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Tourism in Bagehswar (Uttarakhand) पर्यटन की दृष्टि से बागेश्वर

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विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]ऐतिहासिक वीर खंभे : महोली ( कपकोट )

बागेश्वर जिले के कई दर्शनीय स्थल आज भी गुमनामी में पड़े हैं, इसकी वजह विभाग की उदासीनता है। महोली गांव के ऐतिहासिक बीरखंभों को ही लीजिए, यहां आज भी ऐतिहासिक सात बीरखंभे मौजूद हैं। सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस रमणीक स्थल से पूरा क्षेत्र दिखाई पड़ता है, इसके अलावा भी काफी कुछ यहां देखने लायक है, लेकिन प्रचार-प्रसार एवं संसाधनों के अभाव में यह स्थल वीराने में तब्दील होता जा रहा है।


कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती गांव महोली के धौभिड़े में ऐतिहासिक सात बीरखंभे आज भी मौजूद हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह एक ही रात में बनाए गए थे, इसके अलावा यहां से गनेठिया नदी में जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। अभी तक ज्ञात बीरखंभों में कोई भी बीरखंभे मूल अधिष्ठान में विद्यमान नहीं है। एक मात्र धौभिड़े के बीरखंभे अपने मूल स्थान में खड़े हैं। इस स्थान पर दो चबूतरे भी विद्यमान हैं, साथ यह सातों खंभे अपने स्थान पर क्रमबद्ध हैं। इस जगह की लंबाई तथा चौड़ाई आठ बाई तीन मीटर है। बीरखंभे के बाम पार्श्व में तीन मीटर अर्द्धव्यास तथा 2.75 मीटर अर्द्धव्यास का दूसरा चबूतरा एक क्रम में निर्मित है। यह एक ऐसा रमणीक स्थान है कि यहां से पूरा क्षेत्र दिखता है। मोटर मार्ग से बमुश्किल 100 मीटर दूरी पर स्थित इन खंभों को आज भी पर्यटकों की दरकार है। बीरखंभे सामान्य अधिष्ठान आठ गुणा तीन माप में स्थापित बीरखंभों का पास क्रमश: 1.45 सेमी से दो मीटर तक है। चौड़ाई 32 से 45 सेमी तक है। आधा भाग अपने मूल अधिष्ठान में चतुष्कोणीय जहां अष्टकोणीय जिसे सामान्यतया एक लंबी मोटी पैनी रस्सी से बांटा गया है। अलंकृत रेखा रस्सियों में उकेरी गई हैं। इस बीम के दोनों ओर कण भाग में एक-एक दंडरूपा गोल रेखा बनाकर अलंकृत किया गया है। उर्ध्व भाग में चतुष्कोणीय तथा प्रत्येक भाग में अलग-अलग आकृतियां उकेरी गई हैं, जिसमें चर्तुभुजी तलवार धारी युवक द्विभुजीय समग्र मुद्रा में लंबा कोट पहना दोनों पार्श्वा के कटिभाग में रखा, एक पैनी दृष्टि में रखा हुआ प्रदर्शित है। चौथे भाग में द्विभुजा एक धावक का चतुष्कोणीय में उकेरा गया है। इसमें बनी सभी मानवाकृतियों के सिर में सिस्त्राण और कानों में कुंडल पहने सभी समस्त आभूषणों से अलंकृत है। शिखर भाग में एक रेखांकित पद से अमृत घट के ऊपर विद्यमान हैं। सतापथ्य कला के आधार पर यह 15 वींशती ईसा के प्रतीत होते हैं। सातों खंभों में एक ही कला उकेरी गई हैं। बीरखंभ शब्द दो शब्द से मिलकर बना है। बीर और खंभ अर्थात वीर स्तंभ रेगड़ स्तंभ के आलेख में लेख मिलता है, जिसमें शक 1316 और 1324 के साथ ही श्री राजा ज्ञान चंद शुभम प्रथम में राम मेहता द्वितीय में श्री मेहता थेबू को रौत मेहता ले करायो आदि भी अंकित है। डा. राम सिंह ने काली कुमाऊं के राग-भाग में इसका उल्लेख किया है। इसी तरह डा. यशोधर मठपाल भी इन्हीं बीरखंभों को कीर्ति स्तंभ मानते हैं। पुरातत्व विभाग के डा. चंद्र सिंह चौहान इन्हें बीरखंभ मानते हैं उन्होंने कहा कि विभाग ने इनके संरक्षण के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है, जबकि जर्मन अध्यता जोठाईमर इन्हें वीरशिवा मानते हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तरी भारत में कहीं-कहीं गोवर्द्धन स्तंभ वीर स्तंभ, दक्षिण भारत में नाडकल, राजस्थान में सती स्तंभ आदि नामों से जाना जाता है। विश्व में प्रचलित स्थानीय भाषा के अनुसार विभिन्न नामों से नामित बीरखम आज भी कुमाऊं में लगभग 100 से अधिक मिल चुके हैं। कुमाऊं में बिरखम नाम के गांव भी देखने को मिलते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]शिवालय : कपकोट
रात दो बजे बाद जहां सुनाई देती है घंटी और शंखध्वनि की आवाज

तहसील मुख्यालय की ग्राम पंचायत कपकोट में सरयू नदी के तट पर स्थित भगवान शंकर का मंदिर तीन सौ साल पुराना है। जनश्रुति है कि यदि कोई भक्त सच्चे मन से जागरण करता है तो उसे मंदिर में ऊं नम: शिवाय की धुन के साथ घंटी तथा शंखध्वनि सुनाई देती है। मंदिर में सावन में हर सोमवार तथा महाशिवरात्रि पर मेला लगता है।
ग्राम पंचायत कपकोट में स्थापित भोलेनाथ मंदिर समूचे दानपुर घाटी का प्रमुख मंदिर है। पहले यह मंदिर बहुत छोटा था। अब ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर ने भव्य रूप ले लिया है। गांव के पूर्व प्रधान नारायण सिंह कपकोटी के अनुसार काला बाबा नाम के साधु ने 75 साल पहले मंदिर परिसर में पीपल का पौध रोपा जो अब विशालकाय रूप ले चुका है। मंदिर में लंबे समय तक श्री पंचनामा दशनाम जूना अखाड़ा बागेश्वर से जुड़ी दो माइयां रहती थी जो 15-20 बरस पहले ब्रह्म्मलीन हो गई हैं। मंदिर में इस समय पंचदशनाम जूना अखाड़ा बागेश्वर से जुड़े बद्रीगिरी महाराज रहते हैं। जब से उन्होंने यहां अपना आसन जमाया है तब से मंदिर परिक्षेत्र का विकास भी तेजी से हो रहा है। उनके प्रयासों से यहां अब हनुमान मंदिर भी बन गया है। ग्राम पंचायत, विधायक निधि, आकाश्वा कंपनी तथा मनरेगा के सहयोग से हनुमान जी का मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला, कथामंडप तथा सुरक्षा दीवार का निर्माण हो गया है। मंदिर परिसर में आंणू के कैलाश जोशी विछराल ने अपनी दिवंगत माता देवकी देवी की स्मृति में विशाल धर्मशाला का निर्माण किया है। मंदिर तथा अन्य कार्यों के लिए आणूं के ही स्व. देवी दत्त जोशी, स्व. लक्ष्मी दत्त जोशी तथा अवकाश प्राप्त शिक्षक गणेश दत्त जोशी ने अपनी भूमिदान की है। मंदिर कपकोट-कर्मी मार्ग से लगे होने से यहां जलार्पण करने वालों का हमेशा तांता लगा रहता है। गत तीन साल से मंदिर में हर मंगलवार को सुंदरकांड के अखंड पाठ का गायन होता है। शिव महापुराण तथा श्री राम चरित मानस का अखंड पाठ का भी आयोजन होता रहता है। लोगों का विश्वास है कि जो भी भक्त मंदिर में सच्चे मन से शिवरूद्री का पाठ कर 108 लोटा जल चढ़ाता है भोलेनाथ प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं।

श्रोत : अमर उजाला

विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]भगवती माता मंदिर : पोथिंग

उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद से करीब 30  कि०मी० आगे माँ नंदा भगवती का भव्य मंदिर पोथिंग नामक गाँव में स्थित है। जो कपकोट क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह मंदिर क्षेत्रवासियों को ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोगों को भी अपनी भव्यता एवं आस्था से अपनी ओर आकर्षित करता है। यहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद मास यानि अगस्त-सितम्बर में माँ नंदा भगवती की पूजा की जाती है। जिसमें दूर-दूर से भक्तजन इस पूजा में सम्मिलित होने के लिए आते हैं। जिसमें विशाल जन-समुदाय एकत्रित होता है।  अपनी भव्यता और विशालता के कारण अब इस पूजा ने एक मेले का रूप ले लिया है जिसे 'पोथिंग का मेला' नाम से जाना जाता है। यहाँ का मंदिर भले ही नवीन शैली में बना हो लेकिन यहाँ हमें प्राचीन काल से स्थापित मंदिर के अन्दर रखे गए शिलाओं के दर्शन होते हैं। मंदिर के आँगन में दो पत्थर के गोले हैं जिन्हें भक्त लोग अपने उठाने की कोशिश करते हैं। कहते हैं कि जो भक्त सच्चे दिल से माँ के दरबार में आकर उठाने का प्रयत्न करता है वह इन गोलों को बड़े ही आसानी से उठा लेता है।





माँ भगवती का यह मंदिर पोथिंग गाँव के मध्य में स्थापित है। जहाँ  सिलंग के वृक्षों के फूलों की खुशबू और हरियाली मानव मन को मोह लेती है। यहाँ पर आकर भक्तजन सुकून का अनुभव करते हैं और हर वर्ष यहाँ माँ के दरबार में आकर माँ के दर्शन करते हैं।  यहाँ की महिमा,भव्यता और लोगों की माँ के प्रति आस्था को देखते हुए इस क्षेत्र को पर्यटन से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यह स्थल सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुडा हुआ है। मंदिर में अनेक धर्मशालाएं बनी हुयी हैं और यहाँ रहने की अच्छी व्यवस्था है।
इस क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।  पोथिंग (कपकोट) से लगभग 05  किलोमीटर की दूरी पर सुकुंडा नामक झील है। इस झील को भी उत्तराखंड पर्यटन विभाग द्वारा विकसित करने की कोशिश की जा रही है। भगवती मंदिर पोथिंग के पूर्व दिशा में चिरपतकोट की पहाड़ी में श्री गुरु गुसाईं देवता का एक मंदिर है और पश्चिम में भी पोखरी नामक स्थान में यही देवता विराजमान हैं। इन पवित्र धार्मिक स्थलों को यदि सरकार का सहयोग मिला तो अवश्य ही उत्तराखंड के पर्यटन में काफी इजाफा हो सकता है।

आप पोथिंग गाँव में स्थित माँ भगवती मंदिर के बारे में और अधिक रोचक जानकारी चाहते हैं तो कृपया इस लिंक पर क्लिककरें।

पोथिंग गाँव में होने वाले नवरात्रियों की कुछ तस्वीरें देखना चाहते हैं तो कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।

     


विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]बैजनाथ धाम : यहीं हुआ था भगवान शिव और पार्वती का ब्याह

बागेश्वर जिले के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक स्थल है बैजनाथ धाम। यह मंदिर बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील के अंतर्गत आता है और यह मंदिर गरुड़ से 02 किलोमीटर की दूरी पर गोमती नदी के किनारे पर स्थित है। बैजनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है। जहां शिव और पार्वती एक साथ विराजमान हैं। कहा जाता है कि शिव और पार्वती का यही विवाह हुआ था। जो व्यक्ति सच्चे मन से यहां भगवान शिव और पार्वती के दर्शन करने आता है। उसकी मन्नत निश्चित तौर पर पूरी होती है।



बैजनाथ मंदिर समूह के पास मिले शिलालेखों से स्पष्ट होता है कि बैजनाथ का नाम कत्यूरी शासनकाल में कार्तिकेयपुर था। वर्ष 1901 तक बैजनाथ छोटा सा गांव था। 12वीं सदी के आसपास कार्तिकेयपुर का नाम बैजनाथ पड़ा। बैजनाथ मंदिर समूह समुद्र सतह से 1130 मीटर की ऊंचाई पर गोमती नदी के किनारे स्थित है।
नागर शैली निर्मित यह प्राचीन मंदिर बैजनाथ और बैद्यनाथ नाम से विख्यात है। जिसमें मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। अन्य 17 गौड़ मंदिरों में केदारेश्वर, लक्ष्मीनारायण, तथा ब्राहगणी देवी प्रमुख है। मुख्य मंदिर का तल विन्यास पंचस्थ है, जिसके अग्र भाग में मंडप निर्मित है। मंदिर का शिखर पूर्व में नष्ट हो गया है। मंदिर समूह का प्रमुख आक र्षण सिस्ट से निर्मित देवी पार्वती की प्रतिमा है। जो अन्य 26 लघु मूर्तियों से सुशोभित है। वास्तु शैली के आधार पर मंदिर समूह की संरचना संभवत: 9वीं से 12वीं सदी के मध्य प्राचीन कार्तिकेयपुरम के कत्यूरी शासकों द्वारा की गई है। मंदिर में दर्शन को हर साल सैकड़ों सैलानी आते हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान पार्वती की आदम कद मूर्ति जब सुबह सफाई होती है। आदमी उसमें अपनी शक्ल दर्पण की तरह देख सकता है। दीगर है कि यहां शिव और पार्वती की पूजा एक साथ होती है।

वर्षभर यहाँ पर्यटकों का आवागमन रहता है। भारत का स्विट्जर्लैंड कहा जाने वाला कौसानी बैजनाथ धाम के समीप है। कौसानी आने वाले पर्यटक बैजनाथ धाम में दर्शन हेतु अवश्य आते हैं। बैजनाथ धाम एक घाटी में होते हुए भी यहाँ से हिमाच्छादित नागाधिराज के दर्शन किये जा सकते हैं।

विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]सुकुण्डा (सुकुण्ड) SUKUNDA : जिसका निर्माण बलशाली भीम के द्वारा किया गया था।
 
चारों ओर से बांज, बुरांश, काफल इत्यादि के वृक्षों से घिरा एक कुण्ड जो सुकुण्ड या सुकुण्डा नाम से जाना जाता है; उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से लगभग 38 किलोमीटर उत्तर में पोथिंग नामक गाँव के समीप स्थित है।  सुकुण्डा  इस गाँव के उत्तर पश्चिम में लगभग 6000  फीट की ऊंचाई पर एक पर्वत की चोटी पर स्थित है।





सुकुण्ड या सुकुण्डा अपने आप ही अपने नाम का अर्थ बता देता है फिर भी मैं अल्प शब्दों में सुकुण्डा के बारे में बताना चाहूँगा। सुकुण्ड दो शब्दों 'सु' और 'कुण्ड' से मिलकर बना है। जिसका अर्थ होता है एक 'सुन्दर कुण्ड'। वास्तव में  यह एक सुन्दर कुण्ड ही है। लोगों में मान्यता है कि हिमालय में निवास करने वाले सभी देवी-देवता यहाँ हर रोज प्रातःकाल स्नान हेतु आते हैं। चारों तरफ से जंगलों से घिरा होने पर भी इस कुण्ड में कहीं गन्दगी नहीं दिखाई देती। लोग कहते हैं कि जब इस कुण्ड में पेड़ों की कोई भी सूखी पत्ती गिर जाती है तो यहाँ पर निवास करने वाली पक्षियां इन पत्तियों को अपनी चोंच द्वारा बाहर निकाल देती हैं।

जन-श्रुतियों के अनुसार इस कुण्ड का निर्माण महाभारत काल में बलशाली भीम द्वारा किया गया था। कहते हैं जब पांडव अज्ञातवास के समय यहाँ से गुजर रहे थे तो उन्हें यहाँ काफी प्यास लग गयी, दूर तक कहीं भी पानी का नामोनिशान नहीं था। तभी भीम ने अपनी गदा से इस चोटी पर प्रहार किया और एक कुण्ड (जलाशय) का निर्माण कर डाला। इसी कुण्ड से प्यासे पाण्डवों ने अपनी प्यास बुझाई थी। इसी कारण आज भी इस कुण्ड को धार्मिक दृष्टि से देखा जाता है। इस कुण्ड में स्नान करना, कुछ छेड़-छाड़ करना सख्त मना है।

जहाँ यह कुण्ड स्थित है वहां का सम्पूर्ण क्षेत्र सुकुण्डा कहलाता है। सुकुण्डा एक पहाडी की चोटी पर स्थित होने के कारण यहाँ से हिमालय की सम्पूर्ण पर्वत श्रृंखलाओं का दर्शन किये जा सकते हैं। भारत का स्विट्जर्लैंड कहा जाने वाला प्रसिद्द पर्यटक स्थल कौसानी और सुकुण्डा की ऊंचाई लगभग बराबर है। सुकुण्डा अभी तो शैलानियों की पहुँच से तो दूर है लेकिन वर्तमान में सुकुण्डा को एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने भरपूर कोशिश की जा रही है। कपकोट और पोथिंग गाँव से सुकुण्डा को सड़क मार्ग द्वारा जोड़ने की योजना है। सरकार इस स्थल को विकसित करने का प्रयास करे तो निश्चित ही सुकुण्डा एक प्रसिद्द पर्यटक स्थल के रूप में उभरकर विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाएगा।

धन्यवाद

विनोद सिंह गढ़िया




'SUKUNDA' Reservoir at Pothing (Bagehswar) Uttarakhand



Snowfall at Tourist Place Sukunda Bageshwar

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