Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Tourism and Hospitality Industry Development & Marketing in Kumaon & Garhwal (

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Bhishma Kukreti:
  गुजरात में पौंक (ऊम ) पार्टी व महाराष्ट्र में हुर्डा (ज्वार  ऊम ) पार्टी भोजन पर्यटन का उम्दा उदाहरण
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  भोजन पर्यटन विकास -11 
Food /Culinary  Tourism Development -11 
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 388 

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -388 

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   

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 ऊमी याने कच्चे अनाज को भूनकर मिला दाना।  ऊमी बुकना उत्तराखंड में ही नहीं भारत के सभी क्षेत्रों में प्रचलित व भोजन संस्कृति का एक हिस्सा रहा है।  उत्तराखंड में गेहूं या कोदे की ऊमी भूनी जाती हैं तो अन्य क्षेत्र जैसे गुजरात और महाराष्ट्र में जवार (जुंडळ ) की ऊमी  अति प्रसिद्ध है।  जैसे उत्तराखंड में ब्रिटिश शासन दौरान ऊमी संस्कृति में अवसान आया उसी तरह भारत में भी ब्रिटिश शासन में ऊमी भोजन संस्कृति में अवसान आया किन्तु अब धीरे धीरे इन क्षेत्रों में ऊमी संस्कृति वापस आ रही है और नव अवतार में अवतरित हो रही है।


 गुजरात में सड़क किनारे बिकते पौंक या जवार ऊमी
ओक्टोबर नवंबर में वापी से लेकर बड़ोदा तक हाइ वे पर किसान  या अन्य मजदूर टोकरियों में  जवार की ऊमी में नमकीन मिलाकर बेचते मिल जाएंगे।  हाइ वे या स्टेट  हाइ वे किनारे पौंक /नमकीन या बूंदी सह बिक्रेताओं के पौंक खरीदने बहुत से शहरी कार लेकर  घूमने  हैं और जगह जगहों से पौंक खरीदकर क्षुधा कम स्वाद शान्ति करते जाते हैं।  आंतरिक पर्यटन वृद्धि का पौंक एक नायब जरिया है। 


 महाराष्ट्र में हुरडा पार्टी

महाराष्ट्र में  दिसंबर या आसपास जवार की ऊमी के साथ अन्य भोज्य पदार्थ पकाकर रिश्तेदारों को न्योता दे कर खिलाने का प्राचीन रिवाज था पर कुछ समय यह कमजोर हुआ।  महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाइक नागपुर में हुरडा पार्टी आयोजित करते थे व राजनैतिकों व अन्य लोगों को पार्टी में बुलाते थे।  इससे वे कई राजनैतिक लाभ भी लेते थे याने जनसम्पर्क साधन साधते थे।

 वीडिओकोन के निदेशक व राज्य सभा सदस्य श्री आर एन धूत भी औरंगाबाद में हुरडा पार्टी देते थे व बैंकर्स, राजनीतिज्ञों , सामजिक कार्यकर्ताओं को न्योता देते थे।  औरंगाबाद से बाहर के मेहमान भी हुरडा पार्टी में शामिल होते थे।  इसी तरह महाराष्ट्र में हुरडा पार्टी हुआ करती हैं।

         नागपुर के निकट तेलकामठी गाँव हुरडा पार्टी आयोजित कर ग्रामीण पर्यटन विकसित करने हेतु प्रसिद्ध है। गाँव में जवार की ऊमि के कई पकवान बनाये जाते हैं और शहरी पर्यटकों को खिलाया जाता है व उन्हें खेतों में भी घुमाया जाता है। 

              उत्तराखंड में भी ऊम को पर्यटन आकर्षण  माध्यम बनाया जा सकता है

ऋषिकेश निकट माळा बिजनी , नरेंद्र नगर , गुलरगाड , कौडियाला, धारी , गैंडखाल हल्द्वानी नैनीताल  आदि स्थानों पर गेंहू व कोदा की ऊमी त्यौहार आयोजित कर उत्तराखंड में फ़ूड टूरिज्म को विकसित किया जा सकता है। 



Copyright @ Bhishma Kukreti 2 /6 /2019

  ढांगू पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; गूलरगाड़ , टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;   चमोली  गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  रुद्रप्रयाग  गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;   देहरादून उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; हरिद्वार उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  नैनीताल उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ; हल्द्वानी उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  अल्मोड़ा उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;  पिथौरागढ़ उत्तराखंड में ऊमी  द्वारा भोजन पर्यटन /फ़ूड टूरिज्म विकास ;           






Bhishma Kukreti:
महाराष्ट्र के भीमाशंकर व देवरुख कॉलेज में वन भोजन महोत्सव  :पर्टयन विकासोन्मुखी कृत्य
 
भोजन पर्यटन विकास -12   
Food /Culinary  Tourism Development -12   
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 389   

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -389   

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती 

          देवरुख का वन्य भोजन महोत्स्व

 
 महाराष्ट्र में कई स्थानों पर वन सब्जी महोत्स्व होते रहते हैं जो कई उद्देश्य प्राप्त करते रहते हैं।  मुंबई में भी वन सब्जी /उत्पाद भोजन महोत्स्व आयोजित होते हैं।  30 अगस्त  2018 में रत्नागिरी के संगमेश्वर तहसील के ASP कॉलेज देवरुख का वाइल्ड वेजिटेबल फेस्टिवल पर्यटन दृष्टि से कामयाब मेला कहलाया जायेगा।  देवरुख कॉलेज के प्रधानाचार्य की प्रेरणा से अगस्त में यह मेला लगा कारण बारिश के बाद वनों में कई भोज्य पदार्थ उग आते हैं तो अगस्त व सितम्बर सही समय होता है वन्य भोज्य पदार्थ इकट्ठा करने का।  कॉलेज में मेला आयोजित करने का मकसद था विद्यार्थियों को वन्य भोज्य पदार्थ के बारे में जानकारी व भविष्य हेतु रास्ता पथ निर्माण।  इस मेले में 30 भागीदार 70 -80 पकवान पका कर लाये थे।  इसके बाद मोबाईल में एक एप्लीकेसन भी डाला गया जिसमे इन पकवानों के अवयव व पकवान बनाने की विधि डीसीपी बताई गयी है। 

एलावली  गाँव  , भीमाशंकर में वन्य भोजन महोत्स्व
पुणे के निकट यालावली  गाँव में 2011 में वाइल्ड वेजिटेबल फेस्टिवल आयोजित किया गया जिसमे निकटवर्ती गाँव वालों ने भाग लिया। 500 पर्यटक भागीदारों ने निम्न तरह से भागीदारी निभाई -
एलावली गाँव की हद्द भ्रमण
देवस्थल भ्रमण
एलावली वन क्षेत्र से वन्य भोज्य पदार्थ एकत्रीकरण
हल चलना दर्शन
उगी धान कली  दर्शन
धान रोपण दर्शन
औषधि पादपों की करसिहि कैसे होती है -औषधि पादपों के दर्शन
वर्षा से पहले छत किस प्रकार ढकी जाती हैं -कृत्य दर्शन
 वन से लायी गयी सब्जियों को फूलों से सजकर दर्शन
वन सब्जियों व भोज्य पदार्थ को पकते देखना
वन भोज्य पदार्थ प्रदर्शनी व भोजन संवारने की कला प्रदर्शन
भजन कीर्तन
वन्य भोजन को चखना खाना आनंद लेना
रेसीपी नॉट करना
  आस पास उपलब्ध  वन भोज्य व वनस्पति ज्ञान लेना व बाँटना
उपरोक्त दोनों मेले भोजन पर्यटन विक्सित करने के उम्दा उदाहरण हैं।

Copyright @ Bhishma Kukreti , 3 /6 /2019
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; हरिद्वार  उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; नैनीताल कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; उधम सिंह नगर कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; अल्मोड़ा , कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; पिथौरागढ़ कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;

Bhishma Kukreti:
व्यवसायिक बकरी पालन

व्यवसायिक  बकरी पालन का पर्यटन हेतु महत्व -1
Commercial Goat Farming as Tourism Tool -1
भोजन पर्यटन विकास -11
Food /Culinary  Tourism Development 11
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 397

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -397

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती    



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                बकरी पालन भूमिका व लाभ तुलना 



राष्ट्रीय ही नहीं उत्तराखंड में बकरी पालन  अर्थव्यवस्था हेतु एक महत्वपूर्ण कारक रहा है।  भारत में 70 प्रतिशत भूमिहीन कृषि मजदूर व छोटे किसान बकरी पालन में संलग्न हैं।  छोटे किसानों व अन्य हेतु बकरी पालन के कई लाभ मिलते रहे हैं।  भारत में आज भी कई जंतु  सामजिक छवि जुडी हैं जैसे सुअर पालन ,  मुर्गी पालन  सवर्णों में  आज भी ताज्य है।  किन्तु बकरी पालन में कोई सामजिक बंधन जैसे धर्म , जाति , उप जाति , महिला या पुरुष  नहीं जुड़े हैं।  बकरी से औषधीय दूध , दही , मक्खन, गोबर  के अतिरिक्त मांस तो मिलता ही है बकरी की खाल कई व्यवसायों में प्रयोग होती है। 

अन्य जीवों की तुलना में बकरी पालन के कुछ लाभ

१- गरीब जो गाय भैंस नहीं पाल सकते उनके लिए बकरी पालन अधिक सरल है।  कम  क्रय  लागत , कम मेंटेनेंस व्यय  व   बिक्रय लाभ अधिक भी है

२- बकरी पालन में कम जगह की आवश्यकता होती है।

३- बकरी मरखुड्या /मरखने व इकहत्या (एक  ही हाथ से दुहा जाय ) नहीं होते हैं।  अतः पालने , दूध दुहने में समस्या नहीं के बराबर है।

४- बकरी पालन हेतु कृषि खेत या भीमल , गूलर , खड़िक जैसे पादपों की आवश्यकता नहीं पड़ती

५- घास हेतु जल की आवश्यकता नहीं पड़ती या बकरी स्नान , पानी पिलाने हेतु निकट जल स्रोत्र आवश्यक नहीं है तथापि बंजर क्षेत्र , पहाड़ी क्षेत्र में भी बकरी पाली जा सकती है

६- बकरी को चराने के लिए निकट ही गौचर /चराई क्षेत्र आवश्यक नहीं है किसी भी वन में चारयि हो सकती है।  बकरियां एक दिन में अधिक चल सकते है

७- बकरी चराने हेतु केवल बाघ , सियारों के अतिरिक्त कोई बड़ी सावधानी नहीं बरतनी पड़ती है जैसे बकरी का भेळ में गिरने /लमडने का भय कम होता है तो मजदूरी पर चरवाहे रखे जा सकते हैं जो दूध भी दुह सकते हैं व देखरेख भी कर सकते हैं ।

८- बकरी बेचना सदा ही सरल रहा है और सदा ही बाजार उपलब्ध रहा है आज भी बकरी को कैश क्रॉप जैसे कभी भी कहीं भी बेचा जा सकता है।

९- बकरी की उत्पादकशीलता अधिक होती है।

१० - बकरी पालन का व्यवसायिक भविष्य उज्जवल है।  श्राद्ध छोड़ बकरी मांस भक्षण की कोई सामयिक वर्जना  नहीं है। बकरी नास्ते , दोपहर भोजन व रात्रि भोजन सब समय भक्षण हो सकता है। इसी तरह बकरे मारने में कोई वर्जनाएं नहीं है।  ब्राह्मण क्या उच्च वर्ग ब्राह्मण भी बकरी मार सकता है।  भारत में कुछ क्षेत्र छोड़ बकरी भोजन में कोई जातीय बंधन नहीं है

११- मृत गाय , भैंस की कीमत नहीं के बराबर होती है किन्तु बकरी के साथ यह कमजोरी नहीं है।  मृत गाय -भैंस को खड्यारना व लसोरना कठिन है किन्तु मृत बकरी का मांस बिकाऊ होता है याने मृत बकरी डिस्पोजेबल /उपयोगी होती हैं। थैंक गौड  गौरक्षक बकरी रक्षा में अतिक्रमण नहीं करते।

१२- बकरी का  बकर्वळ बिकाऊ है। बकर्वळ की डिस्पोजिबिलिटी गोबर से सरल है

१३- आधुनिक प्रजनन तकनीक उपलब्ध हैं व वाह्य स्पर्म गर्वाधान तकनीक सरल है

१४ -बकरी पालन में आधुनिक तकनीक उपलब्ध है



  सबसे बड़ी कमजोरी

 भारत में बकरी पालन से जुडी सबसे बड़ी कमजोरी है बकरी पालन में संगठित , व्यवसायीकरण न होना याने बकरी पालन को व्यापारिक /दुकानदारी  दृष्टि से न देखना। 









Copyright @Bhishma Kukreti, bjkukreti@gmail .com

vinodkhati:
Dear Friends,
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Regards,
Vinod
Whatsup number: +919920891646

Bhishma Kukreti:
मंदिरों , गुरुद्वाराओं के भंडारे/लंगर  व भोग -प्रसाद भी   भोजन पर्यटन अंग ही  हैं



Bhandra, Bhog from temples are Tourism oriented
भोजन पर्यटन विकास -14
Food /Culinary  Tourism Development 14
उत्तराखंड पर्यटन प्रबंधन परिकल्पना - 398

Uttarakhand Tourism and Hospitality Management -398

 

आलेख -      विपणन आचार्य   भीष्म कुकरेती   

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अमूनन हिन्दू भारतीय पूजास्थलों में देवताओं को भोग लगाना व भक्तों हेतु भोजन व्यवस्था आम प्रचलन है।  गुरुद्वाराओं में लंगर भी इसी विधान परम्परा का हिस्सा है। 



  जुहू के इस्कॉन में भोजन

जुहू मुंबई के इस्कॉन मंदिर में हर रविवार को भक्तों हेतु शुद्ध वैष्णवी भोजन पकाया जाता है और भक्तों से भोजन कीमत ली जाती है।  दूर दूर से भक्त पर्यटक इस्कॉन मंदिर यात्रा करते हैं और भोजन कर ही लौटते हैं।

  सिद्धबली मंदिर कोटद्वार में भी हर रविवार या अन्य दिन भंडारा होता है और भक्तों को मुफ्त भोजन दिया जाता है।

कोई गुरुद्वारा ऐसा न होगा जहाँ लंगर न लगता हो और भक्तों को भोजन न बनता जाय।

जलाराम मंदिरों में भी भंडरा होता है।

पहले गढ़वाल कुमाऊं में जब कोई परिवार जब देवस्थल जैसे सीम यात्रा कर लौटता था तो गाँव वालों व रिश्तेदारों हेतु भंडरा आयोजन करते थे।  अब कई सामाजिक संथाएं किसी विशेष देवता के सामूहिक दर्शन बाद सामूहिक भंडरा आयोजन करते हैं।  तिरुपति मंदिर में लड्डू भोग भी प्रसिद्ध भोग व प्रसाद है। यमनोत्री गंगोत्री में चावल भोग व प्रसाद भी प्रसिद्ध हैं

उपरोक्त सभी भोजन वास्तव में पर्यटनोगामी हैं।

हरिद्वार आदि स्थलों में आश्रमों द्वारा डे भोजन भी पर्यटनोगामी हैं।

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  देव हेतु भोग व भक्तों हेतु प्रसाद

तकरीबन हर देवतषल में देव हेतु विशेष भोग चढ़ाना या चढ़ावा चढ़ाना आम प्रचलन है। यही ब्भोग बाद में प्रसाद रूप में भक्तों में बनता जाता है।  सिद्धबली व अन्य नागराजा मंदिरों में गुड़ या भेली चढ़ाया जाता है। बद्रीनाथ में चावल भोग होता है जो प्रसाद रूप में भी बनता जाता है।  ग्राम देवताओं को रोट भोग चढ़ाया जाता है।

  उपरोक्त सभी प्रकार के उदाहरण भोजन द्वारा पर्यटन विकसित होने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।



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Copyright @ Bhishma Kukreti , 5  /6 /2019
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ;  चमोली गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ,; रुद्रप्रयाग गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग   ; टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ; उत्तरकाशी गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ; देहरादून गढ़वाल उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर , मंदिरों में भंडारा व भोग ; हरिद्वार  उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ;  कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग   ; नैनीताल कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ; उधम सिंह नगर कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; अल्मोड़ा , कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर ; पिथौरागढ़ कुमाऊं उत्तराखंड में भोजन पर्यटन के अवसर, मंदिरों में भंडारा व भोग  ;

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