Author Topic: Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (  (Read 41734 times)

Bhishma Kukreti

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प्रवासी सहयोग बिना मेडिकल टूरिज्म विकास सोचना  फिजूलखर्ची है

Involvement of  Migrated Uttarakhandis  in Medical Tourism development
कल टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति    -2
Need of growing Medicinal plants Strategy - 2

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 217

Medical Tourism development  Strategies -217

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 324

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -324

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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   उत्तराखंड को आयुर्वेद टूरिज्म का सिरमौर बनाना है तो औषधि पादप निर्यात में सिरमौर बनना आवश्यक है।  औषधि पादप निर्यात में सिरमौर बनने हेतु हर खेत में औषधि पादप  उगाना व हर वन में दुर्लभ व सामन्य औषधि पादप उगाने आवश्यक होंगे।

   पहाड़ी उत्तराखंड की बिभीषिका यह है बल 80 प्रतिशत मूल भूमि पर प्रवासियों का मालिकाना हक्क है और सरकार कृषि क्रान्ति हेतु कोई भी नीति व स्कीमें लेकर आती है वह सर्वथा असफल हो जाती है क्योंकि प्रवासियों को उसमे सम्मलित नहीं किया जाता या मजबूरी वस प्रवासी सम्मलित नहीं होते हैं। 

 पहाड़ों में कृषि कांटी हेतु वैकल्पिक कृषि याने औषधि पादप कृषि आवश्यक है।  इसे स्वीकारना होगा बल प्रवासियों को घर बौड़ना व गाँवों में कृषि करना असंभव है।  जब सारी  दुनिया में शहरीकरण का ट्रेंड बढ़ रहा हो तो प्रवासियों से गाँवों में बौड़ने की कल्पना करना कोई चतुरता नहीं है।  न्यूज बनाने या आत्म संतुष्टि हेतु हम समाचार से प्रसन्न होते हैं बल फलां शहर छोड़ कर गाँव में खेती कर गुलाब ऊगा रहा है या जख्या भंगुल बो रहा है किन्तु वास्तवकिता यह है चाहने पर भी कई लोग वापस गाँव नहीं बौड़  सक रहे हैं।  चाह कर भी नहीं गाँव नहीं बौड़ सकते एक वास्तविकता है।  इस वास्तविकता को समझना आवश्यक है।

    अब उत्तराखंड में दो विरोधाभास आमने सामने हैं।  पहला प्रवासियों के सभी बांज या चालु खेतों में औषधि पादप उत्पादन आवश्यक है व प्रवासी बौड़ सकने में असमर्थ हैं।  प्रवासियों की तीसरी चौथी पीढ़ी भी है जो पहाड़ों से सर्वथा अनभिज्ञ हैं व उन्हें रूचि ही नहीं है।

 एक अन्य वास्तविकता यह भी है बल आज कृषि लाभ नौकरी लाभ से कम है।

 कुछ विकल्प हैं जैसे बांज जमीन का राष्ट्रीयकरण कर ठेकेदारी में खेत दिए जायँ किन्तु यह संविधान के अनुसार अधिकार हनन है।

 दूसरा विकल्प है खेत मालिकों को बांज खेतों में  कृषि हेतु मजबूर कर दिया जाय

  तीसरा सहकारी आधार पर प्रत्येक गाँव में कृषि हो और सभी गाँवों को  नियम के तहत लाया जाय।

 उपरोक्त सभी हेतु भूमि सुधार याने चकबंदी आवश्यक है।

  प्रवासी तभी कृषि में रूचि लेंगे जब कृषि से उन्हें इतना लाभ तो मिले कि वे गाँव आने जाने लग जांय।

प्रवासी सहकारी कृषि या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से ही अपनी भागीदारी निभा सकते हैं खुद वे आएंगे नहीं।

   अतः सहकारी या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की राह तलासना ही सही राह है। 






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पौड़ी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ;  चमोली गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका  ; नैनीताल कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; अल्मोड़ा कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका  ; टिहरी   गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; चम्पावत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ;  उत्तरकाशी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास;  देहरादून गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; रानीखेत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास; हरिद्वार  गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ; डीडीहाट  कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में प्रवासियों की भूमिका ;   

Bhishma Kukreti

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औषधि पादप कृषि  में  अधिक लाभ ! 

 
   Chakbandi is must for Medical Tourism Development

कल टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति    -3

Need of growing Medicinal plants Strategy - 3

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 218

Medical Tourism development  Strategies -218

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 325

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -325

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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  पारम्परिक कृषि आवश्यक है किन्तु औषध पादप कृषि कहीं अधिक लाभदायी है।
 भारत में ही औषधि पादप की मांग बहुत अधिक है अतः  बाजार की कोई सीमा नहीं है।
  भरत से औषध पादप निर्यात विकास के अवसर कहीं  अधिक हैं अतः निर्यात मांग पूर्ति के लिए भी औषध पादप कृषि आवश्यक है।
  कई दुर्लभ औषधि पादप कृषि कई गुना लाभदायी हैं।
  बहुत सी औषधि पादप को वर्षा की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी पारम्परिक फसल में पानी की आवश्यकता होती है।  उसी तरह खाद भी कम आवश्यकता पद सकती है।
   बहुत सी या अधिसंख्य औषध पादपों  को बंदर , रीछ व सुंगर  पसंद नहीं करते तो जंगली जंतुओं से भी बचत होती है।
 कई औषधि पादप बंदर आदि को अपने पास नहीं फटकने देते जैसे गेंदा फूल।
 कई औषधि पादप बीज तेल बहुत मंहगा बिकता है।
   कई औषधि पादपों को उगाने हेतु उतना परिश्रम नहीं करना पड़ता जितना अनाज , सब्जी या दाल उगाने हेतु परिश्रम करना पड़ता है।
   औषधि पादप कैश क्रॉप हैं अतः आम तुरंत िल जाते हैं।
    कई औषधि कंपनियां या औषधि पादप ठेकदार कृषि हेतु सहायता करते हैं व अग्रिम बयाना भी देते हैं व बीज , खाद भी सप्लाई करते हैं।
    प्रवासी अपनी जोट ठेके पर  देकर औषधि पादप कृषि में सरलता से भागीदार बन सकते हैं।
 औषध पादप किसी वन औषधि पादप उत्पादन व वन औषधि पादप कलेक्शन /एकत्रीकरण के लिए प्रेरणा स्रोत्र है।   
 वन किनारे खेतों में वन औषधि पादप उत्पादन लाभदायी है।
 औषधि पादप कृषि उत्पादन शहद उत्पादन में सहयक हैं।
   कई औषधि पादप कुर्री घास व चीड़ विध्वंसक भी हो सकती हैं।
 कई औषध पादप बीज तेल /इत्र उद्यम हेतु आवश्यक हैं अतः लाभकारी हैं।
 कई औषध पादप कॉस्मेटिक या मेक अप उद्यम हेतु आवश्यक अवयव होने से ाहिक लाभकारी हैं व बाजार तैयार है।

सूखा ग्रस्त व लघु सूखा ग्रस्त भूमि हेतु तो औषध पादप कृषि वरदान है।

 10000 से अधिक औषधि पादपों में से खेतों अनुसार औषधि पादप छांटे  जा सकते हैं याने हर क्षेत्र हेतु एक औषधि पादप सिद्धांत फिट बैठता है। 

Copyright@ Acharya  Bhishma Kukreti, 2018, bjkukreti@gmail.com

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पौड़ी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ;  चमोली गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण  ; नैनीताल कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; अल्मोड़ा कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण  ; टिहरी   गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; चम्पावत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ;  उत्तरकाशी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास;  देहरादून गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; रानीखेत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास; हरिद्वार  गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ; डीडीहाट  कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषधि पादप  कृषिकरण ;   


Bhishma Kukreti

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 मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु चकबंदी अति आवश्यक
   Importance of Chakbandi for Medical Tourism Development

कल टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति    -4

Need of growing Medicinal plants Strategy - 4

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 219

Medical Tourism development  Strategies -219

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 326

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -326

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती


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   उत्तराखंड या किसी भी प्रदेश में आयुर्वेद , प्राकृतिक चिकित्सा व योग टूरिज्म विकास हेतु वृहद स्तर पर व्यवसायिक तरीके से औषधि पादप उत्पादन आवश्यक है।  व्यवसायिक औषधि  पादप कृषि हेतु प्रवासियों की भागीदारी आवश्यक है।  यह निश्चित है प्रवासियों के लिए गाँव बौड़न असंभव सा ही है।  अतः प्रवासियों को दूर रह कर ही औषधि पादप उत्पादन में भाग लेना होगा।  यह तभी संभव है जब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की संस्कृति उत्तराखंड में प्रवेश करे।  जो पहाड़ों में खेती कर भी रहे हैं उनके लिए तो चकबंदी वरदान है।  कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हेतु चकबंदी आवश्यक है।

    चकबंदी में व्यक्तिगत विभक्त छोटे छोटे खेतो को एक पट्टे में संयचित किया जाता है जिससे किसान एक बड़े क्षेत्र में मन माफिक खेती कर सके।

चकबंदी से यदि गाँव के अन्य परिवार खेती न भी करें तो एक पट्टे पर किसान खेती करने में सफल हो जाता है।


चकबंदी से एक जगह भूमि होने से खेती सरल व कृषि लागत सस्ती  पड़ती है। जुताई , निराई गुड़ाई , कटाई सब सरल हो जाता है

पहाड़ों में कृषि यंत्रीकरण नाम मात्र की है और चकबंदी से कृषि यंत्रीकरण व दवाई  छिड़काव व खाद वितरण अति सरल हो जाता है।

  चकबंदी से रग बग कम होती है तो मानव श्रम  लागत बहुत कम हो जाती है।

वन्य जानवरों व पालतू जानवरों से बचाव सुगम हो जाता है।

दूर दराज व छोटे खेत होने से चोरी भय के कारण कई खेती जैसे फल  मकई  या मूळा  आलू , प्याज खेती नहीं की जाती।  चकबंदी से चोरी भय बहुत कम हो जाता है।


चकबंदी से भूमि  जल /ग्राउंड वाटर उपयोग (ट्यूब वेल या हैण्ड पम्प विधि प्रयोग सरल है तो जल समस्या दूर हो जाती है।

चकबंदी से खाळी निर्माण से जल संरक्षण व जल आपूर्ति सरल है।

  जल आपूर्ति हेतु अन्यों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

 पाइप द्वारा भी जल आपूर्ति सुगम हो जाती है क्योंकि एक ही स्थान पर पाइप या नहर लानी पड़ती है।

  अपने बल पर खाळी  सिद्धांत अपना कर चकबंदी से जल संरक्षण सरल हो जाता है

 कम्पोस्ट खाद बनाना सरल हो जाता है।

कई जल स्रोत्र उपयोग में आ सकते हैं।

कॉनट्रेक्ट या अद्धा तियाड़ में खेत देना सरल हो जाता है।

   परिवार में एक ही मनिख पट्टा संभाल सकता है व मान संख्या कम लगती है।

भूमि कटाव , अनावश्यक चीड़ व लैन्टीना समाप्ति सरल है। 

चकबंदी से कृषि से जुड़े अन्य उदयप जैसे मधु मक्खी पालन , मुर्गी पालन  , मत्स्य पालन  सुक्सा उद्यम , रेशे उद्यम , पौध उद्यम , बीज उद्यम , बेमासी अनाज , दाल , सब्जी उत्पादन अति सरल व सुगम्य हो जाता है। बाड़ में कई पेड़ लगाए जा सकते हैं जैसे किनगोड़ा जो आर्टिक दृष्टि से अति लाभकारी है।

 जैविक खेती हेतु सर्टिफिकेटमिलना  सरल हो जाता है। 


 

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Bhishma Kukreti

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प्रवासियों को चकबंदी हेतु अगुवाई लेनी ही पड़ेगी !

Migrated Uttarakhandis have to take initiative for Chakbandi

मेडिकल  टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति - 5

Need of growing Medicinal plants Strategy - 5

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 220

Medical Tourism development  Strategies -220

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 327

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -327

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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एक जॉर्नल फार्मा रिव्यू (नवंबर , दिसम्बर 2013  प्रृष्ठ 95 -102 ) रिपोर्ट अनुसार सन  2010   में औषधि पादप की संसार में खपत US $ 6 0 billions  थी जो 2050  में बढ़कर US $ 5 trillions  हो जाएगी याने अभी और आने वाले समय में औषध पादपों की मांग अधिक रहेगी व उत्पादन कम होगा।  हिमालयी औषध पादप की मांग अधिक है। अतः उत्तराखंडियों  को औषध पादप उत्पादन पर अतधिकत ध्यान देना आवश्यक है।  साथ सच्चाई यह भी है बल पहाड़ों की भूमि का 80 % स्वामित्व प्रवासियों के पास है और वे कृषि हेतु वापस नहीं बौडेंगे।  हाँ प्रवासी अपने खेत कॉन्ट्रैक्ट या अधा -त्याड़  में सरलता से दे सकते हैं।  किन्तु भूमि अद्धा -त्याड़  में देने हेतु भी भूमि का पट्टा बड़ा होना व्यवसाय की मुख्य मांग है।  बड़े पट्टे  हेतु चकबंदी अत्त्यावष्यक है।  चकबंदी बगैर प्रवासियों के रजाबंदी के असम्भव है।


  अतः  जागरूक प्रवासियों को आज से ही चकबंदी करवाकर अपनी जोत  फार्मिंग कॉन्ट्रैक्टर्स, सहकारी समितियों या सामूहिक संगठनों को अद्धा त्याड़  या रेंट पर देकर पहाड़ों को उजड़ने से बचाना आवश्यक है।

   चकबंदी हेतु सरकारी अधिसूचना के बाद चकबंदी समिति का गठन किया जाता है जो अधिकारियों को सहायता देती है व ग्रामीणों को भी प्रेरित करती है व बीच बचाव आदि करती है।

 फिर पटवारी /लेखपाल आदि आकर खाते की व अन्य भौतिक स्थिति की जांच करते हैं व भागीदारों की शिकायतें व सुझाव सुनते हैं।

 पड़ताल के बाद चकबंदी अधिकारी निर्णय लेते हैं व भागीदारों की जमीन निर्धारित करते हैं।  इस दौरान शिकायतें व सुझावों की सुनवाई तो चलती ही रहती है।

 सभी भागीदारों को संतुष्ट करने के बाद चकबंदी बन्दोबस्त अधिकारी नये पट्टों पर कब्जा देते हैं।

    एक बार तो कब्जेदारों को गाँव आना ही पड़ेगा।  चकबंदी अधिकारी व समिति गठन से पहले भी गाँव वाले आपस में कुछ हद तक बंटवारा कर लें तो सुविधा होती है।

   बिना प्रवासियों के सहयोग व जागरूकता के चकबंदी नही हो सकती अतः प्रवासियों को चकबंदी हेतु पहल करनी आवश्यक है



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पौड़ी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ;  चमोली गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई  ; नैनीताल कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; अल्मोड़ा कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई  ; टिहरी   गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; चम्पावत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ;  उत्तरकाशी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास;  देहरादून गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; रानीखेत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास; हरिद्वार  गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ; डीडीहाट  कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु प्रवासियों द्वारा  चकबंदी हेतु अगुवाई ;   




Bhishma Kukreti

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औषधि पादप समग्र कृषि से प्रति प्रवासी परिवार की 3  लाख रुपये  वार्षिक आय अनुमान


3 lakhs  annul Income per  family by Integrated  Cooperative Herbs farming

मेडिकल  टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति - 6

Need of growing Medicinal plants Strategy - 6

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 221

Medical Tourism development  Strategies -221

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 328

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -328

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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 एक गैर सरकारी विशेषज्ञ की सहकारी कृषि प्रोजेक्ट रिपोर्ट अनुसार यदि उत्तराखंड के आम गाँव में प्रवासी व  वासी समग्र सहकारी संस्था खोलें तो सहकारी संस्था द्वारा  औषधि पादप कृषि करेंगे तो प्रत्येक  परिवार की कम से कम आय 3 लाख रूपये सालाना   हो सकती है . विशेषज्ञ के सुझाव समग्र कृषि हेतु इसप्रकार हैं

 औषधि पादप कृषि में प्रीमयम औषधि पादप उत्पादन के अतिरिक्त परिष्करण की वयवस्था से वैल्यू एडिसन प्राप्ति।

   पशु पालन - गाय भैंस व बकरी पालन

मधु उत्पादन

मशरूम उत्पादन

रेशे उत्पादन ( भांग , कंडाळी  भीमल , खड़ीक , माळु , राम बांस आदि )- में मशीन उपयोग व प्रीयम प्रोडक्ट उत्पादन

अगरबत्ती जैसे वैल्यू ऐडेड उत्पादन

कुटीर उद्योग में प्रीमियम कलाकृति जैसे छ्युंति कला आदि

 छोटी फ़ूड प्रोसेसिंग इकाईयां जैसे  बड़ी , पापड़ , सुक्सा ( तिमल , बेडु फल के सुक्से ) आदि  उत्पादन , आंवला  बुरांस, डंफु रस पैकिंग व   मशरूम   पैकिंग

पौध उत्पादन जो मैदानों में भी विपणन होगी

औषधि पादप बीज विपणन जैसे मैदानों में ट्रेडिंग होती है

वन औषधि पादपों से अतिरिक्त आय

टूरिज्म से अतिरिक्त आय

नीम , डैन्कण  से आयुर्वेदिक इन्सेक्टीसाइड्स  उत्पादन , इसी तरह कई आयुर्वेदिक कीट नाशक औषधि निर्माण

 

इस कार्य हेतु ग्राम वासियों को प्रतीक गाँव में व्यवसायिक सहकारी संस्था खोलनी आवश्यक है।


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व्यावसायिक कृषि ही एक मात्र विकल्प


Commercial Farming for Medical Tourism development

मेडिकल  टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति - 7

Need of growing Medicinal plants Strategy - 7

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 222

Medical Tourism development  Strategies -222

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 329

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -329

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

-

 जब सन सहत्तर  के दशक में कृषि के स्थान पर नौकरी अधिक लाभकारी होने लगी व भारतीयों की जीवन शैली बदलने लगी तो मैदानों में व्यावसायिक कृषि की ओर कृषक ढळकने लगे किन्तु उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पारम्परिक कृषि से चिपके रहे तो पलायन में इतनी वृद्धि हुयी कि  गाँव के गाँव खाली हो गए।  अज्ज भी जो गाँवों में है वे झंगोरा , धान से ही संतुष्ट हैं। जंगली जानवरों के कहर व असंवेदनशील सरकारों के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि का अर्थ अब दिन भर बंदरों से खेतों की जग्वाळ करो व रात रीछ , सुवरों के पीछे मरो व अंत में दो मुट्ठी अन्न भी न मिले है।

    आज भी ग्रामीण उसी  घिसी पिटी  खेती में संलग्न है और अखबारों , टीवी व सोशल मीडिया में  पलायन रोको की चर्चा होती है।

   ग्राम प्रधान व अन्य लोक सेल्फ गवर्मेंट संबंधित लोग मनरेगा झनरेगा  से कैसे कमाएं पर मगज खपा रहे हैं व मेरे घर के सामने सोलर लैम्पपोस्ट  कैसे लगे पर कसरत करते दीखते हैं। मैं देव पूजा में जब भी गाँव जाता हूँ तो देवालय , आधुनिक नल पन्देरों ,दारु सारू पार्टी में बंदर -सुंगरों  पर अधिक गर्मागर्म बहस होती है व आधे से अधिक चर्चा कैसे फलां के घर से बंदर चॉकलेट उठा कर ले गया व कैसे बंदराण्याणी  ने भट्याणी के गहने पहने जैसी कथाओं की गपें होती हैं।  बंदरों व सुंगरों  से बचाव पर मैंने संवेदन शील चर्चा नहीं सुनी।

   सन 70 में जिस विषय पर चर्चा होनी थी उस विषय याने वैकल्पिक कृषि पर आज भी चर्चा नहीं होती। वास्तव में प्रवासी चर्चा से इसलिए घबराते हैं बल कहीं चंदा न देना पड़े व वासी इसलिए घबराते हैं कहीं भाई की पुंगड़ी  फोकट में आबाद न करने पड़े।

 वर्तमान में कृषि पुनर्जितीकरण में निम्न समस्याएं हैं -

 लैन्टीना /कुर्री जैसी घास व जंगली पादप से धरती बांज पद गयी हैं।

जल संकट याने सिचाई समस्या

गूणी बांदर , काखड़ , मोर व सुंगर  जैसे जंगली पशु व अब तो मोर भी कूड़ों   के अंदर रॉक ऐंड रोल करने लगे हैं

समय पर मजदूरों क न मिलना

मंहगे मजदूर जो आर्थिकी नष्ट करने में सफल हैं

बैल हल का हर्चंत  व हळया चम्पत

पुंगड़ मालिक याने प्रवासियों की गाँव , पुंगड़ प्रति असंवेदन शीलता

मनरेगा झनरेगा के पैसे मिलने से महारोग - जब पदण से काम चल जांद त हंगण किलै ? कारण पारम्परिक कृषि से लाभ न होना।

 इसके अतिरिक्त पहाड़ियों में विशषकर राजनैतिक प्रतिबद्ध विचारकों जिसमे कम्युनिष्ट भी शामिल हैं व्यवसाय या कॉमर्स को हीन समझकर बणिया  गिरी को ब्वे बैणी की गाळी देना

  उपरोक्त समस्याएं हैं इसमें दो राय नहीं हैं।  किन्तु इस ब्रह्माण्ड का एक नियम है बल समस्या बगैर निदान के जन्म नहीं लेती।  आपको और हमको मंगल ग्रह जाने की समस्या है ही नहीं क्योंकि हमारे पास समाधान नहीं हैं।

   उपरोक्त समस्याओं का एक ही हल है और वः हल है हर पुन्गडी में हर सग्वड़  में व्ही खेती हो जो दो रुपया लाभ दे व जो मनरेगा -झनरेगा की मुफ्त की रोटी से निजात दिला सके व प्रवासियों को घर बौड़ने को बाध्य कर सके ।

यह एकमात्र उपाय है कम मानव श्रम में , कम जल उपलब्धि में , कम देखरेख में, जंगली जानवर हेतु बेकाम किन्तु लाभकारी व्यावसायिक कृषि।

   जब तक हर सग्वड़ व हर पुंगड़ में व्यावसायिक खेती नहीं होगी तब तक स्थिति ऐसी  ही रहेगी।

 कई ऐसी फसलें हैं जो कम पानी में उत्पादित होते हैं व जंगली जानवर जिन्हे सूंघते भी नहीं है।  चारा , औषधि पादप  कई दालें  , , कई तिलहन , अदरक लहसुन , औषधि कंद मूल  आदि इसी क्रम में आते हैं

आवश्यकता है समाज में जागरूकता आने की कि कैसे हजार नाळी  जमीन को एक स्त्री संभाल सके।

व्यावसायिक खेती हेतु ठेकेदारी लीज भी संभव है। 

 



 

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 औषधि पादप कृषि हेतु ठेका खेती या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग : श्रेष्ठ विकल्प


Contract farming a better Alternate in Uttarakhand  for Herbs Cultivation

मेडिकल  टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति - 8

Need of growing Medicinal plants Strategy - 8

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 223

Medical Tourism development  Strategies -223

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 330

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -330

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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 शायद संसार में उत्तराखंड क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र होगा जो मानव शक्ति सहित सभी संसाधन युक्त है किन्तु वहां  कृषि पाषाण युग में पंहुच चुकी है।  सैकड़ों वर्षों से विशेषकर ब्रिटिश शासन में पुरखों ने जो खेत 'कटळ  खणो '  पद्धति से हाड मांश लगाकर निर्मित किये थे वे खेत अब मनुष्य की शक्ल देखने को तरस रहे हैं।  हजारों एकड़ जमीन बांज पड़ गयी हैं।  शायद इसे ही बिथ्या  कहते होंगे। 80 प्रतिशत से अधिक खेतों के मालिक दूर बसे प्रवासी हैं जो अब घर बौड़ नहीं सकते और इस स्थिति को स्वीकार करना ही पड़ेगा बल अगले पचास सालों में  अधिसंख्य में प्रवासी कृषि करने तो घर बौड़ेंगे नहीं और जमीन को बांज भी नहीं रखना होगा।

   अब जब औषधि पादपों की भारी मांग बढ़ी है तब संवेदनशील विचारक विकल्प खोजने में जुट गए हैं।  अभी दो विकप खुले हैं

-गाँव में सहकारी समिति द्वारा औषधि पादप कृषि की जाय जो अभी संभव नहीं दिखता है

- पूरे  गाँव के खेत ठकेदारों को ठेके /सामयिक लीज पर दे और ठेकेदार औषधि पादप उत्पादन करें

      कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के नाम कई हैं -किन्तु पर्वतीय उत्तराखंड में ठेके की पद्धति हेतु  ठेकदार ही सब कुछ करे वाला सिद्धांत सही होगा। ठेकेदारी में औषधि निर्माता या थर्ड पार्टी ठेकदार हो सकते हैं।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पर कुछ साहित्य -

मार्केटिंग साहित्य रिकॉर्ड अनुसार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग ताइवान में 1985 में शुरू हुआ

भारत में पेप्सी कम्पनी ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग शुरू की किन्तु फार्मिंग जमीन मालिक ही करते हैं।



 कॉन्ट्रैक्ट या ठेका कृषि में ठेकेदार व जमीन मालिकों दोनों को लाभ होता है -

     ठेकेदार या कृषि उत्पादक कम्पनी को लाभ

कम्पनी को पता है कितनी जमीन है और जमीन में उत्पाद कितना हो सकता है।

कम्पनी /ठेकदार  पादप गुणवत्ता पर नियंत्रण रख सकता है।

ठेकेदार के पास संसदहन होते हैं अतः  ठेकेदार को बजार की समस्या से नहीं जूझना पड़ता।

  जमीन मालिक को लाभ

बिना उपस्थिति के जमीन आबाद हो जाती है और जमीन मिल्कियत पर आंच नहीं आती।

औषधि कृषि उत्पादन की किसी समस्या से नहीं जूझना पड़ता।

बजार नहीं खोजना पड़ता याने विक्री समस्या समाप्त





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पौड़ी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; उधम सिंह नगर कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ;  चमोली गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका  ; नैनीताल कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ;  रुद्रप्रयाग गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; अल्मोड़ा कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका  ; टिहरी   गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; चम्पावत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ;  उत्तरकाशी गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; पिथौरागढ़ कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास;  देहरादून गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; रानीखेत कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास; हरिद्वार  गढ़वाल मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ; डीडीहाट  कुमाऊं  मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका ;   नैनीताल  कुमाऊं मेडिकल टूरिज्म विकास में ठेका खेती या कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की भूमिका


Bhishma Kukreti

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  चिकित्सा सेवा निर्यात में असीमित अवसर  : अग्ल्यार आवश्यक


Exporting Health Services

Export Strategies -1
निर्यात रणनीति - 1

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 224

Medical Tourism development  Strategies -224

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 331

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -331

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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मेडिकल टूरिज्म विकसित होने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई नए व्यवसायिक आयाम सामने आये हैं।  वर्तमान में 'हेल्थ केयर सर्विसेज एक्सपोर्ट  ' विधा /कन्सेप्ट  चर्चा में है और प्रत्येक देश 'हेल्थ सर्विसेज एक्सपोर्ट ' पर ध्यान दे रहा है।

    वास्तव में 'चिकित्सा सेवा निर्यात ' एक वृहद आयामी शब्द है जिसमे कई कार्य व उद्यम समाहित हैं यथा -

मेडिकल टूरिज्म

टेलीमेडिसिन्स

इंटरनेट मेडसीन्स व्यापार

अनुवाद निर्यात

इंटरनेट द्वारा विदेशी चिकत्सालयों /चिकित्स्कों को सेवा प्रदान करना

मेडिकल सेवा हेतु विभिन्न सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट बनाना व बेचना

क्लिनिकल ट्राईल्स

क्नोट्रेक्ट रिसर्च

डिस्टेंट हेल्थ एज्युकेशन /ट्रेनिंग /प्रशिक्षण

टेम्पोरेरी मूवमेंट ऑफ़ हेल्थ सर्विसेज प्रोवाइडर्स जैसे चिकित्स्कों /सेवा कर्मियों को चिकित्सा सेवा कुछ समय हेतु विदेश भेजना

विदेशों में चिकित्सालय खोलना

औषधि निर्यात

औषधि अवयव निर्यात

चिकित्सा सेवा कर्मियों का निर्यात

चिकित्सा शिक्षा निर्यात

चिकित्सा साहित्य निर्यात

चिकित्सा उपकरण निर्यात

औषधि निर्माण उपकरण निर्यात

विभिन्न चिकित्सा सेवाओं  हेतु सलाह निर्यात

मेडिकल टूरिज्म सलाह निर्यात

मेडिकल टूरिज्म एजेंटों का एजेंट बनना /भागिदार बनना

  उत्तराखंड में आयुर्वेद , प्राकृतिक चिकित्सा व योग चिकित्सा अंतर्गत आनी वाली सभी  सभी सेवाओं का निर्यात हो सकता है बशर्ते समाज जागरूक हो और इनिसिएटिव ले।

अगले अध्याओं में प्रत्येक विषय पर चर्चा होगी

 




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मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु  योग संस्कृति निर्यात
Yoga Culture  Export from Uttarakhand
Health Services Export Strategies -2
चिकित्सा सेवा निर्यात रणनीति - 2

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 225

Medical Tourism development  Strategies -225

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 332

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -332

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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    एक अनौपचारिक मित्र बैठक में जब इस लेखक ने  मित्रों के सामने योग संस्कृति निर्यात की छ्वीं लगाई तो सभी हंसने लगे बल संस्कृति भी क्या व्यापारिक निर्यात होती है ?

  मित्र सही थे।  आम भारतीय आयात  (राजा व नेतृत्व भी ) को तो स्वीकार कर लेता है किन्तु निर्यात को गले से नहीं उतार सकता यह भारतीय आत्मा है।  भारतीय इटली प्रवासी श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व में कोई गलत नहीं मानते किन्तु मोदी को अन्य देशों में नेता मानने से इंकार कर देंगे।  यह हमारी आत्मा है।

   वस्तुतः , सभ्यता विकास संस्कृति निर्यात आयात से ही हुयी है।  भारतीय मैक्कडोनाल्ड , कंटकी   पोटेटो चिप्स व अन्य फास्ट फ़ूड , पैंट -शर्त -टाई  , रूसी वोदका , हेडली चेज  के उपन्यास , डिज्नी लैंड के कार्टून , आज के भारतीयों द्वारा संस्कृति आयात हैं।  इसी तरह योग संस्कृति निर्यात भी है।  विपणन विद्वान् हरीश कारिया अनुसार बॉलीवुड फिल्मो का निर्यात कॉंग्रेस जैसी सुस्त प्राचीन संस्कृति निर्यात है तो योग निर्यात भाजपा जैसी ताज़ी , तेज हवा है जो सारे संसार को हिला रही है।

         विपणन विशेषज्ञ हरीश बिजूर अनुसार योग संस्कृति निर्यात में कई आयाम हैं।  योग विचार है तो  भारत  किन्तु यह एक सार्वभौमिक हितकारी विचार है । योग कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं है अपितु  धर्म से परे है।

   उत्तराखंड का नाम योग संस्कृति में 3000 वर्षों से अग्रणी रहा है।  वर्तमान में भी ऋषिकेश की छवि योग संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी स्थान पर है।

   उत्तराखंडी समाज को योग में अग्रणी  छवि का लाभ लेना चाहिए और निम्न निर्यात हेतु कदम उठाने चाहिए

  अधिक योग केंद्र खोलना

योग अध्यापक स्कूलों का खोलना

  योग प्रशिक्षकों  निर्यात

विदेशों में योग केंद्र खोलना

  विदेशों में योग केंद्र खोलने हेतु सलाह निर्यात

ऑन  लाइन योग शिक्षा व्यवसाय

योग सिखाने हेतु  विभिन्न भाषाओं में वीडियो कैसेट निर्यात

योग संस्कृति विपणन विशेज्ञ त्यार करना व विपणन सलाह निर्यात

उत्तराखंड में अन्य विदेशी भाषाओं में योग पुस्तकों का प्रकाशन

प्रत्येक वर्ष योग विषय पर अन्वेषण कॉन्फ्रेंसेज करवाना

    उत्तराखंड सरकार को अगलाड़ लेकर योग संस्कृति निर्यात हेतु कई कदम उठाने आवश्यक है जैसे योग संस्कृति विपणन  निगम की स्थापना। 


     

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Bhishma Kukreti

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भारत में 3  लाख योग प्रशिक्षकों की कमी

Yoga Instructors / Teachers Export for Uttarakhand Medical Tourism Development
Health Services Export Strategies -3
चिकित्सा सेवा निर्यात रणनीति - 3

उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  रणनीति - 226

Medical Tourism development  Strategies -226

उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 333

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -333

 

आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती

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 ऐस्सौकेम  रपट अनुसार भारत में कम से कम तीन लाख योग प्रशिक्षकों की कमी है।  यह कमी दिन प्रतिदिन बढ़ती जायेगी।  दुनिया  में सभी देशों में लोग योग अभ्यास अपना रहे हैं।  लगभग ४०  करोड़ योग आभास करते हैं व प्रतिदिन 2  लाख लोग योग से जुड़ रहे हैं।   अतः सभी देश योग प्रशिक्षकों हेतु भारत की ओर  देख रहे हैं।

 योग शिक्षण निम्न स्थानों में आवश्यकता पड़ती है

  सेलिब्रिटी को व्यक्तिगत रूप से योग शिक्षण

योग स्कूल

फिटनेस स्कूल

स्पोर्ट्स स्कूल

चिकित्सालय

जिमखाना

होटल व रिजॉर्ट्स

स्पाज

जल जहाजों /क्रूज

खेल संघ

नृत्य स्कूल

व्यापारिक संस्थान

स्वास्थ्य लाभ

गर्भवती महिलाओं हेतु

वृद्ध मनिखों हेतु

मानसिक रोगियों हेतु





उत्तराखंड को इस मांग को पूरी करने हेतु कदम उठाने चाहिए और योग प्रशिक्षक तैयार करने चाहिए जो विभिन्न भाषाओं में योग प्रशिक्षण दे सकें।

 

 

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