Tourism in Uttarakhand > Tourism Places Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थलों से सम्बन्धित जानकारी

Untracked Tourist Spot In Uttarakhand - अविदित पर्यटक स्थल

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

There many be many such un-traced tourist spot in UK. A unique cave has been discovered in Hudoli, Uttarkashi of UK.

M  S Mehta



हुडोली में मिली अनोखी गुफाNov 09, 02:32 am

नौगांव (उत्तरकाशी)। सीमांत जनपद उत्तरकाशी की पुरोला तहसील के ठढुंग हुडोली बाजार से लगभग दस किमी ऊचांई पर घने जंगलों में विशाल चट्टान के पास एक दुर्लभ गुफा का पता चला है। जिसे स्थानीय लोग सुंदरिया ओडार के नाम से जानते है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार इस गुफा में सर्व प्रथम एक बाबा तथा ठढुंग निवासी चतर सिंह तथा स्व. राजेंद्र सिंह ने गुफा में अंदर घुसने की पहल की थी। इस संबंध में जब दैनिक जागरण संवाददाता व पुरातत्व की रूचि रखने वाले शिक्षाविदों को जानकारी मिली तो उन्होंने पूरे दल के साथ गुफा स्थल का भ्रमण किया। भ्रमण दल में शामिल महाविद्यालय बड़कोट के प्रो. आरएस असवाल भ्रमण दल के ग्रुप लीडर जय प्रकाश बमोला, चंद्रमोहन नौडियाल राइंका हुडोली का कहना है कि यह गुफा बहुत लंबी तथा कलात्मक है। गुफा का प्रवेश द्वार अत्यंत ऊंची चटटान के निचले भाग पर है। पूरे द्वार पर लताएं बिखरी हुई हैं। प्रवेश करते ही गुफा में फैली बीट को देखकर लगता है कि यहां गुरूड़, काखड़ आदि पक्षियों का स्थाई बसेरा है। 28 कदम बाद गुफा में एक सकरा द्वार है। जिसमें लेट कर प्रवेश किया जा सकता है। जो लगभग पांच मी. लंबी है। इसके बाद दूसरी गुफा में प्रवेश होता है, जो पर्याप्त मात्रा में खुली है। 24 कदम आगे भित्ति धूसर है। जगह जगह मानो सफेद सीमेंट से भित्ति चित्र बने हैं। फिर लगभग 13 फुट चट्टान चढ़ कर एक छोटा तालाब है। जिसके पास तीन शिवलिंग क्रमश: दो फुट, डेढ़ फुट तथा एक फुट ऊचांई के हैं, जो तालाब के प्रथम छोर पर है। अंतिम छोर पर स्फटिक जैसा छोटा लगभग आठ इंच का चमकता शिवलिंग है। जिस पर ऊपर से जल धारा टपकती रहती है। यहीं गुफा शीशर् पर लटकते हाथी के ढाई फुट लंबे दो दांत दर्शनीय है। स्फटिक शिवलिंग से पांच कदम आगे पुन: 11 फुट शिला चढ़नी पड़ती है। जिस पर चारों ओर श्वेत भित्ति चित्रों की छटा दर्शनीय है। इसके बाद दीर्घ कक्षीय गुफा मिलती है, जिसमें तीन तालाब, एक तरफ जानवरों की हड्डियों का ढेर तथा विभिन्न प्रकार के रोमाचिंत करने वाले भित्ति चित्र तथा प्रस्थर प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। यहां से छह कदम नीचे उतर कर निचले पुर में दीर्घ तालाब का गुफा कक्ष है। इसके अंतिम छोर पर मकर मुखी गुफा मुख है जिससे आगे एक बड़ी सफेद रंग से रंगी गुफा दिखाई देती है, लेकिन इस कक्ष में प्रवेश मार्ग पर किसी जानवर संभवत: भालू के ताजे पदचिह्न दिखाई देने के कारण आगे जाने संभव नही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_3891452.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
दसौली

नंदप्रयाग से 10 किलोमटीर दूर।

इस छोटे गांव में बैरास कुंड स्थित है जहां, कहा जाता है, कि रावण ने भगवान शिव की तपस्या की थी। रावण ने अपनी ताकत दिखाने के लिये कैलाश पर्वत को उठा लिया था और इस जगह अपने 10 सिरों की बली देने की तैयारी की थी। इस जगह का नाम तब से दशोली पड़ा जो अब दसौली में परिवर्तित हो गया है।
 

पंकज सिंह महर:
दुगड्डा

वर्तमान पौड़ी जिले के कोटद्वार, लैंसडाउन, पौड़ी एवं श्रीनगर की तरह दुगड्डा भी एक प्राचीन शहर है। यह गढ़वाल क्षेत्र की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित है।

इतिहासकारों के अनुसार प्राचीनकाल में दुगड्डा ईपू. ईसा पूर्व वर्ष 304-232 में सम्राट अशोक के समय के मौर्य साम्राज्य का एक भाग था। इसके बाद गढ़वाल तथा कुमाऊं पर कत्यूरी वंश का शासन हुआ। इस वंश की समाप्ति पर गढ़वाल एवं कुमाऊं दो अलग राज्य बन गये तथा दुगड्डा सहित गढ़वाल, पंवार वंश के अधीन रहा।

वर्ष 1803 से 1815 के बीच गढ़वाल पर नेपाल के गोरखों का आधिपत्य तब तक रहा, जब सुदर्शन शाह ने अंग्रेजों की सहायता से राज्य पर फिर वापस कब्जा कर लिया। इसके बदले उन्होंने अपने राज्य का कुछ भाग अंग्रेजों को दे दिया और इसके कारण यह ब्रिटिश गढ़वाल नाम से जाना जाने लगा। ब्रिटिश गढ़वाल में पौड़ी गढ़वाल, चमोली जिला तथा रूद्रप्रयाग जिले का एक अंश शामिल था।

दुगड्डा का आधुनिक इतिहास की संबद्धता धनीराम मिसरा से है जो शहर के संस्थापक माने जाते हैं और यह इस बात से प्रमाणित होता है कि यहां कई स्थान उनके नाम पर हैं, जैसे धनीराम बाजार। धनीराम के पूर्वज जम्मू-कश्मीर के वासी थे, पर वे श्रीनगर गढ़वाल में बस गये। यहां उनका निकट संपर्क टिहरी के राजाओं से हुआ। जब राजा प्रद्युमन शाह खुदबुदा में गोरखों से युद्ध में मारे गये तब उनके स्वामी भक्त दरबारियों ने उनके 14 वर्षीय पूत्र सुदर्शन शाह को सुरक्षित रखा। धनीराम के पूर्वज इन दरबारियों में से एक थे। धनीराम का जन्म सरूद्दा (दुगड्डा) गांव में वर्ष 1869 में हुआ था। उनके दादा हरिकांत मिसरा दुगड्डा में बस गये तथा इस शहर को विकसित करने का क्षेय उनके पुत्रों तथा पौत्रों को जाता है।

टिहरी राज्य की राजधानी श्रीनगर का प्राचीन रास्ता दुगड्डा से गुजरता था तथा लोग पैदल यात्रा करते थे। वर्ष 1857 में लैंसडाउन में अंग्रेजों द्वारा गढ़वाल रेजिमेंट का गठन होने के बाद भी कोटद्वार-दुगड्डा का रास्ता फतेहपुर-उमरीखाल तक कच्चा रास्ता था। सेना के लिए आपूर्ति का सामान खच्चरों पर लादकर लैंसडाउन जाता था तथा इसके लिए दुगड्डा के बहेदी में एक खच्चरों गाह के ठहरने का स्थान था।

इतिहास के इस समय दुगड्डा एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक शहर था। वर्ष 1907 की बाढ़ में जब सिधबली के पास कोटद्वार की पुरानी मंडी बह गयी, तब धनीराम ने दुगड्डा के बहेदी में एक नया बाजार बनाया। कई मारवाड़ी व्यापारी तथा बरेली, मोरादाबाद एवं बिजनौर से व्यापारी यहां आये और दुगड्डा में बस गये जिससे शहर अपने आप में एक व्यापारिक केंद्र के रूप में उदित हुआ। नजीबाबाद, हलदौर, चांदपूर आदि पड़ोसी शहरों से बड़ी मात्रा में वस्तुएं यहां बैलगाड़ियों या ऊंटों पर पर लायी जाने लगी और आगे इसे लैंसडाउन एवं पौड़ी, श्रीनगर, बद्रीनाथ तक पहुंचाया जाता। वास्तव में, भोजन सामग्रियों तथा अन्य वस्तुओं की आपूर्ति ही पहाड़ियों तक नही जाती, बल्कि सुदूर नीति एवं माना से भोटिया लोग यहां आक अपने सामानों की बिक्री करते।

वर्ष 1920 तक कोटद्वार से दुगड्डा तक पक्की सड़क बनी एवं कार एवं मोटरगाड़ियां इस पर चलने लगी। वर्ष 1924 में इस सड़क को उमरीखाल तथा लैंसडाउन तथा वर्ष 1944 में पौड़ी तक बढ़ाया गया। वर्ष 1926 में कोटद्वार तक रेल आने पर धीरे-धीरे कोटद्वार वाणिज्य केंद्र के रुप में विकासित होने लगा। इस विकास को वर्ष 1934 में मोती बाजार की आग एवं वर्ष 1929 और वर्ष 1943 के प्लेग महामारी ने बिगाड़ दिया। वर्ष 1927 की बाढ़ ने भी दुगड्डा में व्यापार तथा वाणिज्य की हालत बिगाड़ दी जो कोटद्वार की ओर ध्यान केंद्रित करने में सहायक बना।

दुगड्डा के इतिहास का एक अन्य रूचिकर पहलू है। इस शहर तथा यहां के नागरिक ने कुली-बेगार आंदोलन, डोला-पालकी विद्रोह जैसे सामाजिक आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभायी तथा कई आर/समाजी तेजस्वियों की मेजवानी भी की।

यह शहर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से भी निकट से संबद्ध रहा है। इस समय स्वर्गीय मुकुन्दीलाल वकील ने इसे अपने छिपने का मुख्य स्थान बनाया तथा वर्ष 1936 तथा वर्ष 1945 में दो बार स्वाधीनता संघर्ष के लिए समर्थन जुटाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू यहां आये। काकोरी घटना के शीघ्र बाद क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद थोड़े समय के लिए छद्मवेश में वर्ष 1929 में यहां साथी देशभक्त भवानी सिंह रावत के आमंत्रण पर यहां आये थे जो पास के नाथोपुर गांव के वासी थे। आजाद के निशानेबाजी के अभ्यास को अब भी याद किया जाता है तथा यहां उनकी विशिष्टता का गवाह एक पेड़ अब भी मौजूद है। इस महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि स्वरुप प्रत्येक वर्ष दुगड्डा के रामलीला मैदान में 27 फरवरी को शहीद मेला का समारोह होता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

JUST HAVE LOOK ON THIS VIDEO.


http://www.youtube.com/watch?v=_958XZOyNTc

पंकज सिंह महर:
बधाणीताल: बेपनाह सौंदर्य पर पर्यटकों की नजरों से दूर   

रुद्रप्रयाग। कदम-कदम पर प्रकृति ने जनपद रुद्रप्रयाग के पर्यटन स्थलों को बेपनाह सौंदर्य बख्शा है। यहां की मनोहारी छटा सदियों से आकर्षण का केंद्र रही हैं। इन स्थलों में दर्पण के समान चमकते मनोहारी तालों का भी अपना विशिष्ट स्थान है। जखोली ब्लाक में बधाणीताल की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है, लेकिन सरकारी अमले की उदासीनता से प्रकृति का यह अनमोल खजाना पर्यटकों की नजरों में नहीं आ पाया है।

मानव जब शोर-शराबे की दुनिया से दूर इन स्थानों पर पहुंचता है तो वह कुदरत की अनमोल रचना का दृश्यावलोकन कर भावविभोर हो उठता है। विकास खंड के धारकुड़ी तक मोटरमार्ग व 4 किमी. की पैदल यात्रा के बाद बधाणीताल पहुंचा जा सकता है। इस ताल में मनमोहक मछलिया स्वतंत्र रूप से विचरण करती रहती है। सदियों से चली आ रही मान्यता के अनुसार ग्रामीण इन मछलियों को दैवीय प्रतिरूप मानते है। कहा जाता है कि इन मछलियों के शिकार से दैवीय प्रकोप टूट पड़ता है। इस क्षेत्र के इर्द-गिर्द सुरम्य पहाड़ियां, हरी-भरी मखमली बुग्याल, रंग बिरंगी वन्य प्रजातियों के पुष्प और पक्षियों का कलरव सैलानियों व पर्यटकों को खूब भाता है। यहां की प्रकृति के अनमोल खजानों को पर्यटन से जोड़ने के लिए कोई पहल होती नहीं दिखाई दे रही है और जरूरतमंद सुविधाओं का भी टोटा बना है, जिससे पर्यटक यहां कम पहुंच पाते है। इन्हे सुविधाओं से सरसब्ज कर पर्यटकों का ध्यान यहां आकर्षित किया जा सकता है।

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