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Tourist Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटक स्थल

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विनोद सिंह गढ़िया:
पर्यटकों को आकर्षित करता चंद्रबनी



दून के निवासियों के साथ ही बाहर से आने वाले पर्यटकों के लिए चंद्रबनी मंदिर विशेष आकर्षण का केंद्र है। यह दून से तकरीबन छह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ प्राचीन काल से स्थित गौतम कुंड के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा है। मान्यता है कि यहाँ महर्षि गौतम ने तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर माँ गंगा प्रकट हुई थीं। एक अन्य मान्यता के अनुसार किसी समय देवी अहिल्या अपनी पुत्री अंजना के साथ यहाँ आयी थीं। यह वही माँ अंजना हैं, जिनसे बाद में हनुमान जी की उत्पत्ति मानी जाती है। बैसाखी के मौके पर यहाँ तकरीबन दो से तीन दिन तक चलने वाले एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें गढ़वाली, कुमाऊँनी, जौनसारी गीत-नृत्यों की भरमार रहती है। मेले के आयोजन के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है। इस मेले में राज्य भर से आये कलाकारों के अलावा स्थानीय कलाकारों का मजमा अपनी प्रस्तुतियाँ देने के लिए लगता है, जिसमें रफ़ल्मों के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्य पर आधारित प्रस्तुतियाँ भी आकर्षण का केंद्र होती हैं। दूर-दूर से आये हुए लोग इसमें शरीक होने के लिए पहुँचते हैं। गौतम कुंड में स्नान करने का अपना महत्व है। कहा जाता है कि इस कुंड में डुबकी लगाने से मनुष्य के समस्त कष्टों, पापों का नाश होता है।
प्रस्तुति: युवान ब्यूरो, देहरादून

C.S.Mehta:
                                                            जय माँ भगवती


pithodagad  जनपद के होकरा नामक गांव का एक नजारा है आप देख रहे है  गांव के बिच में पेड़ो का एक घेरा सा बना है जहाँ पर माँ भगवती माता का प्रशिद्ध मंदिर स्थित है जहाँ पर चेत के महीने में अष्टमी के दिन लोग हजारो की  संख्या में दर्शन करने के लिए आते है होकर गांव में स्थित इस मंदिर का शेत्रफल लगभग ५००  वर्ग मीटर  में फैला है और यह मंदिर चारो ओर से पेड़ो से ढका है बागेश्वर जनपद से लगभग ७० कीमी. की दूरी पर है

 
   

Bhishma Kukreti:
      उत्तराखंड की झीलें (Lakes of Uttrakhand)
                                                                         (गढ़वाल क्षेत्र )
            [Lakes of Uttrakhand ;lakes of Chamoli Garhwal; lakes of Rudraprayag;lakes of Kedar valley;lakes of Tihri Garhwal ; lakes of Uttarkashi ; lakes of Dehradun; lakes of Haridwar ;lakes of Pithoragarh;lakes of Dwarhat; lakes of Champawat ; lakes of Udham Singh Nagar; lakes of Nainital;lakes of Bageshwar; lakes of Almora series]
                                                                       डा. बलबीर सिंह रावत
शुद्ध , साफ़, शीतल जल की झीलें किसी भी क्षेत्र की सुन्दरता को पूर्ण करती है. पर्वतीय क्षेत्रों की बदलती दृश्यावलियों में नीले, कांच सी साफ़, पारदर्शी, पानी वाली छोटी बड़ी झीलें तो इन दृश्यावलियों को स्वर्गीय आनद देने वाली  बना देती हैं. उत्तराखंड के उत्तरी भाग को प्राकृति ने झीलों से भरपूर बनाया है. अकेले उत्तरकाशी, चमोली और टेहरी जिलों में १८८० मीटर  से ५३५० मीटर  की ऊचाइयों पर १२ छोटी बड़ी झीलें स्थित हैं। इन में से सबसे बड़ी झील रूप कुण्ड है जो चमोली जनपद में, समुद्र ताल से ५३५० मीटर की ऊचाई पर स्थित है और इसका क्षेत्रफल ७० वर्ग किलोमीटर है. इस झील का पौराणिक और ऐतिहासिक
महत्व है. इसका अधिकांश भाग बर्फ से जमा रहता है, केवल एक छोटे से हिस्से में जल एक कुंड के रूप में दिखता है। यह झील हिमालय क्षेत्र के सौन्दर्यम स्थलों में से एक है। इस के किनारे सैकड़ों वर्ष पुराने नर कंकाल बिखरे पड़े हैं जिनके बारे में कुछ सटीक पता नहीं है की किनके है और वे यहाँ क्यों आये थे। यह स्थान नंदा जात यात्रा की पूजा का यह एक केंद्र बिंदु भी माना जाता है।पर्यटन की दृष्टि से  रूप कुंड एक ऐसी ट्रेल पर स्थित है जो बेदनी बुग्याल, ब्रह्म ताल, और भैन्कल ताल का क्षेत्र बनाता है। 
भैंकल  ताल २५०० मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल का नाम नागदेव राजा भेन्क्ल के नाम पर रखा गया है और इसी लिए इसका पौराणिक महत्व भी है. झील के चारों और सघन बन हैं जिनमे भोज पत्र के , बुरांस के , देवदार के और रागा-थुनेर के बृक्ष खड़े हैं। पक्षियों का कलरव, शीतल हवा, नयनाभिराम दृश्यावलियां सुध बुध खोने की लिए इतनी अधिक हैं की मनुष्य अपने को भूल कर प्रकृति में खो जाने को विवश हो जाता है। इस झील के चारों और टूटे तीरों के असंख्य टुकड़े आज भी पड़े हुए दिखाई देते हैं, कई पेड़ों पर चुभे तीर भी देखे जा साकते हैं। . इस से यह साबित होता है की यहाँ पर कभी कोइ भीषण युद्ध लड़ा गया होगा जिसके बारे में कोइ जानकारी नहीं है। इस ताल में मछलिया हैं, पास में एक मंदिर भी है और एक पेड़ पर मनोती की घंटिया भी टंगी हैं।. इन सब से यह साबित होता है की यह स्थान प्राचीन काल से ही पूजा का स्थान रहा है। इस रमणीक झील से आगे तेलंगी बुग्याल है और उससे आगे बेदनी बुग्याल। इन बुग्यालों के मखमली घास, रंग बिरंगे फूल,औषधीय जड़ी -बूटियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं।
इस क्षेत्र में आने के लिए र्हिषिकेश , कोटद्वार और रामनगर से करणप्रयाग  होकर नंदप्रयाग अना होता है। यहाँ से आगे कनौल , सुतौल और मूना हो कर पहुंचा जा सकता है. अल्मोड़ा से ग्वालदम , बाण , मुन्दौली होकर तथा करण प्रयाग से थराली , देवाल बाण हो कर भी यहाँ पहुचा जा सकता है. मूना नमक स्थान पर एक डाक बँगला भी है जिसे अंग्रेज जिलाधीश श्री मर्नौड ने बनवाया था
इतने  सुन्दर प्राकृतिक दृश्यावलियों  और ऐतिहासिक - धार्मिक स्थलों के बारे में इतने कम जानकारी का होना हमारी सरकार और विश्वविद्यालयों की उदासीनता को उजागर करता है। आशा है की इस लेख को पढने के बाद इन स्थलों का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन होगा और सही ऐतिहासिक जानकारी जुताई जा सकेगी . साथ ही इस प्रकार पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा की स्थलों की सुन्दरता और प्राकृतिक परिवेश पर कोइ हानिकारक प्रभाव नहीं पडेगा। ( इस लेख को लिखने के लिए डा. रणबीर सिंह चौहान जे की पुस्तक "गढ़वाल के गढ़ों का इतिहास  एवं पर्यटन के सौन्दर्य स्थल " से जानकारी, साभार , ली गई है)
dr.bsrawat26@gmail.com      .

-- Lakes of Uttrakhand ;lakes of Chamoli Garhwal; lakes of Rudraprayag;lakes of Kedar valley;lakes of Tihri Garhwal ; lakes of Uttarkashi ; lakes of Dehradun; lakes of Haridwar ;lakes of Pithoragarh;lakes of Dwarhat; lakes of Champawat ; lakes of Udham Singh Nagar; lakes of Nainital;lakes of Bageshwar; lakes of Almora series to be continued...

Hisalu:
पांडवखोली
में हैं पांडवों की स्मृतियां

रानीखेत। द्वाराहाट के कुकूछीना से मात्र साढ़े तीन किलोमीटर चढ़ाई पर स्थित पांडवखोली में पांडवों के अज्ञातवास की स्मृतियां मौजूद हैं। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने यहां 13 दिन गुजारे थे, लेकिन सरकार की अनदेखी से आज तक पांडवखोली को पर्यटन के लिहाज से वह दर्जा नहीं मिल पाया है जो रानीखेत, कौसानी और नैनीताल को है। हालांकि पथ भ्रमण संघ के सहयोग से विदेशी श्रद्धालुओं की आवाजाही यहां जरूर बढ़ी है।
पांडवखोली रानीखेत से 60 किमी तो द्वाराहाट से लगभग 22 किमी दूरी पर स्थित है। पांडवखोली के लिए द्वाराहाट से बस या छोटे वाहनों से करीब 18 किमी कुकूछीना जाना पड़ता है। कुकूछीना से साढ़े तीन किमी की खड़ी पैदल चढ़ाई चढ़ने के बाद दिव्य और एकांत स्थल पांडवखोली के दर्शन होते हैं। किवदंती है कि द्वापर युग में जुए में राजपाट हारने के बाद जब पांडवों को अज्ञातवास हुआ तो वे द्रोपदी के साथ यहां भी आए और करीब 13 दिन तक रहे। पांडवों के प्रवास के चलते ही इसका नाम पांडवखोली पड़ा। यहां पर बुग्यालनुमा स्थल (ऊंचाई वाले इलाकों में घास के मैदान) भी है जिसे भीम की गुदड़ी कहा जाता है। इसी स्थल पर भीम आराम करते थे।
नेशनल इंटर कालेज के वरिष्ठ प्रवक्ता ओम प्रकाश शाह ने बताया कि कुमाऊं के इतिहास में लेखक बद्री दत्त ने पांडवखोली का जिक्र किया है। जिसमें कहा गया है कि अज्ञातवास के दौरान भीम ने चौखुटिया के पास तड़ागताल में अपना बिस्तर धोया और सुखाने के लिए उसे पांडवखोली के जंगल में डाल दिया जिसने बाद में बुग्याल का रूप ले लिया।
करीब 50 साल पहले महंत बलवंत गिरि महाराज ने यहां बने एक मंदिर का पुनर्निर्माण कराया। इस मंदिर से हिमालय और सूर्योदय-सूर्यास्त के मनभावन दृश्य देखने को मिलते हैं। शांत वातावरण होने के कारण बलवंत गिरि महाराज और उनके शिष्य यहां ध्यान लगाते थे। उनके ब्रह्मलीन होने के बाद पथ भ्रमण संघ ने इस क्षेत्र को अपने प्रयासों से थोड़ा विकसित किया। महंत बलवंत गिरि की पुण्यतिथि पर हर साल यहां विशाल भंडारे और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। पथ भ्रमण संघ के अध्यक्ष हरीश शाह का कहना है कि लोगों के सहयोग से यहां ध्यान मठ टावर, ध्यान मठ कुटिया आदि का निर्माण किया गया है। पथ भ्रमण संघ के लोग रानीखेत आने वाले देशी-विदेशी श्रद्धालुओं को पांडवखोली के बारे में बताते हैं। जिससे श्रद्धालु एक बार वहां जाते हैं तो अगली बार स्वयं ही पहुंच जाते हैं। इस तरह वहां विदेशी श्रद्धालुओं की आवाजाही बढ़ी है।
नैनीताल, रानीखेत समेत पर्यटन शहरों में कुमाऊं मंडल विकास निगम की ओर से देशी-विदेशी पर्यटकों को उत्तराखंड के प्रसिद्ध स्थलों की जानकारी दी जाती है। उनके पास पर्यटन स्थलों का एक मानचित्र होता है। जिसमें आसपास के सभी पर्यटन स्थलों की विशेषता के बारे में दर्शाया जाता है। पर्यटक इस मानचित्र के आधार पर क्षेत्र भ्रमण करते हैं। लेकिन मानचित्र में पांडवखोली का नाम दर्ज नहीं होने से पर्यटक और श्रद्धालु रानीखेत से सीधे अल्मोड़ा या कौसानी निकल जाते हैं।
पांडवखोली में पर्यटन विभाग ने रैन बसेरा और ध्यान मठ केंद्र बनाए हैं। इसे पथ भ्रमण संघ को हस्तांतरित कर दिया गया है। पर्यटन विकास के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
- टीएस चम्याल, सहायक पर्यटन अधिकारी, रानीखेत।
पथ भ्रमण संघ अध्यक्ष हरीश शाह ने कहा कि वे लोग कुकूछीना से रोपवे लगाने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं। साथ ही कुकूछीना से पांडवखोली तक साढ़े तीन किमी चढ़ाई का जो रास्ता है वह काफी पथरीला और खतरनाक है। जिससे लोग यहां आने से कतराते हैं।


Source: http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20140129a_004115022&ileft=227&itop=230&zoomRatio=136&AN=20140129a_004115022

अन्नू रावत (9871264699):
Lansdowne is the nearest hill station from Delhi and can be reached from Delhi by either road or train. The nearest railway station is Kotdwara at a distance of 41 km and about 250 km from Delhi thus making it a perfect weekend getaway during whole year.

The relaxing ambience and big terraces at rooftops at Lansdowne Hotels provides you an enchanting experience in the lap of nature where you can set yourself free from the maddening rush of the cities.

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