Author Topic: Char Dham Yatra 2011 details-from 06 May 2011 - चार धाम यात्रा २०११  (Read 11215 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,
 
Char Dham Yatra 2011 commencing from 06 May 2011:
 
         - Gangotri Dham will open on 06 May 2011
 
         - Yamnotri Dham will open on 06 May 2011
 
         - Kedranath - 08 May 2011
 
         - Badrinath -  09 May 2011
 
 
छह मई को यमुनोत्रीधाम के कपाट खुलेंगे और इसी के साथ आरंभ हो जाएगी आस्था में पगीचारधामयात्रा। उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्रीसे शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री से केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ पहुंचकर विराम लेती है, जिसे श्रद्धालु भू-वैकुंठ यानी धरती का स्वर्ग भी कहते हैं.।

जब आने-जाने के साधन इतने उन्नत नहीं थे, तब गृहस्थी की जिम्मेदारियों से निवृत्त होकर दंपति पैदल चार धाम यात्रा किया करते थे। जो दंपति सकुशल वापस लौट आते, उनके आने की खुशी में पूरा गांव उत्सव मनाता था। इस मौके पर पूरे गांव को भोज कराने का भी आयोजन होता था। माना जाता था कि चार धाम यात्रा से उन्होंने जो पुण्य अर्जित किया है, उसका अंश पूरे गांव को प्राप्त होगा। कालांतर में सुविधाओं के विकास से चार धाम यात्रा को पूरी दुनिया में ख्याति मिली और श्रद्धालुओं के लिए यह देवभूमि पुण्यभूमि बन गई।

यात्रा का श्रीगणेश गंगाद्वार से

चारधामयात्रा की शुरुआत हरिद्वार से मानी गई है। हरिद्वार को श्रीविष्णुके साथ-साथ शिव का द्वार भी माना जाता है। पहाड की कंदराओंसे उतरकर गंगाजीयहीं मैदान में प्रवेश करती हैं। इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वारभी कहा गया है। यहीं देवभूमि के प्रथम दर्शन भी होते हैं। मान्यता है कि यहां गंगाजीमें डुबकी लगाने के बाद शुरू की गई यात्रा पुण्यदायीहोती है।
भक्ति से मोक्ष तक का पथ
जीवन में भक्ति का विशेष महत्व है। इसीलिए धर्मग्रंथ सर्वप्रथम यमुनाजीके दर्शन की सलाह देते हैं। यमुनाजीको भक्ति का उद्गम माना गया है, जबकि गंगाजीको ज्ञान की अधिष्ठात्री। यानी गंगा साक्षात सरस्वती स्वरूपाहैं। माना गया है कि ज्ञान जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शनों से ही संभव है।
यमुनोत्रीधाम मंदिर के पुजारी आचार्य पवन उनियालकहते हैं, सूर्य पुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना भक्ति का स्त्रोत हैं। इसी कारण यमुनोत्रीधाम चार धाम यात्रा का प्रथम पडाव है। कहा गया है कि चैत्र शुक्ल, अक्षय तृतीया, रक्षा बंधन, जन्माष्टमी व भैयादूज के दिन यमुना के पावन जल में स्नान करने से जीव को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
यमुनोत्रीधाम के बाद गंगोत्री की ओर प्रस्थान करने का विधान है। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष पं.संजीव सेमवालकहते हैं कि गंगोत्री धाम के कपाट अक्षय तृतीया को खुलते हैं। इस दिन गंगोत्री धाम पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ ही मंदिर के गर्भगृह में पाषाण मूर्ति एवं अखंड जोत के दर्शन करते हैं। यह क्रम गंगा सप्तमी यानी गंगा अवतरण दिवस तक जारी रहता है, जिसे निर्वाण दर्शन कहा गया है। स्कंद पुराण सहित अन्य धर्मग्रंथों में इसका माहात्म्य बताया गया है। गंगोत्री के बाद यात्रा केदारनाथ धाम की ओर प्रस्थान करती है। इस धाम के मंदिर पुजारी शिवशंकर लिंग कहते हैं, सदियों से चली आ रही परंपरा और केदार खंड में चार धाम यात्रा का विशेष उल्लेख हुआ है। चार धाम यात्रा मनुष्य को अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति दिलाकर पुण्य देती है। भगवान केदारनाथ का मंदिर पूरी दुनिया में अनूठा है। देश के बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक इस पावन धाम के दर्शन मात्र से करोडों पुण्यों का फल प्राप्त हो जाता है।
जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरिके चरणों में है। शास्त्रों में कहा गया है कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बद्रीविशालकी शरण में जाना चाहिए। यह भी मान्यता है कि यहां ब्रहकपालीमें पिंडदान करने से मनुष्य भव-बाधाओं से तर जाता है। इसीलिए बद्रिकाश्रमको भू-वैकुंठ कहा गया है। लेकिन, यह विधान उनके लिए है, जो चारों धाम की यात्रा करते हैं। श्रीबद्रीनाथधाम के धर्माधिकारी जेपीसती कहते हैं, अध्यात्म की दृष्टि से बद्रीपुरीमुक्ति का धाम है और मुक्ति से पूर्व पात्रता के लिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य का होना जरूरी है। मन में अनुराग हो, तो जीवात्मा बंधन में रहकर मुक्त नहीं हो सकती। इसलिए भक्ति, ज्ञान व वैराग्य के लिए यमुनोत्री,गंगोत्री व केदारनाथ के दर्शन के बाद बद्रीनारायण के दर्शन करने से सांसारिक बंधनों से मुक्ति प्राप्त होती है। मिलता है पुण्यों का फल
चारधामयात्रा का पहला दिन करोडों पुण्यों का फल देने वाला माना गया है। इसी दिन चारों तीथरें में अखंड जोत के दर्शन होते हैं। कहते हैं कि निरपेक्ष भाव से इस पवित्र ज्योति के दर्शन किए जाएं, तो समस्त पाप मिट जाते हैं। व्यावहारिक रूप से भी देखें, तो सूर्य की पहली किरण, वर्षा की पहली फुहार, स्नेह का पहला स्पर्श भला किसे नहीं सुहाते।
कब खुलेंगे कपाट
यमुनोत्री:6मई
गंगोत्री: 6मई
केदारनाथ: 8मई
बद्रीनाथ: 9मई
यमुनोत्री
चारधामयात्रा का प्रथम पडाव है यमुनोत्रीधाम। यहां सूर्यपुत्री एवं शनि व यम की बहन देवी यमुना की आराधना की जाती है। यह स्थल समुद्रतल से लगभग 3165मीटर की ऊंचाई पर अवस्थितहै। यमुनोत्रीधाम से एक किमी की दूरी पर चंपासरग्लेशियर है, जो यमुना जी का मूल उद्गम है। समुद्रतल से इस ग्लेशियर की ऊंचाई लगभग 4421मीटर है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि यह पवित्र स्थान कभी एक ऋषि असित मुनि का निवास स्थल था। मान्यता है कि असित मुनि ने यहां देवी यमुना की कठोर आराधना की थी, जिससे प्रसन्न होकर यमुना जी ने उन्हें दर्शन दिए थे। गंगोत्री
पौराणिक कथा है कि देवी गंगा ने राजा भगीरथ के पुरखों को पापों से तारने के लिए नदी का रूप धारण किया था। भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर वह धरती पर अवतरित हुई थीं। गंगोत्री धाम में इन्हीं मां गंगा की पूजा होती है, जो कि समुद्रतल से 3140मीटर की ऊंचाई पर अवस्थितहै। स्वर्ग से उतरकर गंगाजीने पहली बार गंगोत्री में ही धरती का स्पर्श किया। बताते हैं कि गंगाजीके मंदिर का निर्माण 18वींसदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। वैसे गंगाजीका वास्तविक उद्गम गंगोत्री से 19किमी की दूरी पर गोमुख में अवस्थितहै। लेकिन, श्रद्धालु गंगोत्री में ही गंगाजीके दर्शन करते हैं।
केदारनाथ
रुद्रप्रयागजनपद में समुद्र तल से लगभग 3581मीटर की ऊंचाई पर मंदाकिनी नदी के आंचल में अवस्थितकेदारनाथ धाम का देश के बारह ज्योतिर्लिगोंमें विशिष्ट स्थान माना गया है। श्रीमद्भागवत महापुराणमें भी केदारनाथ धाम का जिक्र मिलता है। पुराणों में एक कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे थे और उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव बैल के रूप में प्रकट हुए। तब से यहां बैल रूपी शिव के पिछले हिस्से की पूजा होती चली आ रही है।
बद्रीनाथ
नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि स्वर्ग और धरती पर असंख्य तीर्थ हैं, लेकिन बद्रिकाश्रमसरीखा तीर्थ न तो कोई है, न होगा। मान्यता है कि गंगाजीने जब स्वर्ग से धरती के लिए प्रस्थान किया, तो उनका वेग इतना तेज था कि संपूर्ण मानवता खतरे में पड जाती। इसलिए गंगाजी12पवित्र धाराओं में बंट गईं। इन्हीं में एक है अलकनंदा,जिसके तट पर बद्रिकाश्रमस्थित है। समुद्र तल से लगभग 3133मीटर की ऊंचाई पर चमोली जनपद में स्थित इस मंदिर का निर्माण 8वींसदी में आद्यगुरुशंकराचार्य ने करवाया था। (Source Dainik Jagran)
 
You will get all the details of Char Dham Yatra in this topic.
 
Regards.
 
M S Mehta
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Char Dham Booking No - 0135-2434036, 2431793, 2653309

Joint Rotation Bus Satation Rishikesh - 0135-2432013

Garhwal Vikas Nigam Limited - 0135-2746817 & 2749308

site - www.gmvnl.com

Kumaun Vikas Nigam Limited - 05942-236356 & 236374

website - www.kmvn.org


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे-

उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद - पंडित दींन दयाल उपाध्याय पर्यटन भगवन, गढ़ीकैंट (निकट ओ एन जी सी ) देहरादून

फ़ोन नंबर -0135-2559987, 2559898, 2559900

Fax- 0135-2559988

E-mail - dd-tourism-ua@nic.in


umeshpant

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Dear Shri Mehta Saheb,

Thanku so much,

samay samay per aapke dwara di jane wali jankariya manav hit ke liye prena dayi hei.

mehta ji kya waha jane ke liye pahle se booking karni padti hea kya? as per your mail below , pls confirm

Regards

Umesh chandra pant
9899221158

umeshpant

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Location : Right Bank River Alaknanda
 Dedicated To : Lord Vishnu
 Altitude : 3,133 mt
 Built In : 8th Century AD
 
 
Badarinath Dham is considered as one of the most sacred centres of pilgrimage situated in the lofty Himalayan heights in the Garhwal hill tracks (Uttarakhand). Situated at the height of 3133 m (10248 feet) above sea level. The route to Badarinath is one of the most fascinating one due to the lofty hilly terrain, curves and cliffs amidst the most scenically beautiful place on the earth.

Throughout the route to Badarinath there are numerous pilgrimage sites at Deo Prayag, Rudraprayag, Karnaprayag, Nandaprayag and Vishnuprayag; as well as Pandukeswar where king Pandu observed Tapasya with his queen Madri and where his sons Pandavas, stayed during their pilgrimage to heaven, and the site where Bhima and Hanuman (sons of Vayu) met.

At Badarinath Lord MahaVishnu is believed to have done his penance. Seeing the Lord doing his penance in the open, Goddess Mahalaxmi is believed to have assumed the form of Badari tree to provide him shelter to face the onslaught of the adverse weather conditions, therefore the name Badari Narayan. It is believed that Lord Vishnu revealed to Narad rishi that Nar & Naryans forms were his own. It is also believed that Narad rishi, who also did his penance here, is even now worshipping the supreme God with Ashtakshara mantras.

The image of Badarinarayan here is fashioned out of Saligramam. Badarinarayan is seen under the Badari tree, flanked by Kuber and Garuda, Narad, Narayan and Nar. Mahalakshmi has a sanctum outside in the parikrama. There is also a shrine to Adi Sankara at Badarinath.

Behind the temple of Lord Badarinarayan is the Lakshmi Narsimh mandir, with shrines to Desikacharya and Ramanujachary.At Badarinath one can witness one of the greatest wonders of Nature in the Hot water springs of Taptkund on the banks of ice chilled river Alaknanda. The temperature of the water in the Kund is 55 degree centigrade whereas the normal temperature in this region for most part of the year remains at 9-10 degree centigrade to sub-zero levels. Before visiting the temple the pilgrims take a holy bath in the Taptkund.

The Temple's present structure was built by the Kings of Garhwal. The Temple has three sections - Garbhagriha (Sanctum), the Darshan Mandap, and Sabha Mandap. The Garbhagriha (Sanctum) houses Lord Badari Narayan, Kuber (God of wealth), Narad rishi, Udhava, Nar & Narayan.

Lord Badari Narayan (also called as Badari Vishal) is armed with Shankh (Conch) and Chakra in two arms in a lifted posture and two arms rested on the lap in Yogamudra.The principal image is of black stone and it represents Vishnu seated in meditative pose. The temple also houses Garuda (Vehicle of Lord Narayan). Also here are the idols of Adi Shankar, Swami Desikan and Shri Ramanujam. Guru-Shisya parampara is supposed to have its roots here.

 Kapat Opening:- The kapat of Shri Badarinath Temple will open on 9th May 2011 at 5:30 AM .

Best Time to visit:- The ideal time or peak season to go for a Char Dham Yatra is from May to October, except monsoons. This is because; all the four sacred sites are perched in Garhwal Himalayas, which is prone to heavy snowfall. As a result, all the passage leading to the shrines are blocked. Moreover, during the monsoon season, there is undue threat of having landslides, which can further disrupt the journey. For safety reasons, the gates of the temples are also closed for this period of time and the idols are shifted to nearby pilgrim points.


 
 

Anil Arya / अनिल आर्य

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विधि-विधान के साथ अक्षय तृतीया पर खुले कपाट, बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर श्रद्धालुआें ने की पूजा-अर्चना http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20110507a_001180005&ileft=3&itop=504&zoomRatio=932&AN=20110507a_001180005

Devbhoomi,Uttarakhand

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गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुले



  उत्तरकाशी, जागरण कार्यालय : अक्षय तृतीया के पर्व पर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ गंगोत्री एवं यमुनोत्री धाम के कपाट खोल दिए गए। बारिश की रिमझिम फुहारों के बीच हजारों श्रद्धालु इस पावन पल के गवाह बने। इससे पूर्व पारंपरिक वाद्य यंत्रों  के साथ सुबह भैरोंघाटी से गंगा की डोली गंगोत्री तथा खरसाली गांव से यमुना की डोली यमुनोत्री पहुंची। जहां उनका भव्य स्वागत किया गया। आगामी छह माह तक श्रद्धालु गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन कर सकेंगे।


शुक्रवार सुबह दस बजे भैरोंघाटी से  ढोल दमाऊ व महार रेजीमेंट के बैंड की धुनों के बीच तीर्थ पुरोहित एवं श्रद्धालुओं का हुजूम मां गंगा की डोली के साथ 10 गंगोत्री धाम पहुंचे। गंगा की भोगमूर्ति मंदिर में स्थापित करने के बाद तीर्थ पुरोहितों ने गंगा सहस्त्र नाम पाठ किया और अपह्रान 12 बजकर 55 मिनट मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं लिए खोल दिए गए। इसी के साथ करीब ढाई हजार श्रद्धालुओं ने मां गंगा की भोग मूर्ति के दर्शन कर मनौतियां मांगी।


 इस मौके पर गंगोत्री विधायक एवं संसदीय सचिव गोपाल सिंह रावत, नगर पालिका अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौहान, डीएफओ डा.आईपी सिंह, गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष संजीव सेमवाल,सचिव दीपक सेमवाल आदि मौजूद थे।
 source dainik jgaran

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 उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू               ND
उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुक्रवार से शुरू होने के साथ-साथ यहां तीर्थयात्रियों की चहल-पहल शुरू हो गई है। अक्षय तृतीया के अवसर पर लाखों तीर्थयात्रियों ने हरिद्वार में गंगा स्नान करके दान-पुण्य किया।

सैकड़ों श्रद्धालु हरिद्वार एवं ऋषिकेश से वाहनों में सवार होकर बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगौत्री और यमुनौत्री के दर्शनों हेतु रवाना हुए। जगह-जगह सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस, सुरक्षाबलों तथा घोड़ा पुलिस, तैराक पुलिस को तैनात किया गया है। सचल चिकित्सा एवं स्थायी चिकित्सा केंद्रों को भी सभी सुविधाओं से लैस कर दिया गया है।

चारोंधाम दुर्गम पहा़ड़ी क्षेत्रों में स्थित होने के कारण भारी वाहनों का रात में संचालन प्रतिबंधित रखा गया है। चारधाम विकास परिषद बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने भी श्रद्धालुओं की मुफ्त आवास एवं भोजन व्यवस्था के लिए वहां रेन बसेरों एवं भंडारों की व्यवस्था की है।    (www.webduniya.com

Devbhoomi,Uttarakhand

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यमुनोत्री मंदिर जाने के लिए सुविधाएं कम, परेशानी ज्यादा
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पिछले यात्रा सीजन में वर्षात के दौरान क्षतिग्रस्त यमुनोत्री मंदिर परिसर को जोड़ने वाला एप्रोच मार्ग आज तक भी नहीं बन पाया है। इसके चलते यात्रियों को काफी संकरी मार्ग से भारी परेशानी झेलकर मंदिर परिसर तक पहुंचना पड़ रहा है।

यमुनोत्री धाम परिसर तक जाने वाला एप्रोच मार्ग बीते यात्रा सीजन के दौरान भारी बारिश के चलते यमुना के बहाव से बह गया था। मार्ग बनाने के लिए मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने कई बार शासन-प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन एक साल बाद यात्रा फिर से शुरू हो गई और आज भी यह रास्ता नहीं बन पाया है। जिलाधिकारी डॉ.हेमलता ढ़ौंडियाल ने सिंचाई विभाग बड़कोट को धाम के कपाट खुलने तक इस एप्रोच मार्ग को तैयार करने का जिम्मा दिया था, लेकिन धाम के कपाट खुलने के दो-तीन दिन पहले ही यहां सिंचाई विभाग ने काम शुरू किया।

यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव खिलानंद उनियाल, रमण प्रसाद उनियाल, रतनमणी उनियाल, पवन उनियाल आदि का कहना है कि जिलाधिकारी के निर्देशों के बाद भी सिंचाई विभाग ने एप्रोच मार्ग के लिए दीवार देने का कार्य समय से शुरू नहीं किया। इस संदर्भ में सिंचाई विभाग के जेई एसके गौतम का कहना है कि नौ लाख में तीस मीटर दीवार और 20 वायरक्रेट बनने हैं, ठेकेदार को समय पर कार्य दिया गया है, जबकि एप्रोच मार्ग के लिए उन्होंने कहा कि वह उनके पास नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7690710.html

 

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