Author Topic: Untracked Tourist Spot In Uttarakhand - अविदित पर्यटक स्थल  (Read 62744 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

River Bhagirathi, one of the biggest tributaries of Ganga,  originates from Trans-Himalayan region of Nelang-Jadhong-Pulumsumdu (Jahnavi-Jadganga sub-watershed) and Greater-Himalayan regions of Gangotri-Gaumukh (upper most Bhagirathi sub-watershed), Jalandhrigad (originating from 19650 ft high peak of Lamkhaga and 17330 ft high pass of same name on Himanchal border), Pilangad (originating from Shahastratal situated at 15300 ft) and Khatling glacier area (upper most Bhilangana sub-watershed). The Trans-Himalayan region of Nelang-Jadhong-Pulumsumdu, the home of the endangered Bhotia tribe called JAD, is bordered by high pass of Thagla (19127 ft), Tsang Chokla (19345 ft), Mulingla (18600 ft) and Sarup Choti (20040 ft) on the north by Greater Himalayan peaks on Mana (22298) ft), Srikailas  (22742 ft), Matri (22060 ft) and Kalidhang (19640 ft) on the south. Glaciers of Srikailas, Surji Bamak, Nilapani and Lambigad are located in this region. It comprises of Trans-Himalayan tributaries of Bhagirathi River called Jadhandgad, Jahnavigad, Jadganga and Managad. The Gangotri-Gaumukh region of Greater Himalayan (inner Trans-Himalaya) is located on the south of Trans-Himalyan region and on its eastern & southern boundary are located the high Himalayan peaks of Satopanth (23420 ft), Chaukhamba (23190 ft), Kharchakund (21695 ft), Jogin (21200 ft) Jaunli (21760 ft), Gangotri-group (21680 ft) and Rudugaira (19090 ft). Glaciers called Chaurangi, Gangotri, Ratavan, Kirti, Bhrigupant and Kedarganga etc are located in this area. The famous Hindu temple of holly Gangotri, along with snout of Gangotri glacier called Gaumukh and Tapasthali of Raja Bhagirath, i.e. Bhagritath-Shila & Tapasthali of Parvati, i.e. Gaurikund also situate there. Jahnavi is supposed to be the river where the Ashram of Saint Jahnu was located, who imponded Ganga in his Kamandal as the Pauranic scriptures say. Jalandharigad joins Bhagirathi at Harsi. Glaciers of Karanpani and Ratna Bamak are located in its catchment on the south of which is located 19270 ft high pass of Dumdharkhandi. Pilangad joins Bhagirathi at village Malla and its catchment is situated between 18754 ft high peak of Dropadi-Ka-Danda on the north and 13300 ft high Bugyal of Kyarki & 12523 ft high Bugyal of Kushkalyan on the south. The biggest tributary of Bhagirathi called Bhilangana having its confluence at the dam site of Tehri, originates from Khatling glacier. Khatling area is situated exactly south of the Gangotri-Gaumukh region and west of valley of Kedarnth and is surrounded by 21760 ft high peak of Jaunli on the west and Chauki-patangriyan Dhar range on the reast besides the peaks of Kedarkanta, Bhartekanta, Sphatikling, Jogin and Gangotri group on the north.
The geographical area of the region is approximately 4.7 lakh ha which is much more than half of the total area of the basin (62%). All the glaciers and peaks covered by perennial snow are situated in this region. Greater Himalayan region receive heavy snow fall during winter and rainfall during summer. As such this area is susceptible to avalanches and land-slides. But the Trans-Himalayan area receives much less snow or rainfall and as such is dry and arid. In both the areas grow bushes or grass only, that too in patches. The region is very thinly populated but immigrating herdsmen use this region for extensive grazing and pilgrims visit shrines like Gangotri in large number during summer. Since 1960s the area became vulnerable to foreign aggression and for national defence needs security forces had to be deployed in the region all the year-round. This has increased fuel requirement, especially during winter resulting in greater pressure on the forest for firewood. The project of Maneribhali Stage-1 is commissioned and Stage-2 is in progress in this region. Few projects such as Lanka, Bhatwari etc have been approved recently.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
पिथौरागढ़।॒जिला मुख्यालय के नजदीक चंडाक॒में २००॒मीटर लंबी गुफा॒का पता चला है। गुफा॒के भीतर शिलाओं में शिवलिंग,॒अष्टकमल, गणेश, शंख समेत तमाम प्रकार की आकृतियां बनी हुई हैं। गुफा॒का सबसे बड़ा आकर्षण गुफा॒के भीतर स्थित जलकुंड॒है। जिसमें अथाह जल जमा है। गुफा॒को देखने के लिए॒लोगों का तांता लगा हुआ है। क्षेत्र के लोगों ने गुफा॒का विकास करने की मांग उठाई है।
चंडाक॒स्थित पशुपतिनाथ॒मंदिर से बमुश्किल १००॒मीटर की दूरी पर मिली इस गुफा को काफी प्राचीन माना जा रहा है। गुफा॒प्रकाश में आने की कहानी भी काफी रोचक है। क्षेत्र केलोगों॒ने बताया कि काफी साल पहले तक इस स्थान पर एक मुहाना था जो कुछ समय बाद झाड़ियों और घास से दब गया। एक दिन बात-बात॒में उस मुहाने की चर्चा छिड़ने पर क्षेत्र के लोगों ने मुहाने को ढूंढने और उसके भीतर प्रवेश करने का निर्णय लिया। तीन रोज पहले क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता त्रिलोक सिंह बिष्ट केनेतृत्व॒में लोगों ने मुहाने की सफाई कर उसके भीतर प्रवेश किया।
त्रिलोक सिंह बताते हैं कि अंदर प्रवेश करते ही वह लोग आश्चर्य में पड़ गए।॒भीतर एक कुंड में काफी जल जमा था। गुफा॒की छत से पानी टपक रहा था। देवी, देवताओं की मूर्तियों से पटी गुफा॒में पूजा-अर्चना॒शुरू हो गई है। सोमवार को जिला पंचायत उपाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह बोरा ने गुफा॒को देखने पहुंचे। उन्होंने गुफा॒को अद्भुत बताते हुए कहा कि गुफा॒के विकास के लिए॒हर संभव प्रयास किए॒जाएंगे। इस दौरान ग्राम प्रधान पुष्पा देवी, होशियार सिंह, भगवान सिंह बिष्ट, प्रकाश जोशी, मुकेश कांडपाल, भूपेंद्र सिंह, शंकर सिंह, आलोक सिंह मौजूद थे। राजकीय संग्रहालय केप्रभारी॒डा. डीएन तिवारी ने कहा है कि वह कल मंगलवार को खुद गुफा॒के निरीक्षण को जा रहे हैं। उसकेबाद॒ही इसके संबंध में कोई जानकारी दे पाएंगे।
 
http://www.amarujala.com/city/Pittauragarh/Pittauragarh-5716-117.html

Mayank Chand Rajbar

  • Jr. Member
  • **
  • Posts: 88
  • Karma: +1/-0
I will definitely visit this cave cum temple once i am in Pithoragarh.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कुमाऊं का एक सुंदर हिमशिखर बलजूरी पीक 

अब तक इतने सारे पर्वतों के बारे में पढ़कर तुम समझ गये होगे कि हिमालय की पर्वतमालाओं में सैकड़ों ऊंचे पर्वत हैं। जब हम पहाड़ों की सैर पर जाते हैं तो पहले छोटे अर्थात् कम ऊंचाई वाले पहाड़ देखने को मिलते हैं। वहां तक सड़कें भी बनी होती हैं, इसलिए लोगों का आना-जाना सरल होता है।
 
 

लेकिन उनसे आगे बढ़ने पर कुछ अधिक ऊंचे पहाड़ दिखाई देते हैं। जहां लोगों की आबादी बहुत कम होती है और वहां की सैर कुछ हिम्मत वाले लोग ही करते हैं। इन सबके बाद इतने ऊंचे पहाड़ों का क्रम आता है, जहां हमेशा बर्फ जमी होती है। पता है, वहां की कंपकपाती ठंड में जाने की हिम्मत आम आदमी नहीं कर पाते। हिमालय का एक हिमशिखर है, ‘बलजूरी पीक’।
इसकी ऊंचाई बहुत ज्यादा नहीं है, इसलिए अनुभवी ट्रैकर वहां जाने को एकदम तैयार हो जाते हैं। बलजूरी पीक उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित है। समुद्रतल से इस शिखर की ऊंचाई 5922 मीटर है। बड़े होकर तुम हिमशिखरों के प्रथम अनुभव के लिए बलजूरी पीक जा सकते हो। यह हिमशिखर कुमाऊं क्षेत्र में स्थित पिंडारी ग्लेशियर के पास स्थित है। पता है, पिंडारी ग्लेशियर एक प्रसिद्ध ट्रैकिंग डेस्टिनेशन है।
अब हम तुम्हें यहां तक पहुंचने के रास्ते के बारे में आपको बताते हैं। इसके लिए पहले काठगोदाम होकर ‘सांग’ तक बस द्वारा पहुंचना होता है। वहीं से लोग अपना सामान पीठ पर लाद कर पैदल चढ़ाई शुरू करते हैं। यानी एडवेंचर की शुरुआत।

6-7 घंटे की चढ़ाई के बाद ट्रैकर्स ‘डाकुरी पास’ पहुंचते हैं। उस स्थान से सैलानियों को त्रिशूल पीक, नंदाकोट और देवतोली पीक का व्यू देखने को मिलता है। उसके बाद 2650 मीटर की ऊंचाई पर द्वाली नामक स्थान आता है। मार्ग में खाती गांव में पर्वतों के ग्रामीण जीवन को निकट से देखने का अवसर मिलता है। वहीं मार्ग में सीढ़ीनुमा खेत और छोटे छोटे सुंदर झरने भी बहुत अच्छे लगते हैं।

उसके बाद 3250 मीटर की ऊंचाई पर फुरकिया पहुंचते हैं, जहां कुमाऊं के घने जंगलों से होकर आगे बढ़ने का रोमांचक अनुभव होता है। फुरकिया से 3-4 घंटे में पिंडारी ग्लेशियर पहुंचा जा सकता है। यह विशाल ग्लेशियर ‘पिंडार गंगा नदी’ का उद्गम स्थल है, जिसे देखने का एक अलग ही रोमांच है। पिंडारी ग्लेशियर से कुछ पहले ही एक मार्ग बलजूरी पीक की ओर जाता है। यहां से आगे सैलानियों को स्नो ट्रैकिंग करनी होती है।
यही नहीं, मार्ग में कई जगह रस्सों के सहारे पहाड़ों में चढ़ना होता है और रैपलिंग भी करनी पड़ती है। बलजूरी पीक तक पहुंचने से पूर्व तीन स्थानों पर कैम्प स्थापित करके एक-दो दिन वहां की जलवायु के अनुरूप अभ्यस्त होना पड़ता है। उसके बाद हिम्मती लोग बर्फीली हवाओं से जुझते हुए शिखर पर फतह प्राप्त करते हैं।
बलजूरी पीक का अभियान प्रसिद्घ ट्रैकिंग क्लबों के अलावा उत्तराखंड के कुछ एडवेंचर टूर आपरेटरों के सहयोग से आयोजित किया जा सकता है। इसका उपयुक्त समय मई-जून के अलावा सितंबर से नवंबर तक होता है।
 
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/50-50-145654.html

विनोद सिंह गढ़िया

  • Moderator
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0


Baljuri Peak ( Bageshwar )

विनोद सिंह गढ़िया

  • Moderator
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0


The morning sun on Baljouri Peak from Dhakuri

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
संवारे जाएंगे लुके-छिपे पर्यटक व धार्मिक स्थल
==================================

प्रदेश के लुके-पिछे पर्यटक स्थल और ऐतिहासिक महत्व के धार्मिक स्थल संवारे जाएंगे। इसके लिए प्रदेश सरकार की कसरत रंग लाई। केंद्र सरकार ने जागेश्वर मंदिर और बाबा हेड़ाखान आश्रम समेत कई अन्य स्थलों को सजाने और संवारने के लिए २१ करोड़ रुपये मंजूर कर दिए हैं।
ये सभी कसरत तीन परियोजनाओं के लिए की गई थी। केंद्र सरकार ने अल्मोड़ा-जागेश्वर सांस्कृतिक विरासत परियोजना के लिए पांच करोड़ रुपये दिए हैं। प्रमुख सचिव (संस्कृति, पर्यटन, धर्मस्व) राकेश शर्मा ने कहा कि इसके साथ ही कुमाऊं के कम ख्याति वाले पर्यटक स्थलों भिकियासैण-अल्मोड़ा-बागेश्वर डेस्टिनेशन के लिए भी केंद्र सरकार को प्रस्ताव दिया था। इसे भी मंजूर कर लिया गया है।
केंद्र सरकार इसे विकसित करने के लिए भी आठ करोड़ रुपये देगी। नैनीताल-भीमताल-नौकुचियाताल-हेड़ाखान आश्रम के लिए भी आठ करोड़ रुपये देने के लिए राजी हो गई है। परियोजना में इन स्थलों पर पार्किंग, जनसुविधाएं, स्वागत द्वार, पर्यटकों के मनोरंजन के लिए फिश एंगलिंग और अन्य सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी। जागेश्वर और हेड़ाखान मंदिर आश्रम की देश-दुनिया में काफी ख्याति है। इसे देखते हुए सरकार ने इन्हें विकसित करने का फैसला किया। प्रमुख सचिव शर्मा ने उम्मीद जताई कि इन परियोजनाओं के मंजूर होने से प्रदेश में पर्यटक अधिक तादाद में आएंगे।

http://www.amarujala.com/state/Uttrakhand

विनोद सिंह गढ़िया

  • Moderator
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
लेक सिटी के पास 3500 वर्ष पुरानी गुफा

पर्यटन स्थल के रूप में मशहूर लेक सिटी से महज 17 किलोमीटर दूर बाना गांव के पास कुदरत की एक और नियामत का पता चला है। एक घुमक्कड़ की नजरों में आई अद्भुत गुफा को देख वैज्ञानिक भी दंग हैं। चार मीटर लम्बी और दो मीटर चौड़ी गुफा में ढे़ड दर्जन से अधिक शिव लिंग हैं। हैरत वाली बात यह है कि आम तौर पर प्राकृतिक रूप से मिलने वाले शिवलिंग लाइम स्टोन पर बने होते हैं लेकिन इस गुफा में सैंड स्टोन पर बने हुए हैं।
नैनीताल का निकटवर्ती बाना गांव अचानक ही चर्चाओं में आ गया है। वजह अदुभुत गुफा का मिलना। स्थानीय निवासी घुमक्कड़ दीपक बिष्ट की नजर सबसे पहले इस गुफा पर पड़ी। उसने वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी। यूजीसी के वैज्ञानिक डा.बीएस कोटलिया ने गुफा का मुआयना किया तो आश्चर्य किए बिना नहीं रह सके। उन्होंने बताया कि गुफा 3,500 से 4,000 वर्ष पुरानी हो सकती है। कोटलिया ने उत्तराखंड में करीब 40 गुफाओं पर अध्ययन किया गया है। उनका कहना है कि प्राकृतिक रूप से शिव लिंग चूने के पत्थर पर बनते हैं मगर इस गुफा का मुहाना सैंड स्टोन पर बना है और भीतर शिव लिंग बने हैं, जो बेहद आश्चर्यजनक बात है। ऐसा हो सकता है कि गुफा के भीतर जिस पानी से शिव लिंग बने हैं वह पानी केल्सियम कार्बोनेट युक्त हो। डा.कोटलिया के मुताबिक शिव लिंग को वरटिकली काटने से कई रिंग दिखाई देंगे। एक वर्ष में एक रिंग बनता है लिहाजा रिंग की संख्या गुफा की आयु बता देगी। शिव लिंग बनने के लिए पानी जिम्मेदार होता है। पानी के अधिक या कम होने की दशा में शिव लिंग की बनावट पर भी प्रभाव पड़ता है। इन तमाम अध्ययनों के बाद जलवायु में हुए परिवर्तन के विषय में जाना जा सकता है।
गुफा का मुआयना करने गए दल में पर्यावरणविद् प्रो. अजय रावत, ग्रुप कंमाडर कर्नल नीरज तिवारी, संजय साह आदि शामिल थे।

सल्फर का भंडार भी है मौजूद
बाना के समीप अस्तित्व में आई गुफा के समीप बहु उपयोगी सल्फर का बड़ा भंडार भी हो सकता है। गुफा के समीप सल्फर का शानदार बहता हुआ सोता इस बात का संकेत है। बता दें कि सल्फर एक महत्वपूर्ण ऐसिड है जिससे सल्फ्यूरिक ऐसिड का निर्माण किया जाता है। साथ ही सल्फर का प्रयोग डाई, रंगों, दंत मंजन के साथ त्वचा से संबंधी रोगों के इलाज समेत कई महत्वपूर्ण औषधियों में किया जाता है।
http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

विनोद सिंह गढ़िया

  • Moderator
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 1,676
  • Karma: +21/-0
गुमनामी में पड़े दर्शनीय स्थल

बागेश्वर जिले के कई दर्शनीय स्थल आज भी गुमनामी में पड़े हैं, इसकी वजह विभाग की उदासीनता है। महोली गांव के ऐतिहासिक बीरखंभों को ही लीजिए, यहां आज भी ऐतिहासिक सात बीरखंभे मौजूद हैं। सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस रमणीक स्थल से पूरा क्षेत्र दिखाई पड़ता है, इसके अलावा भी काफी कुछ यहां देखने लायक है, लेकिन प्रचार-प्रसार एवं संसाधनों के अभाव में यह स्थल वीराने में तब्दील होता जा रहा है।


कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती गांव महोली के धौभिड़े में ऐतिहासिक सात बीरखंभे आज भी मौजूद हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह एक ही रात में बनाए गए थे, इसके अलावा यहां से गनेठिया नदी में जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। अभी तक ज्ञात बीरखंभों में कोई भी बीरखंभे मूल अधिष्ठान में विद्यमान नहीं है। एक मात्र धौभिड़े के बीरखंभे अपने मूल स्थान में खड़े हैं। इस स्थान पर दो चबूतरे भी विद्यमान हैं, साथ यह सातों खंभे अपने स्थान पर क्रमबद्ध हैं। इस जगह की लंबाई तथा चौड़ाई आठ बाई तीन मीटर है। बीरखंभे के बाम पार्श्व में तीन मीटर अर्द्धव्यास तथा 2.75 मीटर अर्द्धव्यास का दूसरा चबूतरा एक क्रम में निर्मित है। यह एक ऐसा रमणीक स्थान है कि यहां से पूरा क्षेत्र दिखता है। मोटर मार्ग से बमुश्किल 100 मीटर दूरी पर स्थित इन खंभों को आज भी पर्यटकों की दरकार है। बीरखंभे सामान्य अधिष्ठान आठ गुणा तीन माप में स्थापित बीरखंभों का पास क्रमश: 1.45 सेमी से दो मीटर तक है। चौड़ाई 32 से 45 सेमी तक है। आधा भाग अपने मूल अधिष्ठान में चतुष्कोणीय जहां अष्टकोणीय जिसे सामान्यतया एक लंबी मोटी पैनी रस्सी से बांटा गया है। अलंकृत रेखा रस्सियों में उकेरी गई हैं। इस बीम के दोनों ओर कण भाग में एक-एक दंडरूपा गोल रेखा बनाकर अलंकृत किया गया है। उर्ध्व भाग में चतुष्कोणीय तथा प्रत्येक भाग में अलग-अलग आकृतियां उकेरी गई हैं, जिसमें चर्तुभुजी तलवार धारी युवक द्विभुजीय समग्र मुद्रा में लंबा कोट पहना दोनों पार्श्वा के कटिभाग में रखा, एक पैनी दृष्टि में रखा हुआ प्रदर्शित है। चौथे भाग में द्विभुजा एक धावक का चतुष्कोणीय में उकेरा गया है। इसमें बनी सभी मानवाकृतियों के सिर में सिस्त्राण और कानों में कुंडल पहने सभी समस्त आभूषणों से अलंकृत है। शिखर भाग में एक रेखांकित पद से अमृत घट के ऊपर विद्यमान हैं। सतापथ्य कला के आधार पर यह 15 वींशती ईसा के प्रतीत होते हैं। सातों खंभों में एक ही कला उकेरी गई हैं। बीरखंभ शब्द दो शब्द से मिलकर बना है। बीर और खंभ अर्थात वीर स्तंभ रेगड़ स्तंभ के आलेख में लेख मिलता है, जिसमें शक 1316 और 1324 के साथ ही श्री राजा ज्ञान चंद शुभम प्रथम में राम मेहता द्वितीय में श्री मेहता थेबू को रौत मेहता ले करायो आदि भी अंकित है। डा. राम सिंह ने काली कुमाऊं के राग-भाग में इसका उल्लेख किया है। इसी तरह डा. यशोधर मठपाल भी इन्हीं बीरखंभों को कीर्ति स्तंभ मानते हैं। पुरातत्व विभाग के डा. चंद्र सिंह चौहान इन्हें बीरखंभ मानते हैं उन्होंने कहा कि विभाग ने इनके संरक्षण के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है, जबकि जर्मन अध्यता जोठाईमर इन्हें वीरशिवा मानते हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तरी भारत में कहीं-कहीं गोवर्द्धन स्तंभ वीर स्तंभ, दक्षिण भारत में नाडकल, राजस्थान में सती स्तंभ आदि नामों से जाना जाता है। विश्व में प्रचलित स्थानीय भाषा के अनुसार विभिन्न नामों से नामित बीरखम आज भी कुमाऊं में लगभग 100 से अधिक मिल चुके हैं। कुमाऊं में बिरखम नाम के गांव भी देखने को मिलते हैं।

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
मै इस जगह में कई बार गया हूँ.. वास्तव में यह ek un-touched place.

गुमनामी में पड़े दर्शनीय स्थल

बागेश्वर जिले के कई दर्शनीय स्थल आज भी गुमनामी में पड़े हैं, इसकी वजह विभाग की उदासीनता है। महोली गांव के ऐतिहासिक बीरखंभों को ही लीजिए, यहां आज भी ऐतिहासिक सात बीरखंभे मौजूद हैं। सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस रमणीक स्थल से पूरा क्षेत्र दिखाई पड़ता है, इसके अलावा भी काफी कुछ यहां देखने लायक है, लेकिन प्रचार-प्रसार एवं संसाधनों के अभाव में यह स्थल वीराने में तब्दील होता जा रहा है।


कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती गांव महोली के धौभिड़े में ऐतिहासिक सात बीरखंभे आज भी मौजूद हैं। ग्रामीणों के अनुसार यह एक ही रात में बनाए गए थे, इसके अलावा यहां से गनेठिया नदी में जाने के लिए सीढ़ियां भी बनी हैं। अभी तक ज्ञात बीरखंभों में कोई भी बीरखंभे मूल अधिष्ठान में विद्यमान नहीं है। एक मात्र धौभिड़े के बीरखंभे अपने मूल स्थान में खड़े हैं। इस स्थान पर दो चबूतरे भी विद्यमान हैं, साथ यह सातों खंभे अपने स्थान पर क्रमबद्ध हैं। इस जगह की लंबाई तथा चौड़ाई आठ बाई तीन मीटर है। बीरखंभे के बाम पार्श्व में तीन मीटर अर्द्धव्यास तथा 2.75 मीटर अर्द्धव्यास का दूसरा चबूतरा एक क्रम में निर्मित है। यह एक ऐसा रमणीक स्थान है कि यहां से पूरा क्षेत्र दिखता है। मोटर मार्ग से बमुश्किल 100 मीटर दूरी पर स्थित इन खंभों को आज भी पर्यटकों की दरकार है। बीरखंभे सामान्य अधिष्ठान आठ गुणा तीन माप में स्थापित बीरखंभों का पास क्रमश: 1.45 सेमी से दो मीटर तक है। चौड़ाई 32 से 45 सेमी तक है। आधा भाग अपने मूल अधिष्ठान में चतुष्कोणीय जहां अष्टकोणीय जिसे सामान्यतया एक लंबी मोटी पैनी रस्सी से बांटा गया है। अलंकृत रेखा रस्सियों में उकेरी गई हैं। इस बीम के दोनों ओर कण भाग में एक-एक दंडरूपा गोल रेखा बनाकर अलंकृत किया गया है। उर्ध्व भाग में चतुष्कोणीय तथा प्रत्येक भाग में अलग-अलग आकृतियां उकेरी गई हैं, जिसमें चर्तुभुजी तलवार धारी युवक द्विभुजीय समग्र मुद्रा में लंबा कोट पहना दोनों पार्श्वा के कटिभाग में रखा, एक पैनी दृष्टि में रखा हुआ प्रदर्शित है। चौथे भाग में द्विभुजा एक धावक का चतुष्कोणीय में उकेरा गया है। इसमें बनी सभी मानवाकृतियों के सिर में सिस्त्राण और कानों में कुंडल पहने सभी समस्त आभूषणों से अलंकृत है। शिखर भाग में एक रेखांकित पद से अमृत घट के ऊपर विद्यमान हैं। सतापथ्य कला के आधार पर यह 15 वींशती ईसा के प्रतीत होते हैं। सातों खंभों में एक ही कला उकेरी गई हैं। बीरखंभ शब्द दो शब्द से मिलकर बना है। बीर और खंभ अर्थात वीर स्तंभ रेगड़ स्तंभ के आलेख में लेख मिलता है, जिसमें शक 1316 और 1324 के साथ ही श्री राजा ज्ञान चंद शुभम प्रथम में राम मेहता द्वितीय में श्री मेहता थेबू को रौत मेहता ले करायो आदि भी अंकित है। डा. राम सिंह ने काली कुमाऊं के राग-भाग में इसका उल्लेख किया है। इसी तरह डा. यशोधर मठपाल भी इन्हीं बीरखंभों को कीर्ति स्तंभ मानते हैं। पुरातत्व विभाग के डा. चंद्र सिंह चौहान इन्हें बीरखंभ मानते हैं उन्होंने कहा कि विभाग ने इनके संरक्षण के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा है, जबकि जर्मन अध्यता जोठाईमर इन्हें वीरशिवा मानते हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर उत्तरी भारत में कहीं-कहीं गोवर्द्धन स्तंभ वीर स्तंभ, दक्षिण भारत में नाडकल, राजस्थान में सती स्तंभ आदि नामों से जाना जाता है। विश्व में प्रचलित स्थानीय भाषा के अनुसार विभिन्न नामों से नामित बीरखम आज भी कुमाऊं में लगभग 100 से अधिक मिल चुके हैं। कुमाऊं में बिरखम नाम के गांव भी देखने को मिलते हैं।

http://epaper.amarujala.com/svww_index.php


 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22