Author Topic: उप्र के इलाके उत्तराखण्ड में जोड़ने का मामला - Merger of some parts of UP in UK  (Read 12700 times)

सत्यदेव सिंह नेगी

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Pankaj Ji Ki bhavnayen samarthan yogya hain. Parvatiy Rajya Ka maidanikaran kiya jana Durbhgypurn hai iski ninda ki jani chahiye

Sath hi Parvatiy khetr ki Vikas yojnauan aur huye huye kary ke mulyankan ki disha me bhi kam karne ki avasykata hai

सुधीर चतुर्वेदी

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 भाई लोगो यूपी मे विकाश तो अब हो नहीं रहा वहा न बिजली है न पानी है तो अब वे सोच रहे है की उत्तराखंड मे मिल जाते है ........................... लेकिन उन  लोगो को ये नहीं मालूम की हम पहाडियों ने उत्तराखंड के लिये कितना संघर्ष किया न जाने कितना तत्कालीन यूपी सरकार का जुल्म सहा (मंसूरी कांड , रामपुर तिराहा (मुजफर नगर)  कांड और खटीमा कांड ) और न जाने कितने उत्तराखंडी लोग शहीद हुये तब जाकर हम पहाडियों  को ये राज्य नसीब हुआ | और हमारे नेताओ को तो सिर्फ राजनीती  से मतलब है, हो सकता है वो इसका समर्थन कर सकते है जैशा की हमारे उत्तराखंड मे विपक्ष के नेता रावत जी बिजनोर मे कह चुके है | हमारे नेता लोगो को ये बताओ की पहले हमारे पहाड़ो का भला करो जिनका आप प्रतिनिदितव  करते है और जिन लोगो की वजह से आप लोग राजनीती के सिखर पर हो रही बात विलय की तो वो बिलकुल नहीं होना चाहिये क्योंकि मैदानी इलाको का विलय होने से पहाड़ी जिले फिर से विकाश की गतिविधि से महरूम हो जायेगे जैशे परिसीमन करके पहाड़ की विधान सभा सिट कम हो गई, राजधानी देहरादून से गैरसैण नहीं जा रही |
                                   उत्तराखंड             का             मतलब          पहाड़ ............................................................... जय पहाड़ / उत्तराखंड  |

धनेश कोठारी

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जागते रहो! जागते रहो!![/[/b]color]

   [bgcolor=#0000ff]इन दिनों उत्तराखण्ड में सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के गांवों को मिलाने की कवायद राजनीतिक हलकों में गर्माहट पैदा किये हुए है। भाजपा सहारनपुर के कुछ क्षेत्रों को तो कांग्रेस बिजनौर के हलकों को इस राज्य में शामिल करने को उतावली दिख रही है। वहीं ‘तीसरे’ का तमगा पहने उक्रांद इन दोनों में से सिर्फ कांग्रेस का ही विरोध कर रही है। इन सभी के ऐसे ‘सुविधापुर्ण’ कदमों के आलोक में ‘पहाड़’ का चिंतित होना भी स्वाभाविक है। निश्चित ही कल ये सभी दल अपने इस ‘स्टैण्ड’ पर जनहित के कथित मंतव्यों का परदा डाल देंगे और जनता एक बार फ़िर २०१२ में इन्हीं में से किसी को राज्य की कमान सौंप देंगी।
   हमारी चिंता का कारण यह नहीं कि २०१२ में सत्ता की मलाई कौन चाटेगा। बल्कि यह है कि अगले परिसीमन में ‘पहाड़’ का राजनीतिक कद और भी कम हो जायेगा। वर्तमान में हम पहले ही बगैर ‘मुस्तैद’ विरोध के ६ विधानसभा सीटें मैदान को सजाकर दे चुके हैं। राजनीतिक ताकत की कमी के चलते हम ‘गैरसैंण’ भी नहीं जा पा रहे हैं।
   ऐसे में उत्तराखण्ड के ‘नीरो’ शायद ही आपको बतायें कि न मांगने के बाद भी उन्होंने ‘पहाड़ी राज्य’ में हरिद्वार, उधमसिंहनगर का मैदान क्यों मिलाया? क्यों हमारे प्रतिनिधित्व को कम कर दिया गया? समूचे उत्तराखण्ड शब्द को व्याख्यायित करने की बजाय सिर्फ ‘खण्ड’ शब्द को विच्छेदित करने वाले क्या ‘पहाड़ी राज्य’ की अवधारणा को परिभाषित कर पायेंगे? ऐसे बहुत से सवाल जेहन में गुंजते हैं। लेकिन जवाब कौन देगा? सत्ता में बैठै हुक्मरान या खुद को राज्य का ‘हितैषी’ कहने वाले सत्ता के सारथी, या फ़िर वे जो अगली बार स्वयं को ‘मलाई के श्योर हकदार’ मान बैठै हैं। जी नहीं यदि आपने इनसे प्रत्युत्तर की ‘जग्वाळ’ की तो फ़िर ठगे जायेंगे, श्योर है।
   बहुत से राष्ट्रवादी कहेंगे कि यह राज्य को बांटने की कोशिश है। मैं कहूंगा कि निश्चित तौर पर ‘उत्तराखण्ड’ को राज्य से पृथक किया जाना आज भी जरूरी है। देहरादून के बियाबान में हम देहरादून को भी खो चुके हैं। जबकि हमने ‘गैरसैंण’ को विकसित करने की बात जोर देकर कही थी। राज्यान्दोलन के दिनों में हमने साफ़ महसूस किया था जब इन्हीं राष्ट्रीय दलों ने संभावनाओं की भनक पाते ही ‘आम आदमी के आन्दोलन’ को चालाकी से हड़प लिया था। ऐसे में आखिरी आदमी तक विकास का जुमला हकीकत होगा! सोचना ही बेमानी लगता है। तब भी किसी राजा के दरबान की तरह ऊंची आवाज में कहना चाहूंगा-
जागते रहो!      जागते रहो!!    जागते रहो!!!

धनेश कोठारी
kotharidhanesh@gmail.com[/bgcolor]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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UP villages seek inclusion in Uttarakhand


Dehra Dun: As the demand for formation of new states grows in the country, a debate is raging in Uttarakhand whether more than 200 border villages of Uttar Pradesh should be incorporated in the hill state.

With Uttar Pradesh Chief Minister Mayawati favouring the creation of a Harit Pradesh comprising the western region of UP, over 200 border villages in Bijnor, Muzaffarnagar and Saharanpur districts are seeking support from various political parties for their inclusion in Uttarakhand.

Uttarakhand Chief Minister Ramesh Pokhriyal Nishank has already expressed readiness to discuss the issue.

"Our Chief Minister (Nishank) is ready to talk on this issue," a top official said here, adding, the demand is quite old.

http://www.mynews.in/News/UP_villages_seek_inclusion_in_Uttarakhand_N33766.html

सुधीर चतुर्वेदी

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कहीं उल्टा न पड़ जाए नेता प्रतिपक्ष का दांव (Dec28/09 )


देहरादून। बिजनौर के 61 गांवों को उत्तराखंड में मिलाने संबंधी नेता प्रतिपक्ष का दांव कहीं उल्टा न पड़ जाए। डा.हरक सिंह रावत इस मामले में अपनी पार्टी में ही अलग-थलग पड़ गए हैं। भाजपा ने मौके की नजाकत को भांपते हुए गेंद केंद्र सरकार की ओर सरका दी है। अब इस प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलनकारी भी मुखर होने लगे हैं।

बिजनौर में चल रहे आंदोलन को खुलकर समर्थन देने और मामले को विधानसभा में उठाने के डा.हरक सिंह रावत की पहल को कांग्रेस पार्टी ने भी हाथों-हाथ नहीं लिया है। कोई भी कांग्रेसी नेता इस मामले में रावत के समर्थन में आगे नहीं आया है। इन हालात में मामले को हाई कमान तक ले जाने की नेता प्रतिपक्ष की रणनीति को बहुत अधिक बल मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। इस मामले में अब तक माहौल को सूंघने का प्रयास कर रही भाजपा ने बड़े सधे कदमों से अपना दांव खेला है। मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के इस दांव को उसी पर दे मारा है। उनका कहना है कि पुनर्गठन केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। वही देखे इसमें क्या उचित है।

उत्तराखंड क्रांति दल तो इसके विरोध में पहले ही कूद पड़ा था, अब आंदोलनकारी संगठन भी नेता प्रतिपक्ष के खिलाफ मुखर होने लगे हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि जब राज्य में विधानसभा तथा लोकसभा सीटों का परिसीमन हो रहा था, पहाड़ से छह सीटें घटाकर मैदान में बढ़ाई जा रही थी, राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, तब कोई भी कांग्रेसी इसके खिलाफ विधानसभा में संकल्प लेकर क्यों नहीं आया। यदि राज्य विधानसभा से इस संबंध में संकल्प पारित कर दिया गया होता तो राज्य में विधानसभा और लोक सभा सीटों का परिसीमन नहीं होता। पहाड़ का प्रतिनिधित्व कम नहीं होता। राज्य गठन के नौ सालों में यह बात साबित हो गई है कि पहाड़ में विकास नहीं हुआ है, जबकि मैदानी जिलों को लाभ मिला। यही वजह है कि नौ सालों तक चुप बैठे बिजनौर और सहारनपुर के लोग अब उत्तराखंड में मिलने के लिए मुखर हो रहे हैं। उन्हें हरिद्वार को उत्तराखंड में मिलाए जाने का लाभ साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। अन्यथा यह आंदोलन हरित प्रदेश के लिए हो रहा होता।

नेता प्रतिपक्ष का यह प्रस्ताव कम से कम पहाड़ में कांग्रेस के पहाड़ विरोधी इसी रुख का प्रतिनिधित्व करता हुआ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की नीति उत्तराखंड राज्य पर भी ढुलमुल रही। पूर्व कांग्रेस सरकार के दौरान पहाड़ से छह विधानसभा सीटें कम होकर मैदान में खिसक गई। इस पर कांग्रेस की गंभीरता नहीं दिखाई दी। नेता प्रतिपक्ष की यह पहल कांग्रेस की उसी नीति के अनुरूप है। यदि विकास में पिछड़ गए पहाड़ ने इसे एक बार फिर से हाथों हाथ ले लिया, तो नेता प्रतिपक्ष का यह दांव उन्हीं पर उल्टा पड़ सकता है।

Source : Dainik Jagran

सुधीर चतुर्वेदी

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यूपी के गांवों को उत्तराखंड में शामिल करने का विरोध 


डीडीहाट(पिथौरागढ़): उत्तराखंड क्रांति दल ने उत्तर प्रदेश के 61 गांवों को उत्तराखंड में शामिल करने का पुरजोर विरोध किया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि नये मैदानी गांवों को प्रदेश में शामिल करने से विकास का सीधा असर पहाड़ पर पड़ेगा।

उक्रांद कार्यकर्ताओं की बुधवार को डीडीहाट में आयोजित बैठक में वक्ताओं ने कहा कि सरकार यूपी के गांवों को उत्तराखंड में शामिल करने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के गांव पूर्व से ही विकास को तरस रहे हैं। ऐसे में यदि मैदान के गांवों को यहां शामिल किया गया तो पहाड़ को इसका दोहरा नुकसान उठाना पडे़गा।


Source : Dainik Jagran (30/12/09)

Devbhoomi,Uttarakhand

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यूपी के हिस्सों को मिलाने का होगा विरोध: उक्रांद

पैठाणी (पौड़ी गढ़वाल)। उत्तराखंड क्रांति दल की पाबौ में आयोजित बैठक में नेता प्रतिपक्ष के पहाड़ विरोधी बयान पर आक्रोश व्यक्त करते हुए निंदा की गई। इसको लेकर उक्रांद एक जनवरी को जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन करेगा।

बैठक की अध्यक्षता करते हुए जिला कार्यकारी अध्यक्ष देवेन्द्र रावत ने कहा कि कांग्रेस व भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों की मानसिकता पहाड़ विरोधी रही है। कभी उत्तराखंड राज्य की मांग को नकारने वाले सत्ता के लिए अनुकूल स्थिति देख राज्य के पक्षधर बन गए। वक्ताओं ने कहा कि एक तरफ राष्ट्रीय दलों नेजनवरी 2008 के परिसीमन में पहाड़ी क्षेत्रों की सीटें घटा कर मैदानी क्षेत्रों की सीटें बढ़वा दी। दूसरी तरफ अब यूपी के मैदानी भागों की एक लाख जनसंख्या वाले क्षेत्र को उत्तराखंड में मिलाने का राजनीतिक खेल खेला जा रहा है। उन्होंने स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि उक्रांद पहाड़ी राज्य की अवधारणा को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी राजनैतिक चाल को बर्दास्त नही करेगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6063832.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There has been mixed views from our members on this issue. But majority of people are not in favour of this proposal.

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उप्र के गांवों को उत्तराखंड में मिलाने का विरोध


अल्मोड़ा : उत्तर प्रदेश के 61 गांवों को उत्तराखण्ड में मिलाए जाने, राज्य की राजधानी गैरसैंण बनाए जाने सहित विभिन्न मांगों को लेकर उत्तराखण्ड क्रांतिदल की जिला इकाई ने जिलाधिकारी कार्यालय के समक्ष उपवास व धरना कर विरोध प्रदर्शन किया।

राष्ट्रपति व राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन जिलाधिकारी के माध्यम से प्रेषित किया गया। इस दौरान सभा का भी आयोजन किया गया। वक्ताओं ने प्रदेश सरकार के 61 गांवों को उत्तराखण्ड में मिलाए जाने के प्रयासों की आलोचना की। इसके साथ ही राजधानी के सवाल पर की जा रही हीलाहवाली को लेकर गहरा रोष जताया। केन्द्र सरकार से महंगाई को रोकने, सरकारी सस्ता-गल्ले की दुकानों से प्रति व्यक्ति यूनिट के आधार पर राशन उपलब्ध कराने की भी मांग शामिल की गई।

राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन में उत्तर प्रदेश के गांवों को उत्तराखण्ड में मिलाने व गैरसैंण राजधानी सहित विभिन्न मुद्दों पर हस्तक्षेप की गुहार की गई। राज्यपाल को संबोधित ज्ञापन में बढ़ती बेरोजगारी को रोकने के लिए प्रशिक्षित बेरोजगारों को शीघ्र नियुक्ति दिए जाने, पर्वतीय क्षेत्र से निरंतर हो रहे पलायन को रोकने के लिए प्रभावी रोजगार नीति बनाए जाने की भी मांग की गई है।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6068734.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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उप्र के गांवों को उत्तराखंड में मिलाना मंजूर नहीं

बागेश्वर। उत्तर प्रदेश के बिजनौर व सहारनपुर के गांवों को उत्तराखंड में मिलाने का उत्तराखंड क्रांति दल विरोध करेगा। उक्रांद ने इसके विरोध में व गरुड़ के पूर्व प्रमुख चतुर सिंह परिहार के हत्यारों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर तहसील कार्यालय में धरना दिया।

तहसील कार्यालय में धरने के दौरान आयोजित सभा में वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश के गांवों को पहाड़ी राज्य में मिलाने से पहाड़ी राज्य की अवधारणा समाप्त हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा किया तो उक्रांद जनता को साथ में लेकर आंदोलन को बाध्य होगा। वक्ताओं ने गरुड़ के पूर्व प्रमुख चतुर सिंह परिहार के हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार न किए जाने पर आंदोलन की चेतावनी दी। कहा कि पुलिस द्वारा अब तक की हत्याओं का पर्दाफाश न करने के कारण जनता भयभीत है तथा हत्यारों के हौसले बुलंद है।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6068742.html

 

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