था ।  कठूड़ के कुकरेती भी तल्ला ढांगू में चिकत्सा करते थे।  तल्ला ढांगू में व पूर्व  बिछला ढांगू में झैड़ के मैठाणी वैदगिरी संभालते थे तो पश्चिम बिछला ढांगू में खंड गडमोला के बड़थ्वाल वैदकी संभालते थे। ऋषिकेश से शिवपुरी तक शायद भट्ट जाति (सभी जाति सम्मिलित ) वैद चिकित्सा संभालते थे।

     ब्रिटिश काल व बाद में भी व्यासचट्टी से देवप्रययग तक कंडवाल स्यूं पट्टी के  बागी गाँव के भट्ट व खोळा गाँव के भटकोटि जाति वैदगिरी संभालते थे। मैंने झैड़ के  मैठाणी  व खंड के बड़थ्वाल साथियों से सुना है कि चिकित्सा या अन्य सुविधा देने पर यात्री सुई -तागा या अन्य  वह वस्तु देते थे जो गढ़वाल में अप्राप्य थी।  वैसे ब्रिटिश काल में तैड़ी बिछला  ढांगू ) के रियाल भी वैदकी करते थे तो उन्होंने भी यात्रियों को चिकित्सा सहायता दी ही होगी।  हो सकता है बड़ेथ से खंड में बड़थ्वालों के बसने से पहले तैड़ी के रियाल ही बिछला ढांगू में चिकत्सा संभालते रहे होंगे। चूँकि गोरखा राज में बहुत उथल पुथल हुयी व ब्रिटिश राज में कई नए ग्रामों की बसाहट हुयी तो ऋषिकेश से देवप्रयाग तक चिकित्सा प्रबंध का क्रमगत इतिहास मिलना कठिन ही है।  इस लेखक ने कुछ को पूछा भी तो कोई सही तर्कसंगत उत्तर इस क्षेत्र के ब्राह्मणों से नहीं मिला।

ब्रिटिश काल में तो कांडी (बिछला ढांगू ) अस्पताल खुलने  से कई बदलाव आये।

     

 

       


Copyright @ Bhishma Kukreti   26/3 //2018

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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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ललित शाह काल ( 1172 -1781 ) : गढ़वाल -कुमाऊं अवसान के बीजांकुर काल

Uttarakhand Tourism in Lalit Shah Period
(  में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -54

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  54                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--161 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 1561

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  गढ़वाल राजा ललित शाह काल अर्थात कुमाऊं व गढ़वाल देशों के अवसान के दिनों की आधारशिला।  कुमाऊं में मंत्रियों द्वारा विशेषकर जोशियों व राजपूत दलों मध्य  राजा के नाम परोक्ष रूप से राज करने की पर्तिस्पर्धा में ललित शाह फंस गया और दोनों देशों को भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ा।

   बदीनाथ मंदिर में रावल पुजारियों द्वारा पूजा व्यवस्था प्रारम्भ

  ललित शाह के समय बद्रीनाथ व ज्योतिर्मठ की व्यवस्था दंडी स्वामी संभालते थे।  1776 में ललित शाह जब बद्रीनाथ यात्रा पर थे तब दंडी स्वामी रामकृष्ण की मृत्यु हो गयी।  उस समय गोपालनम्बूरी नामक भोग पकाने वाले रसोईया को पुजारी बना दिया गया और उसे डिम्मर गाँव भूदान में दे दिया गया। तब से बद्रीनाथ में रवालों द्वारा पूजा अर्चना शुरू हुयी और ये रावल केरल से  नम्बूदरीपाद , चोली या मुकाणी जाति के ब्राह्मण होते हैं।


      जाबितखान का दून पर आक्रमण

1775 में मुगल बक्शी जाबितखान ने दून पर आक्रमण किया।


  सिखों के आक्रमण

  उसके बाद सिक्खों ने देहरादून को बेरहमी से दो तीन बार लूटा।

    गढ़वाली  सेना के आने से पहले सिख  भाग चुके थे।  गढ़वाली सेना ने सिरमौर  पर आक्रमण किया (1779 ) और पराजित हुयी।


     रुड़की के गुजर और राजपूतों की लूट

   रुड़की -हरिद्वार का डाकू सरदार (लंढौर राजा ) या राजा सदा की तरह देहरादून पर डाका डालता रहता था।


       कुमाऊं के जोशियों के फंदे में फंसना

  ललित शाह कुमउनके जोशियों के जाल में फंसा और उसने अपने पुत्र पद्युम्न शाह का प्रद्युम्न चंद के नाम से कुमाऊं राजा के रूप में श्रीनगर में राजतिलक करवाया /

   बाद में जोशियों के बहकावे में आकर ललित शाह कुमाऊं अभियान शुरू किया। और  ललित शाह ने जोशियों के बुरे बर्ताव सहते सहते दुलड़ी में प्राण त्यागे।

 

  सहारनपुर पर अफगानी  रोहिल्लाओं का शासन

   मुगल काल से ही सहारनपुर पर सूबेदारों का ही राज रहा जो मनमानी करते थे। शाहजहां काल में सय्यद परिवार सहारनपुर के सुब्दार रहे। 1739 में नादिरशाही के पश्चात रोहिलाओं ने 1757  तक शासन किया।  हरिद्वार रुड़की में गुजर , राजपूत भी राज करते थे याने रोहिलाओं के होते भी आधुनिक डॉन जैसे क्षत्रप थे।

    मुगल सूबेदार या रोहिला आदि हरिद्वार में धार्मिक पूजाओं पर बंधन नहीं लगाया करते थे। किन्तु उथल -पुथल होने से पर्यटन में कमजोरी तो रही  ही होगी।


         सहारनपुर क्षेत्र पर मराठा शासन

          सन 1748 से 1803 तक सहारनपुर , हरिद्वार व रुड़की पर मराठा शासन रहा।  मराठे सैनिक भी लूटने में कमी नहीं करते थे।


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ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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  जैकीर्ति  शाह और प्रद्युम्न शाह काल याने वर्तमान  उत्तराखंड व भारत

Uttarakhand Tourism in Jaikirti Shah and Pradyuman Shah Period
(  शाह काल में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -54

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  54                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--161 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 161

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
 जैकीर्ति शाह काल (1780 -1785 ) में जैकीर्ति ने केवल दो ढाई साल ही नाम हेतु शासन किया।  डोभाल मंत्रियों  की आपस में दलबंदी , खण्डूड़ी व डोभाल मंत्रियों  के मध्य हत्त्या वाला बैमनस्य नेगियों, घमंड सिंह मियाँ द्वारा श्रीनगर की गलियों में अराजकता प्रसारण , सिक्खों का दून पर आक्रमण , अजबराम का षड्यंत्र , उधर कुमाऊं में जोशियों के नापाक षड्यंत्र ,प्रद्युमन शाह का कुमाऊं में राज करना आदि गढ़वाल राज के अवसान समय आने का काल है।
  प्रद्युम्न शाह काल (1786 -1804 ) काल तो कुमाऊं की आग द्वारा  गढ़वाल को मटियामेट करने वाला है।  गढ़वाल में षड्यंत्रों का काल है और अंत में गोरखाओं द्वारा गढ़वाल पर अधिकार की कहानी है।
     
              वर्तमान भारत व उत्तराखंड में इतिहास की पुनरावृति
  जैकीर्ति  शाह काल में जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों जैसे नेगियों , मियाओं द्वारा  श्रीनगर में अराजकीय विप्लव हुआ था राजकाज बंधक बना दिया गया था ठीक उसी तरह दक्षिण के राजनैतिक क्षत्रपों ने संसद को बंधक बना लिया है समाज , राजधर्म हासिये पर है और स्वार्थपरक राजनीति अग्रिम पंक्ति में है।
  गढ़वाल के राजकुमार या राजा पराक्रम व प्रद्युम्न शाह के मध्य शासन हेतु षड्यंत्र में गढ़वाल नेपथ्य में चला गया था षड्यंत्र अग्रिम पंक्ति में थे। कॉंग्रेस और भाजपा व अन्य दलों के लिए भारत महत्वपूर्ण  रह ही नहीं गया है अपितु एक दूसरे  को नंगा करने की राजनीति ही रह गयी है सभी दल भारत की बेज्जती करने में आगे दिख रहे हैं।  विदेश नीति में भी राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे को नीचा दिखाने की नीति भी अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं।
    उत्तराखंड में कॉंग्रेस व भाजपा द्वारा केवल और केवल सत्ता हथियाने हेतु आपस में घोर राजनैतक युद्ध , भाजपा व कॉंग्रेस के अंदर ही अंदर भयंकर भीतरघात ने उत्तराखंड राज्य को उतण खंड बना दिया है।

        पर्यटन उद्यम में निरंतरता व स्थायित्व आवश्यक होता है

  कोई भी पर्यटन तभी विकसित होता है जब योजनाओं के कार्यों में  निरंतरता रहे। राजनैतिक दलीय ओछी नीति कार्यों को प्रभावित करे तो पर्यटन विकास की वही  दुर्दशा होगी जो दुर्दसा आज उत्तराखंड पर्यटन की है।  भाजपा और कॉंगेस की आपस में लड़ने की ओछी नीतियां  उत्तराखंडपर्यटन को आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं और सबसे बड़ा रोड़ा है पुराने कार्यों को बंद करना व नए कार्य शुरू करना।  पर्यटन में निरंतरता न हो तो पर्यटन विकसित नहीं हो पाता।  राजनैतिक उठापटक से  उत्तराखंड पर्यटन वैसे विकसित नहीं हो रहा है जिसका वह  हकदार है।

 

         समाज ही उत्तरदायी है

राजनीतिज्ञ दूसरे ग्रह  से अवतरित नहीं होते हैं अपितु हमारे समाज से ही आते हैं।  यदि उत्तराखंड में राजनीतिक कारणों से पर्यटन उस पायदान में नहीं पंहुचा है जिसका उत्तराखंड हकदार है तो उसमे समाज ही उत्तरदायी है।  उत्तराखंडी समाज को ही उत्तरदायित्व लेना होगा कि राजनीतिज्ञ व प्रशासन उत्तराखंड पर्यटन को सही दिशा देकर आगे ले जाएँ।


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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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अट्ठारहवीं सदी में हरिद्वार में चिकित्सा पर्यटन

Uttarakhand Tourism in Haridwar in Eighteenth Century
(  अठारहवीं सदी में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -55

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  55                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--162 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 162

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
  हरिद्वार (गंगाद्वार , कनखल, मायापुरी  ) का  उल्लेख महाभारत , केदारखंड , कालिदास साहित्य ,  हुयेन सांग , तैमूर लंग संस्मरण , गुरु नानक संस्मरण , आईने अकबरी , थॉमस कोरियट ,एडवार्ड  ऐटकिंसन आदि में मिलता है। हरिद्वार के पास सहारनपुर में सिंधु सभ्यता के भी अवशेष मिले हैं।
     तैमूर लंग ने बैशाखी के समय हरिद्वार में कत्ले आम किया था।

                          अट्ठारहवीं सदी में कुम्भ मेला

   यह एक आश्चर्य ही है कि हिन्दू गाते फिरते रहते हैं कि कुम्भ मेला सहस्त्रों वर्षों  से चल रहा है किंतु सबसे पहले कुम्भ मेले का उल्लेख दास्तान -ए -मजहब  (1655 ) में संकेत से ही मिलता है कि जब 1640 में दो अखाड़ों के मध्य युद्ध हुआ था।
   खुलसत -अल -तवारीख़ (1695 ) में बैसाखी के दिन गंगा स्नान आदि क उल्लेख है और लिखा है प्रत्येक 12 वे वर्ष में जब सूर्य कुम्भ राशि में प्रवेश करता है तो  मेला लगता है। किन्तु ग्रंथ में कुम्भ नाम नहीं मिलता है।
   कुम्भ मेले का सर्वप्रथम  उल्लेख 'चहर गुलशन  (17 59 ) में ही मिलता है जिसमे उल्लेख है कि जब गुरु कुम्भ में प्रवेश करता है तो लाखों लोग , फकीर , सन्यासी हरदीवार में जमा होते हैं , नहाते हैं , दान , पिंड दान करते हैं।   स्थानीय सन्यासी प्रयाग से आये फकीरों पर आक्रमण करते हैं।
 1750 तक कुम्भ मेला सबसे बड़ा व्यवसायी मेला बन चूका था।
 
      कुम्भ मेले में 1760 का रक्तपात
धीरेन भगत  व अन्य लेखक जैसे माइकल कुक (2014 )  की पुस्तक 'ऐनसियंट रिलिजन ऐंड  मॉडर्न पॉलिटिक्स (पृ. 236 ) , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रजिस्टरों से पता चलता है कि 1760 के कुम्भ मेले में शैव्य गुसाईं  व वैष्णव बैरागियों मध्य भयंकर युद्ध हुआ था जिसमे 18000 बैरागी मारे गए थे।  1760 के पश्चात जब तक ब्रिटिश ने मेले का प्रबंध अपने हाथ  में नहीं लिया था तब तक वैष्णव बैरागी कुम्भ मेले में भाग नहीं ले सके थे।
 

       1783 के कुम्भ मेले में हैजा प्रकोप

   1783 का हरिद्वार कुम्भ मेला हैजा प्रकोप के लिए जाना जाता है।  कुम्भ मेले हरिद्वार में लगभग 10 -20  लाख भक्तों ने भाग लिया था। शीघ्र ही हरिद्वार में हैजा फ़ैल गया।  जिसमे पहले आठ दिनों में ही 20 सहस्त्र लोगों की जाने गयीं।  ज्वालापुर में हैजा नहीं फैला।
   जो लोग मेले के बाद बद्रीनाथ यात्रा पर गए वे अपने साथ हैजा गढ़वाल ले गए और वहां भी जाने गयीं।
   
        1796 में सिख उदासियों द्वारा शैव्य गुसाइयों की निर्मम हत्त्या

   तब कुम्भ मेले का प्रबंध शैव्य गुसाईं संभालते थे , सिखों के अड़ियल पन से शैव्य व सिखों में ठन गयी।  सिखों के साथ 12 -14 सहस्त्र  खालसा सैनिक भी थे।  कुम्भ के अंतिम दिन 10 अप्रैल 1795  के सुबह 8 बजे से खालसाओं ने गुसाइयों पर हमला बोल दिया कर उसमे लगभग 500 गुसाईं मारे गए।  सिखों ने 3 बजे हरिद्वार छोड़ दिया।
   
           गुसाइयों द्वारा यात्रियों से कर उगाई

  गुसाईं यात्रियों से कर उगाते थे। गुसाईं हाथ में तलवार व ढाल लेर मेले का प्रबंध करते थे।  गुसाईं महंत लोगों की शिकायत सुनते थे और शिकायत समाधान करते थे।


    कुम्भ मेले में चिकित्सा


   ब्रिटिश शासन से पहले मेलों में चिकित्सा सुविधा क्या थी पर कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं मिलता है।  ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा विभिन्न व्याधियों व चिकित्सा व्यवस्था रपटों और स्वामी विवेकानंद के 1880 -92  के मध्य हरिद्वार आने और उनके बीमार पड़ने के वृत्तांत से अनुमान लगाया जा सकता है कि सौ वर्ष पहले हरिद्वार में चिकित्सा व्यवस्था कैसे रही होगी। बाद में रामकृष्ण संस्थान ने सेवाश्रम चिकित्सालय खोला और 1902 तक अठारह महीनों में 1054 रोगियों ने हरिद्वार व ऋषिकेश में स्वास्थ्य लाभ लिया।

   कई नागा साधू , गुसाईं , बैरागी व महंत आयुर्वेद विज्ञ  होते थे और चिकित्सा में योगदान देते थे।

अनुमान ही लगाना पड़ेगा कि चूंकि मेले में हिन्दू ही अधिक भाग लेते थे तो आयुर्वेद चिकित्सक ही मेले में अधिक रहे होंगे।

      धार्मिक मेलों में विद्वान् व विशेषज्ञ भी ज्ञान आदान प्रदान हेतु आते थे तो आयुर्वेद चिकित्स्क अवश्य ही अपना अपना चिकित्सा ज्ञान आदान  प्रदान करते रहे होंगे।

       सत्रहवीं सदी से ही हरिद्वार में धार्मिक मेले व्यवसायक भी होने लगे थे तो जड़ी -बूटी -भष्म आदि की विक्री भी हरिद्वार में होने लगी होगी।  वैसे भी मंडी होने के कारण सामान्य समय में गढ़वाल की जड़ी बूटी व अन्य क्षेत्रों की औषधीय वनस्पति व औषधि हरिद्वार में सैकड़ों वर्षों से व्यापारिक स्तर पर बिकती ही रहती थी।

     यूनानी चिकित्स्क भी मुफ्त में या व्यवसायिक तौर पर हरिद्वार कुम्भ मेले या अन्य धार्मिक मेलों में चिकित्सा करते ही रहे होंगे।  रुड़की तहसील में मुस्लिम गाँवों की उपस्थिति से हड्डी बिठाने वाले , मालिस से व्याधि  दूर करने वाले , कई अन्य व्याधियों को दूर करने वाले घरेलू , यूनानी चिकित्स्क अवश्य मेले में आते रहे होंगे।


            राजस्थान या मुल्तान क्षेत्र से आने वाले जड़ी बूटी विक्रेता

  आज भी हरिद्वार में पारम्परिक आरोग्य चिकित्सा से जुड़े लोग जड़ी बूटी सड़क पर बेचते हैं (आज ये हीलर्स अधिकतर सेक्स बीमारियों हेतु जड़ी बूटी या औषधि बेचते हैं (कुमार अविनाश भाटी मुकेश कुमार , 2014 , ट्रेडिशनल ड्रग्स सोल्ड बाई हर्बल हीलर्स इन हरिद्वार , इण्डिया , इंडियन नॉलेज ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज , vol  13  (3 ) , पृ  600 -05 ) ) ।  ये हीलर्स /आरोग्य साधक अधिकतर राजस्थान घराने के होते हैं। सत्रहवीं -अठारवीं सदी में भी   आरोग्यसाधक जड़ी बूटी मेलों में बेचते होंगे।  मुल्तान क्षेत्र के आरोग्यसाधक भी हरिद्वार में चिकित्सा औषधि बेचते रहे होंगे।


        राजाओं , जमींदारों द्वारा यात्रा याने चिकत्स्कों का प्रबंध

    राजा , महाराजे व जमींदार , धनिक भी हरिद्वार  यात्रा पर आते थे।  अवश्य ही वे धनी , सम्पन लोग या तो अपने साथ चिकित्स्क लाते होंगे या हरिद्वार के पारम्परिक पंडों की सहायता से चिकित्सा प्रबंध करवाते होंगे।

          गुरु नानक की यात्रा पश्चात सिख भी जत्थों में आते थे तो अवश्य ही साथ में वैद्य भी आते ही होंगे।

      सदाव्रत या धर्मार्थ चिकित्सालय भी हरिद्वार में रहे होंगे जिनका प्रबंध आश्रमों व मंदिरों द्वारा होता होगा।  गढ़वाल में सदियों से सदाव्रत या मंदिर व्यवस्थापक न्यूनाधिक रूप से चिकित्सा प्रबंध भी करते थे। गढ़वाल में सदाव्रत हेतु मंदिरों को भूमि मिली होती थी। 


Copyright @ Bhishma Kukreti 29  /3 //2018

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड परिपेक्ष्य में आयुर्वेद निघण्टु  रचना काल

(  आयुर्वेद निघण्टु और में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -5

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  5                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--16 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 16

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
वैदिक शब्दों अथवा क्लिष्ट शब्द संग्रह को निघण्टु कहते थे। चिकित्सा सबंधी
 औषधि संबंधी शब्दकोशों को सामन्य भाषा में अब निघण्टु कहते हैं।
अमरकोश या  पाणनि अष्टाध्यायी में भी चिकत्सा शब्द कोष मिलते हैं जिन्हे आयुर्वेद निघण्टु कहते हैं
आयुर्वेद निघण्टु में निम्न विषयों पर चिंतन
मनन होता  है
१- बनस्पति का भ्पूगोलिक वितरण
२ -बनस्पति का कोई विशेष गुण
 ३- बनस्पति का किसी अन्य बनस्पति से या किसी जंतु से समानता
४- बनस्पति के प्रत्येक भाग का उपयोग
५- तौल के मानक
६-बनस्पति में किसी ग्रंथि होने के प्रभाव
७-पत्तों की संख्या व पत्तों के प्रकार
८- फूल की बनावट व विशेषता
९- फलों की विशेषता
९- बीजों के रंग
९- तने का आकार -प्रकार
१०- बनस्पति से बहने वाला दूध या गोंद (latex ) व विशेषता
११- बनस्पति को सूंघने , छूने पर विशिष्ठ प्रभाव या गुण
१२- बनस्पति की विशिष्ठ सुगंध
१३- कांटे
१४- बनस्पति का प्राकृतक वास
ऐतिहासिक महत्व व पूर्व में संहिताओं व निघण्टुओं  में वर्णन
१५- औषधि निर्माण व चिकित्सा विधि





आयुर्वेद निघंटु रचनाएँ व औषधि पर्यटन


 पांचवीं सदी से आयुर्वेद निघंटु (शब्दकोश ) रचने या संकलित होने शुरू हो गए थे।

अष्टांग निघण्टु (8 वीं सदी ) , पर्याय रत्नमाला (नवीन सदी ) , सिद्धसारा निघण्टु (नवीं  सदी ) , हरमेखला निघण्टु (10 वीं सदी ) ,चमत्कार निघण्टु व मदनांदि निघण्टु (10 वीं सदी ) ,  द्रव्यांगनिकारा ,द्रव्यांगगुण ,धनवंतरी निघण्टु  , इंदु  निघण्टु ,  निमि निघण्टु ,अरुण दत्त निघण्टु , शब्द चंद्रिका , ( सभी 11 वीं सदी ); वाष्पचनद्र निघण्टु , अनेकार्थ कोष (  दोनों 12 वीं सदी ) ; शोधला निघण्टु , सादृशा निघण्टु ,प्रकाश निघण्टु , हृदय दीपिका निघण्टु  (13 वीं सदी ) ;  मदनपाल निघण्टु ,आयुर्वेद महदादि ,राज निघण्टु , गुण  संग्रह (सभी 14 वीं सदी ), कैव्यदेव निघण्टु , भावप्रकाश निघण्टु , धनंजय निघण्टु  (नेपाल ) ,आयुर्वेद सुखायाम ( सभी 16  वीं सदी के ) आदि  संकलित हुए।


आठवीं सदी के माधव कारा रचित 'रोग विनिश्चय' में व्याधियों के लक्षण व रोगी के लक्षण व रोग कारकों पर चिंतन हुआ है।


सत्रहवीं सदी में रचित आयुर्वेद निघण्टु


 सत्रहवीं सदी में निम्न आयुर्वेदिक निघंटुओं  की रचना हुईं  -

लोलिम्बराज कृत -वैद्यवातम्सा अथवा वैद्य जीवन

केशव का कल्पद्रिकोष

त्रिमलभट्ट का द्रव्यगुण शतक व द्रव्य दीपिका

सूर्य कृत चूड़ामणि निघण्टु

माधवकारा  कृत पर्यायरत्नावली

हरिचरण सेन कृत पर्यायमुक्तावली जो पर्यायरत्नावली का परिमार्जित  ग्रंथ लगता है

    अठारहवीं उन्नीसवीं सदी में रचे गए निघण्टु  (1773 AD )

 18 वीं सदी के निघण्टु

महादेव कृत हिकमत प्रकाश

राजबल्लभ  कृत राज्बल्ल्भ निघण्टु

रामकारा कृत निघण्टु रामकारा

विष्णु वासुदेव कृत द्रव्य द्याव्य रत्नावली निघण्टु

व्यासकेशवराम कृत लघु निघण्टु


19 वीं  सदी में रचे गए निघण्टु

लाला सालिग्राम कृत वनस्पति शास्त्र निघण्टु

जय कृष्ण ठाकुर कृत वनस्पति शास्त्र निघण्टु

ब्रजचंद्र गुप्ता रचित वनौषधि दर्पण निघण्टु

सौकार दाजी पाडे  रचित वनौषधि दृश्य निघण्टु


स्थानीय भारतीय षाओं में भी निघण्टु रचे गए हैं जैसे पाली में बुध्यति , तेलगु में बल्ल्भाचार्य रचित वैद्यचिन्तामणि।

    इस लेखक ने किसी अन्य उद्देश्य से अनुभव किया कि इन निघण्टुओं में मध्य हिमालय -उत्तराखंड के कई ऐसी वनस्पतियों का वर्णन है जो या तो विशेषरूप से यहीं पैदा होती  हैं या मध्य हिमालय में प्रचुर मात्रा में पैदा होती हैं।  जैसे भुर्ज, भोजपत्र  या पशुपात की  औषधि उपयोग कैव्य देव निघण्टु ,भावप्रकाश निघण्टु व राज निघण्टु में उल्लेख हुआ है। भोजपत्र औषधि का वर्णन अष्टांगहृदय (5 वीं सदी ) में उत्तरस्थान अध्याय भी हुआ है।

    यद्यपि  इस क्षेत्र में खोज की अति आवश्यकता है किन्तु एक तथ्य तो स्पष्ट है कि इतने उथल पुथल के मध्य भी गढ़वाल , कुमाऊं , हिमाचल , नेपाल की औषधि वनपस्पति प्राप्ति , इन वनस्पतियों का औषधि निर्माण हेतु कच्चा माल निर्माण विधि या निर्मित औषधि विधियों के ज्ञान व अन्य अन्वेषण का कार्य व मध्य हिमालय व भारत के अन्य प्रदेशों में औषधि ज्ञान का आदान प्रदान हो ही रहा था। उत्तराखंड से औषधीय वनस्पति , औषधि निर्माण हेतु डिहाइड्रेटेड , प्रिजर्वड कच्चा माल , या निर्मित औषधियों का निर्यात किसी न किसी माध्यम से चल रहा था।  उसी तरह आयात भी होता रहा होगा। 



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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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व्यापार की  बुराई करना मानव पर अन्याय है (उत्तराखंड पर्यटन )


( ब्रिटिश युग   में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -58

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  58                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--195 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 195

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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  भारत में महाभारत काल से ही धन की प्रशंसा होती है धन की आवश्यकता को महत्व दिया जाता रहा है किंतु व्यापार द्वारा धन कमाई को ओछा माना जाता रहा है।  वैश्यों से दक्षिणा लेना उचित माना जाता है किन्तु वैश्य वृति को हीन  माना जाता रहा है। उत्तराखंड पर्यटन परिपेक्ष्य में आज भी पहाड़ियों के मध्य यही विचार अधिक चल रहा है।  कृपया पर्यटन पर पत्रकारों  की कोई रपट पढ़िए।  एक ओर वे पर्यटन में शासन की सुस्ती को खरी खोटी सुनाते हैं वहीं दूसरी ओर  व्यापार की कटु आलोचना भी करते रहते हैं।  प्रत्येक वासी प्रवासी पहाड़ी का रोदन होता है कि उत्तराखंड में पर्यटन विकसित हो ही नहीं रहा है औऱ स्वयं पर्यटन  व्यापार में निवेश नहीं करता है।
       बहुत से साहित्यकार प्रवासियों पर व्यंग कसते हैं कि प्रवासी देरादून में घर बना रहे हैं।  किन्तु वेचारे नहीं जानते कि देहरादून , ऋषिकेश में घर निर्माण वास्तव में पर्यटन को ही संबल देता है।
  वास्तव में सभी जागरूक पहाड़ियों को सम्पन प्रवासियों को कोटद्वार , सतपुली , नरेंद्रनगर , द्वारहाट आदि स्थानों में घर ही नहीं दूकान निर्माण हेतु प्रेरित करना चाहिए जिससे पर्यटन में न्य निवेश आये।

                 ब्रिटिश काल में उत्तराखंड विकास के नेपथ्य में ब्रिटिश का व्यापारिक मानसिकता का हाथ है

  इसमें दो राय नहीं हैं कि ब्रिटिश जन का गढ़वाल -कुमाऊं विकास के पीछे व्यापार बृद्धि मुख्य उद्देश्य था।  गढ़वाल -गोरखा शासन की तुलना में जनता को अधिक सुविधाएं मिलीं तो वे सुविधाएं ब्रिटिश व्यापार वृद्धि हेतु निर्मित की गयीं थीं।

 व्यापार से समाज में सम्पनता  आती है -
   व्यापार केवल कुछ व्यक्तियों हेतु सम्पनता नहीं लाता अपितु संपूर्ण समाज में सम्पना लाता है। बहुत साल पहले बहुत से पहाड़ी घोड़ा चलाने व्यापार में उतरे तो जनता क माल परिहवन की सुविधा मिलने लगी।  प्राचीन समय में गलादार टिहरी से बैल लाते थे व सलाण  में बेचते थे।  विक्रेता व क्रेता  को लाभ तो मिलता ही था साथ में जहां वे रात्रि वास करते थे उन्हें कुछ न कुछ तो देते ही थे।
 
 व्यापार आजीविका साधन जन्मदाता है
  व्यापार की प्रकृति ऐसी है कि एक व्यापार अपने साथ कई अन्य व्यापारों को भी जन्म देता है जो आजीविका दायक होते हैं।
  व्यापार हेतु आधारभूत संरचना की आवश्यकता होती है और इन आधारभूत संरचनाओं (infrastructure ) से जनता को स्वयमेव सुविधाएँ मिलने लगती हैं।

 व्यापार सब्सिडी से नहीं उत्पादनशीलता के बल पर विकास करता है
विश्व में एशिया व अफ्रिका में कृषि व किसान अधिक समस्याग्रस्त हैं।  एशिया में तो भारतीय सनातन धसरम की मानसिकता काय कर रही है।  सनातन धर्म में अनाज , मांश , दूध आदि विक्री को तुच्छमाना गया था।  वही मानसिकता चीन से लेकर मलेसिया तक अभी भी विद्यमान है।  चीन में कुछ समय तक सेल्समैन को बुरी नजर से देखा जाता था के पीछे भी सनातन धर्मी मानसिकता ही थी। वर्तमान में भारत में भी राजनीतिक दल किसानों को केवल अनाज उपजाने की फैक्ट्री मानते हैं और कोई एक ऐसा तंत्र खड़ा नहीं किया गया कि किसान कृषि को स्वतंत्र व्यापार मानकर चले तो किसान अपने आप कई नए क्षेत्रों से कमाई साधन खोजे व उन साधनों को परिस्कृत करे.

   व्यापार नए अविष्कारों का जन्मदाता होता है
व्यापार की  एक विशेषता है कि वह  नए आविष्कार करने को विवश होता है। 18 वीं सदी से आज तक जितने भी बड़े आविष्कार हुए वे युद्ध अथवा व्यापर जनित आविष्कार हैं।

  व्यापार लाल फीताशाही भंजक होता है

 व्यापार लाल फीता शाही भंजक होता है ,


 व्यापार कर्म को अधिक महत्व दायी होता है

 व्यापार कर्म से चलता है भाषणों से नहीं।

  सर्वांगीण विकास हेतु व्यापार

 छोटे या बड़े व्यापार हेतु जीवन के प्रत्येक कार्यकलापों की आवश्यकता होती है और न कार्यकलापों को व्यापार स्वयं विकसित करता जाता है।

 व्यापार भविष्यदृष्टा समाज पैदा करता है

व्यापार की आत्मा भविष्य दृष्टि होती है।  व्यापार भविष्यदृष्टा सामाज पैदा करता है।


  व्यापार स्वावलम्बी व अनुशासित समाज पैदा करता है

   व्यापार में स्वावलंबन व अनुशासन आवश्यक है।  व्यापार स्वावलम्बी व अनुशासित समाज की रचना करता है  व अनुशासित समाज की परवरिश करता है। 


Copyright @ Bhishma Kukreti   31/3 //2018

ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
-

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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काशीपुर फैक्ट्री और स्थान छवि वर्धन में डोक्युमेंट्री फिल्मों का महत्व (संदर्भ फेसबुक में दिनेश कंडवाल व मनोज इष्टवाल ) -- -

Uttarakhand Tourism in British Raj -1
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -57

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  57                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--163 )   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 163

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
--
  ब्रिटिश भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के नाम से व्यापार करने आये थे और व्यापार प्रसारण व रक्षा हेतु ब्रिटिश भारत भाग्य बिधाता बन बैठा।
  सन 1803 में अवध नबाब के साथ संधि में अंग्रेजों ने कुमाऊं के भाभर -तराई भार पर अधिकार कर लिया और तराई में एक फैक्ट्री खोल दी।  यह फैक्ट्री रेशों से कपड़े , थैले व चीड़ के रेजिन से लीसा निर्माण करती थी।  फैक्ट्री हेतु कच्चा माल पहाड़ों से आने लगा।  गढ़वाल से भी लोग कच्चा माल जैसे भांग के रेशे व लीसा पंहुचाने लगे।
  इतिहासकार बीडी पांडे अनुसार - फैक्ट्री में कम्पनी अधिकारी बार बार एते थे।  सभी अधिकारी कुमाऊं की भौगोलिक व प्रकृति से प्रसन्न होते थे। 1802 में लार्ड वेस्ले ने गॉट को कुमाऊं के जंगलों , जलवायु व न्य परिश्थिति निरिक्षणार्थ भेजा। 1811 -12 में मूरक्राफ्ट व कैप्टेन हेनरी तिब्बत गए व वहां सैनकों द्वारा बंदी बना लिए गए।  छूटने के बाद उन्होंने कुमाऊं के बारे में अलंकृत भाषा में रिपोर्ट भेजी।  कम्पनी उच्च अधिकारी गार्डनर ने भी सकारात्मक रिपोर्ट भेजी।  कहते हैं कि सर्वोच्च अधिकारी हेस्टिंग भी काशीपुर होते हुए कुमाऊं आया था। हेस्टिंग ने भी गुप्त रिपोर्ट भेजी थी जिसमे कम्पनी सर्वोच्च अधिकारी हेस्टिंग ने प्रार्थना की थी कि काश ! कुमाऊं जैसा प्रदेश हमारे हाथ लग जाय !
     नेपाल संधि से पहले ही ब्रिटिश अधिकारियों ने कुमाऊं को नेपाल से छीनकर हस्तगत करने की ठोस योजना बना ली थी।
        कुमाऊं की सकारात्मक रिपोर्टों ने लंदन में बैठे निर्णय में सक्षम अधिकारियों को भी कुमाऊं के प्रति आकर्षण पैदा किया था।  आज भी ये रिपोर्टें कुमाऊं को प्रसिद्धि दिलाती ही रहती हैं। 
   
             डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का पर्यटन विकास व स्थान छविकरण ( प्लेस ब्रैंडिंग ) में महत्व
  डॉक्यूमेंट्री फिल्म व पर्यटन का चोली दामन का साथ है। जब ल्यूमेरे बंधुओं ने 1895 में मूविंग कैमरा अन्वेषित किया तो पर्यटन उद्यम को एक नया माध्यम मिला। लुमेरे बंधुओं की फ़िल्में - अ  'गंडोला सीन इन वेनिस  ' व 'द फिश मार्केट ऐट मार्सेलीज फ्रांस ' , 'द बात ऑफ मिनर्वा ऐट मिलान ' फ़िल्में पर्यटन उद्यम में मील स्तम्भ हैं।  इन फिल्मों ने पर्यटन जगत में क्रान्ति ला  दी थी।  वर्तमान में भी पयटन में फिल्म पर्यटन (Film Tourism ) बहुत प्रचलित हो गया है।  टूरिस्ट ब्रैंड डॉक्यूमेंट्री या वज्ञापन फिल्मों द्वारा टूरिस्ट प्लेस दिखते हैं व पर्यटन स्थल को प्रसिद्धि दिलाकर पर्यटकों को पर्यटन स्थल तक आने को मजबूर करते हैं।
 यह  सिद्ध हो चुका है कि फ़िल्में अन्य माध्यमों की तुलना में पर्यटन को सर्वाधिक प्रभावित करती हैं
         फेसबुक में मोबाइल फ़िल्में मोबाईल व लाइव व कुछ कमजोरियां

      उत्तराखंड संबंधी फेसबुक में भी बहुत सी हलचल होती रहती हैं।  सभी सदस्य अपने अपने क्षेत्र की जाने अनजाने फिल्मों या फोटुओं द्वारा ब्रैंडिंग करते रहते हैं। आंतरिक पर्यटनविकास  हेतु यह आवश्यक भी है. किन्तु मुझे भूगर्भशास्त्री दिनेश कंडवाल ने जितना प्रभावित किया है उतना किसी अन्य सदस्य ने नहीं किया है।  दिनेश कंडवाल एक कुशल फोटोग्राफर  तो है ही साथ में फोटो को आकर्षक कैप्सन देने में भी माहिर है तभी तो दिनेश के फेसबुकिया दोस्तों को साइकलबाड़ी के बारे में ज्इतने कम समय में ञान  हो गया है। लघु स्तर पर प्लेस ब्रैंडिंग कैसी होती है दिनेश से सीखना चाहिए। 
 बहुत से सदस्य फोटो पोस्ट कर देते हैं किन्तु शीलरशकदेने पर परिश्रम नहीं करते हैं।  बिना शीर्षक के फोटो या फिल्म ऐसी ही है जैसे एक मनुष्य बिना सिर के। दूसरा दिनेश कंडवाल जो भी फोटो पोस्ट करता है वह फोटोग्राफी कोण से या अन्य नजरिये से कुछ विशेष भी होता है।  खिचड़ी छविकरण में प्रयोग नहीं की जाती है।  एक सधे सब सध सिद्धांत  भी लागू होता है
  इतिहास के मामले में मनोज इष्टवाल की फ़िल्में त्वरित आकर्षित करने में सक्षम हैं।  मनोज साथ में इतिहास वृत्तांत देकर क्षेत्र विशेष को वास्तव में अति विशेष बना देता है।  डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में भाषा असरदार होनी ही चाहिए।  हाँ नेपथ्य की ध्वनियों पर अभी बहुत से लोगों का ध्यान कम ही गया  है। नेपथ्य की ध्वनियाँ मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने में कामगर सिद्ध होती हैं।
  फेसबुक में ही  हेमा उनियाल की फोटो भी स्थान ब्रैंडिंग हेतु कामयाब पोस्ट  हैं।  संस्कृति विशेष पोस्ट सदस्यों को आकर्षित करती ही हैं।  हेमा उनियाल भी वृत्तांत देकर स्थान विशेष के प्रति आकर्षण पैदा करने में सक्षम है।
       फेसबुक में लाइव पोस्ट
 आजकल मुझे प्रत्येक दिन फेसबुक में लाइव पोस्ट भी आने लगी हैं और वास्तव में ये लाइव पोस्ट मुझे चिड़चिड़ा बना देती हैं।  मैं यह समझ कर लाइव पोस्ट खोलता हूँ कि कुछ विशेष होगा किन्तु मित्र यही नहीं बताते की यह लाइव
किस स्थान का है
क्यों मैं अपना समय बर्बाद कर यह लाइव फिल्म देखूं ?
किस प्रयोजन से मुझे लाइव पोस्ट हो रही हैं
मेरे लिए क्या कार्य है (मुझे क्या ऐक्शन लेना है ?)
 

Copyright @ Bhishma Kukreti   /1/42018

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उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
-

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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ब्रिटिश काल में कृषि कृषि भूमि विस्तार से आंतरिक समृद्धि

 Uttrakhand Turism in British Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म -2)

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -58

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  58                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--164)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 16 4

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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   किसी भी क्षेत्र में आंतरिक समृद्धि पर्यटन हेतु आवश्यक है।  अफ़्रीकी देशों में आंतरिक समृद्धि न होने से वहां बहुत सी विभीषिकाएँ उतपन्न हो गयी हैं।  ब्रिटिश अधिकारियों ने सर्वपर्थम गढ़वाल-कुमाओं  में आंतरिक समृद्धि  ओर ध्यान दिया। 
  इतिहासकार विशेषकर किसी राजनैतिक मत से बंधे इतिहासकारों को ब्रिटिश काल का विश्लेषण एक कोण से देखना चाहिए कि  ब्रिटिश भारत में सेवा करने नहीं अपितु व्यापार करने आये थे।  इतिहासकारों को देखना चाहिए कि क्या ब्रिटिश व्यापार वृद्धि में सफल हुए कि नहीं।
     कुमाऊं गढ़वाल पर भी ब्रिटिश ने व्यापारिक हित हेतु अधिकार किया था।  व्यापार उनका मुख्य उद्देश्य था।  ब्रिटिश शासन काल में ब्रिटिश प्रशाषकों ने बहुत से पग अपने व्यापार लाभ हेतु उठाये किन्तु वे पग जनहिकारी साबित हुए -
कृषि भूमि विस्तार -कुमाऊं -गढ़वाल पर अधिकार प्रारम्भिक काल में कि ब्रिटिश अधिकारियों ने पाया चूँकि जनता कृषि भूमि होते हुए भी खेती नहीं करते तो अनाज पैदा नहीं होता जिससे कर की आमद नगण्य ही थी।  ब्रिटिश अधिकारियों ने विभिन्न भूव्यवस्थाओं के बल पर जनता को जंगल काटकर कृषि क्षेत्र वृद्धि हेतु प्रोत्साहन दिया। गोरखा काल व दैवी प्रकोप के कारण जनसंख्या कम हो गयी थी।  ब्रिटिश अधिकारियों ने कृषि भूमि में बढ़ोतरी करवाई और कृषकों की आमदनी वृद्धि हेतु कई कदम उठाये -
 गढ़वाल में कृषि भूमि विस्तार निम्न प्रकार हुआ

(One acre = twenty nali or बीसी beesee)

Pargana--------------Nos. villages ----land in acres (1866)--------- land in 1896 acres/beesee

Barasyun---------------799---------------------25386--------------------50806

Chandkot----------------323---------------------10598--------------------21658

Mallasalan---------------566----------------------14088------------------29234

Tallasalan-----------------642---------------------14204------------------36864

Gangasalan----------------572--------------------20793-------------------54478

Devalgarh------------------478--------------------9386--------------------20734

Chandpur------------------538-----------------------12562------------------25834

Nagpur----------------------285-----------------------6066-------------------11899(only measured ones)

Badhan----------------------264-----------------------3761---------------------8179(only measured ones)
(डबराल उखण्ड का इतिहास -6 )
 कृषि भूमि वृद्धि व चिकित्सा सुविधाओं से जनसंख्या वृद्धि इस प्रकार हई

          The population increase was as under (Census Handbook of Garhwal, 1951) –

Pargana------1865----------1812--------1881---------1891----1896--------1921

Badhan-------16618---------21454------25692-------30732----30732-----37354

Barasyun------37463---------40707----54089----------63229----56465----65479

Chandpur------23460--------31381------34214-------40706------42046-----47394

Dashauli--------7117-----------12523----10043---------13775-----12135----15682

Nagpur----------29133---------31058----41537--------50907----48943----64904

Painkhanda-----5592---------6383-------8276---------5804-------9017-----8103

Chaundkot----17646------------22060----23403------26573-------26573----29205

Gangasalan-----32955----------40877----42318------47510-------49423------50464

Mallasalan--------32533--------38618---41126--------47594-------49423-----57725

Tallasaln----------275896---------36165---40238------51093-------35606-----44800

Bhabhar -----------------------------------------------------------------------300-----446

Others ----------------------------------------------------------------------------------20443

Total-------------248741-----------310282-----345629---407818-------398650—485186

 Gender wise Population statics is as under

Gender-------------1858-----------1872-----------1881---------1901-----------1911-------1921

Males --------------66170---------155745---------170755----211351---------235554---232863

Females -----------113299-----154530----------174874-------218079--------244087---252323

Children----------53851





Copyright @ Bhishma Kukreti  2/4 //2018

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                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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