कहीं उल्टा न पड़ जाए नेता प्रतिपक्ष का दांव (Dec28/09 )
देहरादून। बिजनौर के 61 गांवों को उत्तराखंड में मिलाने संबंधी नेता प्रतिपक्ष का दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए। डा.हरक सिंह रावत इस मामले में अपनी पार्टी में ही अलग-थलग पड़ गए हैं। भाजपा ने मौके की नजाकत को भांपते हुए गेंद केंद्र सरकार की ओर सरका दी है। अब इस प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलनकारी भी मुखर होने लगे हैं।
बिजनौर में चल रहे आंदोलन को खुलकर समर्थन देने और मामले को विधानसभा में उठाने के डा.हरक सिंह रावत की पहल को कांग्रेस पार्टी ने भी हाथों-हाथ नहीं लिया है। कोई भी कांग्रेसी नेता इस मामले में रावत के समर्थन में आगे नहीं आया है। इन हालात में मामले को हाई कमान तक ले जाने की नेता प्रतिपक्ष की रणनीति को बहुत अधिक बल मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। इस मामले में अब तक माहौल को सूंघने का प्रयास कर रही भाजपा ने बड़े सधे कदमों से अपना दांव खेला है। मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के इस दांव को उसी पर दे मारा है। उनका कहना है कि पुनर्गठन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। वही देखे इसमें क्या उचित है।
उत्तराखंड क्रांति दल तो इसके विरोध में पहले ही कूद पड़ा था, अब आंदोलनकारी संगठन भी नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि जब राज्य में विधानसभा तथा लोकसभा सीटों का परिसीमन हो रहा था, पहाड़ से छह सीटें घटाकर मैदान में बढ़ाई जा रही थी, राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, तब कोई भी कांग्रेसी इसके खिलाफ विधानसभा में संकल्प लेकर क्यों नहीं आया। यदि राज्य विधानसभा से इस संबंध में संकल्प पारित कर दिया गया होता तो राज्य में विधानसभा और लोक सभा सीटों का परिसीमन नहीं होता। पहाड़ का प्रतिनिधित्व कम नहीं होता। राज्य गठन के नौ सालों में यह बात साबित हो गई है कि पहाड़ में विकास नहीं हुआ है, जबकि मैदानी जिलों को लाभ मिला। यही वजह है कि नौ सालों तक चुप बैठे बिजनौर और सहारनपुर के लोग अब उत्तराखंड में मिलने के लिए मुखर हो रहे हैं। उन्हें हरिद्वार को उत्तराखंड में मिलाए जाने का लाभ साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। अन्यथा यह आंदोलन हरित प्रदेश के लिए हो रहा होता।
नेता प्रतिपक्ष का यह प्रस्ताव कम से कम पहाड़ में कांग्रेस के पहाड़ विरोधी इसी रुख का प्रतिनिधित्व करता हुआ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की नीति उत्तराखंड राज्य पर भी ढुलमुल रही। पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान पहाड़ से छह विधानसभा सीटें कम होकर मैदान में खिसक गई। इस पर कांग्रेस की गंभीरता नहीं दिखाई दी। नेता प्रतिपक्ष की यह पहल कांग्रेस की उसी नीति के अनुरूप है। यदि विकास में पिछड़ गए पहाड़ ने इसे एक बार फिर से हाथों हाथ ले लिया, तो नेता प्रतिपक्ष का यह दांव उन्हीं पर उल्टा पड़ सकता है।
Source : Dainik Jagran