Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 42073 times)

Bhishma Kukreti

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ब्रिटिश काल में तीर्थ यात्रियों की सुविधाओं में सुधार और वर्तमान में श्रीनगर कोटद्वार मार्ग को राष्ट्रीय स्तर का पयटन मार्ग बनाने की आवश्यकता

Improvement in Tourist Facilities in British Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म-4 )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -59

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  59                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--165)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 16 5

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
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गढ़वाली  राजाओं व गोरखा शासन में मंदिरों को कर मुक्त मुवाफ़ी गाँव दिए गए थे।  गूंठ भूमि राजस्व से मंदिरों में पूजा व कर्मचारियों का वेतन प्रबंध होता था। इसके अतिरिक्त सदाव्रत गाँव भी थे जिनकी आय से श्रीनगर , जोशीमठ में यात्रियों हेतु मुफ्त भोजन व्यवस्था भी होती थी। 1816 में गढ़वाल के सहायक कमिश्नर ने सलाह दी थी कि गूंठ  या मंदिर गाँवों की आय का कुछ भाग यात्रियों की सुविधाओं हेतु प्रयोग होना चाहिए।
  केदारनाथ के रावल द्वारा अमानत में खयानत से अधिकारियों ने रावलों या पुजारियों से सदाव्रत गाँवों से आय व उपयोग का अधिकार छीनकर स्वंतंत्र कमेटी 'लोकल एजेंसी 'बना दी।  सदाव्रत गाँवों की आय से हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग चौड़ा किया गया।  सदाव्रत गाँवों के राजस्व से यात्रिओं को मुफ्त भोजन व्यवस्था , यात्री चिकित्सा,  मरोम्मत कार्य में तेजी लायी गयी। मार्ग मरमत कार्य अब नियमित व सुचारु रूप से होने लगा था.
  ट्रेल के उत्तराधिकारियों द्वारा सदाव्रत पट्टियों  की आय से निम्न मार्ग निर्मित हुए या उनका पुनर्निर्माण हुआ
जोशीमठ -नीती
अल्मोड़ा से लाभा -गढ़वाल
श्रीनगर से नजीबाबाद मार्ग
   1927 -28 में ट्रेल ने गाँव वालों से बेगार लेकर (मुफ्त मजदूरी ) हरिद्वार -बद्रीनाथ मार्ग निर्माण कार्य करवाया।  वह स्वयं भी मार्ग निर्माण निरीक्षण करता था।  1855 तक निम्न यात्रा मार्ग भी निर्मित हो चुके थे -
रुद्रप्रयाग से -केदारनाथ
उखीमठ से चमोली
कर्णप्रयाग से चांदपुर
 बेकेटभूव्यवस्था में गूंठ व सदाव्रत भूमि की विधिवत व्यवस्था की गयी थी।  डा डबराल ने लिखा है कि मंदिरों के साथ अन्याय भी हुआ।  कुछ मंदिरों की भूमि भी छीन ली गयी थी।
     सदाव्रत गाँवों से बेकेट भूव्यवस्था में  वार्षिक राजस्व 100013 रुपयाथा।  सदाव्रत व गूंठ गाँव की संख्या 535 थी व 1863 में इन गाँवों का क्षेत्रफल 8074 बीसी नाली थ


   स्ट्रेचों की रिपोर्ट सलाह मानते हुए ब्रिटिश शासन ने सदाव्रती पट्टियों के सदाव्रत भूमि राजस्व  का उपयोग तीर्थयात्री मार्ग निर्माण , पुनर्णिर्माण  , तीर्थ यात्रियों हेतु औषधालय निर्माण , औषधि वितरण , पर होने लगा।  इन तीर्थ यात्री सुविधाओं से भारत के अन्य भागों में अपने आप उत्तराखंड छवि वृद्धि हुयी और तीर्थ यात्रियों की संख्या में वृद्धि होने लगी।

         गाँवों में श्रमदान से मार्ग निर्माण में तेजी
       तीर्थ यात्रा मार्गों में सुधार से प्रेरित हो गढ़वाल के अन्य क्षेत्रों में श्रमदान से ग्रामवासी मार्ग निर्माण करने लगे। ग्रामवासी अपने गाँव को लघु मार्गों द्वारा मुख्य यात्रा मार्ग से स्वयं जोड़ने लगे।


    पौड़ी गढ़वाल पर्यटन में पिछड़ा जनपद है
  पौड़ी गढ़वाल में स्वर्गाश्रम , लक्ष्मण झूला व श्रीनगर को छोड़ दें तो पौड़ी में धार्मिक पर्यटन नगण्य हैं।  यदि उत्तराखंड पर्यटन वृशि करनी है तो पिथौरागढ़ व पौड़ी जनपदों को को राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन जनपद विकसित करने ही होंगे।  इसके लिए श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को प्रसिद्धि आवश्यक है।
      श्रीनगर -कोटद्वार रुट हेतु प्रवासियों का योगदान ही विकल्प है
 यदि श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग को राट्रीय स्तर का पर्यटन मार्ग बनाना है तो श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग के गाँवों को विशिष्ठ पर्यटक क्षेत्र निर्मित करना होगा जिसमे प्रवासियों की भूमिका के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है।  प्रवासी निम्न स्तर पर अपना योगदान दे सकते हैं
१- वैचारिक स्तर पर अपने गाँव में विशिष्ठ पर्यटन आकर्षी प्रोडक्ट निर्माण
२- ग्रामवासियों को तैयार करना - आजकल एक बीमारी फैली है कि हर भारतीय शासन से सब कुछ चाहता है किन्तु अपने योगदान के बारे मबौग सार देता है। प्रवासी यह जड़ता तोड़ सकते हैं
3 -पर्यटन प्रोडक्ट निर्माण में निवेश कर प्रवासी अपनी भूमिका निर्धारित कर सके हैं। प्रवासी श्रीनगर -कोटद्वार मार्ग पर रिजॉर्ट , म्यूजियम , बाल क्रीड़ा केंद्र , हनी मून हाऊसेज , हॉस्पिटल आदि खोल सकते हैं।


Copyright @ Bhishma Kukreti  3/4 //2018

ourism and Hospitality Marketing Management  History for Garhwal, Kumaon and Hardwar series to be continued ...

उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन श्रृंखला जारी …

                                    References

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -4
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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 ब्रिटिश काल में परिवहन योजनाएं और वर्तमान में वोट और विभाग अहम प्रेरित परिहवन योजनाएं
 Transportation improvement in British Period in Uttarakhand

Temple Management in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -60

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 60                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--166)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 166

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

   गढ़वाल कुमाऊं में बार बार अन्नकाल पड़ते थे।  ऐसे समय में निर्यातित अनाज को सदूर गाँवों में पंहुचना टेढ़ी खीर थी। पहाड़ों में बैलगाड़ी जाना आज भी संभव नहीं है।  तो घोड़ों व खच्चरों से लदान संभव था या है। किन्तु गढ़वाल राजाओं व क्रूर गोरखाओं ने कर लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी किन्तु सड़कें नहीं बनवायीं।  ब्रिटिश शासन ने आंतरिक परिवहन को सुदृढ़ करने हेतु कुछ कदम उठाये।
 1948 में कुमाऊं में अल्मोड़ा में 180 मील , नैनीताल में 80 मील लम्बी सड़कें निर्माण का काम हाथ में लिया गया। सर्वपर्थम कोटद्वार -फतेहपुर सड़क पर ध्यान दिया गया।  लैंसडाउन छा वनी बनने से भी दक्षिण गढ़वाल में परिहवन सुलभ हुआ। 

    In Garhwal, there was no plan for road construction till 1828.

       Trail started road construction from Haridwar to Badrinath in 1827-1828. Trail did not take help from any engineer for planning. Trail himself used to supervise the works. it is said that Trail used to cut or dig stone when there was steep stone hurdle. He used to go for marking on steep hill with the help of roped basket. Trail used to sit in roped  basket and helpers used to take rope and he used to jump here and there for marking. Trail travelled from Badrinath to Kedarnath for road survey.

    Trail also discovered a road from Kumaon to Mansarovar. Church officials criticized Trail for that he was promoting idol worshipping.

   By 1834, Haridwar –Badrinath road was completed. Animals and men could cross each other on that road. By 1835, government constructed roads from Rudraprayag to Kedarnath, Ukhimath to Chamoli, Chandpur to Kumaon via Lobha. Kumaon was connected to Ruhelkhand. So Ruhelkhand was connected to Badrinath via Kumaon. The length of such roads was 300 miles and cost was Rs. 25000.Sadavrat tax was used on road construction.

    The successors of Trail kept road construction works alive. Workers completed road construction from Joshimath to Neeti in 1840. There was road from Shrinagar to Almora and Shrinagar to Kotdwara to Nazibabad by 1841.

 कोटद्वारा , हल्द्वानी , ऋषिकेश व देहरादून, हरिद्वार  को रेल से जोड़ने का जो कार्य ब्रिटिश शासन ने किया था उसमे भारत सरकार ने एक इंच भी वृद्धि नहीं क।  रेल मार्ग ने तो पर्यटन उद्यम त्र में क्रान्ति ला दी थी
ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग ने भी उत्तराखंड पर्यटन की काया पलट ही कर दी।  प्राचीन काल से चलने वाला ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग तो बंद ही हो गया।
    गढ़वाल में 1948 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड की मुख्य सड़कें इस प्रकार थीं -
तपोवन घाट -नारायण बगड़ -लोहाबा -बुंगीधार -44 मील
बुवाखाल -कैन्यूर -44 मील
रामणी बाण -देवाल -ग्वालदम -38 मील
दनगल -पोखड़ा -बैजरों --२६ मील
नंद प्रयाग -बाट मार्ग -12 मील
 दोगड्डा -द्वारीखाल -पौखाल -डाडामंडी पैदल मार्ग भी ब्रिटिश देन है. व्यासचट्टी , महादेव चट्टी जैसे घाटों को अच्छी सड़कों (घोडा सड़क ) गाँवों से जोड़ने का प्रशंसनीय कार्य भी ब्रिटिश काल में शुरू हुए।
इन सड़कों के निर्माण ने आंतरिक पर्यटन व वाह्य पर्यटन विकास की आधार शिला रखी। इन सड़कों पर ऐसे पल बने हैं जो अभी भी सही सलामत हैं।
    गंगा व सहयोगी नदियों पर पल भी ब्रिटिश काल में बने जिन पुलों ने पर्यटन को नई दशा व दिशा दीं।  श्रीनगर गुमखाल मोटर मार्ग भी ब्रिटिश काल देन है।
 ऋषिकेश कोटद्वार मार्ग भी ब्रिटिश काल में निर्मित हुआ।
     वन सड़कें - ब्रिटिश काल में वनों के अंदर आवागमन हेतु कई सड़कें बनीं।  अब तो सार्वजनिक विभाग व वन विभग्ग की खींचातानी में चलते मार्ग भी अवरुद्ध किये जा रहे हैं हरिद्वार -कोटद्वार मोटर मार्ग का इतिहास यही कहानी बयान करता है।
   ब्रिटिश अधिकारियों पर बहुत से अभियोग लगते हैं किन्तु यह अभियोग नहीं लगता कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु सड़क योजनाएं बनायीं।  आज तो हर सड़क की योजना वोट निश्चित करने हेतु बन रही हैं।  वोट बैंक सामने आ गया है और पर्यटन नेपथ्य में चला गया है।  सड़क व पुलों का शुभारम्भ भी नेताओं की फोटोजनी हेतु होते हैं समाजहित नेपथ्य में चला जाता है। 

Copyright @ Bhishma Kukreti  4 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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 ब्रिटिश काल में प्रमुख रोग और  समयगत मृत्यु आंकड़े

Diseases and Treatments Uttarakhand  in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  61

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म -61                   

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--167)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 167

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में प्रमुख रोगों में प्लेग (महामारी ), हज्या , चेचक , भाभर में मलेरिय, विभिन्न बुखार , चेचक , दस्त , व प्रसव समय जच्चा -बच्चा मृत्यु प्रमुख व्याधियां थीं।
  महामारी या अन्य बीमारियों जैसे बुखार के कारण भोटिया व्यापारी श्रीनगर तक ही पंहुच पाते थे व तिब्बत सरकार भी कभी कभी भोटिया व्यापारियों पर तिब्बत प्रवेश पर रोक लगा देती थी।  1823 में प्लेग पंजाब से फैलता फैलता कुमाऊं तक फ़ैल गया था।  हजारों उत्तराखंडी मृत्युलोक चले गए थे।
 प्लेग , हैजा कुम्भ व हरिद्वार में बैशाखी मेले से यात्रियों द्वारा प्रसारित हो गढ़वाल में फ़ैल जाता था।
 ब्रिटिश शासन ने रोग प्रसारण न हो हेतु कई प्रशंसनीय कदम उठाये।  गाँवों में सफाई पर जोर देने जैसे चौक में कूड़े के ढेर , मकान के पास भांग न बोना , गौशालाएं गांव से बाहर निर्माण करने जैसे कई जन जागरण के कार्य किये।  प्लेग फैलने पर भी जन जागरण के कई कार्य किये गए।  1852 में एक कमेटी बनवायी गयी जिसके सलाहों पर कार्य किये गए व कई कदम उठाये गए।  टीकाकरण पर जोर दिया गया। डा पियरसन की रिपोर्ट ग्रामीण व्याधि निदान हेतु आज भी औचित्यपूर्ण रिपोर्ट है।
  विभिन्न रोगों से मृत्यु आंकड़े  इस प्रकार हैं  (बेकेट गढ़वाल सेटलमेंट)-

   There is following Government report on year wise disease wise deaths in Garhwal from 1867-1906 (Garhwal gazetteer)-

 

Year-----Cholera -----S. pox--------Fever------Indigestion-----Injury—Misc.----Total

-

1867-------351-------------47------------1722----------------------------------2038-------4138

68-----------20--------------8-------------1650-----------------------------------2915--------4602

69----------------------------2--------------1992---------1237-------------------1282------4513

70------------6--------------1---------------2134---------------------------------2673-------4820

71----------------------------6---------------255----------2071--------208-------563-------5414

72--------------------------74---------------2356--------2576---------288------563--------5856

73------------27------------28--------------2865--------2207--------------------713-------6201

74----------------------------31--------------3069-------2027----------393-----580-------6070

75------------587----------167--------------2269-------2376-----------262------639------6640

76--------------------------------------------3246--------2500-----------257------560------6513

77--------------------------------------------2719---------2042----------248-------753---->5000

78----------17----------------14-------------3214--------3143----------296--------403--->-7000

79-----------3473------------6---------------2743-------1712----------225--------342--- > 8000

80----------------------------------------------3935--------2384-------344---------247------ >6900

81--------------659------------2---------------3474--------2796-------244--------350---------7525

82------------------------------2----------------4046--------3331-----238---------294---------7921

83-----------------------------9---------------3683----------3824------243---------370---------8129

84---------------------------11----------------3722----------3118-------210-------165--------7226

85-------------33----------5------------------4100-----------3611--------219-----186--------8254

86---------------------------1------------------3835-----------2991--------232-----136-------7195

87------------567----------2------------------4759-----------3925--------200------219-------9211

88-------------3-------------17---------------4779-----------3982----------227-----203-------9211

89-------------109----------1-----------------4656-----------3610---------229------175------8780

90---------------620--------1-----------------6123------------3276---------224-----175------10419

91--------------66-----------13---------------6977------------3232--------236--------189----10713

92------------5943-----------3---------------8966-------------3108--------242-------224-----18481

93------------1525----------13--------------5447--------------3099--------203-------213-----10500

94-------------10-----------124--------------7691--------------4119-------242--------328-----12514

95----------------------------13----------------8845------------3970--------240--------309----13377

96--------------1033----------------------------9987-----------3632

97-------------------------------------------------9687-----------3632

98-------------40-----------------------------------6821---------------2824

99------------659------------------------------------6636-------------3587

1900----------107-----------------------------------5603---------------3132

01-------------129-----------------------------------6012---------------3034

02--------------806-----------------------------------6294---------------3494

03-------------4017------------------------------------7264--------------4309

04---------------188-----------------------------------7194---------------3458

05-------------------------------------------------------8184---------------4897

06-----------------3429---------------------------------6648----------------3941

07------------------2--------------------------------------7382--------------4064

08------------------2924---------------------------------9625---------------3601

09--------------------1736---------------------------------7259--------------2963

 

 



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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


Bhishma Kukreti

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 ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में चिकित्सा व चिकित्सालय -- -

 Hospitals in British  Era in Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  63               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--168)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 168

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  सदाव्रत व सरकारी चिकित्सालयों को छोड़कर ग्रामीण उत्तराखंड में कर्मकांडी ब्राह्मण ही आयुर्वेद चिकित्सा स्रोत्र थे।  ये ब्राह्मण अपने बच्चों को ज्योतिष , कर्मकांड के अतिरिक्त आयुर्वेद शिक्षा भी देते थे।  ब्राह्मण का गृह ही चिकित्सा शिक्षण संस्थान भी थे।  ये पारम्परिक वैद ही गाँव गाँव जाकर रोग निदान करते थे या लोग इनके पास आकर औषधि ले जाते थे।  चलण स्यूं में झाला गाँव इस क्षेत्र में वैदकी के लिए प्रसिद्ध था।
  ढांगू उदयपुर में निम्न गाँव वैदकी हेतु प्रसिद्ध थे
   झैड़
नौड -वरगडी
कठूड़
ठंठोली
गडमोला
तैड़ी
घट्टूगाड
किमसार
कांडाखाल
बरसुड़ी
डाबर
अमालडू

कंडवाल स्यूं में बागी
    इन वैद्यों की सबसे बड़ी समस्या साहित्य उपलब्धि की थी।
                        हरिद्वार  यात्रा मार्ग पर बाबा कमली वालों के धर्मार्थ चिकित्सालय भी थे
      मिशन हॉस्पिटल चोपड़ा
पादरी मेसमोर ने 1903 के आसपास चोपड़ा में एक धर्मार्थ चिकित्सालय खोला।  इस चिकित्सालय ने पौड़ी की बड़ी सेवा की और मिसनरी वाले वास्तव में बड़े जुझारू थे।
   सरकारी चिकत्सालय
 कमिश्नर ट्रेल ने सदाव्रत फंड से सरकारी स्तर पर चिकित्सालय स्थापना करना शुरू किया।  सदाव्रत से 1907 तक सात चिकित्सालय श्रीनगर , उखीमठ , बद्रीनाथ , चमोली , जोशीमठ , कर्णप्रयाग में हरिद्वार -बद्रीनाथ यात्रा मार्ग पर खुल चुके थे -1907 में कांडी (बिछला  ढांगू ) में चिकित्सालय खुला।
 1890 से 1909 तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड ने चिकित्सा पर निम्न राशियां खर्च किये -

                         Expenses on Health Care from 1890-1909

  The government spent on health care following money(in Rs.) from 1890-1909-

 

Year -------Rs.------------Year -----------------Rs.--------------------Year -----------Rs.

1890- 91- 1176-----------1891-92------------1121--------------------1892-93------2990

1893-94----2939-----------1892-93-----------2516---------------------95-96--------2716

96-97--------2721------------97-98------------4385---------------------98-99---------3145

99-1990------3391---------1900-01-----------3413----------------------01-02---------3645

02—03-------4191---------03-04--------------4345---------------------04-05-----------3923

05-06-----------5362---------06-07------------9760---------------------07-08----------11615

08-09-----------12565
  यात्रा मार्ग में चिकित्सालयों में यात्रिओं को निम्न व्याधियों हेतु औषधि दी गयीं या चिकित्सा की गयीं  (आदम , रिपोर्ट ऑन दि पिलग्रिम्स पृष्ठ 41 )

Nos of patients Treated in Pilgrim road Government Hospitals from 1903-1912

 

      The pilgrims used to face indigestion, malaria and diarrhea besides choler. Local people took also advantages of hospitals opened on pilgrims road.  Following data are available for patients treated in different hospitals on pilgrim roads from 1903-1912-

-

Year ---Shrinagar—Ukhimath-----Joshimath-----Chamoli-----Karnaprayag—Galai---Kandi

1903

Malaria----2400---------480-------------385------------848----------729------------559

Indigestion- 191---------39--------------77--------------102---------94---------------65

Diarrhea-----488---------57--------------39---------------88----------151--------------39

1904

Malaria -----3393--------648------------521-------------521----------630-------------558

Indigestion—582---------81-------------149-------------111----------128-------------88

Diarrhea------363----------46--------------64--------------94-------------54------------22

1905

Malaria ----- 3250---------482-------------392------------323-----------602------------635

Indigestion----648-----------93-------------129--------------42------------69-------------82

Diarrhea--------459----------53--------------59-------------33---------------88-----------79

1906

Malaria ------3787------------464-------------333-----------458-----------707------------438

Indigestion---642---------------77----------------63-----------95-----------83--------------86

Diarrhea------797---------------68---------------53------------29------------112-----------52

1907

Malaria ------2886-------------565------------440------------473-----------252----------493-----238

Indigestion-- 507---------------88-------------82--------------136----------37------------126-------38

Diarrhea------567---------------46-------------46-------------65------------116------------44------50

1908

Malaria ------3938-------------812-------------345-----------751-----------901-----------790----481

Indigestion- -655---------------33----------------82------------49------------32------------44------11

Diarrhea-------87----------------55----------------59---------187-------------14------------90-----66

1909

Malaria ------3149--------------760------------582----------834------------765-----------537-----330

Indigestion- ---793--------------187------------84-----------266------------98------------291-----82

Diarrhea------505---------------57-------------97-------------218----------144------------58---------30

1910

Malaria -----3623--------------801----------497-------------995----------817------------588-------327

Indigestion---840---------------70------------80-------------741----------205-------------330------78

Diarrhea-------889--------------66------------34-------------136----------166-------------90---------52

1911

Malaria -----2542----------------856----------582------------760----------715------------544-------408

Indigestion- 779-----------------70------------110------------568----------274-----------113---------64

Diarrhea------975----------------86------------82--------------93-----------148------------67---------53

1912

 

Malaria -----1608--------------1041----------375-------------976----------803-----------740--------333

Indigestion- -156----------------81-----------157-------------380-----------92------------229--------61

Diarrhea------437----------------118----------70--------------69------------110-----------118--------95

 

    बद्री दत्त पांडे ने यात्रा मार्ग (कुमाऊं से बद्रीनाथ ) के निम्न चिकित्सालयों का उल्लेख किया है ( कुमाऊं क इतिहस १९२३, पृष्ठ 143 -144 )-

अल्मोड़ा अस्पताल

अल्मोड़ा सदर अस्पताल

अल्मोड़ा जनाना अस्पताल

पि थौरागढ़

लोहाघाट

भीकियासैण - विशेषतः यात्रा मार्ग हेतु

गणाई - यात्रा हेतु

बैजनाथ जो चाय बगान हेतु शुरू हुआ था

बागेश्वर

  इसी तरह बैजनाथ , नैनीनाग , द्वारहाट , झूलाघाट , धारचूला , कपकोड , मनीला , जैंती , लमगड़ा , खेतीखान , देवलथल , मांसी , नैनीताल में भी अस्पताल खुल गए थे

  भंवासी  में क्षय चिकित्सालय खुल गया था यहां 150 रोगी रह सकते थे। तिबरी में जनाना सेनोटेरियम भी था।


 

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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
-

 
  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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 ब्रिटिश काल में यात्रा मार्ग पर चट्टी प्रबंध (काला लोगों द्वारा विशेष पर्यटन प्रबंधन )

Chatti management  in British  Era
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  65

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  65               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--169)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 169

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

 बद्रिकाश्रम व केदारेश्वर यात्रा माह्भारत संकलन -सम्पादन काल से भी शस्त्र वर्ष पहले से चली आ रही हैं। इतने सालों तक ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग बनने से पहले ऋषिकेश से बद्रीनाथ जाने का एक ही पैदल मार्ग था और वह था पौड़ी गढ़वाल में गंगा  तट का।  मार्ग।   सहस्त्रों वर्षों तक यही मार्ग बना रहा।  सहस्त्रों  सालों में पर्यटक सुविधा हेतु एक व्यवस्था निर्मित हुयी जिसे चट्टी व्यवस्था कहते हैं।  चट्टी शब्द द्रविड़ शब्द से बना शब्द है जिसका अर्थ है दुकान अथवा दुकानदारी।  चट्टी के मालिक को चट्टीवाला कहा जाता था।
  चट्टियां ऋषिकेश -बद्रीनाथ के मध्य , कर्णप्रयाग से  से पुनवाखाल कुमाऊं की और जाने वाले मार्ग व रुद्रप्रयाग से गंगोत्री -यमनोत्री -वाले मार्ग पर चार या तीन से चार मील के अंतराल में बनी थी. इससे पहाड़ी प्रदेश से अनभिज्ञ मैदानी यात्रियों को सुविधा सुलभ हो जाती थीं।
                  छट्टियों में चट्टी भवन
 यह एक आश्चर्य ही है कि अधिकतर चट्टियों में भवन या दुकाने एक जैसे ही बनाये जाते थे।  भवन चट्टी मालिक अपने धन से निर्मित करवाते थे।  भवन भूमि से दो फिट ऊँचे आधार पर बनवाये जाते थे। एक मंजिला भवन का बड़ा लम्बा कक्ष द्वार विहीन होता था जो मुख्य मार्ग की  ओर खुलता था। बरामदे के एक भाग में दुकान  कक्ष व दुकानदार हेतु शयन कक्ष होता था।  सर्दियों में भोजन पकाने हेतु एक चूल्हा भी होता था।  छतें या तो घासफूस या पत्थरों की होती थीं।  कुछ छतें पर चददरों की बनीं होते थे।
    दुकान से बाहर क्यारियां होती थीं। हर क्यारी के किनारे एक चौकी व चूल्हा होता था।  यात्री चट्टी दुकान से मन माफिक  खरीदकर अपना भोजन स्वयं बनाते थे।  चट्टी मालिक चूल्हों की आज लिपाई करता था। चट्टी  मालिक बर्तन ,शयन हेतु कपड़े , लकड़ी का प्रबंध करता था उसके लिए मूल्य निर्धारित थे।  मांश मदिरा सेवन चट्टियों में सर्वथा वर्जित था।  साधुओ के लिए भांग पीने की छूट थी।  चट्टी मालिक तम्बाकू का प्रबंध भी करता था।  हुक्के की छूट नहीं थी।  चट्टी मालिक चिलम रखते थे या पत्ती की चिलम बनाकर यात्रियों को देते थे। अनाज खरदने वाले यात्रियों से शयन व विस्तर मुफ्त था। शयन कीमत एक या दो आना प्रति रात था।
    यदि चट्टी गंगा किनारे हो तो मंदिर भी थे जैसे महादेव चट्टी , व्यासचट्टी आदि।  यदि कोई यात्री रुग्णावस्था में हो तो चट्टी मालिकपास के गाँवों से वैद्य  बुलाते थे।
      यदि किसी यात्री को   थी तो चट्टी मालिक डंडी , पिंस , डोला व घोड़ों की व्यवस्था भी करता था।
         बहुत से यात्री अपना सामान चट्टी में छोड़ आते थे व लौटते समय अपना सामान ले जाते थे।  गढ़वाली चट्टी मालिकों की ईमानदारी की कथाएं सारे भारत में प्रचलित थीं अतः यात्री गढ़वाल यात्रा में चोरी व डकैती से कभी भय नहीं खाते थे।  यात्री रात में भी बिना भी के यात्रा कर लेते थे। यात्रा मार्ग के आस पास के ग्रामीण भी यात्रियों का शोषण नहीं करते थे व समय पड़ने पर बिना शुल्क सहायता करते थे।
  ब्रिटिश शासन में कुछ अंतराल के बाद सरकार ने सफाई कर्मचारी नियुक्त किये जो चट्टियों में सफाई कार्य करते थे। 
 ब्रिटिश काल में निम्न चट्टियां कार्यरत थी।

             Chattis on Lakshmanjhula –Badrinath Road

  SN.    Chatti -----Distance---Shops, Nos- SN.    Chatti -----Distance---Shops, Nos

1-Lakshmanjhula------0--------13---------------2------Khairari--------2----------0

3-Fulvari-----------------2---------10--------------4-------Ghattugad-----2---------6

5-Nai Mohan (Chatti)- 3----------3---------------6----Chhoti Bijni-----1----------8

7-Bari Bijni-------------1 ----------8---------------8- Kund---------------3-----------3

9-Banderbhel----------3-------------7--------------10—Mhadev ---------1.5--------18

11- Simwal------------3.5-----------8---------------12--Am-----------------0.25------1

13- Kandi--------------2.5-----------5----------------14-Vyasghat-----------4.5-------10

15-Chhaluri--------------3------------3--------------------16—Umrasu-------------3----2

17—Saur----------------3--------------2-------------------18---Vah (devPrayag)---1---21

19—Ranibag-------------7--------------5------------------20-Rampur------------4-------15

21-Vilvakedar-----------4--------------3-----------------22—Shrinagar-------3---------Big Bazar

23—Sukarta-------------5---------------3-----------------24—Devalgadan ---1.5------1

25-Bhattisera------------1.3--------------7------------------26- Chhantikhal ----1--------1

27- Khankara------------  1 -------------8--------------------28- Narkot------------3 ------4

29- Gulabrai --------------2.5-----------2---------------30- Punar (Rudraprayag)- 1---12

31- Shivanandi -----------7--------------4---------------------32 Kamera ------------4---1

33- Chatwapipal----------5---------------6 ----------------------34Karnaprayag ----4----20

35- Kald--------------------1---------------1-------------------------36 Umta---------------1-----1

37- Jaikandi -------------2------------------1-------------------38- Uttaraul ------------0.25-----1

39- Langasu---------------2----------------4----------------------40- Biroligadhera------2-----------2

41-Sonla--------------------3----------------6-----------------------42- Nandprayag-------3-------24

43-Pursari-----------------1-------------------1----------------------44- Maithana ---------2--------7

45-Kuher----------------- 2--------------------3------------------46- Bayar------------------ 0------1

47- Chamoli--------------2------------------13------------------48-Math-------------------2-------5

49- Mathgadan------------0------------------3-------------------50-Chhinka--------------1-------4

51- Baunla------------------1-----------------6---------------------52-Siyasain-----------2----------7

53-Dhobighat--------------1----------------5--------------------54-Pipalkoti -----------2-----------24

55-Gauriganga--------------3--------------4----------------------56-Tangani--------------2.25-----5

57-Patalganga---------------2--------------7----------------------58- Gulabkoti------------2---------4

59-Helang (Kumarchatti)-2.25----------15---------------------60-Khanoti--------------2.25--------9

61-Jharkuli----------------1----------------2-----------------------62-Singdhara----------2-----------3

63-Chunar (Joshimath)-1-----------------4------------------------64-Vishnuprayag------1------------4

65-Chaldua-------------------------------1-------------------------66-Ghat—4---------------10

67-Nandkeshwar-----------------------3-------------------------68-Pandukeshwar---2----12

69-Bamanganv------------------------3----------------5--------70-Hanumanchatti---2--------5

71- Badrinath --------------------4.25----------------5

Mana ?

 

  The following Chattis (Staying places for Pilgrims) on Rudraprayag to Kedarnath rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

72-Rudraprayag------------0----------4--------------73-Chhatoli---------6 ----------------7

74-Tilwara------------------0------------1-------------75-Math------------2------------------1

76- Rampur- ---------------2------------7------------77-Agustmuni ----3-------------------8

78-Sauri--------------------2--------------4------------79-Kunjgarh/Chandrapuri---2-------12

80-Bhiri------------------3----------------10-----------81-Kund-----------4-------------------5

82-Guptkashi-----------2-----------------10--------------83-Nala ---------1-------------------3

84-Bhet------------------1-----------------8------------------85—Kantva-----2-----------------7

86- Malla----------------0.2--------------2------------------87—Fata ---------3---------------16

88-Badasu--------------2-----------------4-------------------89- Badalpur-------1-------------6

90- Rampur------------2------------------16-----------------91- Trijugi-----------5-----------10

92-Gaurikund----------5-------------------15----------------93- Chirpatiya Bhairav—2--------4

94- Ramwara ------------2---------------- 15----------------95—Kedarnath --------4-----------10

                            *Distance in miles, mile=1.6 kilo meter

 

Pilgrims used to visit Badrinath from Kedarnath too through Guptakashi to Chamoli . The following Chattis were there from Guptakashi to Chamoli rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

96-Nala---------------0--------------3---------------97- Ukhimath----------2.5------------10

98-Kanath--------------3-------------10--------------99-Gwali Bagar----------2------------5

100-Gaira----------------1--------------3-------------101-Godh-------------------0------------1

102- Vyas-----------------0---------------2------------103-Pothivasa------------2-----------12

104-DogliBheent ----------1.5-----------1---------------105-Baniya Kund------0.5-------4

106-Chopta------------------1--------------7--------------107-Jhunkana------------3----------8

108-Bhinodiya--------------1---------------3---------------109-Pangarvasa---------4----------6

110-Mandal-----------------4-------------21 (?)--------------111-Bairagana------------2-----------1

112-Nirau------------------0.5-----------------2----------------113- Kholti-------------0.5----------3

114-Sentuna-----------------1------------------5-----------------115- Gopeshwar----------2----------5

116-Kotiyal Ganv --------2------------------2--------------------117- Chamoli -----------1----------14

 

     

Pilgrims used to go towards east (through Almora ) from Badrinath to Panuvakhal (last Chatti in Garhwal) via Karnaprayag . The following Chattis were there from  Karnaprayag to Panuvakhal  rout-

SN- Chatti---------Distance----Nos Shop------SN. Chatti-----------Distance ------Nos. Shop

118-Karnaprayag ------0-------------20-----------119- Puli -----------------------------1

120- Ram- --------------0---------------1----------121- Simali--------------4------------12

122-Siroli-----------------2--------------8-----------123-Bharoli------------2-------------7

124-Pipal--------------------------------1-------------125-Adibadari---------4-----------16

126-Kheti---------------9---------------5-------------127-Jangalchatti--------2------------11

128-Devali--------------2---------------4-------------129----Genthabanj------0.5----------2

130-Kalamati-----------1.25-----------2--------------131-Basiyagad---------0.25----------3

132-Gwargadan---------1.50-----------1---------------133- Chunarghat-------1.25---------10

133-Isai Chatti-----------1.25-----------3---------------135—Sainja---------------1--------2

135-Melgwar --------------0.25----------2-----------------137-Agarpanwar ki dukan –0.25—1

137- Mehalchaunri --------1.50----------5----------------139-Punavakhal----3-----------3

Punvakhal was last Chatti for entering into Kumaon .

 In Kumaon, there were 42 Chattis between Punavakhal and Ramnagar.

 कुमाऊं में 42 चट्टियां थीं
                      *Distance in miles, mile=1.6 kilo meter

            सुमाड़ी के कालाओं का विशेष प्रबंधन

  श्रीनगर के पास कालाओं का गाँव है सुमाड़ी।  कुणिंद शासन के कुणिंद मुद्राओं के सुमाड़ी व भैड़ गाँव (दोनों काला जाति गाँव ) में मिलने से अनुमान लगता है कि काला गढ़वाल में सातवीं आठवीं सदी में बस गए थे किन्तु उन्हें पंवार वंशी राजाओं के यहां कोई बड़ा पद नहीं मिला था।
               कला लोगों का  प्रबंधन में
   काला लोगों का चट्टी प्रबंधन अभिनव था।  उस समय चाय प्रचलन  हुआ था तो यात्रयों हेतु त्वरित ऊर्जा हेतु कोई पेय उपलब्ध न था।  चूँकि अधिकतर यात्रा ग्रीष्म ऋतू में होतीं थी तो दूध रखना संबंद्व न था।  जबकि दूध की बड़ी मांग थी।
          कला लोगों की श्रीनगर से नंद प्रयाग तक चट्टियां थीं।  सुमाड़ी के काला यात्रा सीजन शुरू होने से पहले दुधारू भैंस चट्टियों में ही ले जाते थे।  यात्रियों को ताजा दूध मिलने से श्रीनगर से नंद प्रयाग की चट्टियों का नाम भारत के कोने कोने में विशेष छवि बन गयी थी जिसका जिक्र आदम ने रिपोर्ट ऑन पिलग्रिम रुट किया है।  एक अन्य आश्चर्य यह भी है कि यद्द्यपि यात्रियों की दूध हेतु बड़ी मांग थी किन्तु कालाओं   को छोड़ अन्य लोग चट्टियों में भैंस नहीं रखते थे कालाओं में बहुत से वैद व  तो वैदकी भी कर लेते थे।
    ब्रिटिश शासन ने आदम को यात्रा मार्ग में सुधार हेतु रिपोर्ट बनाने आदेश दिया और आदम ने चट्टी प्रबंधन को सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था करार दिया तथा लिखा कि  गढ़वाल में किसी सुधार की आवश्यकता ही नहीं है । सुरक्षा , यात्रा  सुविधा  प्रबंधन ही तो पर्यटन प्रवंधन है जो चट्टी मालिक करते थे.
           बाबा   काली कमली वालों का योगदान
 बाबा कमली वालों की धर्मशालाओं व औषधालयों का गढ़वाल पर्यटन में बड़ा योगदान है। 
 

Copyright @ Bhishma Kukreti  7/4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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टिहरी रियासत में पर्यटन तंत्र  भाग -1

 Laws for Tourism Development in Tehri Riyasat
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )

  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -66

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  66               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--170)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 170

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

  टिहरी रियासत  काल 1816 -1948 तक को अधिकतर जन शोषण काल माना जाता है किन्तु टिहरी रियासत काल में सुचारु उत्तराखंड पर्यटन हेतु कई पग भी उठाये गए थे।

                मोटर मार्ग

1937 -38 में ऋषिकेश से देवप्रयाग मोटर मार्ग निर्मित हुआ पीछे इस मार्ग का  कीर्तिनगर तक विस्तार विटार किया गया
   1921 में ऋषिकेश से नरेंद्र नगर मोटर मार्ग का कार्य प्रारम्भ हुआ पीछे मोटर मार्ग टिहरी तक पंहुचाया गया।
     मानवेन्द्र शाह काल में टिहरी से धरासू तक मोटर मार्ग निर्मित हुआ।
            1940 में टिहरी रियासत में निम्न मुख्य मार्ग थे -
ऋषिकेश नरेंद्र नगर मोटर मार्ग-53 मील
ऋषिकेश देवप्रयाग -कीर्तिनगर मोटर मार्ग -63 मील
 टिहरी मसूरी अश्व मार्ग -40 मील
 अन्य कच्ची सड़कें 844 मील
             राज्य बंगले
टिहरी रियासत के राजकीय बंगले - कौड़िया , धनोल्टी , पौ , डांगचौरा , धरासू , नाकुरी  बड़ाहाट , भटवाड़ी , हरसिल , जांगला , देवलसारी , मगरा , बड़कोट ,पुरोला , बडियार , फाकोट , नागणी , चमुवा , टिहरी , प्रताप नगर , नरेंद्र नगर और कीर्ति नगर में थे।
              जनता द्वारा मार्ग निर्माण
  अधिकतर मार्ग निर्माण जनता द्वारा ही किये जाते थे।
         टिहरी में नाट्य गृह
 टिहरी में एक नाट्य गृह भी निर्मित  किया गया जहां नाटक व सांस्कृतिक प्रोग्रैम होते थे। पांच सखा के गढ़वाली नाटक पाखो का मंचन इसी नाट्यगृह में हुआ था।
      देव प्रयाग में पाठशालाएं
 भवानी शाह काल में 1860 में हिंदी व संस्कृत पाठशालाएं खोली  गयीं जो आतंरिक पर्यटन हेतु लाभकारी था।

   गंगाजल विक्रय
 भवानी शाह ने गंगोत्री के गंगा जल विक्रय हेतु ठेके की प्रथा प्रारम्भ क।
   भवानी शाह ने कतिपय मंदिरों का जीर्णोद्धार किया व एक दो नए मंदिर भी निर्मित किये व राजप्रासाद भी निर्मित किये।

      प्रताप शाह काल 1871 -1886
 प्रताप शाह ो भवन निर्माण का शौक था। टिहरी में मोटर चलने लायक सड़कें बनवायीं।
        टिहरी में चिकित्सालय
प्रताप शाह ने टिहरी में चिकित्सालय बनवाया जहां राजवैद्य रवि दत्त व यूरोपियन पद्धति के डा हरिराम भारतीय चिकित्स्क थे।

     प्रताप नगर की स्थापना
  प्रताप शाह ने टिहरी से 9 मील की दूरी पर 7 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर 1877 में प्रताप नगर बसाया। जहां कई उद्यान व भवन निर्मित हुए।  टिहरी से प्रताप नगर तक मार्ग चौड़ा किया गया।

  टिहरी रियासत में शिकार पर्यटन
  भवानी शाह व सुदर्शन शाह अंग्रेज भक्त थे और इस भक्ति प्रदर्शन हेतु कई अंग्रेजों जैसे विल्सन हंटर को शिकार खेलने की इजाजत दे दी थी।  इस दौरान सैकड़ों वन्य जंतु मारे गए।  1935 में वन्य जीवन धिनियम से शिकार खेलने पर प्रतिबंध तो नहीं लगा किन्तु कुछ वन सुरक्षित क्षेत्र घोषित किये गए। 

  चट्टी तंत्र
  गुप्तकाशी या मंदाकिनी घाटी से गंगोत्री -जमनोत्री यात्रा मार्ग व ऋषिकेश -यमनोत्री यात्रा मार्ग पर तीन चार मील पर चट्टियां थीं। केदार सिंह फोनिया ने अपनी  उत्तराखंड पर्यटन पुस्तक में इन चट्टियों का विस्तार से वर्णन किया है


Copyright @ Bhishma Kukreti 8 /4 //2018

1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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 Tehri king Invented Hindi Typewriter
टिहरी रियासत राजा के पर्यटनोमुखी कार्य  (देव नागरी टाइप राइटर का ांसेस्क कीर्ति शाह )
Touism in Tehri Kingdom
( टिहरी रियासत  में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म )
Invention of Hindi Typewriter by KirtiShah the Theri king
  -

उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -67

-

  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 67                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--171)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 171

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )
कीर्ति शाह काल 1887 -1913 है

     पौड़ी -चमोली गढ़वाल पर ब्रिटिश शासन काल में सदाव्रत गाँवों की आय से 1850 ई से चिकित्सालय व धर्मशालाएं निर्मित होने लगे थे।  टिहरी रियासत में यात्रा मार्ग व पर्यटकों की चिकित्सा   लगभग  उपेक्षित ही रही।    टिहरी यात्रा क्षेत्र में विषैली मखियों के काटने से यात्रियों के पैरों में सूजन आ जाती थी व वे चलने में  लाचार हो जाते थे।  साथी यात्री उन्हें छोड़ जाते थे व कई भूख से मर जाते थे। इसके अतिरिक्त प्लेग , अपच व दस्त से यात्रियों को कष्ट होता था।  टिहरी क्षेत्र के पर्यटन छवि धूमिल पद गयी थी और यात्री संख्य पर प्रभाव पड़ रहा था।
कीर्ति शाह ने ऋषिकेश से गंगोत्री -यमुनोत्री , मूखीम जाने वाले मार्गों का जीर्णोद्धार करवाया व चिकित्सालय खुलवाए व नदियों पर झूले बनवाये जिससे गंगोत्री -यमुनोत्री यात्रियों को बहुत लाभ पंहुचा।  कीर्ति शाह ने सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना की राजधानी व प्रमुख मार्गों का जीर्णोद्धार किया गया।  कई धर्मशालाएं भी खोले गए।  कुछ डाक बंगले भी खोले गए। देवप्रयाग , प्रतापनगर , गंगोत्री व यमुनोत्री की व्यवस्था भार पुलिस को सौंप दी गयी। कीर्ति शाह ने कुष्ठाश्रम की भी स्थापना की।

           देवनागरी टाइप राइटर अन्वेषण
 
कीर्ति शाह स्वयं भी बिलक्षण था।  दरबार के
 कई मैकेनिकल कार्य वह स्वयं करता था। देव नागरी  टाइप राइटर की खोज का श्रेय कीर्ति शाह को जाता है किन्तु उसने अपना नाम न देकर निर्माण कार्य किसी कम्पनी को दे दिया। (भक्त दर्शन , गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ पृष्ठ 190 )
      कीर्तिनगर स्थापना
  कीर्ति शाह ने गंगा तट पर श्रीनगर के समीप , मलेथा से कुछ दूर कीर्ति नगर की स्थापना की।
       राजमाता द्वारा मंदिर निर्माण
   कीर्ति शाह को राज मिलने से पहले राजकाज महारानी राजमाता गुलेरी चलाती थीं।  कीर्ति शाह के राज भार संभालने के बाद राजमाता गुलेरी ने पुराने दरबार के नीचे बद्रीनाथ , रंगनाथ , केदारनाथ, गंगा जी मंदिर अपने गहने बेचकर निर्मित किये। राजमाता गुलेरिया ने यात्रियों हेतु एक धर्मशाला भी बनवायी जिसमे यात्रयों को मुफ्त रहने व भोजन का प्रबंध किया जाता था।  राजमाता गुलेरिया ने अपने द्वारा निर्मित मंदिरों के प्रबंधन हेतु समिति भी बनाई थी। टिहरी के बद्रीनाथ मंदिर में संस्कृत में राजमाता का प्रशस्ति पत्र अंकित  है।
         सर्व धर्म सम्मेलन
राजा कीर्ति शाह सनातन धर्मी था किन्तु अन्य धर्मों का भी आदर करता था। एक बार कीर्ति शाह ने  सनातन ,जैन ,आय समाज इस्लाम के विद्वानों को बुलाकर सर्व धर्म सम्मेलन करवाया जिसमे विद्वानों ने अपने धर्मों के बारे में मत दिए।
      स्वामी रामतीर्थ आगमन
  कीर्ति शाह को 1902 में पता चला कि स्वामी राम तीर्थ आये हैं तो कीर्ति शाह ने स्वामी राम तीर्थ को राजकीय अतिथि बनाया और उन्हें टिहरी निवास का आग्रह किया।  कीर्ति शाह ने स्वामी राम तीर्थ का जापान में सर्व धर्म सम्मेलन में सम्मलित होने का पूरा प्रबंध किया। स्वामी रामतीर्थ के जल समाधि बाद कीर्ति शाह ने स्वामी जी के पुत्र को इंजीनियरिंग शिक्षा का प्रबंध किया।

    कीर्ति शाह के उपरोक्त कार्य निश्चित ही गढ़वाल छवि वृद्धिकारक व पर्यटन विकासोन्मुखी थे। टिहरी में नगरपालिका स्थापना व वाटर वर्क्स जैसे विभागों की शुरुवात भी पर्यटन वृद्धि कारक होते ही हैं।  कीर्ति शाह नव कृषि या वैकल्पिक कृषि जैसे बागवानी का समर्थक थ। 



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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
2 - भीष्म कुकरेती , 2013 उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन , इंटरनेट श्रृंखला जारी
3 - शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास  part -6
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  Medical Tourism History  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History of Pauri Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Chamoli Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Rudraprayag Garhwal, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical   Tourism History Tehri Garhwal , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Uttarkashi,  Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Dehradun,  Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Haridwar , Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History  Nainital Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;  Medical Tourism History Almora, Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History Champawat Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;   Medical Tourism History  Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand, India , South Asia;


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 राजा नरेंद्र शाह काल में टूरिज्म

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Uttarakhand Tourism in Narendra Shah Ruling Period
( बमें उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म-4 )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  68

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -  68               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--172)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 172


राजा नरेंद्र शाह का शासन काल 1919 से 1946 तक रहा। . यह काल टिहरी में स्वंत्रता आंदोलन व राज अत्त्याचारों का काल रहा।  टूरिज्म या पर्यटन दृष्टि से निम्न घटनाएं प्रमुख रहीं -


 नरेंद्र नगर की स्थापना

 प्रताप शाह व कीर्ति शाह ने अपने नाम से नगर बसाये थे किन्तु वे मोटर मार्ग से भी जुड़ पाए।  नरेंद्र शाह ने ऋषिकेश से 10 मील की दुरी पर 5000 फ़ीट की ऊंचाई पर उड्याळी गाँव में नरेंद्र नगर बसाया जो आज भी उत्तराखंड पर्यटन में अपना योगदान देने में सक्षम है। नगर निर्माण कार्य 1921 में  सहस्त्र चंडी कर्मकांड से शुरू हुआ और दस सालों तक चलता रहा।  महल कार्य 1924 में सम्पन हुआ।  गृह प्रवेश उत्स्व भी धूमधाम से मनाया गया।  सेक्रेट्रिएट भवन 1942 में पूरा हुआ।  नरेंद्र नगर में डाकघर , दुकाने कर्मचारियों के लिए भवन आदि सभी का प्रबंध किया गया था और 30 लाख रूपये में नगर बसाया गया था।


    हेली हॉस्पिटल

१९२५ में नरेंद्र नगर में हेली हॉस्पिटल का निर्माण कार्य 1921 से शरू  हुआ। टिहरी से ऋषिकेश पैदल मार्ग का चौड़ीकरण भी किया गया। जनता से मुफ्त में 'प्रभु सेवा ' के नाम पर कार्य करवाया गया।


चिकित्सालयों की स्थापना

नरेंद्र शाह ने पुराने चिकित्सालयों में नए यंत्रों का प्रबंध किया व कुछ और चिकित्सालय भी खुलवाए।  कुछ डिस्पेंसरियां भी खोलीं गयीं।


  वीर गबर  सिंह स्मारक

 प्रथम विश्व युद्ध में शौर्य हेतु विक्टोरिया क्रॉस पदक प्राप्त गबर सिंह की स्मृति में 1924 में चम्बा में एक स्मारक का निर्माण हुआ।


 नरेंद्र शाह द्वारा विदेश यात्राएं

नरेंद्र शाह ने 11 बार विदेश यात्रायें  कीं।


 ऋषिकेश कीर्ति नगर मोटर मार्ग


1937 -38 में देवप्रयाग से कीर्ति नगर तक मोटर मार्ग निर्मित किया गया।


  नरेंद्र नगर टिहरी मोटर मार्ग व टिहरी से उत्तरकाशी मोटर मार्ग योजनाएं


 नरेंद्र शाह और मंत्री चक्रधर जुयाल मोटर मार्ग के पक्षधर थे।  1939 तक नरेंद्र नगर से टिहरी मार्ग पर चम्बा तक मोटर चलने लगीं थीं।

  टिहरी से उत्तरकाशी मोटर मार्ग हेतु सर्वेक्षण कार्य भी किया गया।  कीर्ति नगर से टिहरी मोटर मार्ग की भी योजना बनाई गयी थी।


     तीर्थ यात्रा  सुधार बिल

1924 में तीर्थ यात्री आगमन  वृद्धि हेतु तीर्थ यात्री सुधार बिल पास हुआ।  इस विधान में पंडों , पुजारी हेतु हिंदी , संस्कृत शिक्षा अनिवार्य किये गए व यात्रियों की सुविधा हेतु  चट्टियों में नव प्रबंधन व निरीक्षण का प्रावधान किया गया व अन्य सुविधा हेतु कार्य प्रावधान किये गए। पंडों , पुजारियों को तीर्थ यात्री उन्मुखी बनाने का कार्य प्रशंसनीय ही माना जाएगा।

 

     द्वितीय विश्व युद्ध में गढ़वालियों का शौर्य

 प्रथम विश्व युद्ध की भांति द्वितीय विश्व युद्ध में भी गढ़वाल प्लैटून का शौर्य अविश्मरणीय रहा व गढ़वाल को एक नई छवि व प्रसिद्धि मिली।  दोनों गढ़वाल को सेना में भर्ती होने से समृद्धि के नए द्वार खुले जो आज तक चल ही रहा है।  गढ़वालियों द्वारा विदेश यात्राों या यहीं से कई  नई संस्कृति गढ़वाल को मिलीं जैसे गंगासलाण में गेंद व हिंगोड़ खेल व उत्तररखण्ड को मुशकबाज वाद्य यंत्र।  सेना कर्मियों द्वारा उत्तरखंड के मैदानी हिस्से में बसने का हौसला भी सेना ंवृत कर्मियों द्वारा गढ़वालियों को मिला।  भूतपूर्व सैनिकों ने पर्यटन उद्यम में भी निवेश किया जैसे दुकानें खोलना या भवन निर्माण करना।   सैनिकों द्वारा गढ़वाल में आधुनिक संस्कृति या सभ्यता भी आयात हुयी।  कोटद्वार , काशीपुर जसपुर , देहरादून में नई बसाहत  का श्रेय तो भूतपूर्व सैनिकों  को ही जाता है।  गाँवों में शराब प्रचलन भी सैनिकों द्वारा ही बढ़ा। 






 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

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1 -भीष्म कुकरेती, 2006  -2007  , उत्तरांचल में  पर्यटन विपणन परिकल्पना , शैलवाणी (150  अंकों में ) , कोटद्वार , गढ़वाल
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गढ़वाल में मोटर यातायात (सतपुली का माछ भात व व्यासी का परांठा प्रसिद्धि )

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Motor Transportation in British Garhwal

Improvement in Tourist Facilities in British Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म-4 )

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -69

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  -   69               

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--173)   
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग 173

 

    मोटर मार्ग अवतरण से पहले यातायात सुविधा कुली एजेंसी के हाथ में थ।  ऋषिकेश -देवप्रयाग मोटर मार्ग में चलने वाली लोरियों के स्वामी गढ़वाली -मैदानी दोनों थे।  किन्तु क्रमिक गढ़वाली ही थे।

    ब्रिटिश गढ़वाल में मोटर यातायात जब तक कोटद्वार से लैंसडाउन तक सीमित था लॉरी लॉरी परिवहन पर एकाधिकार होने से परिहवन मालिक मनमानी करते थे।  दोगड्डा से कोटद्वार तक पृष्ठि अनुसार किराया एक आने से लेकर एक रुपया तक था। दोगड्डा से कोटद्वार का किराया कई बार दो रूपये लिया जाता था। लॉरी या मोटर न होने से कई बार यात्री सामान के साथ कोटद्वार में दो दो दिन तक पड़े रहते थे।

          कोटद्वार में मोटर उद्यम को संगठित व सुचारु रूप से चलाने का श्रेय रायबहादुर सूरजमल को जाता है।  महायुद्ध से पहले यातायात व्यवस्था हेतु प्यासु के राजाराम मोलासी जो मुंबई में टैक्सी व्यहार में संलग्न थे कोटद्वार में मोटर , लौरी शुरू कीं।  राजाराम मोलासी के साथ भवानी दत्त एजेंट को बड़ी ख्याति मिली।  ज्ञात हो कि बाद में राजाराम मोलासी ने अपना व्यवसाय कोटद्वार में समेट लिया और मुंबई में  मोटर ट्रेनिंग स्कूल शुरू किया। 

      1941 में जिलाधिकारी ने एक नियम भी दिखाकर मोटर मालिकों को यूनियन बनाने के लिए विवश किया। यूनियन बन जाने के बाद सरकारी कर्मचारी युद्ध के नाम पर मुफ्त में यात्रा करते थे।   

    दीप्ती कमिश्नर बिमंडी ने 30 नई गाड़ियों के परमिट इस शत पर दिए कि एक प्राइवेट संस्था गढ़वाल मोटर ट्रांसपोर्ट कम्पनी खोली जायेगी।  इस प्रकार दो यूनयन होने से उनमे संघंर्ष शुरू हो गया जो शायद सन 1970 तक चलता ही रहा था।

  मोटर व्यवसाय सबसे अधिक आजीविका दाता उद्यम था जिस पर  1947 में लगभग 1000 परिवार निर्भर थे।


   दिसंबर 1946 तक मोटर ऋषिकेश से चमोली तक चलने लगीं थीं। मार्च 1947 को गाड़ियां कर्णप्रयाग तक पंहुचने। लगीं  बड़ेथ के उमा नंद बड़थ्वाल हमेशा नई सड़क पर अणि गद्दे पहले ले जाते थे।

                प्राचीन ऋषिकेश -बद्रीनाथ मार्ग में बीरानी

    मोटर सड़क बनने से प्राचीन ऋषिकेश बद्रीनाथ मार्ग बीरान हो चला और यहां के देव स्थल भी बीरान हो गए।  किन्तु नए स्थलों की ख्याति बढ़ गयी


              व्यासी के आलू गुटके और परांठे

  ऋषिकेश -कर्ण प्रयाग मोटर मार्ग में गेट सिस्टम होने से गाड़ियों को व्यासी में रुकना पड़ता था और यात्रियों  को जलपान करने ा समय मिल जाता था।  एक समय व्यासी परांठे व आलू के गुटके हेतु प्रसिद्ध हो चला था।

           सतपुली का माछ भात

यदि टिहरी गढ़वाल में व्यासी परांठा -आलू गुटके के लिए प्रसिद्ध हुआ तो सतपुली माछ सुरुवा व भात के लिए प्रसिद्ध हो गया।सतपुली ने हजारों साल से प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान बांघाट के औचित्य को ही समाप्त कर दिया 


        गुमखाल के काफळ

  पौड़ी कोटद्वार मोटर मार्ग से गुमखाल को भी प्रसिद्धि मिली।  यद्द्यपि इस मार्ग ने हजारों साल से प्रसिद्ध द्वारीखाल के औचित्य को हानि पंहुचायी किन्तु गुमखाल को गर्मियों में काफळ प्राप्ति स्थान से प्रसिद्धि मिली।

          भोजन स्थान को प्रसिद्धि दिलाता है

    मेरी राय है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने क्षेत्र के मोटर मार्ग पर दुकानदारों को एक विशेष भोजन बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे वः स्थान प्रसिद्ध हो जाय जैसे मोदी नगर में जैन जल जीरा ने कार यात्रियों को मोदी नगर में रुकने के लिए मजबूर किया। 

       

 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

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कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन का उत्तराखंड पर्यटन में योगदान
 

Hisotry Kumaon Motor Owners Union Limitted  (KMOU)

Improvement in Tourist Facilities in British Uttarakhand
( ब्रिटिश युग में उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म- 10)

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उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म विकास विपणन (पर्यटन इतिहास )  -70

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  Medical Tourism Development in Uttarakhand  (Tourism History  )  - 70                 

(Tourism and Hospitality Marketing Management in  Garhwal, Kumaon and Haridwar series--)   174
    उत्तराखंड में पर्यटन व आतिथ्य विपणन प्रबंधन -भाग -174


 
    लेखक : भीष्म कुकरेती  (विपणन व बिक्री प्रबंधन विशेषज्ञ )

   ब्रिटिश काल में ही आधुनिक कुमाऊं पर्यटन को प्रसिद्धि मिल चुकी थी।  कुमाऊं में ब्रिटिश प्रशासनिक हेड क्वार्टर होने से अधिकारी अल्मोड़ा आते जाते रहते थे और वे विभिन्न माध्यमों में कुमाऊं वर्णन कर कुमाऊं छवि वर्धन करते  थे।  जिम कॉर्बेट ने बाग़ रुद्रप्रयाग में मारे किन्तु पुस्तक 'मैं ईटर ऑफ कुमाऊं 'के नाम से प्रकाशित की।  इस तरह के प्रकाशनों व अधिकारियों द्वारा कुमाऊं की पर्यटन हेतु सकारात्मक छवि बनी।
   मोटर व रेल आने के बाद कुमाऊं पर्यटन को नए संबल मिले।  मोटर आने के बाद तो ग्रामीण कुमाऊं पर्यटन को नए नए आयाम मिले।
        मोटर मालिकों के मध्य अनावश्यक प्रतियोगिता रोकने व मोटर परिहवन में जन सुविधा के मद्दे नजर ब्रिटिश अधिकारी मालिकों की यूनियन बनाने पर जोर देते थे।
      गोविन्द बल्ल्भ पंत के अथक प्रयत्न से 1939 में कुमाऊं मोटर ओनर्स यूनियन ( KMOU )की स्थापना काठगोदाम में हुयी।  निम्न सदस्य प्रथम बैठक में थे -
जे बधान स्कैयर - अध्यक्ष
पृथ्वीनाथ भार्गव - निदेशक
ई  जे दा  फोइनसिका - जनरल मैनेजर
इंद्रजीत भसीन --सदस्य
भवानी दत्त चंदोला -सदस्य
भवानी दास शाह -- सदस्य
शिव लाल शाह --सदस्य
गुसाईं सिंह - सदस्य
उर्वा  दत्त जोशी - सदस्य
 जनरल मैनेजर ई  जे दा फोइनसिका ने 23 प्रस्ताव रखे जो सर्वसहमति से स्वीकृत हो गए।  सर्वसहमति बनी कि संस्था का प्रधान कार्यालय काठमांडू में होगा और स्थान विशेषता के अनुसार कुमाऊं में चेक पोस्ट व स्टेशन खोले जायँ।
आज KMO U  के बस स्थानकों में निम्न यात्रा सुविधाएँ उपलब्ध हैं
१- सभी तरह की परिहवन सेवाएं
२-पीने का जल
३- टिकट बुकिंग
४- भोजन व कैंटीन
५- आराम स्थान
६- ATM
७-  यात्री सूचना केंद्र
८- प्री पेड  टैक्सी सुविधा
९- प्री पेड रिक्शा सुविधा
 १०- शौचालय
११- पुलिस गस्त
१२- अन्य सुरक्षा प्रबंध
-काठगोदाम से अल्मोड़ा , नैनीताल, जागेश्वर धाम , मुक्तेश्वर , रानीखेत , मुनसियारी हेतु सीधी परिहवन सेवायें उपलब्ध हैं . इसमें कोई शक नहीं कि KMOU  ने कुमाऊं पर्यटन विकास में अथक योगदान दिया है।  KMOU का प्रबंधन बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर पद्धति से होता है। 
 (KMOU वेब साइट के सौजन्य से )




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