Author Topic: Tourism Related News - पर्यटन से संबंधित समाचार  (Read 61560 times)

पंकज सिंह महर

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देहरादून। चैत्र मास की नवरात्रियोंमें उत्तराखंड के चंपावतजिले में स्थित पूर्णागिरिके दर्शनों के लिए अपार जन सैलाब उमड पडा है और मां के जयकारों से पूरा मेला क्षेत्र गुंजायमान हो रहा है।

चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण चंपावतजिले के प्रवेशद्वार टनकपुरसे 19किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108सिद्धपीठोंमें से एक है। तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुरनगर मां पूर्णागिरिके दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है।

इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं किंतु चैत्र मास की नवरात्रमें यहां मां के दर्शन का इसका विशेष महत्व बढ जाता है। मां पूर्णागिरिका शैल शिखर अनेक पौराणिक गाथाओं को अपने अतीत में समेटे हुए है। पहले यहां चैत्र मास के नवरात्रियोंके दौरान ही कुछ समय के लिए मेला लगता था किंतु मां के प्रति श्रद्धालुओं की बढती आस्था के कारण अब यहां वर्ष-भर भक्तों का सैलाब उमडता है।

दर्शनार्थियोंकी बढती संख्या के बावजूद नागरिक सुविधाओं का विस्तार यहां बहुत नहीं है लेकिन राज्य सरकार द्वारा इस तीर्थ को वैष्णो देवी की तर्ज पर विकसित करने की कोशिश लंबे अरसे से चल रही है।

मां पूर्णागिरिमें भावनाओं की अभिव्यक्ति और शक्ति के प्रति अटूट आस्था का प्रदर्शन होता है। पौराणिक गाथाओं एवं शिव पुराण रुद्र संहिता के अनुसार दक्ष प्रजापति की 60हजार कन्याएं थीं जो देवताओं को विवाह स्वरूप दी गई थीं उन्हीं में से एक सती का विवाह भगवान भोले शंकर से किया गया। भगवान शिव से संबंध होने पर दक्ष प्रजापति देवताओं में सम्मान से देखे जाने लगे।

एक बार देवताओं ने एक शुभ आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं के साथ ही भगवान शिव को भी आमंत्रित किया गया। देवताओं ने शिवजी को प्रधान सिंहासन पर बैठाकर उनका पूजन किया। इसी दौरान दक्ष प्रजापति भी वहां पहुंचे।

लोक व्यवहार के अनुसार दक्ष प्रजापति को अहंकार था कि शिव उनके जमाता हैं और भगवान शिव को उन्हें प्रथम अभिवादन करना चाहिए। अन्य देवताओं ने दक्ष प्रजापति का शिव से संबंध होने के कारण उन्हें पहले शीश नवाया,किंतु भगवान शंकर ने आध्यात्मिक भाव के कारण विचार किया कि यदि मैं महादेव होने के कारण पहले दक्ष प्रजापति का अभिवादन करूं तो पहले नमन से दक्ष प्रजाति की राज्य लक्ष्मी का विनाश हो जायेगा।

अपने श्वसुर के इस हित को मन में रखकर शिवजी ने पहले उठकर उनका अभिवादन नहीं किया और अपने आसन पर ही बैठे रहे। दक्ष प्रजापति इससे रुष्ट हो गए और कहने लगे कि मैने इस प्रकार के दरिद्र एवं अमांगलिकवेशधारी को अपनी कन्या का विवाह कर महान भूल की जो शिष्टाचार तक नहीं जानता।

दक्ष प्रजापति ने इसे अपना घोर अपमान समझते हुए बदले में शिवजी के अपमान की योजना बना डाली। उन्होंने हरिद्वार में महायज्ञ का आयोजन किया और यह निश्चय किया कि शिवजी को इस अनुष्ठान में शामिल न किया जाए जबकि अन्य सभी देवताओं को इसमें आमंत्रित किया गया।

आकाश मंडल से विमान में जाते हुए अपनी बहिनों के पतियोंको अनुष्ठान में शामिल होता देखकर सती ने दु:खी होकर शिवजी से अनुष्ठान में शामिल होने का अनुरोध किया किंतु शिवजी ने सती के अनुरोध को ठुकरा दिया लेकिन सती के हट पर शिवजी ने अपने नंदीगणके साथ सती को अनुष्ठान में शामिल होने के लिए भेज दिया।

मां सती यज्ञ स्थल पर पहुंची। यज्ञ मंडप में शिव का कोई स्थान नहीं था। चारों ओर शिव को छोडकर अन्य देवताओं को आहुति करने का उल्लेख था। अपने पति के इस अनादर को सती सहन नहीं कर पाई। पिता से पति के स्थान के बारे में पूछने पर प्रजापति ने कहा खप्परधारीरुंड,मुंड तथा श्मशान भस्म धारण करने वाले अमांगलिकवेशधारी के लिए यहां स्थान देने का कोई औचित्य नहीं है।

अपने पति के अपमान को सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में ही अपनी आहुति दे दी तथा कहा कि अब मैं तुम्हारे संबंध से उत्पन्न इस देह को नहीं चाहती। सती के साथ गए रुद्रगणोंने जब सती को अग्नि में सती होते देखा तो रुद्र भगवान से द्वेष रखने वाले प्राणियों पर प्रहार किया तथा इसकी सूचना भगवान शंकर को दी।

भगवान शंकर क्रोधित हुए और उन्होंने अपनी जटा पर तीन बार हाथ फेरा। उससे शंकरीमहाशक्ति का एक वीरभद्रभयंकर स्वरूप का गण उत्पन्न हुआ और वह अपनी विशेष शंकरीसेना को लेकर यज्ञ स्थल कनखलकी ओर रवाना हुआ। उसने दक्ष प्रजापति के सिर को काटकर यज्ञाग्नि को समर्पित कर यज्ञ विध्वंस कर दिया।

भगवान शंकर भी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश मार्ग में विचरण करने लगे। विष्णु भगवान ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के अंग पृथक कर दिए जो आकाश मार्ग से विभिन्न स्थानों में गिरे। कथा के अनुसार जहां जहां देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए।

मां सती का नाभि अंग अन्नपूर्णा शिखर पर गिरा जो पूर्णागिरिके नाम से विख्यात् हुआ तथा देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिकागिरि,कालिकागिरि,हमलागिरिव पूर्णागिरिमें इस पावन स्थल पूर्णागिरीको सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ। देवी भागवत और स्कंद पुराण तथा चूणामणिज्ञानाणवआदि ग्रंथों में शक्ति मां सरस्वती के 51,71तथा 108पीठों के दर्शन सहित इस प्राचीन सिद्धपीठका भी वर्णन है जहां एक चकोर इस सिद्धपीठकी तीन बार परिक्रमा कर राज सिंहासन पर बैठा।

पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्माकुंडके निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मादेवमंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया।

ऐसी मान्यता है कि नवरात्रियोंमें देवी के दर्शन से व्यक्ति महान पुण्य का भागीदार बनता है। देवी सप्तसतीमें इस बात का उल्लेख है कि नवरात्रियोंमें वार्षिक महापूजा के अवसर पर जो व्यक्ति देवी के महत्व की शक्ति निष्ठापूर्वक सुनेगा वह व्यक्ति सभी बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य से संपन्न होगा।

पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां यह भी उल्लेखनीय है कि एक बार एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरिके दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा। मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यासनामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर झूठे मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कहा जाता है कि एक बार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरिके उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया किंतु दयालु मां ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।

कुमाऊं के लोग आज भी सिद्धबाबाके नाम से मोटी रोटी [रोट] बनाकर सिद्धबाबाको अर्पित करते हैं। यहां यह भी मान्यता है कि मां के प्रति सच्ची श्रद्धा तथा आस्था लेकर आया उपासक अपनी मनोकामना पूर्ण करता है, इसलिए मंदिर परिसर में ही घास में गांठ बांधकर मनौतियां पूरी होने पर दूसरी बार देवी दर्शन लाभ का संकल्प लेकर गांठ खोलते हैं। यह परंपरा यहां वर्षो से चली आ रही है। यहां छोटे बच्चों का मुंडन कराना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है।

कहा जाता है कि इस धार्मिक स्थल पर मुंडन कराने पर बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है। इसलिए इसकी विशेष महत्ता है। यहां प्रसिद्ध वन्याविद्तथा आखेट प्रेमी जिमकार्बेटने सन् 1927में विश्राम कर अपनी यात्रा में पूर्णागिरिके प्रकाशपुंजों को स्वयं देखकर इस देवी शक्ति के चमत्कार का देशी व विदेशी अखबारों में उल्लेख कर इस पवित्र स्थल को काफी ख्याति प्रदान की।

पूर्णागिरिमंदिर टनकपुरसे 19किमी दूर है जहां ठुलीगाडतक 12किलोमीटर का सफर बस से किया जाता है। इसी बीच लोक निर्माण विभाग द्वारा छह किलोमीटर लंबी सडक का निर्माण कराया गया है। मेलावधिमें इस मार्ग से वाहनों का आवागमन बंद रहता है जिससे यात्री जय माता दी के उद्घोष के बल पर सात किमी की दुर्गम चढाई पार कर मां के दरबार पहुंचते हैं।

पहले इस मेले की व्यवस्था पिथौरागढजिला पंचायत द्वारा की जाती थी किंतु 15सितंबर 1997को चंपावतके नाम से नए जिले का निर्माण होने के बाद अब मेले की पूरी व्यवस्था चंपावतजिला पंचायत द्वारा की जा रही है। पहले ऊधम सिंह नगर जिला प्रशासन द्वारा जहां एक ओर मेले के मुख्य पडाव टनकपुरमें व्यवस्थाओं को अंजाम दिया जाता था लेकिन अब चंपावतजिले में बनबसातक का क्षेत्र आने से पूरी व्यवस्था की बागडोर चंपावतजिला प्रशासन संभाल रहा है।

चंपावतजिला पंचायत अध्यक्ष ललित मोहन पांडेय ने बताया कि सकुशल मेला संपन्न कराने तथा यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के मद्देनजर चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ सुरक्षा के कडे इंतजाम किए गए हैं। उन्होंने बताया कि अब तक लगभग आठ लाख भक्तों ने मां पूर्णागिरिके दर्शन किए हैं तथा मेले का आनंद लिया।

यहां का संपूर्ण वातावरण इस समय भक्ति भावना से ओत-प्रोत प्रतीत हो रहा है। बच्चे, बूढे, नौजवान और महिलाएं मां के जयकारों के साथ सात किलोमीटर कठिन पथरीलीचढाई को पार कर मां के दर्शनों का पुण्य अर्जित करने पहुंच रहे हैं। नैसर्गिक छटा के धनी चंपावतजिले को प्रकृति ने मुक्तहस्तसे संजायाहै और यहां पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं। यदि पूर्णागिरिमें आने वाले यात्रियों का रुख श्यामलाताल, वल्दीघाटी, चंपावत,मानेश्वर,लोहाघाट,खेतीखानऔर देवीधूराकी ओर मोडकर उनकी पर्वतीय यात्रा को काठगोदाम में समाप्त किया जाए तो इस क्षेत्र के पर्यटन विकास में भी नए आयाम जुड सकेंगे।
 


साभार : in.jagran.yahoo.com

पंकज सिंह महर

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उत्तरकाशी। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री धाम के कपाट सात मई को अक्षय तृतीया के दिन श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे।

श्री गंगोत्री मन्दिर समिति के सचिव हरीश सेमवाल ने बताया कि गंगोत्री धाम के कपाट खुलने में अब केवल चौदह दिन शेष है। ऐसे में यात्रा के दौरान तीर्थ यात्रियों को मुश्किलों का सामना न करना पड़े इसके लिए प्रशासन से युद्ध स्तर पर गंगोत्री धाम की समस्याओं को हल करने का आग्रह किया गया है। उल्लेखनीय है कि कपाट खुलने से संबंधित तैयारियों के सिलसिले में इसी हफ्ते जिलाधिकारी यात्रा से संबंधित अधिकारियों के साथ गंगोत्री का दौरा करेंगे जहां वे यात्रा व्यवस्थाओं की बैठक भी लेंगे।

पंकज सिंह महर

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यात्रा सीजन: तैयारियों को प्रशासन ने कसी कमर

रुद्रप्रयाग। भगवान केदारनाथ की यात्रा को लेकर व्यवस्थाएं दुरुस्त करने के लिए जिला प्रशासन तैयारियों में जुटा है।
केदारनाथ यात्रा शुरू होने में दो सप्ताह से कुछ ज्यादा दिन ही शेष बचे है। ऐसे में समय से पूर्व केदारनाथ यात्रा व्यवस्था को दुरुस्त करने को लेकर प्रशासन ने कमर कस ली है। जिलाधिकारी सचिन कुर्वे ने यात्रा व्यवस्थाओं को समय पर दुरुस्त करने के लिए अधिकारियों को जरूरी दिशा- निर्देश दिए हैं। केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव स्थल गौरीकुंड में पार्किग की मरम्मत एवं पैदल मार्ग पर विद्युत व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए विद्युत विभाग को समय से कार्य करने को कहा गया है। घोड़ा पड़ाव पर किसी तरह की गंदगी न हो इसके लिए भी प्रशासन इस समय नई व्यवस्था करने जा रहा है। केदारनाथ में खाद्य पदार्थ समय से उपलब्ध हो यह प्रशासन के लिए सबसे बड़ी समस्या रहती है। इसके लिए जिलाधिकारी ने जिला पूर्ति अधिकारी को हर हाल में खाद्य सामग्री समय से केदारनाथ तक पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। साथ ही रात्रि को दुर्घटना की संभावना को देखते हुए रात्रि आठ बजे से यातायात प्रतिबंधित करने को कहा है। इसके साथ ही मंदिर समिति भी यात्रा शुरू होने से पूर्व मंदिर से संबंधित व्यवस्थाएं दुरुस्त करने में जुटी है। मंदिर समिति का एक दल केदारनाथ के लिए रवाना हो गया है। समिति के वरिष्ठ प्रबंधक किशन त्रिवेदी ने बताया कि समिति के कर्मचारी मंदिर परिसर समेत अतिथि गृह व अन्य व्यवस्थाएं जुटाने के कार्य में जुटे है।

पंकज सिंह महर

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राष्ट्रीय कयाकिंग, कैनोइंग प्रतियोगिता आज से, तैयारियां पूरी

भीमताल(नैनीताल)। इंडियन कयाकिंग, कैनोइंग एसोसिएशन व उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार से आरंभ तीन दिवसीय राष्ट्रीय कयाकिंग व केनोइंग प्रतियोगिता की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। प्रतियोगिता का उद्घाटन गुरुवार की प्रात: 10 बजे कुमाऊं मंडल विकास निगम अध्यक्ष वेदप्रकाश गुप्ता करेगे। प्रतियोगिता में प्रदेश की दो टीमों समेत विभिन्न राज्यों की करीब एक दर्जन टीमें भाग लेंगी।

प्रतियोगिता की तैयारियों को लेकर केएमवीएन के प्रबंध निदेशक अमित नेगी ने प्राधिकरण कार्यालय में बैठक लेकर समीक्षा की। बैठक के बाद केएमवीएन के एमडी श्री नेगी ने बताया कि प्रतियोगिता का उद्घाटन गुरुवार को प्रात: 10 बजे केएमवीएन के अध्यक्ष वेदप्रकाश गुप्ता बतौर मुख्य अतिथि करेगे। उद्घाटन समारोह के बाद प्रतियोगिता के-1, के-2 व सी-1 व सी-2 के महिला व पुरुष वर्ग के अलग-अलग चरणों की जाएगी। प्रतियोगिता में उत्तराखंड की दो टीमों समेत यूपी, बंगलौर, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु आदि राज्यों की करीब एक दर्जन टीमें भाग लेंगी। इनमें अभी तक आधा दर्जन टीमें यहां पहुंच गई है। सभी प्रतिभागियों के लिए निगम के रेस्ट हाउसों में रहने व खाने की व्यवस्थाएं की गई है। निगम व पर्यटन विभाग आदि अधिकारियों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई है। प्रतियोगिता के दौरान प्रतिभागियों को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसके लिए पीएसी के तैराक तैनात किए गए है। इसके अलावा मोटर वोट व लाइफ जैकेटों के पर्याप्त इंतजाम किए गए है। इसके अलावा इंडियन कयाकिंग केनोइंग एसोसिएशन के कोच पहुंच चुके है। डांठ स्थित पं. दीनदयाल पार्क के समीप उद्घाटन स्थल पर भव्य पंडाल तैयार किया जा रहा है। बैठक में निगम के महाप्रबंधक अशोक जोशी, मंडलीय प्रबंधक जीएन पांडे समेत विभिन्न टीमों के टीम मैनेजर व तकनीकी अधिकारी मौजूद थे।

पंकज सिंह महर

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सिमली (चमोली)। करोड़ों लोगों की आस्था के प्रतीक श्रीबदरीनाथ धाम के कपाट नौ मई को खुलने जा रहे हैं। भगवान बदरीविशाल के कपाट खुलने से हजारों वर्ष पुरानी परंपराओं का निर्वहन आज भी देखने को मिल रहा है इन्हीं परंपराओं में से गाडूघडी तेलकलश का अपना अलग ही महत्व है।
       आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा ज्योतिर्मठ की स्थापना के बाद भगवान बदरीनारायण की पूजा वहां के आचार्य ही करते थे ज्योतिर्मठ के पहले शंकराचार्य त्रोटकाचार्य हुए, उनके पश्चात लगभग 11वीं सदी तक यहां शंकराचार्य नियुक्त होते रहे तब से 15वीं सदी तक के शंकराचार्यो का कोई उल्लेख इतिहास में नही मिलता है पुन: 15 सदी से संवत 1833 तक दंडीस्वामियों को यहां का शंकराचार्य नियुक्त किया जाता रहा है। इसके बाद यहां कोई दंडीस्वामी न रहने से बदरीनाथ की पूजा के लिए गढ़वाल नरेश द्वारा आचार्यो के सहायक जो कि केरल प्रान्त के नंबूदरी ब्राहमण होते थे करने लगे, उन्हें आज रावल के नाम से जाना जाता है। नंबूदरी ब्राहमण के साथ बदरीनाथ की पूजा व्यवस्था हेतु डिमरी पुजारियों को भी गढ़वाल नरेश द्वारा जिम्मेदारियां सौंपी गई थी भोग व्यवस्था, लक्ष्मी पूजा, लक्ष्मी अटका, गरूड़, चरणामृत, नारद शिला तथा बदरीविशाल की पूजा रावल के साथ आज भी डिमरी पुजारी करते आ रहे हैं। श्रीबदरीनाथ धाम से डिमरी पुजारियों का गहरा संबध होने से आज भी बदरीनाथ धाम में विभिन्न पूजास्थलों, वृत्तियों में डिमरी पुजारियों का अधिकार कायम है। इसी परिप्रेक्ष्य में श्रीबदरीनाथ गाडूघडी तेलकलश को डिमरी पुजारी पिछले कई वर्षो से शोभायात्रा का भव्य रूप देकर मनाते आ रहे हैं। इन तीन वर्षो से पूर्व गाडूघडी में तिलों के तेल पिरोने, बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने व बंद होने की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है। गाडूघडी में भरा तिलों के तेल का उपयोग भगवान बदरीविशाल की अभिषेक पूजा और मूर्ति पर लेप किए जाने के कारण गाडूघड़ी के प्रति धर्माचार्यो की आस्था दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

पंकज सिंह महर

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सरोवर नगरी नैनीताल में पर्यटकों के उमड़ने का क्रम जारी

नैनीताल। मैदानी क्षेत्र में लगातार तापमान में वृद्धि से सरोवर नगरी में पर्यटकों के उमड़ने का क्रम जारी है। सरोवर नगरी नैनीताल में रविवार को अधिकतम तापमान 28 व न्यूनतम 18 डिग्री रहा।
विदित हो कि सप्ताहांत के चलते मैदानी क्षेत्र से सीजन में पर्यटकों की अधिक आमद सरोवर नगरी में होती रही है। वर्तमान में मैदानी क्षेत्र में गर्मी बढ़ने पर पिछले कुछ दिनों से अधिक पर्यटक पहुंच रहे है। रविवार को अधिकांश पर्यटक स्थलों में पर्यटक खासी संख्या में उमड़े। इधर, जीआईसी मौसम केंद्र के अनुसार नगर में रविवार को अधिकतम तापमान 28 व न्यूनतम 18 डिग्री सेल्सियस रहा।

पंकज सिंह महर

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देहरादून। तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को केदारनाथ और यमुनोत्री पहुंचाने के लिए सरकार ने इस बार प्रीपेड व्यवस्था की है। इससे बिचौलियों की भूमिका पूरी तरह समाप्त हो जाएगी। बद्रीनाथ और गंगोत्री में वहां की उपज को प्रसाद के रूप में देने की योजना बनाई गई है। साफ-सफाई और पर्यावरणीय दृष्टि से चारों धामों में पालिथीन का इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है।

चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरतराम नौटियाल ने बृहस्पतिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में तीर्थधामों एवं यात्रा मार्गो पर इस साल की जा रही व्यवस्थाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि केदारनाथ और यमुनोत्री पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की अक्सर शिकायत रहती है कि पैदल दूरी तय कराने की एवज में उनसे मनमानी रकम वसूली जाती है। इस पर अंकुश लगाने की पुख्ता व्यवस्था कर दी गई है। उन्होंने बताया कि इन दोनों पैदल रूटों पर कंडी, डंडी और घुड़सवारी की दरें तय कर दी गई हैं। केदारनाथ के लिए गौरीकुंड और यमुनोत्री के लिए जानकीचट्टी में प्रीपेड व्यवस्था रहेगी। दोनों जिलों में वहां की जिला पंचायत को यह जिम्मा सौंपा गया है। इन केंद्रों पर पर्यटक अथवा तीर्थयात्री किराये का भुगतान करेंगे। इसकी एवज में पैदल दूरी तय कराने वालों को एक टोकन दिया जाएगा। यात्रा की वापसी पर पर्यटक से लिखित रूप में संतोषजनक यात्रा कराने का प्रमाण मिलने के बाद ही केंद्र से घोड़ा अथवा कंडी वालों को भुगतान प्राप्त हो पाएगा। श्री नौटियाल ने बताया कि इन रूटों पर घोड़ा-खच्चर और कंडी-डंडी संचालित करने वालों को बाकायदा ड्रेस दी जाएगी, ताकि उनकी अलग से पहचान हो सके। सरकार ने हाल ही में निम से 300 बेरोजगारों को आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिलाया है। यात्रा काल में इनका भी सहयोग लिया जाएगा। परिषद उपाध्यक्ष के मुताबिक बद्रीनाथ और गंगोत्री में वहां की उपज को प्रसाद के रूप में देने की योजना बनाई गई है। एनजीओ के माध्यम से इस पर काम शुरू किया जाएगा। श्री नौटियाल ने बताया कि विभिन्न यात्रा मार्गो पर 45 हाईटेक शौचालय बनाए जा रहे हैं। पेयजल व दूसरी सुविधाओं के विस्तार की योजनाओं पर भी काम चल रहा है। चारधामों में साफ-सफाई और प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए पालिथीन के प्रयोग पर पाबंदी लगाने का फैसला किया है। श्रद्धालुओं को प्रसाद भी कपड़े की थैली में दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि पिछले साल यमुनोत्री में 2,87688, गंगोत्री में 3,29111, बद्रीनाथ में 7,68025 तथा केदारनाथ में 5,55918 पर्यटक आए। इस दौरान केदारनाथ में सर्वाधिक 1505 विदेशी पर्यटक पहुंचे।

हेम पन्त

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सांसद हरीश के सवाल पर केंद्रीय मंत्री का जवाब

देहरादन। केंद्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री सुश्री अंबिका सोनी ने सांसद हरीश रावत के एक सवाल पर बताया कि वित्तीय वर्ष 2007-08 में उत्तराखंड में पर्यटन विकास के लिए 2076 लाख स्वीकृत किए गए हैं।

सांसद श्री रावत बताया कि केंद्रीय मंत्री के मुताबिक केंद्र सरकार ने तीर्थ यात्रा परिपथ विकास के लिए 466.59 लाख, धनोल्टी, चंबा और नरेंद्र नगर में विकास के लिए 554.93 लाख, कार्बेट नेशनल पार्क में विकास के लिए 602 लाख और मुनस्यारी के लिए 452.52 लाख दिए हैं। श्री रावत ने बताया कि केंद्रीय बिजली मंत्री ने कहा है कि पर्वतीय भू-भाग वाले राज्य अगर केंद्र से अनुरोध करते हैं तो हर ब्लाक में 30 केवी बिजली स्टेशन निर्माण के मानक को शिथिल किया जा सकता है। राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना की खामियों के बारे में श्री रावत से सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस पर नियंत्रण के लिए एक कमेटी बनाई गई है। इसमें सांसदों के साथ ही विधायकों को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा जिला व प्रांत स्तर पर भी एक कमेटी नियमित मानीटरिंग करती रहती है।

हेम पन्त

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कुमाऊं में आधा दर्जन नए टीआरसी करेगे पर्यटकों का स्वागत

नैनीताल। राज्य गठन के बाद प्रदेश में घरेलू व विदेशी पर्यटकों की आमद में खासी वृद्धि दर्ज होने से निरंतर पर्यटकों के आने का क्रम जारी है। नए पर्यटन सीजन में पर्यटन विभाग ने धार्मिक, साहसिक पर्यटन सहित अन्य कार्यक्रमों की तैयारी शुरु कर दी है। पर्यटकों की आमद में और अधिक वृद्धि होने की संभावना को देखते हुए कुमाऊं मंडल विकास निगम के आधा दर्जन से अधिक आवास गृहों को पर्यटकों के लिए तैयार कर लिया गया है।

पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य गठन के बाद निरंतर पर्यटकों की आमद में वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष करीब 2.22 करोड़ पर्यटकों ने प्रदेश के विभिन्न पर्यटक स्थलों का लुत्फ उठाया। इसके अलावा 1. 60 लाख विदेशी पर्यटकों की आमद दर्ज हुई। इस बार जहां पर्यटन विभाग नए सीजन में साहसिक पर्यटन के लिए अनेक कार्यक्रम कर रहा है। केएमवीएन ने पिछले वर्ष आधा दर्जन से अधिक नए टीआरसी व पुराने टीआरसी के उच्चीकरण की स्वीकृति दी थी। निगम जीएम अशोक जोशी ने बताया कि नए पर्यटन सीजन में अल्मोड़ा के जलना व मानिला में टीआरसी, कौसानी टीआरसी में कांफ्रेंस हाल, श्यामलाताल का उच्चीकरण, टनकपुर में 10 एसी कमरे, पिथौरागढ़ टीआरसी में सात व मुनस्यारी में 10 के बजाय अब 22 कमरे, विर्थी के प्रमुख फाल के पास चार के बजाय 10 कमरों का टीआरसी तैयार है। जिनमें पर्यटकों को बेहतर सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। इधर, कार्बेट रामनगर सर्किट में मुहान व ढिकुली समेत पिथौरागढ़ के मुनस्यारी के पास खलियाटाप में पर्यटकों के लिए हट बनाने की कवायद तेज हो गयी है। जिसके भी इस वित्तीय वर्ष में पूर्ण होने की संभावना है। इसके अलावा अल्मोड़ा में कांकडीघाट, ऊधमसिंहनगर के जसपुर व नैनीताल के पदमपुरी में टीआरसी भवन निर्माण प्रगति पर है। इस वित्तीय वर्ष में निगम के मंडल के 46 टीआरसी में अधिक पर्यटकों की आमद से खासी आय हुई थी। इससे निगम प्रबंधन ने बेहतर सुविधाओें की कवायद तेज कर दी है। नए पर्यटक सीजन में पर्यटकों को मंडल के प्रमुख पर्यटक स्थलों में बेहत्तर सुविधा मिलने से आमद बढ़ने की संभावना बढ़ गयी है।

पंकज सिंह महर

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ऋषिकेश (देहरादून)। उत्तराखंड की प्रसिद्ध चार धाम यात्रा मंगलवार को विधिवत रूप से आरंभ होगी। प्रदेश के पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत यात्रा का शुभारंभ करेंगे।

देवभूमि में गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ धाम की यात्रा को लेकर चहल-पहल शुरू हो गई है। यात्रा के प्रवेश द्वार ऋषिकेश से यात्रा का शुभारंभ मंगलवार सुबह दस बजे पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत बस को हरी झंडी दिखाकर करेंगे। यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों का पहुंचना शुरू हो गया है। संयुक्त रोटेशन यातायात व्यवस्था समिति केअध्यक्ष गंभीर सिंह भंडारी ने बताया कि पहले दिन एक दर्जन बसें रवाना की जाएंगी। उन्होंने बताया कि यात्रा के लिए बसों का बेड़ा 1111 से बढ़ाकर 1200 कर दिया गया है। यात्रियों की भीड़ बढ़ने पर पांच सौ और बसों की व्यवस्था की गई है।

 

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