व्यावसायिक कृषि ही एक मात्र विकल्प
Commercial Farming for Medical Tourism development
मेडिकल टूरिज्म विकास हेतु औषध पादप कृषि रणनीति - 7
Need of growing Medicinal plants Strategy - 7
उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन रणनीति - 222
Medical Tourism development Strategies -222
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 329
Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -329
आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती
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जब सन सहत्तर के दशक में कृषि के स्थान पर नौकरी अधिक लाभकारी होने लगी व भारतीयों की जीवन शैली बदलने लगी तो मैदानों में व्यावसायिक कृषि की ओर कृषक ढळकने लगे किन्तु उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पारम्परिक कृषि से चिपके रहे तो पलायन में इतनी वृद्धि हुयी कि गाँव के गाँव खाली हो गए। अज्ज भी जो गाँवों में है वे झंगोरा , धान से ही संतुष्ट हैं। जंगली जानवरों के कहर व असंवेदनशील सरकारों के कारण उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि का अर्थ अब दिन भर बंदरों से खेतों की जग्वाळ करो व रात रीछ , सुवरों के पीछे मरो व अंत में दो मुट्ठी अन्न भी न मिले है।
आज भी ग्रामीण उसी घिसी पिटी खेती में संलग्न है और अखबारों , टीवी व सोशल मीडिया में पलायन रोको की चर्चा होती है।
ग्राम प्रधान व अन्य लोक सेल्फ गवर्मेंट संबंधित लोग मनरेगा झनरेगा से कैसे कमाएं पर मगज खपा रहे हैं व मेरे घर के सामने सोलर लैम्पपोस्ट कैसे लगे पर कसरत करते दीखते हैं। मैं देव पूजा में जब भी गाँव जाता हूँ तो देवालय , आधुनिक नल पन्देरों ,दारु सारू पार्टी में बंदर -सुंगरों पर अधिक गर्मागर्म बहस होती है व आधे से अधिक चर्चा कैसे फलां के घर से बंदर चॉकलेट उठा कर ले गया व कैसे बंदराण्याणी ने भट्याणी के गहने पहने जैसी कथाओं की गपें होती हैं। बंदरों व सुंगरों से बचाव पर मैंने संवेदन शील चर्चा नहीं सुनी।
सन 70 में जिस विषय पर चर्चा होनी थी उस विषय याने वैकल्पिक कृषि पर आज भी चर्चा नहीं होती। वास्तव में प्रवासी चर्चा से इसलिए घबराते हैं बल कहीं चंदा न देना पड़े व वासी इसलिए घबराते हैं कहीं भाई की पुंगड़ी फोकट में आबाद न करने पड़े।
वर्तमान में कृषि पुनर्जितीकरण में निम्न समस्याएं हैं -
लैन्टीना /कुर्री जैसी घास व जंगली पादप से धरती बांज पद गयी हैं।
जल संकट याने सिचाई समस्या
गूणी बांदर , काखड़ , मोर व सुंगर जैसे जंगली पशु व अब तो मोर भी कूड़ों के अंदर रॉक ऐंड रोल करने लगे हैं
समय पर मजदूरों क न मिलना
मंहगे मजदूर जो आर्थिकी नष्ट करने में सफल हैं
बैल हल का हर्चंत व हळया चम्पत
पुंगड़ मालिक याने प्रवासियों की गाँव , पुंगड़ प्रति असंवेदन शीलता
मनरेगा झनरेगा के पैसे मिलने से महारोग - जब पदण से काम चल जांद त हंगण किलै ? कारण पारम्परिक कृषि से लाभ न होना।
इसके अतिरिक्त पहाड़ियों में विशषकर राजनैतिक प्रतिबद्ध विचारकों जिसमे कम्युनिष्ट भी शामिल हैं व्यवसाय या कॉमर्स को हीन समझकर बणिया गिरी को ब्वे बैणी की गाळी देना
उपरोक्त समस्याएं हैं इसमें दो राय नहीं हैं। किन्तु इस ब्रह्माण्ड का एक नियम है बल समस्या बगैर निदान के जन्म नहीं लेती। आपको और हमको मंगल ग्रह जाने की समस्या है ही नहीं क्योंकि हमारे पास समाधान नहीं हैं।
उपरोक्त समस्याओं का एक ही हल है और वः हल है हर पुन्गडी में हर सग्वड़ में व्ही खेती हो जो दो रुपया लाभ दे व जो मनरेगा -झनरेगा की मुफ्त की रोटी से निजात दिला सके व प्रवासियों को घर बौड़ने को बाध्य कर सके ।
यह एकमात्र उपाय है कम मानव श्रम में , कम जल उपलब्धि में , कम देखरेख में, जंगली जानवर हेतु बेकाम किन्तु लाभकारी व्यावसायिक कृषि।
जब तक हर सग्वड़ व हर पुंगड़ में व्यावसायिक खेती नहीं होगी तब तक स्थिति ऐसी ही रहेगी।
कई ऐसी फसलें हैं जो कम पानी में उत्पादित होते हैं व जंगली जानवर जिन्हे सूंघते भी नहीं है। चारा , औषधि पादप कई दालें , , कई तिलहन , अदरक लहसुन , औषधि कंद मूल आदि इसी क्रम में आते हैं
आवश्यकता है समाज में जागरूकता आने की कि कैसे हजार नाळी जमीन को एक स्त्री संभाल सके।
व्यावसायिक खेती हेतु ठेकेदारी लीज भी संभव है।
Copyright@ Bhishma Kukreti, 2018, bjkukreti@gmail.com
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