Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 42714 times)

Bhishma Kukreti

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मेडिकल टूरिज्म में कर्मिक आपूर्ति व भूमि पुत्र  अधिकार प्रश्न

  ( चर्चा आवश्यक है )   

 

 

Work Force Requirements  for Uttarakhand  Medical  Tourism Development and Question of Sons of Soil

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 24

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -24   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 190

Medical Tourism development  Strategies -190

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 294

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -294

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती  2018



  मेडिकल या अन्य उद्यमों के विकास हेतु सबसे महत्वपूर्ण कारक है - सभी प्रकार के कर्मिक।  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु सामन्य से अति विशेष कर्मिकों की आवश्यकता पड़ती है और यह स्थिति सभी अन्य उद्यमों पर भी लागू होती है। 

   उद्यमों हेतु जब कर्मिकों की आवश्यकता पड़ती  है तो कर्मिकों की आपूर्ति स्थानीय लोगों से होती है या बाह्य कर्मिकों का आयात होता है।

   जब औद्योगिक विकास में असमानता हो जैसे भारतम में स्वतंत्रता उपरान्त उद्योग मुंबई , कोलकत्ता व चेन्नई निकट अधिक पनपे और अन्य क्षेत्र पिछड़ते गए तो अन्य पिछड़े क्षेत्रों से कर्मिक इन तीन बड़े शहरों की ओर  आते गए।  जब भी बाहर से पलायन हो तो स्वयमेव ही प्रवासी भूमि पुत्रों के अधिकारों पर कब्जा करने लगते हैं।  यह  केवल भारत में ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर  भी हो रहा है। सॉफ्ट वेयर क्षेत्र में भारतीय अमेरिका या अन्य देशों में प्रवासी बन गए हैं व स्पष्टया भूमि पुत्रों के अधिकार ही छीन रहे हैं। 

   गढ़वाल -कुमाऊं क्षेत्र में उद्योग पनपे नहीं तो पहाड़ी बड़ी संख्या में पलायन करते गए और अन्य क्षेत्रों के भूमि पुत्रों के अधिकार छीनते  गए।

       कर्मियों ही नहीं उद्यम लगाने वालों में भी भूमि पुत्र अधिकार का प्रश्न खड़ा होता है।  उद्योग वही लगाएगा जो निवेश कर सकेगा व निवेश में रिस्क लेगा।  मुंबई के कारण मुंबई निकट महाराष्ट्र  में उद्योग खूब पनपे तो सन 1960 -1970 लगभग भूमि पुत्रों का उद्योगपति न होना व बाह्य कर्मिकों का भूमि पुत्रों से रोजगार छीनने का आंदोलन चला जिसे शिव सेना आंदोलन नाम देना सही होगा। सार्वजनिक क्षेत्रों में तो मराठी माणस को रोजगार देना सरकार के हाथ में था किन्तु निजी क्षेत्र में रोजगार देने के कई मापदंड होते हैं।  मानसिकता का नियम है बल स्थानीय कर्मिक  कम मेहनत करता है और नियम अधिक बताता है किन्तु प्रवासी कर्मिक परिश्रम भी अधिक करता है व मौन भी रहता है। तो महाराष्ट्र में व्यापार पर गैर मराठियों का व निजी क्षेत्र में रोजगार में भी गैर मराठियों का प्रभुत्व होता  गया।  मैंने मराठियों का यह दर्द सुना  भी है और अनुभव भी किया  क्योंकि मैंने भी तो किसी मराठी माणस का अधिकार छीना होगा तभी तो मैं महाराष्ट्र में टिक सका ।  फिर एक सास्वत सत्य है बल एक बार  मनुष्य किसी प्रभावी  पद पर बैठ जाय तो वह  अपने विशेष लोगों को अपने आस पास रखने लगता है।  यह मानसिकता भी भूमि पुत्र को रोजगार मिले विचार को विध्वंस करता है।

        उत्तराखंड में भी भूमि पुत्र का प्रश्न आज से नहीं  ब्रिटिश काल में 1850 ई  से अनुत्तरित है।  यक्ष प्रश्न सामने है किन्तु इसका जबाब किसी  के पास मिल ही नहीं पा रहा हैं। ब्रिटिश अधिकारियों ने जब सड़क जाल बिछाने का के शुरू किया तो कठिन पहाड़ी या रिस्क वाली पहाड़ी काटने /तोड़ने व उस पर सड़क /पुस्ता धरने के कार्य हेतु कुमाउँनी व गढ़वालियों ने मना कर दिया।  ऐसे में ब्रिटिश अधिकारियों व उत्तराखंडी अधिकारियों व ठेकेदारों को नेपाल से श्रमिक आयात करने पड़े।  इसी तरह बोझ ढुलाई हेतु भी कुमाउँनी व गढ़वाली आगे नहीं आये तो मुख्य स्थलों में नेपाल से कुली आयात हुए।  आज भी सिटी वही है। यहां तक कि पहाड़ों में भवन निर्माण में भी वाह्य श्रमिकों को भट्याना  आवश्यक हो गया है।

ब्रिटिश काल में समृद्धि आने लगी पर्यटन विकसित होने लगा  तो बजार भी निर्मित होने लगे , दुगड्डा , कोटद्वार,  चट्टियों, देहरादून जैसे शहरों व कस्बों में  में दुकानों की आवश्यकता पड़ने लगी।  कुछ गढ़वाली -कुमाउँनी लोग दूकान खोलने लगे किन्तु मांग अधिक थी किन्तु पहाड़ी समाज में वणिक जाति तो थी ही नहीं तो बाहरी क्षेत्र से वणिक आने लगे व् वे स्थानीय वणिकों से अधिक सफल होते गए वा आज दुकानों पर बाह्य वणिकों का ही कब्जा है व स्थानीय गढ़वाली -कुमाउँनी स्थानीय स्थानीय की रट  लगाते रहते हैं किन्तु दूकान नहीं खोलते।  महारष्ट्र का लघु रूप उत्तराखंड में दिखता है।

       एक तथ्य भी महत्वपूर्ण है बल गढ़वाली -कुमाउँनी समाज जो वणिकधर्मी है वह  समाज समय अनुसार नहीं बदल पाता   है जो मैंने मराठी समज में भी देखा है।  यही कारण है मुंबई -पुणे , नासिक आदि जिलों में मराठी खाणावल समाप्त हो गए हैं और शेट्टी या अन्य समाज ने होटल व्यापार पर कब्जा कर लिया है।  दुगड्डा का स्व हृदय राम जी कुकरेती का  होटल का नाम एक समय  में सारे सलाण में प्रसिद्ध था व हर विद्यार्थी चाहता था वह  कुकरेती होटल (लॉजिंग बोर्डिंग ) में रहे।  किन्तु स्व हृदयराम जी की मृत्यु उपरान्त समयानुसार परिवर्तन न होने से कुकरेती होटल आज इतिहास में ही है।  इसी तरह देहरादून में कई गढ़वाली होटल व व्यापारिक संस्थान या तो इतिहास बन गए हैं या किसी तरह चल रहे हैं। 

            उद्यम हेतु निवेश व रिस्क उठाने की क्षमता होनी चाहिए किन्तु महाराष्ट्र व उत्तराखंड में दोनों समाज निवेश करने व रिस्क उठाने में कमजोर ही साबित हुआ है।  इन दोनों समाज में व्यापरी युवा को व्याहने हेतु लड़की देने कोई तैयार ही नहीं होता।  मराठी व उत्तराखंडी समाज में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को लड़की मिल जाएगी किन्तु व्यापारी को व्याह हेतु लड़की मिलना कठिन ही है।  ऐसी मानसिकता में व्यापार वाह्य लोगों के पास ही जाएगा।

    कहा जाता है बल शिक्षा उपलब्धि , सामाजिक व आर्थिक विकास , विकास में असंतुलन कमी  भूमि पुत्रों का प्रश्न हल करेगी किन्तु मुझे लगता नहीं कभी भी  भूमि पुत्रों का प्रश्न हल हो सकेगा।  उदाहरणार्थ उत्तराखंड में मेडिकल पर्यटन व अन्य पर्यटन विकसित होंगे तो उद्यम तो वाह्य वणिक ही लगाएंगे और कठोर श्रम तो नेपाली व अन्य क्षेत्र के श्रमिक ही करेंगे तो भूमि पुत्र अधिकार प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहेगा , कि नहीं ?

           



       



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मेडिकल टूरिज्म में आजीविका अवसर

 

  Career in  Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 25

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -25   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 191

Medical Tourism development  Strategies -191

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 295

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -295

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती


मेडिकल तुरुजम तुईज्म से जुड़ा उद्यम है अतः मेडिकल टूरिज्म में लगभग टूरिज्म के आजीविका संभावनाएं हैं यथा -

डाक्टर , वैद्य

 देकर , वैद्य सहायक

योग टीचर

स्वास्थ्य केंद्र प्रशासक

अतिथि सत्कार संबंधी कार्य में

स्पा में विभिन्न कार्यों हेतु

नेचुरोपैथी सेंटर्स में कर्मिक

होटल व हॉस्पिटल में कर्मिक

पैरामेडिकल असिस्टेंट्स

मेडिकल टूर सलाहकार

मेडिकल टूरिज्म विकास सलाहकार

टूर एजेंट्स

इन्सुरेंस संबंधी कार्यों में

परिहवन

टूर गाइड

टूर साहित्य लेखक

टूर पत्रकारिता

ऑफलाइन /ऑनलाइन टूरिज्म मार्केटिंग व जनसम्पर्क विभाग

कम्प्यूटर /आई टी विभाग

मानव संसधन विभाग , परसनल मैनेजमेंट

इनके अतिरिक्त कई अन्य कार्य आजीविका माध्यम हैं जैसे टूरिज्म में कार्यरत NGOs

    करियर हेतु कुछ कोर्सेज

डिप्लोमा/ डिग्री मेडिकल टूरिज्म

ट्रेनिंग पैरा मेडिकल सर्विसेज

टूरिज्म मार्केटिंग , मेडिकल टूरिज्म मार्केटिंग

हॉस्पिटल मैनेजमेंट

होटल मैनेजमेंट




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मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु DPIM  जैसे परचिकित्सीय प्रशिक्षण संस्थानों   की आवश्यकता

 

  Requirement of  Paramedical Training Institutes  as  DPIM Training Institutes  for  Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 26

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -26   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 192

Medical Tourism development  Strategies -192

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 296

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -296

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

चिकित्सालय केवल चिकित्सक से नहीं चल सकता अपितु कई सहायक विषेशज्ञों की आवश्यकता पड़ती है।  भारत में परचिकित्सीय कर्मिकों/paramedical workforce   की बहुत कमी है।  पब्लिक हेल्थ फॉउंडेशन की 2012 की रपट बताती है बल -

  8. 5 लाख ऐनेस्थियाटिस्टों की कमी है

20 लाख दंत चिकित्सा स्टाफ की कमी है

1. 27 ऑप्टोमेट्रिस्टों की कमी है

18 लाख रिहैबिलेसन विषेशज्ञों की कमी है

60000 मेडिकल लैब टेक्नीशियनों की कमी

19000 रेडिओग्राफर की कमी

7400 बोलने सिखाने वाले  विशेषज्ञों की कमी

2. 3 लाख मेडिकल टेक्नॉलोजी वर्कर्स की कमी है

2. 36 लाख डाइटियेसंस की कमी है

प्रग्रामर्स की भी भारी कमी है

अन्य रपट अनुसार भारत में 12000 फार्मेसिस्टों की कमी है।

ASSOCHAM की 2017 की रपट बताती है कि भारत में ही 3 लाख योग शिक्षकों की कमी है

प्राकृतिक चिकित्सा व वेलनेस चिकित्सा , आयुर्वेद चिकित्सा , सिद्ध चिकित्सा , यूनानी चिकित्सा , होमियोपैथी चिकित्सा में भी तकनीक व प्रशिक्षित कर्मियों की भारी कमी है।

उपरोक्त कमी चिकित्सा सुविधा में सबसे बड़ा गतिरोध है तथापि मेडिकल टूरिज्म विकास में भी गतिरोध है।  योग टीचरों की विदेशों में भी बड़ी मांग है इस मांग को भारत ही पूरी कर सकता है।

     उपरोक्त प्रशिक्षित परचिकित्सीय कर्मिकों की मांग को  परचिकित्सीय प्रशिक्षण संस्थान ही पूरी कर सकते हैं जैसे दिल्ली में श्री विनोद बछेटी द्वारा संचालित DPMI

संस्थान।

     भारत व उत्तराखंड में सरकारी व गैरसरकारी क्षेत्र में ऐसे प्रशिक्षण संस्थान खुलने चाहिए जो निम्न कार्य का प्रशिक्षण दे सकें -

फार्मेसी (ऐलोपैथी , आयुर्वेद , यूनानी , होमियोपैथी , सिद्ध )

फिजिओथेरेपी

मेडिकल टेक्नोलॉजी

रेडिओ टेक्नोलॉजी

डाइलेसिस टेक्नोलॉजी

एनेस्थिया टेक्नोलॉजी

परफ्यूजन टेक्नोलॉजी

ऑप्थेल्मिक टेक्नोलॉजी

रेडिओथेरैपी

नर्सिंग

ऑप्टोमेट्री

ओप्रेसन थेयटर टेक्नोलॉजी

ओक्युपेसनल थेरैपी

मेडिकल इमैजिंग टेक्नोलॉजी

मेडिकल रिकॉर्ड टेक्नोलॉजी

लैंग्वेज ऐंड स्पीच थिरैपी विशेषज्ञ

 न्यूक्लियर मेडिकल टेक्नोलॉजी

स्वास टेक्नोलॉजी

रीनल डायलिसिस टेक्नोलॉजी

न्यूरोपैथी व योग

क्रिटिकल केयर टेक्नोलॉजी

दंत चिकित्सा सहायक

रक्त संबंधी सहायक

डाइयेटिएसियन

मालिस आदि

  उत्तराखंड में उपरोक्त सभी प्रशिक्षण संस्थानों की भारी आवश्यकता है।





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मेडिकल टूरिज्म व  पर्यावरण सुरक्षा महत्व

 

  Importance of Environment Protection in  Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 27

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -27   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 193

Medical Tourism development  Strategies -193

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 297

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -297

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती


  मेडिकल टूरिज्म अन्य टूरिज्म को भी जन्म देता है। अतः मेडिकल टूरिज्म विकास में पर्यावरण सुरक्षा पर  ध्यान आवश्यक है।

 मेडिकल टूरिज्म या टूरिज्म स्थानीय आय वृद्धि में सहायक होता है किन्तु टूरिज्म विकास हेतु कई इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में कई पर्यावरणीय खतरों से भी सामना करना पड़ता है जैसे  मार्ग निर्माण में पहाड़ों को तोडना , वन वृक्षों को काटना पड़ता है जिससे कई अन्य हानि होने लगती हैं जैसे भूस्खलन या जल स्रोत्रों का सूखना आदि आदि।  टूरिज्म नगर क्षेत्र वृद्धि कारक होता है आवासीय सुविधा हेतु भवन निर्माण कारक भी है।  भवन निर्माण व नगर क्षेत्र विस्तार से कृषि भूमि , जल व वन क्षेत्र कम हो जाते हैं।

  पर्यटन से प्लास्टिक प्रदूषण प्रसार जगत  समस्या बन चुकी है।

मेडिकल टूरिज्म से टॉक्सिक वेस्ट भी बढ़ता है

  पर्यटन विकास से ध्वनि प्रदूषण , वायु प्रदूषण , दृष्टि प्रदूषण भी बढ़ते हैं।

होटल , औषधि निर्माण , हॉस्पिटलों में पॉल्यूशन कंट्रोल में असावधानी वरतने से कई समस्याएं खड़ी होती हैं।

 पर्यटन से स्थानीय लोगों को कई संसाधनों की कमी झेलनी पड़ती है जो पहले ही कम होते हैं। पहाड़ों में गाड गदन (नदियों ) के तट पर ावसास निर्माण तो प्रकृति विरुद्ध ही है

  जसपुर (ढांगू , पौड़ी गढ़वाल ) में सरकारी चिकित्सालय खुलने से जसपुरवासी खुस हैं कि सुविधा मिल रही है किन्तु साथ साथ जल में चिकित्सालय की भागीदारी का रोना भी रोते हैं।

     मल्ला ढांगू जाखणी में अन्य पट्टियों का क्षेत्रीय कार्यालय खुलने से पर्यटन बढ़ा किन्तु जल संकट बढ़ गया।


     तप्तकुण्डों में स्नान व रोगों का सौरना (फैलना )


   बद्रीनाथ व अन्य चार धामों में तप्तकुण्डों में स्नान धार्मिक कारणों  व त्वचा रोग हेतु पर्यटक वहां स्नान करते हैं किन्तु साथ में त्वचा रोग भी सौराते हैं।  इसी तरह मेडिकल संस्थानों में रोगी स्थानीय जनता को कई नए रोग कीटाणु भी दान में दे जाते हैं।

   यत्र तत्र मल मूत्र विसर्जन से भी कई रोग फैलते हैं। ब्रिटिश काल ही नहीं बाद में भी हरिद्वार ऋषिकेश के पर्यटक गढ़वाल में हैजा चेचक सौरा कर चले जाते थे।

    कई बार विदेशी पर्यटक गलती से कोई बीज लेकर आते हैं और पर्यटक स्थल में खौत देते हैं जिससे बीज जमकर खर पतवार में तब्दील हो जाते  है।


    सामाजिक व सांस्कृतिक प्रदूषण

 पर्यटन सामजिक व सांस्कृतिक प्रदूषण भी सौराते /फैलाते हैं जैसे ऋषिकेश सिलोगी मार्ग में तल्ला ढांगू में (माळा बिजनी धोरे ) कई रिजॉर्टों में विदेशी पर्यटक रात भर नंगा नृत्य करते हैं व नई संस्कृति को जन्म दे रहे हैं।

  बेटी ब्वारियों का भागना भी एक प्रकार का संस्कृत प्रदूषण ही है।

   पर्यटन से स्थानीय भाषा मरती रहती है व कई सांस्कृतिक कथ्य,  कृत्य व प्रतीक समाप्त हो जाते हैं। आजकल पहाड़ों में प्रवासियों की दखलंदाजी से मंदिरों के पुराने प्रतीक हटाए जा रहे हैं व नए प्रतीक बिठाये जा रहे हैं  देवालयों की प्राचीनता समाप्त हो रही है।  प्रवासी भी तो पर्यटक ही हैं। ब्रिटिश काल से  गढ़वाल कुमाऊं में आंतरिक व बाह्य पर्यटन बढ़ता गया साथ में गेहूं चावल की रूचि बढ़ी व झंगोरा -कोदा को नुक्सान हुआ।

 इसी तरह सैकड़ों कई अन्य पर्यारण नष्टीकरण के उदाहरण हैं जिन्हे समझना आवश्यक है

समाज को मेडिकल टूरिज्म या अन्य टूरिज्म विकास वृद्धि में सहायक होना आवश्यक है किन्तु साथ साथ पर्यावरण सुरक्षा में कोई कमी नहीं आणि देनी चाहिए।  इसलेखक का मानना है सरकार भी समाज का ही अंग है कोई बाह्य वस्तु नहीं है।  स्थानीय जन को पर्यारण नियमों का पालन करना चाहिए साथ साथ में पर्यटन माध्यमों को भी पर्यावरण सुरक्षा हेतु वाध्य  करना ही चाहिए। 


आतिथ्य सत्कार का अर्थ यह कदापि नहीं बल अतिथि  कूड़ी  पुंगड़ी  ही उजाड़ जाए


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मेडिकल टूरिज्म में मेडिकल टूरिज्म एजेंटों  का महत्व



  Role of Medical Tourism Facilitators  in   Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु आपूर्ति रणनीति - 28

Supply Strategies for Wellness or Medical Tourism Development in Uttarakhand -28   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 194

Medical Tourism development  Strategies -19

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 298

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -298

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती     



     सामान्यतया जब रोगी अपने ही देस में रोग निदान करवाता है तो उसे किसी मेडिकल टूरिज्म एजेंट की आवश्यकता नहीं पड़ती।  किन्तु जब विदेश में रोग निदान करवाना हो तो मेडिकल टूर एजेंट की आवश्यकता पद ही जाती है।

 मेडिकल टूर एजेंट एक समन्वयक ,  माध्यम या बिचौलिया होता है जो संस्थान (तब एजेंसी ) भी हो सकता है या व्यक्ति भी (तब एजेंट ) . मेडिकल टूरिज्म एजेंट, समन्वयक  या एजेंसी रोगी को रोग निदान सेवा को जोड़ता है याने रोगी को चिकत्सा सेवाकारी से जोड़ने वाला संस्थान मेडिकल टूरिज्म एजेंसी कहलाया जाता है या एजेंट।

जैसे जैसे मेडिकल टूरिज्म में विकास हो रहा है वैसे वैसे मेडिकल टूरिज्म एजेंटो या समन्यवकों की मांग  बढ़ रही है। 

    मेडिकल चिरज्म समन्वयक /एजेंसी रोगी ही नहीं सेवा संस्थान हेतु भी एक आवश्यक घटक है।

  मेडिकल टूरिज्म एजेंट /एजेंसी का निम्न कार्य मुख्य है -

रोगी को विभिन्न देशों या स्थलों की जानकारी देना जहाँ रोग निदान होता हो।

   रोगी को रोग व रोगी के अनुसार डाक्टर , चिकित्सालयों की सही सूचना देना होता है।

डाक्टर या चिकित्सालयों की सेवा स्तर आदि की सूचना भी मेडकल टूरिज्म एजेंट देता है।

   स्थान अनुसार इन्सुरेंस की सूचना एजेंट /एजेंसी देते हैं।

    चिकित्सालयों व डॉक्टरों के गुण -दोषों का समुचित सूचना एजेंसी कार्य में सम्मलित है

रोगी की आवश्यकता जानना

चिकत्सा सेवा दाताओं से सम्पर्क साधना

चिकत्सालयों से समय माँगना

बुकिंग कन्फर्म करना

चिकित्सालय में प्रवेश से लेकर छूटने तक सेवा उपलब्ध प्रबंधन

   रोग निदान तक फॉलो अप

 


रोगी को विदेश यात्रा से पहले के उपचार करवाने हेतु कई सूचनाएं

आवश्यकतानुसार रोगी व चिकत्सा सेवा दाता  के साथ वीडिओ कौंफीन्सिंग , इंटरनेट से जुड़ाव आदि

इसके अतिरिक्त गैर चिकित्सा संबंधी कार्य भी मेडिकल टूरिज्म एजेंट /एजेंसी को करने होते हैं जैसे -

डाक्टर /चिकित्साओं के साथ सेवा लागत निगोशिएसन

पासपोर्ट  वीसा प्रबंधन

 होटल व परिवहन सेवा प्रबंध

 विभिन्न संवैधानिक नियमों की जानकारी

विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक आचार /नीतियों सूचना

न्यायिक प्रक्रिया सूचना

भाषा समसयय समाधान

अपघात स्थिति में सहायता

  रोगी को चिकित्सालय व फिर स्वदेस  लौटने  तक कई सेवायें 

     चिकित्सा पर्यटन समन्वयक चिकित्सा सेवा दाता हेतु भी आवश्यक होते हैं। 

   चिकित्सा पर्यटन समन्वयक के निम्न प्रकार होते हैं

    संगठन दृष्टि से निम्न प्रकार के चिकित्सा पर्यटन समन्वयक होते हैं -

   अ - व्यक्ति

ब - संस्थान

चिकित्सा अनुसार विशेषज्ञ समन्वयक जैसे - किडनी प्लांटेशन  सेवा समन्वयक , हृदय रोग विशेष्ज्ञ समन्वयक

   मेडिकल टूरिज्म फैसिलिटेटर को सरकारी व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है जिन्हे एजेंट या एजेंसी को हासिल करना आवश्यक है।



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मेडिकल टूरिज्म में प्रसिद्ध कुछ देश (मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स ) 



(प्रतियोगिता को समझना आवश्यक है )



 Top  Medical Tourism Destinations and    Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास प्रतियोगिता को समझना -1

Understanding Competition for Medical Tourism Development in Uttarakhand -1   

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 195

Medical Tourism development  Strategies -195

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 299

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -299

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती   





    मेडिकल टूरिज्म ही नहीं छोटे से व्यापार विकास हेतु प्रतियोगिता को समझना आवश्यक ही जिससे बल सही रणनीति बनाई जा सके।

   इंटरनेशनल हेल्थ केयर रिसर्च सेंटर प्रत्येक वर्ष मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स (MTI ) प्रकाशित  करता है जिसमे विभिन्न मापदंडों अनुसार मर्त्येक मेडिकल टूरिज्म देशों की सूची प्रकाशित की जाती है और प्रत्येक देस की रैंकिंग दी जाती है। 

2016 में निम्नदेसों की MTI अनुसार निम्न रैंकिंग थीं (चालीस देशों में से दस देश निम्न हैं  ) -

कर्मसंख्या ---------------------------  रैंकिंग मार्क्स

१- कनाडा ------------------------      ७६.६२

 २- यूनाइटेड किंगडम  ------------     ७४. ८७ 

३ -इजरायल   --------------------------७३. ९१

४ - सिंगापोर   --------------------------७३. ५६     

५ - भारत    -----------------------------७२. १० 

६- जर्मनी    ------------------------------७१. ९०

७- फ़्रांस  -----------------------------------७१. २२

८- दक्षिण कोरिया -------------------------७०. १६

९ -इटली  -----------------------------------६९. ५०

१०- कोलंबिया ------------------------------६९. ४८

   भारत का नाम मेडिकल टूरिज्म में आदर से लिया जाता है उसके पीछे कई कारण हैं जिन्हे अगले ाह्यायों में विश्लेषित किया जाएगा।



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भारत में 5 शीर्ष मेडिकल टूरिज्म क्षेत्र 


(प्रतियोगिता को समझना आवश्यक है )


 Top  5 Medical Tourism Destinations in Inida and    Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास प्रतियोगिता को समझना -2

Understanding Competition for Medical Tourism Development in Uttarakhand -2 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 196

Medical Tourism development  Strategies -196

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 300

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -300

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती 


   भारत के प्रत्येक प्रदेश  मेडिकल टूरिज्म अन्य प्रदेशों से जाने अनजाने प्रतियोगिता कर रहे हैं। प्रत्येक प्रदेश मेडिकल टूरिज्म से आर्थिक लाभ ही नहीं अपितु जनता हेतु भी स्वास्थ्य सुविधा जुटाने में लगे हैं।  मेडिकल टूरिज्म केवल बाह्य लोगों हेतु लाभकर नहीं होता अपितु स्थानीय जन भी लाभ उठाते हैं।

  इस समय भारत में निम्न ५ शीसरष मेडिकल टूरिज्म क्षेत्रों की चर्चा है -


          चेन्नई:  चिकित्सा पर्यटन राजधानी

  चिन्नई को चिकत्सा पर्यटन रानी कहा जाने लगा है। कॉन्फिडरेसन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री की रपट अनुसार भारत में आने वाले  मेडिकल टूरिस्टों में से 40 % टूरिस्ट चेन्नई में चिकित्सा करवाते हैं। एक रिपोर्ट अनुसार प्रतिदिन 200 विदेशी स्वास्थ्य लाभ हेतु चेन्नई आते हैं।  चेन्नई  उच्च गुणवत्ता चिकत्सा  व अन्य लाभ विदेशियों को आकर्षित करते हैं।  चेन्नई में 11 सरकारी चिकित्सालय व 70 से अधिक उच्च इंफ्रस्ट्रक्चर वाले गैर सरकारी चिकित्सालय हैं।  राज्य सरकार की जनता हेतु मुख्य स्किम (चीफ मिनिस्टर'स कंपेरहेंसिव इन्सुरेंस स्कीम ) से भी गैर सरकारी चिकित्सालय खुल रहे हैं।

  चेन्नई में 5 मुख्य मेडिकल शिक्षण संस्थान , लगभग 100 पैरा मेडिकल संस्थान (11 कॉलेज ) भी चेन्नई को मेडिकल टूरिज्म राजधानी बनाने में सहायक हुए हैं।  होटल व्यवस्था भी मेडकल टूरिज्म वृद्धिकारक हैं।


           मुंबई : आंतरिक चिकत्सा पर्यटन में प्रसिद्ध


मुंबई में ब्रिटिश काल से ही सरकारी चिकित्सालयों व कॉलेजों के कारण मुंबई मेडिकल टूरिज्म में प्रसिद्ध है।  गैर सरकारी चिकित्सालयों के कारण मुंबई भारतीयों हेतु मेडिकल चिरज्म राजधानी है।  प्राइवेट हॉस्पिटलों में उच्च स्तर का इंफ्रास्ट्रक्चर है।  चिकित्सक का अन्य कर्मिक मुंबई में बसना चाहते की चाहत भी मुंबई को मेडिकल टूरिज्म विकास में सहायक है।

         गोआ : मेडिकल टूरिज्म में भी उस्ताद


सामन्य टूरिज्म कुछ हद तक स्वास्थ्य सुविधाएं जुटा लेता है।  गोआ में फॉरेन टूरिस्टों हेतु उच्च स्तरीय मेडिकल इंफ्रास्ट्रचर निर्मित हुए और आज गोवा मेडिकल टूरिज्म में भी ुस्तात स्थल है।

              नई दिल्ली


 देश की राजधानी होने कारण दिल्ली में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर निर्मित होते गए और आज दिल्ली विदेशी , स्वदेशी चिकित्सा पर्यटकों को लुभाने में कामयाब क्षेत्र हो गया।  निकटवर्ती शहरों में भी मेडिकल टूरिस्ट हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर निर्मित होने से भी दिल्ली को लाभ पंहुच रहा है।


      अहमदाबाद


  एक समय अहमदाबाद टेक्सटाइल राजधानी था और आज देश में मेडिकल टूरिज्म का तेजी से विकसित होता शहर हो गया है।  अहमदाबाद में एशिया का सबसे बड़ा सिविल हॉस्पिटल व अन्य गैर सरकारी चिकत्सालयों से पर्यटक यहां आते हैं।  अहमदाबाद में गुजराती प्रवासी सबसे अधिक मेडकल टूरिस्ट हैं।



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भारत के प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकत्सा पर्यटक स्थल


(प्रतियोगिता को समझना आवश्यक है )


 Top Ayurveda   Medical Tourism Destinations in India and    Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास प्रतियोगिता को समझना -3

Understanding Competition for Medical Tourism Development in Uttarakhand -3 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 197

Medical Tourism development  Strategies -197

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 301

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -301

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती 

 आयुर्वेद चिकत्सा , प्राकृतिक चिकत्सा व अन्य वैकल्पिक चिकित्साएं पुनः दुनिया भर में लोगों को लुभाने में कामयाब हो रही हैं।  आयुर्वेद वास्तव में चिकित्सा नहीं अपितु स्वस्थ शरीर व मन हेतु जीवन शैली है।  आयुर्वेद दो शब्दों के जोड़ से बना शब्द है आयु और ज्ञान (वेद ) . भारत,  चीन व दक्षिण पूर्व एशिया में भोजन आदि में ही औषधि पादप डालने की संस्कृति आयुर्वेद सिद्धांत का पालन ही है।  हाँ जिह्वा  प्रिय लालच (स्वाद ) ने बहुत सी बातें बदल डाली हैं।

    किसी भी मेडकल टूरिज्म स्थल को अपने प्रतियोगी को समझना ही श्रेयकर है किन्तु प्रतियोगी का सनक से विरोध नहीं होना चाहिए या नकल नहीं होनी चाहिए।

भारत में वर्तमान में निम्न प्रदेश आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन में प्रसिद्ध स्थल माने जाते हैं -

 केरल - वर्तमान में केरल आयुर्वेद टूरिज्म की राजधानी है।  केरल सरकार  समाज ने आयुर्वेद या सहयोगी कंसेप्ट प्राकृतिक चिकत्सा पर ध्यान दिया व प्रचार प्रसार हेतु सुनियोजित ढंग सेकार्य किया व विदेश में सकारात्मक छवि बनाई। वर्तमान में केरल व आयुर्वेद एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं।

 कर्नाटक - कर्नाटक भी आयुर्वेद चिकित्सा पर्यटन में अच्छा नाम कमा रहा ह।  केरल की तर्ज पर कर्नाटक भी आयुर्वेद टूरिज्म को महत्व इ रहा है. अभी कर्नाटक में 14  आयुर्वेद केंद्र हैं जिनमे 11 बंगलोर , 2 मैसूर व 1 गोकर्ण में हैं जो आयुर्वेद पर्यटन विकास में सतत पर्यटन कर रहे है।

गोवा - गोआ की पर्यटन में अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक छवि है  सरकार व समाज ने मेडिकल टूरिज्म को वैकल्पिक टूरिज्म हेतु आयुर्वेद तुईज्म पर ध्यान देना शुरू किया और गोवा की आयुर्वेद चिकत्सा पर्यटन में भी प्रगति हो रही है।

  मुंबई - यद्यपि मुंबई छवि आयुर्वेद से अधिक ऐलोपैथी में अधिक है किन्तु मुंबई व आसपास क्षेत्र आयुर्वेद चिकित्सा में आगे आ रहे हैं।

 हिमाचल - हिमाचल केरल की तर्ज पर आयुर्वे चिकित्सा पर कार्य कर रहा है , कई डॉक्टरों व विशेषज्ञों को ट्रेनिंग हेतु केरल भेजा गया है। हिमाचल को आयुर्वेद टूरिज्म विकास हेतु हिल टूरिज्म का ऐडवेंट्ज है

           उत्तराखंड एक भर्मित प्रदेश


 महाभारत के रचयिताओं , पुराणों के रचयिताओं , कालिदास को कोटि कोटि नमन बल उत्तराखंड का नाम धार्मिक स्थल ही नहीं आयुर्वेद  योग में भी सकारात्मक छवि है।  उत्तराखंड इन्ही महापुरषों के कृत्य का ही  खा रहा है पर्यटन से।  आयुर्वेद , योग में व प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन विकास में सकारात्मक छवि होने के वावजूद उत्तराखंड वह  नाम नहीं कमा सका जिसका हकदार यह भूमि है।  बहुत से कारण हैं किन्तु एक बड़ा कारण है भ्रमित नीतियां व हर पांच साल में राजनैतिक व प्रशासनिक उठापटक जिसके कारण नीतियों में कर्मशीलता का सर्वथा अभाव   कॉंग्रेस आयुर्वेद विकास हेतु एक आधारशिला रखती है तो भाजपा उस पत्थर को सिल्वट बना डालती है।  भाजपा आयुर्वेद भवन  हेतु गंगल्वड़ जुटाती है तो बाद में कॉंग्रेस सरकार उन गंगल्वड़ों को सीमेंट बनाने में प्रयोग करने लगती है।  उत्तराखंड में आजकल प्रत्येक विकास कार्य में राष्ट्रीय , प्रादेशिक व स्थानीय राजनीति इतनी हावी हो गयी है बल कुछ पता नहीं चलता बल राज्य की प्रारम्भ की गयी योजना आगे बढ़ेगी या नहीं। एक  स्कूल अध्यापक का ट्रांसफर म तक में राजनैतिक लाभ देखा जाने लगा है।

दूसरा मुख्य कारण है  ब्रेन ड्रेन। 

वैसे पतांजलि , शिवा नंद आश्रम आदि संस्थान उत्तराखंड की छवि वर्धन में एक हितकारी  माध्यम सिद्ध हो रहे है।

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सिद्ध स्वास्थ्य पर्यटन : तमिल समाज द्वारा प्रवर्त्तन की जग्वाळ  में 


(प्रतियोगिता को समझना आवश्यक है )


 Siddha Medical Tourism waiting Marketing  Initiation from Tamilnadu Government and ttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास प्रतियोगिता को समझना -4

Understanding Competition for Medical Tourism Developmentग्लोब  in Uttarakhand -4 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 198

Medical Tourism development  Strategies -198

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 302

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -302

   

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

  सिद्ध चिकित्सा तमिलनाडु की हजारों वर्ष पुरानी परम्परा है। सिद्ध चिकित्सा को प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति माना जाता है (12000 BCE ) ।  सिद्ध चिकित्सा भी आयुर्वेद के समांतर दक्षिण भारत में चलती रही है।  सिद्ध चिकित्सा भी आयुर्वेद की भांति आयु ज्ञान ही है और जीवन पद्धति को औषधि से अधिक महत्व देती रही है।  सिद्ध चिकित्सा का साहित्य बहुत प्राचीन है व सर्वपर्थम नारियल पत्रों में सिद्ध स्वास्थ्य चिकित्सा के सूत्र लिखे गए थे। कहते हैं सर्वपर्थम भगवान शिव ने सिद्ध चिकित्सा शिक्षा दी थी।

     भारत सरकार व तमिल सरकार सिद्ध चिकित्सा के पुनरवतथन हेतु कार्यशील है।  तमिल सरकारें सिद्ध चिकित्सा हेतु स्वतंत्रता उपरान्त प्रयत्नशील रही हैं व तमिल 14 जनवरी को तमिल नए वर्ष के साथ साथ सिद्ध दिवस भी मनाते हैं . 

     तामिलनाडु सरकार ने सिद्ध चिकित्सा पुनर्वसन  कई कार्य किये जिसमे सिद्ध चिकित्सा उपलब्धि हेतु सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय खुलवाए।  तमिलनाडु में निम्न सिद्ध  कॉलेज हैं -

चेन्नई -4

कोयंबटूर -1

सेलम - 1

तिरुनीवेली -1

पुड्डुकडाई - 1

 तमिल सरकार  वास्तव में सिद्ध चिकित्सा विकास के प्रति संवेदनशील है।

चेन्नई में ही 100 सिद्ध चिकित्सालय हैं।  लगभग हर शहर व कस्बों में सिद्ध चिकित्सालय हैं। 

    चूँकि चेन्नई ऐलोपैथी में देश का मेडिकल टूरिज्म राजधानी है तो टूरिज्म दृष्टि से तामिलनाडु में सिद्ध मेडिकल टूरिज्म  वैशिठ्य या विशेष पहचान की खोज में है . यूँ समझ लीजिये ऐलोपैथी टूरिज्म के बल पर ही सिद्ध चिकत्सा टूरिज्म फल फूल रहा है।

 एक पहलू यह भी है बल सिद्ध चिकित्सा आधारित चिकित्सा टूरिज्म में थाईलैंड व मलेसिया ने बाजी मार ली है व श्री लंका भी आयुर्वेद में पीछे नहीं है।

 ग्लोबलाइजेशन का अम्र नियम है एक गाँव को हजारों मील दूर किसी अन्य विदेशी गाँव से पर्टियोगिता करनी पड़ती है।  सिद्ध चिकित्सा टूरिज्म , नेचुरोपैथी में तामिलनाडु पिछड़ गया है और केरल , कर्नाटक व थाईलैंड  , मलेसिया , श्रीलंका अग्रिम पंक्ति में आ गए हैं। यहां पर व्यापार नहीं छवि की चर्चा हो रही है बल छवि के अनुसार तामिलनाडु पीछे है यथास्थिति तो बिगळी है। 

  एक अच्छी बात है बल तामिलनाडु में मार्केटिंग खोजी छात्र तामिलनाडु को कैसे सिद्ध मेडिकल टूरिज्म को ग्लोब में लाया जाय पर खोज क्र रहे हैं व मार्केटिंग जौर्नाल्स में अन्वेषण प्रकाशित करते ही रहते हैं।  चूँकि इतने महाविद्यालय व सैकड़ों  सिद्ध चिकित्सालय तामिलनाडु में हैं तो आंतरिक सिद्ध स्वास्थ्य पर्यटन तो स्थापित हो ही गया है। आंतरिक पर्यटन बाह्य पर्यटन को प्रभावित करता है व बाह्य पर्यटन हेतु आधारशिला रखता है। तामिलनाडु चिकित्सा प्रसिद्धि के कारण सिद्ध चिकित्सा पर्यटन भी स्वयमेव लाभ उठा रहा है। 



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विपस्सना ध्यान केंद्र आनंद  पर्यटन का  आवश्यक अंग


(प्रतियोगिता  समझना आवश्यक है )


 Top Vipassana  Meditation Tourism Destinations in India and    Uttarakhand  Medical  Tourism Development

 

मेडिकल टूरिज्म विकास प्रतियोगिता को समझना -5

Understanding Competition for Medical Tourism Development in Uttarakhand -5 

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 198

Medical Tourism development  Strategies -198

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 303

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -303


आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती 


विपस्सना , विपासना या विपश्यना ध्यान  महात्मा बुद्ध द्वारा सिखाया गया ध्यान है।  कहा जाता है विज्ञान भैरव की रचना भी विपस्सना धायण पर आधारित है।  भारत  से बाहर बौद्ध देशों में विपश्यना से कई अन्य विधियों ने जन्म लिया।

 विपश्यना का अर्थ होता है आओ देखें।  विपश्यना ध्यान विधा भारत में समाप्त ही हो गयी थी किन्तु सन 1970 में उद्योगपति श्री गोयनका ने विपश्यना को पुनर्जीवित किया और इगतपुरी में विपासना केंद्र संस्थान खोला।  विपश्यना ध्यान केंद्र भी चिकत्सा /आनंद पर्यटन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।  विपस्सना ध्यान  पर्यटन प्रीमियम प्रकार का मेडिकल पर्यटन है। भारत में निम्न विपस्सना केंद्र हैं जो पर्यटकों को लुभाने में असरकारक हुए हैं -

१- धर्मगिरी इगतपुरी महाराष्ट्र - यहां विपस्सना ट्रेनिंग केंद्र व रिसर्च अकादमी भी हैं

२- धम्म पटना गोराई , मुंबई - बिजिनेस एक्जीक्यूटिव यहां ध्यान हेतु आते हैं

३- धम्म बोधि , बोध गया

४- धम्म शिखर , धर्मशाला , हिमाचल - 70 से 90 % विदेशी पर्यटक

५- धम्म थली जयपुर -प्राचीनतम विपस्सना मंदिर

६- धम्म पफूला बंगलोर

७- धम्म सेतु चेन्नई

८- धम्म अरुणांचल , तिरुवनमल्लाई , तमिलनाडु

९- धम्म सोता हरयाणा

१०- धम्म सलिला देहरादून

११- धम्म सिंधु बडा , गुजरात

१२- धम्म पाल भोपाल

१३- धम्म विपुल नई मुंबई , महाराष्ट्र

१४-धम्म खेत , हैदराबाद

१५- धम्म पुष्कर अजमेर





 

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